मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: मातृवंदना शिमला

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    2. भक्ति, श्रद्धा, प्रेम का पर्व श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

    भगवान श्रीकृष्ण लगभग 5000 वर्ष ईश्वी पूर्व इस धरती पर अवतरित हुए थे। उनका  जन्म द्वापर युग में हुआ था। द्वापर युग, हिंदू धर्म के चार युगों में से दूसरा युग है। यह युग सत्ययुग के बाद और कलयुग से पहले आता है। द्वापर युग को धर्म, सत्य और सदाचार का युग माना जाता है। द्वापर युग में ही महाभारत का युद्ध हुआ था, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान दिया था। 
    भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में कंस की कारागार में हुआ था। कंस जो देवकी का भाई और मथुरा का राजा था, को भविष्यवाणी हुई थी कि देवकी की आठवीं संतान उसका वध करेगी। सुनकर कंस ने देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया था l कालचक्र घुमने के साथ - साथ जब भी उनके यहाँ कोई बच्चा पैदा होता तब कंस स्वयं आकर उसे मार देता था l इस प्रकार उसने एक - एक करके उनके सात सभी बच्चों को जन्म लेने के पश्चात तुरंत मार डाला था।
    भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की आधी रात को मथुरा की कारागार में देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था l वे भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। उस समय भयंकर वर्षा और गगन में मेघों की भारी गरजना हो रही थी। श्रीकृष्ण के जन्म के समय, कारागार के सभी पहरेदार सो गए थे और भगवान विष्णु की अपार कृपा से, वासुदेव कृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के पास पहुँचाने में सफल रहे l
    कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र के दिन रात्रि के 12 बजे हुआ था l कृष्ण जन्माष्टमी, भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव, भारत में बहुत धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। भक्त उपवास रखते हैं, मंदिरों में जाते हैं, भजन गाते हैं, और भगवान कृष्ण की लीलाओं का भी पाठ करते हैं।
    जन्माष्टमी का व्रत भगवान कृष्ण के जन्मदिन के उपलक्ष्य में रखा जाता है। यह व्रत भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करने की एक युक्ति है। इस दिन व्रत रखने से भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है और माना जाता है कि इससे सुख, शांति और समृद्धि मिलती है। जन्माष्टमी का व्रत आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
    यह पर्व समाज को सत्य, धर्म और भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है l श्रीकृष्ण के आदर्श जीवन से हमें अन्याय के विरुद्ध संघर्ष, सयम और अध्यात्मिक जागरूकता का संदेश प्राप्त होता है l”
    जन्माष्टमी का व्रत पूरे दिन रखा जाता है और रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के बाद या अगले दिन सूर्योदय के बाद खोला जाता है । इस दिन लोग उपवास रखते हैं, भजन - कीर्तन और भगवान कृष्ण की पूजा - अर्चना करते हैं l जन्माष्टमी व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना, जन्माष्टमी के व्रत में अन्न ग्रहण नहीं करना, व्रत को रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के बाद या अगले दिन सूर्योदय के बाद खोलना, जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण के मंदिर जाना, सुबह और रात में विधि - विधान से भगवान कृष्ण की पूजा करना, भगवान को अर्पित किये गए प्रसाद को ही ग्रहण करके व्रत खोलना, व्रत के दौरान दिन में नहीं सोना, किसी को अपशब्द नहीं कहना अदि नियमों का पालन किया जाता है l
    सुबह जल्दी उठकर स्नान करके व्रत का संकल्प करना । घर के मंदिर को साफ करना और लड्डू गोपाल को स्नान कराना। लड्डू गोपाल को सुंदर वस्त्र, मुकुट, माला पहनाना और चंदन का तिलक लगाना । लड्डू गोपाल को झूले में बैठाना और उन्हें झूला झुलाना । भगवान को फल, मिठाई, पंचामृत, पंजीरी आदि का भोग लगाना । रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के बाद विधि - विधान से पूजा करना । भगवान की आरती करना और प्रसाद चढ़ाना । भगवान को अर्पित किए गए प्रसाद को ग्रहण करके व्रत खोलना । पूरे दिन राधा-कृष्ण के नाम का जप करना । भगवान कृष्ण का अधिक से अधिक ध्यान करना । किसी से झगड़ा नहीं करना और क्रोध से बचना । इन नियमों का पालन करके जन्माष्टमी का व्रत रखने से भक्तों को भगवान कृष्ण की अपार कृपा प्राप्त हो सकती है ।

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    1. कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था एवं ब्राह्मण समाज

    मातृवन्दना जुन 2025                                                

    धर्म और अधर्म - समय सूचक यंत्र की भांति समय वृत्त निरंतर घूम रहा है । परिवर्तन प्रकृति का नियम है । दिन के पश्चात रात और रात के पश्चात दिन का आगमन अवश्य होता है । विश्व में कभी धर्म का राज स्थापित होता है तो कभी अधर्म का । सृष्टि में सत्सनातन धर्म का होना नितांत आवश्यक है । असत्य, अधर्म, अन्याय और दुराचार को अधर्म पसंद करता है लेकिन धर्म नहीं । युद्ध चाहे राम - रावण का हो या महाभारत का, धर्म और अधर्म के महा युद्ध में जीत सदैव धर्म की होती है, अधर्म की नहीं ।
    मानव जाति का पतन और उत्थान - प्राणी जगत में जब एक ओर मनुष्य जाति के मानसिक विकार अपना उग्र रूप धारण करते हैं तो दूसरी ओर उसका बौध्दिक पतन भी अवश्य होता है । काम - कामुकता वश नर के द्वारा स्थान - स्थान पर नारी जाति का अपहरण, बलात्कार, धर्मांतरण किया जाता है, उसका अपमान, शारीरिक - मानसिक शोषण होता है । इससे अब नर जाति भी अछूती नहीं रही है । मदिरा पान से नर - नारी अपना - पराया संबंध भूल जाते हैं । क्रोध में वह झगड़े, मारपीट, करते हैं । वह आतंकी, उग्रवादी, जिहादी बन जाते हैं । वह हिंसा, तोड़फोड़, अग्निकांड करते हैं । लोभ में वह चोरी, ठगी, तस्करी, धन गबन, घोटाले ही नहीं करते हैं, वह छल - कपट, षड्यंत्र भी करते हैं । मोह में वह अपना और अपनों का ही हित चाहते हैं, उससे संबंधित चेष्टायें करते हैं । अहंकार में वह दूसरों को तुच्छ और स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं ।
    संगत से भावना और भावना से विचार उत्पन्न होते हैं । विचारानुसार कर्म, कर्मानुसार निकलने वाला अच्छा और बुरा परिणाम उसका फल - मनुष्य की मानसिक प्रवृत्ति पर निर्भर करता है । वह जैसा चाहता है, बन जाता है । पौष्टिक संतुलित भोजन से शरीर, श्रद्धा, प्रेम - भक्ति भाव से मन, स्वाध्यय से बुद्धि और भजन, समर्पण से उसकी आत्मा को बल मिलता है । इससे मनुष्य के पराक्रम, यश, मान और प्रतिष्ठा का वर्धन होता है । मनुष्य की आयु बढ़ती है । उसके लिए लोक - परलोक का मार्ग प्रशस्त होता है ।
    समर्थ सामाजिक वर्ण व्यवस्था - प्राचीन भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था, क्योंकि यह अपने समृद्ध संसाधनों, सत्सनातन धर्म, वैभवशाली संस्कृति और सम्पन्न अर्थ - व्यवस्था के कारण विश्व की सबसे धनी सभ्यताओं में से एक था । इसके पीछे सत्सनातन धर्म का रक्षण – पोषण, संवर्धन करने वाली आर्यवर्त मनीषियों की सर्व कल्याणकारी सोच थी जो कर्म आधारित व्यापक और सशक्त वैश्विक सत्सनातनी सामाजिक वर्ण - व्यवस्था के नाम से जानी गई है । इसके अनुसार मानव शरीर के चार अवयव प्रमुख माने गए हैं । मुख से ब्राह्मण, पेट से वैश्य, बाजुओं से क्षत्रिय और पैरों से शूद्र की उत्पत्ति हुई, मानी गई है । यह एक दूसरे के पूरक हैं । जिस प्रकार शरीर के चार अवयवों में से किसी एक अवयव के बिना अन्य अवयव का कभी पोषण, रक्षण नहीं हो सकता, उसी प्रकार समाज की वर्ण - व्यवस्था में जो उसके चार अभिन्न वर्ण विभाग हैं - एक दूसरे के पूरक, पोषक और रक्षक भी हैं ।
    सर्व व्यापक सामाजिक वर्ण - व्यवस्था आर्यवर्त काल से सुचारू रूप से चली आ रही है जिसके अंतर्गत वर्ण - व्यवस्था के चार वर्ण विभाग ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण अपने - अपने गुण, संस्कार और स्वभाव के अनुसार सबके हित के लिए कर्म करते हुए सुख - शांति का माध्यम बनते थे । उससे राष्ट्र वैभव सम्पन्न और समृद्धशाली बना था । समय के थपेड़ों ने इस कर्म प्रधान वर्ण - व्यवस्था को जातियों में विभक्त कर दिया । उसने उसमें छुआ - छूत वाली गहरी खाई खोद दी है । उसकी मनचाही कहानी गढ़कर, उसे ठेस पहुंचाई है जो किसी नीच सोच का ही परिणाम है । समर्थ सामाजिक वर्ण - व्यवस्था कर्म आधारित, कर्म प्रधान थी, न कि जन्म आधारित या जाति आधारित । योग्य ब्राह्मण/ आचार्य समाज में प्रतिभाओं की खोज एवं योग्य विद्यार्थियों का चयन करते थे l वे प्रतिभाओं को अपना संरक्षण और उन्हें जीवन में आगे बढ़ने का प्रोत्साहन देते थे l उन प्रतिभाओं के जीवन में विद्यमान सर्व कलाओं का विकास करने में सहयोग करते थे l प्रतिभागियों के लिए वैदिक ज्ञान – विज्ञान की प्रतियोगिताओं का आयोजन करते थे l जीवन में आने वाले संकट, चुनौतियाँ, विपदाओं से निपटने हेतु विद्यार्थियों को आत्म-रक्षा हेतु तैयार करते थे l उन्हें वैदिक शिक्षण – प्रशिक्षण देकर समर्थवान बनाते थे l इस प्रकार समाज के सर्वंगीन उत्थान में उनकी अग्रणीय भूमिका रहती थी l





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    6. अति वृष्टिपात और बाढ़-संकट

    मातृवंदना अगस्त 2023

    जल, वायु, अग्नि, धरती और आकाश सृष्टि के पंच महाभूत, सर्व विदित हैं l धरती पर वायु अग्नि और जल तत्वों की प्रतिशत मात्रा जब कभी कम या अधिक हो जाती है तब उस पर असंतुलन पैदा हो जाता है l वायु का दबाव कम या अधिक होने पर आंधी या तूफ़ान आने और पेड़, जंगल के अभाव में वायुमंडल में ताप अधिक बढ़ने से जंगल में आग लगने का भय बना रहता है l इसी प्रकार धरती पर जब कभी भारी वृष्टिपात होता है तो वर्षाजल बाढ़ के रूप में परिवर्तित हो जाता है और उससे धरती का कटाव होता है, जान-माल की हानि होती है l
    बाढ़ आने का कारण -
    अवैध खनन – कभी नदियों और नालों में विद्यमान बड़े-बड़े पत्थर जल बहाव की गति को कम किया करते थे l लोगों के मकान मिट्टी, लकड़ी के बने होते थे l वे उसी में संतुष्ट रहते थे l परन्तु जबसे पक्के भवन, पुल और मकानों के निर्माण हेतु नदियों और नालों में पत्थर, रेत और बजरी का अवैध खनन किया जाने लगा है तब से उनमें वर्षा काल में जल बहाव की गति भी तीव्र होने लगी है और उसे बाढ़ के नाम से जाना जाता है l
    अवैध पेड़-कटान से वन्य क्षेत्रफल की कमी – अवैध पेड़ कटान होने से धरती का निरंतर चीर-हरण किया जा रहा है l धरती हरित पेड़, पौधे, झाड़ियों और घास के अभाव में बे-सहारा/नग्न होती जा रही है जिससे कम बर्षा होने पर भी वह वर्षाजल का वेग सहन नहीं कर पाती है, निरंकुश बाढ़ बन जाती है और वह विनाश लीला करने लगती है l l
    नदियों के किनारे पर बढ़ती जन संख्या – नदी, नालों के किनारों पर अन्यन्त्रित जन संख्या बढ़ने से दिन-प्रतिदिन हरे पेड़, पौधे, झाड़ियों और घास का आभाव हो रहा है l जिससे जल बहाव मार्ग परिवर्तित होता रहता है l जल बहाव को तो उसका मार्ग मिलना चाहिए, उसे नहीं मिलता है l उसके मार्ग में अवैध निर्माण होते हैं l अगर मनुष्य जाति नदी, नालों में अपने लिए आवासीय घर, पार्क और अन्य आवश्यक निर्माण करवाती है तो नदी, नाला भी अपने बहाव के लिए मार्ग तो बनाएगा ही l जल प्रलय अवश्य आएगी l धरती के रक्षण हेतु नदी, नालों के किनारों पर तो अधिक से अधिक हरे पेड़, पौधे, झाड़ियां और घास होने चाहिए, न कि मनुष्य द्वारा निर्मित कंक्रीट, पत्थरों का जंगल l
    पहाड़ों पर अधिक सड़क निर्माण – विकास की दौड़ के अंतर्गत मैदानी क्षेत्रों में चार, छेह लेन के राष्ट्रीय राज-मार्ग निर्माण कार्य जोरों से हो रहा है l उससे पहाड़ी राज्य-क्षेत्र अछूते नहीं रहे हैं l वहां भी चार लेन की सडकें बननी आरंभ हो गई हैं l इससे भूमि का कटाव जोरों पर है l लाखों पेड़ों की बलि दी जा रही है l धरती हरे पेड़, पौधे, झाड़ियां और घास से विहीन होती जा रही है l वृहत जंगल वृत्त, वन्य संपदा के सिकुड़ने से, असंतुलित वृष्टिपात होने तथा बाढ़ आने से धरती का कटाव बढ़ रहा है l
    देश, धर्म-संस्कृति के प्रति बढ़ती मानवीय उदासीनता - संपूर्ण धरा पर मानव और दानव दो जातियां पाई जाती हैं l नर और मादा उनके दो रूप हैं l वेदज्ञान मानव को ही मानव नहीं बनाये रखता है बल्कि दानवों को भी मानव बनाने की क्षमता रखता है l जब तक मनुष्य वेद सम्मत अपना जीवन यापन करता रहा, वह मानव ही बना रहा l वह देश, सनातन धर्म-संस्कृति का भी सम्मान करता था पर जब से वह वेद विमुख हुआ है, तब से वह दानव बन गया है l वेदज्ञान जल, वायु, अग्नि, आकाश और धरती की पूजा के साथ-साथ धरती पर विद्यमान पहाड़, नदियों, पत्थर, पेड़, फूल-वनस्पतियों जीवों के भरन-पोषण का ध्यान रखने में मानव को सन्मार्ग पर चलने हेतु मार्ग-दर्शन करते थे l मानव की स्वार्थ पूर्ण दानव प्रवृत्ति बढ़ने से अब वह देश, धर्म-संस्कृति के विरुद्ध आचरण करने लगा है, जो उसके विनाश का कारण बनता जा रहा है l
    बाढ़ का दुष्प्रभाव –
    बाढ़ आने से नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है l खेतों की फसल नष्ट हो जाती है l स्कूल, विद्यालय, महाविद्यालय बंद हो जाते हैं l व्यापारिक, व्यवसायिक, कार्यशालाओं की गतिविधियाँ मंद पड़ जाती हैं l नदियों के किनारे की वस्तियाँ उजड़ जाती हैं l राष्ट्रीय राजमार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं l पेय जलस्रोत नष्ट हो जाते हैं l जल बाँध टूट जाते हैं l खेत–खलिहान, वस्तियाँ जलमग्न हो जाती हैं l राष्ट्रीय संपदा की भारी हानि होती है l यह सब चिंता के ऐसे ज्वलंत विषय हैं जिन्हें समय रहते सुलझा लेना अति आवश्यक है l
    बाढ़ की रोक-थाम के उपाए
    नदी, नालों के किनारों पर आवासीय वस्तियाँ वसाने के स्थान पर अधिक से अधिक पोधा-रोपण किया जाना चाहिए l नदियों और पहाड़ों का खनन रोका जाना चाहिए l नदियों के किनारे पर और अधिक वस्तियों को नहीं वसाना चाहिए l नदियों नालों के किनारों से अवैध कब्जे हटाए जाने चाहिए l कार्यशालाओं के माध्यम से लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए l विकास की आड़ और अंधी दौड़ में पहाड़ों का सीना छलनी न किया जाना चाहिए l नदी नालों में प्लास्टिक कचरा नहीं बहाना चाहिए l वन काटुओं व खनन माफियाओं पर नकेल कसी जानी चाहिए l
    इस कार्य को कार्यान्वित करने हेतु सरकार, प्रशासन, प्रशासकों, आचार्यों, विद्यार्थियों, स्वयंसेवी संस्थाओं, स्वयं सेवकों को व्यवस्था के अंतर्गत आगे बढ़कर अपना-अपना दायित्व निभाना चाहिए ताकि आने वाले महा विनाश से देश, धर्म-संस्कृति और मानवता की रक्षा सुनिश्चित हो सके l

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    2. स्टार्ट अप कंपनियां दे रही रोजगार के अवसर

    आलेख – साक्षात्कार मातृवन्दना जुलाई 2023

    आलस्य, निद्रा, कर्महीनता और नशा मनुष्य जीवन के महान शत्रु हैं l जहाँ एक ओर आज का एक युवावर्ग इन शत्रुओं का शिकार हो रहा है, वहीं दूसरी ओर एक अन्य पुरुषार्थी और कर्मठ युवा वर्ग दिन-रात एक करके अपने कार्य में निरंतर प्रयत्नशील भी है l आज मुझे एक आईटी कंपनी के सीईओ से साक्षात्कार करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ l उनसे  प्राप्त जानकारी के कुछ महत्वपूर्ण अंश इस प्रकार हैं -


    1. प्रश्न - आपके द्वारा आईटी कंपनी की शुरुआत कैसे हुई और आरंभ में आपकी सोच क्या थी ?


    उत्तर – मैं अपने बिजनेस पार्टनर के साथ रात में बैठा था l हमने पहले एक प्रशिक्षण संस्थान खोलने की योजना बनाई थी l उसके लिए हमें कुछ परिसर लेने थे, भुगतान करने के लिए पैसे की आवश्कता थी l जो हमारे पास नहीं थे l हमने उस विचार को छोड़ दिया l फिर हमने और शोध किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमें घर से ही अपने आप काम शुरू करना चाहिए । इस तरह हमारे पास स्टार्टअप खोलने के लिए पैसे का बैकअप बन जायेगा । इस बार भगवान की कृपा से  हम सफल हुए ।


    2. प्रश्न - आपके मन में आईटी कंपनी से ही संबंधित कार्य करने का विचार क्यों आया जबकि आप के समक्ष अन्य कार्य  करने के भी हजारों विकल्प उपलब्ध थे ?


    उत्तर - दुनिया बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है और अब सब कुछ डिजिटल भी हो रहा है । मैं कंप्यूटर एप्लीकेशन में मास्टर हूं । इसलिए मैंने केवल और केवल अपनी शिक्षा से संबंधित स्टार्टअप खोलने की योजना बनाई ।


    3. प्रश्न – आपने आईटी कंपनी का शुभ आरंभ कब किया ? उसमें सर्व प्रथम कितने कर्मचारी थे, अब कितने हैं ? वैसे हर किसी को अपने कर्मचारियों को खुश रखना बड़ा कठिन होता है, आप सालभर उन्हें प्रसन्न कैसे रखते हैं ?


    उत्तर – मैंने 2013 में कंपनी शुरू की थी जिसमें मैंने अपने बिजनेस पार्टनर के साथ खुद काम करना शुरू किया था । हम शुरुआत में कंपनी के मात्र तीन ही सदस्य थे और अब हम चालीस सदस्य हैं । हम अपने कर्मचारियों को अधिक से अधिक सुविधाएं दे रहे हैं । हमारे पास प्रति सप्ताह पांच कार्य दिवस हैं । हमारे यहाँ हर महीने के अंत में एक पार्टी होती है । हम प्रत्येक कर्मचारी का जन्मदिन एक साथ मनाते हैं । हम उन्हें पुरस्कार आदि देते हैं और खुश रखने के लिए हम हर साल चार-पांच दिनों के लिए  वार्षिक यात्रा भी आयोजित करते हैं ।


    4. प्रश्न – आपकी कंपनी को आरंभ करने का श्रेय किसे जाता है, इसके लिये आपको किसका सहयोग मिला ? उनके  बारे में कुछ क्या कहना चाहेंगे आप ?


    उत्तर – मैं इसका श्रेय अपने बिजनेस पार्टनर, माता-पिता और अपनी पत्नी को दूंगा जिन्होंने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया ।


    5. प्रश्न – आपके समक्ष आईटी कंपनी प्रारंभ करने के समय क्या-क्या समस्याएं आईं थीं ?


    उत्तर – हमें विशेष रूप से वित्त से संबंधित बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा था । हमने एक ग्राहक के आधार पर कार्यालय खोला और पहले ही दिन उस ग्राहक ने हमें छोड़ दिया । वह समय हमारे लिए बहुत कठिन था जिसे मैं जीवन भर  कभी नहीं भूलूंगा  l


    6. प्रश्न – क्या आपका आईटी कंपनी का कार्य चुनाव आपकी भावनाओं/आशाओं के अनुरूप रहा है ?


    उत्तर –  हाँ l


    7. प्रश्न -  इस समय आपकी कंपनी को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है ?


    उत्तर - वर्तमान में हम सेवा करने के लिए डेवलपर्स और डिजाइनरों की बहुत कमी का सामना कर रहे हैं क्योंकि अधिकांश युवा अपना स्टार्टअप खोलने की कोशिश कर रहे हैं ।


    8. प्रश्न - चंडीगढ़ में ऐसी कौन-कौन सी कंपनियां हैं जो युवाओं को स्वरोजगार आरंभ करने के लिये प्रेरित कर रही  हैं ?


    उत्तर – ट्राई सिटी में बहुत सारी कंपनियाँ हैं जो युवाओं को अपना स्टार्टअप शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं l


    9. प्रश्न - आपकी आईटी कंपनी क्या कार्य करती है, इस समय उसकी कितनी शाखायें/उपशाखाएं उपलब्ध हैं ?


    उत्तर – हम वेब डिजाइनिंग, डेवलपमेंट और एसईओ करते हैं । वर्तमान में हमारे पास केवल एक शाखा है और दुनिया भर में सेवा कर रही है l
    10. प्रश्न – आप सीईओ की दृष्टि में एक अच्छी आईटी कंपनी कैसी होनी चाहिए ?
    उत्तर – सफल होने के लिए आपको पहले अपने ग्राहकों की ज़रूरतों को समझना होगा, सीमाओं को तोड़ना होगा और उन्हें अपने पास सबसे अच्छा समाधान देना होगा । कंपनी और ग्राहक के बीच एक आपसी समझ अपरिहार्य है क्योंकि इससे आपको अपने प्रोजेक्ट लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी और आप जो कुछ भी करते  हैं, उसमें सर्वश्रेष्ठ प्रदान करेंगे ।


    11. प्रश्न - भविष्य में अपनी आईटी कंपनी का विस्तार करने की आपकी भावी मनसा/योजना क्या है ?


    उत्तर - हम टीम का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं और भविष्य में अपनी कंपनी को मल्टी नेशन कंपनी बनाना चाहेंगे ताकि हम बेरोजगार युवाओं को रोजगार दे सकें l


    12. प्रश्न – जैसे कि आपने भी देखा है - आज का नवयुवावर्ग दिन-प्रतिदिन दिशाहीन, लक्ष्यहीन होता जा रहा है l वह दुर्व्यसनों का भी शिकार हो रहा है l आप आईटी कंपनी के एक सीईओ होने के नाते अपने मार्ग से  भटके हुए उन नवयुवाओं को क्या संदेश देना चाहते हैं ?


    उत्तर - मैं नवयुवाओं को जीवन के सकारात्मक पक्ष के बारे में सोचने का सुझाव देना चाहूंगा। आज की दुनिया पूरी तरह से डिजिटलाइजेशन की ओर बढ़ रही है, इसलिए हमें इसका हिस्सा बनना होगा । बेहतर होगा कि वे प्रौद्योगिकियों की ओर आएं और उन्हें अपनाएं जो उन्हें भविष्य में फलदायी परिणाम देंगी l



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    8. मतदान के प्रति मतदाता की जागरूकता

     मातृवंदना नवंबर 2022

    1 जागरूक मतदाता :-
    जो मतदाता भारत का नागरिक हो l जो आचार संहिता लगने तक संपूर्ण 18 वर्ष का हो गया हो l जो उस निर्वाचन क्षेत्र का निवासी हो जहाँ उसका पहली बार नाम अंकित होना हो, मतदान की योग्यता रखता है l लोक तांत्रिक देश भारत में 18 वर्ष से ऊपर के हर किशोर/युवा को संवैधानिक रूप से अपना मतदान करने का अधिकार प्राप्त है l निर्वाचन काल में वह मतदाता बनकर अपने मतदान से अपनी पसंद के प्रत्याशी की हो रही हार को भी अपने एक मत से उसकी जीत में परिवर्तित कर सकता है, ऐसी अपार क्षमता रखने वाले उसके मत को बहुमूल्य कहा जाता है l 1996 में माननीय अटल विहारी वाजपेयी जी की केन्द्रीय सरकार थी जिसे मात्र एक मत कम मिलने के कारण हार का सामना करना पड़ा था l हर लोकतान्त्रिक देश में किसी नेता, दल या दल की विचारधारा को लेकर उसके बारे में मतदाता की जो अपनी राय या मत होता है, उसे उसका मतदान के समय उपयोग अवश्य करना होता है l मतदाता जागरुक होना चाहिए ताकि जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए मजबूत लोकतंत्र की स्थापना को बल मिल सके l
    2 मताधिकार का प्रयोग :-
    छब्बीस जनवरी 1950 के दिन भारत में भारत के संविधान को स्वीकृति मिली थी l उसे पूर्ण रूप से लागु किया गया था l तब से लेकर अब तक मतदाता के द्वारा मतदान करने का अपना बहुत बड़ा महत्व है l मतदाता मतदान करके अपने पसंद का प्रत्याशी चुनता है l उसके द्वारा चुना हुआ प्रत्याशी अन्य क्षेत्रों से चुने गये प्रत्याशियों के साथ आगे चलकर स्थानीय निकाएं – ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, नगर पालिका, जिला परिषद् का ही नहीं, विधान सभा और लोक सभा का भी गठन में भी साह्भागी बनता है और सरकार बनाता है l
    इस व्यवस्था की प्रक्रिया से सरकार द्वारा जो योजनायें बनाई जाती हैं, उन्हें साकार करने हेतु प्रारंभ किये गये जनहित विकास कार्यों का लाभ व सुविधाएँ जन-जन तक पहुंचाई जाती हैं l इसलिए मतदाता को अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करना चाहिए - क्योंकि यह केवल अधिकार ही नहीं, उसका कर्तव्य भी है l
    3 गोपनीयता :-
    देश में राजनीति से संबंधित वर्तमान में अनेकों विचार धाराएँ विद्यमान हैं l देखा जाये तो सभी विचार धाराओं के अपने-अपने दल और उनके विभिन्न उद्देश्य हैं l पर उनमें कुछ एक नेता निजहित, परिवार हित, दलहित की दलदल की राजनीति में ही धंसे हुए हैं l उन्हें जनहित, क्षेत्रहित, प्रांतहित, राष्ट्रहित और मानवता की भलाई कुछ भी दिखाई नहीं देती है l या तो उन्हें राजनीति की दलदल से बाहर निकलने का कोई मार्ग/सहारा नहीं मिलता है, या फिर वे उससे बाहर ही निकलना नहीं चाहते हैं l इस दौरान उन्हें जो मार्ग/सहारा मिलता भी है तो वह मार्ग पहले ही दलदल से भरा हुआ होता है या सहारा उस दलदल में धंसा हुआ मिलता है, जो उसे बाहर निकलने/निकालने में असमर्थ होता है l
    निर्वाचन की व्यार चलते समय भारतीय राजनेता/राजनीतिक दल जनता को अपनी ओर आकर्षित करने हेतु मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त धन - मदिरा-मास, मासिक युवा बे-रोजगारी भत्ता, रोजगार देने, गरीबी दूर करने, सुशासन देने जैसे लुभावने तरह-तरह के प्रलोभन दिखाते हैं, उन्हें तो मात्र किसी तरह सत्ता की प्राप्ती करनी होती है, जनहित, देशहित किसने, कब देखा है ? निर्वाचन काल में उनके द्वारा किये जाने वाली घोषनाएँ /वायदे अथवा किये जाने वाले कार्य मात्र जनता को प्रलोभन दिखाकर मुर्ख बनाना होता है l
    मतदान के दो प्रकार :- मतदान का पहला प्रकार सबसे अच्छा चुनाव वह होता है जो निर्विरोध एवं सर्व सम्मति से सम्पन्न होता है l इसमें प्रति स्पर्धा के लिए कोई स्थान नहीं होता है और दूसरा जो मतपेटी में प्रत्याशी के समर्थन में उसके चुनाव चिन्ह पर अपनी ओर से चिन्हित की गई पर्ची डालकर या ईवीएम मशीन से किसी मनचाहे प्रत्याशी के पक्ष में, चुनाव चिन्ह का बटन दबाकर अपना समर्थन प्रकट किया जाता है, मतदान कहलाता है l लेकिन प्रतिस्पर्धा मात्र पक्ष-विपक्ष दो ही प्रत्याशी प्रतिद्वद्वियों में अच्छी होती है जिसमे अधिक अंक लेने वाले की जीत और कम अंक लेने वाले की हार निश्चित होती है l
    समय या असमय देखा गया है कि विधायक चुनी हुई सरकार से अपना समर्थन वापस ले लेते हैं परिणाम स्वरूप सरकार गिर जाती है l अगर विधायक को अपना समर्थन वापस लेने का अधिकार है तो मतदाताओं को भी उस विधायक से अपना मत वापस लेने का अधिकार होना चाहिए ताकि वो कभी बिकने का दुस्साहस न कर सके l मतदाता के द्वारा सदैव बिना किसी भय, बिना किसी दबाव, बिना किसी लोभ, अपनी इच्छा और पसंद के, सर्व कल्याणकारी विचार धारा को मध्यनजर रखते हुए, बिना किसी व्यक्ति को बताये अपना गुप्त मतदान करना चाहिए l मतदाता के पास अपना बहुमूल्य मत होता है जिससे वह समाज विरोधी विचारधारा को हराकर, राष्ट्रवादी विचारधारा को विजय दिला सकता है l आगे भेज सकता है और उससे एक अच्छी सरकार की आशा भी कर सकता है l अन्यथा उस बेचारे मतदाता को पांच वर्ष तक अधर्म, अन्याय, अनीति और असत्य का सामना करना पड़ता है l
    4 शत प्रतिशत मतदान :-
    “मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं लहर नहीं, पहले व्यक्ति देखूंगा l मैं प्रचार नहीं, छवि देखूंगा l मैं धर्म नहीं, विजन देखूंगा l मैं दावे नहीं, समझ देखूंगा l मैं नाम नहीं, नियत देखूंगा l मैं प्रत्याशी की प्रतिभा देखूंगा l मैं पार्टी को नहीं, प्रत्याशी को देखूंगा l मैं किसी प्रलोभन में नहीं आऊंगा l” इस तरह मतदाता का स्वयं जागरूक होना या दूसरों को जागरूक करना परम आवश्यक है और स्वभाविक भी l
    इसी माह 12 नवंबर को प्रदेश में लोक सभा के चुनाव होने हैं l सभी नर-नारी, युवा और वृद्ध शत-प्रतिशत लोक-सभा मतदान करने की प्रतिज्ञा करें l कोई भी 18 वर्ष की आयु से ऊपर वाला युवा जो वैधानिक दृष्टि से मतदान करने का अधिकारी बन चुका है, मतदान से वंचित नहीं रहना चाहिए l