विश्व भर में अन्य सभ्यताओं की अपेक्षा मात्र सत्सनातन समाज ही एक ऐसा समाज है जिसकी दृष्टि से देखने पर मातृ - पक्ष में नानी - नाना, मामी - मामा, मासी - मासड़ मिलते हैं जबकि पितृ - पक्ष में दादी - दादा, चाची - चाचा, ताई - ताया, बुआ - फूफ़ा मिलते हैं । इन दोनों परिवारों के सभी संस्कारी लोग कभी अपने - अपने परिवार में संयुक्त रूप से रहते थे । वे आपस में मिलजुल कर कार्य करते थे और एकजुट रहकर पारिवारिक दुःख - सुख का भी सामना करते थे, बच्चों को सबका प्यार व अच्छे संस्कार मिलते थे । वह संयुक्त परिवार कहलाता था । लेकिन वर्तमान में भाग - दौड़ की जिन्दगी में ऐसे परिवार या तो पूर्णरूप से लुप्त हो गए हैं या जो बचे हुए हैं, वे लुप्त होने के कगार पर पहुँच गए हैं ।