मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: 7 स्व रचित रचनाएँ

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    1. जागेगा स्वाभिमान जमाना देखेगा

    आलेख – राष्ट्रीय भावना मातृवंदना जनवरी 2018 
    प्राचीन काल से ही हमारा देश एक अध्यात्म प्रिय देश रहा है भारत के ऋषि-मुनियों का संपूर्ण जीवन ज्ञान-विज्ञान अनुसन्धान एवंम शिक्षण-प्रशिक्षण कार्य में व्यतीत हुआ है उन्होंने सनातन संस्कृति में मानव जीवन को ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास जीवन चार श्रेणियों में विभक्त किया था l वे संपूर्ण मानव जाति के कल्याणार्थ व्यक्तिगत ध्यानस्थ होकर ईश्वर से प्रार्थना करते हैं – “हे प्रभु ! तू मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चल l अँधेरे से उजाले की ओर ले चल l मृत्यु से अमरता की ओर ले चल l” उनका मानना है कि “आत्म सुधार करने से मानव जाति का सुधार होता है l” जीवन सब जीते हैं  पर जीवन जीना इतना सरल नहीं, जितना कि कहना l वह हर पल कष्ट, दुःख, कठिनाइयों और चुनौतियों से घिरा रहता है l   
    मात्र विवेकशील मनुष्य समय और परिस्थिति अनुसार बुद्धि से निर्णय लेते हैं l वे भली प्रकार जानते हैं की संसार में जीवन नश्वर है l सुख-दुःख बादल समान हैं, वे आते हैं तो चले भी जाते हैं l वह जीवन में जनहित, समाजहित और राष्ट्रहित में कुछ नया करना चाहते हैं, जबकि अन्य मार्ग में आने वाली कठिनाइयों से बचने के लिए सरल एवंम लघु मार्ग ढूंढ़ते हैं l इस प्रकार दोनों की सोच दूसरे के विपरीत हो जाती है l मानव जीवन में फुलों भरा सरल एवंम लघु मार्ग ढूँढने वाले लोग मात्र मन की बात मानते हैं l वे उसी पर चलते हैं l वे नैतिकता और मानवता की तनिक भी प्रवाह नहीं करते हैं l
    ऐसे लोगों के द्वारा स्थापित शिक्षा केन्द्रों के पाठ्यक्रमों में देश का इतिहास, वास्तविक इतिहास नहीं होता है l उसमें सच्ची घटनाओं का सदैव अभाव रहता है l समाज परंपरागत सभ्यता एवंम संस्कृति से कटता जाता है और वह धीरे-धीरे उसे भूल भी जाता है l वे सत्ता पाने के लिए नैतिकता के साथ-साथ मानवता को भी ताक पर रख देते हैं, वे व्यक्ति विशेष, परिवार-वंश की महिमा मंडित करते कभी थकते नहीं हैं l वे क्षेत्रवाद, जातिवाद, धर्म-संप्रदाय वाद को बढ़ावा देते हैं l इससे देश की एकता एवंम अखंडता कमजोर होती है l अपने हित के लिए दंगे करवाए जाते हैं l विवेकशील मनुष्य नैतिकता, मानवता और मान-मर्यादाओं को पसंद करते हैं l स्मरण रहे ! कि ऐसे ही लोगों के प्रयासों से हमारा भारत अखंड भारत “सोने की चिड़िया” बना था l वे निजी जीवन में जनहित, समाजहित और राष्ट्रहित में कष्ट, दुःख, कठिनाइयों और चुनौतियों से सीधा सामना करने की विभिन्न प्रतिज्ञाएँ करते हैं, वह विपरीत परिस्थितयों से लोहा लेने के लिए हर समय तैयार रहते हैं l उनके लिए सबका हित सर्वोपरी होता है l
    उनके द्वारा संचालित विद्या केन्द्रों से बच्चों को अच्छी, संस्कारित, गुणात्मक एवंम उच्चस्तरीय शिक्षा मिलती है l उससे उनका चहुंमुखी विकास होता है l उनके प्रशासन की नीतियां सर्व कल्याणकारी होती हैं l उपरोक्त बातों से स्पष्ट हो जाता है कि समस्त मानव जाति के पास जीवन यापन करने के सरल या कठिन मात्र दो ही मार्ग होते हैं l एक मार्ग उसे पतन – असत्य, अन्धकार और दुःख-मृत्यु की ओर ले जाता है तो दूसरा उत्थान – सत्य, प्रकाश और सुख-अमरता की ओर l हमें किस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए ? उसे हमारे लिए जानना और समझना अति आवश्यक है l






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    इन्सान

    इन्सान हूं मैं
    भेड़िए की खाल पहने हुए हूं, क्यों?
    बातें धर्म की करता हूं, मैं
    लहु बे गुनाहों का बहाता हूं, क्यों?
    करता हूं धर्म नाम पर हिंसा
    धर्म और पशुता में अन्तर रहा क्या
    मैं इन्सान कहलाता हूं
    बन गया पशु, अर्थ रहा क्या?
    हिंसा तो है धर्म पशु का
    सबको मरने की राह दिखाई है
    हिंसा न कर वास्ता धर्म का
    चेतन बात तेरी समझ आई है क्या?


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

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    आत्मावलोकन

    था इन्सान मगर मैने
    खुद से खुद वैर किया है
    शैतान तो खुद बन बैठा हूं
    प्रभु को मैंने भुला दिया है
    देखा न कभी मैंने खुद को
    पूछता हूं, तू है कौन?
    जान लूं मैं खुद को पहले
    फिर पूछूं, बता तू है कौन?
    दूसरों का चेहरा दिख जाता
    अपना कभी दिखता नहीं
    हर दोष दूसरों का दिख जाता
    अपना एक भी दिखता नहीं
    पहले दूसरों को न देख
    "चेतन" तू खुद ही को देख
    खुद की कर दूर बुराई
    पहले दूसरों की अच्छाई देख


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

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    आत्म विस्मरण

    सदा चोट खाता हूं मैं
    बातों में, गैरों की आता हूं
    मेरे हित की होती हैं
    बात हितैशी की भूल जाता हूं
    इन्सान था पर मैंने
    खुद से खुद वैर किया है
    शैतान बना लिया मैने खुद को
    प्रभु को मैंने भुला दिया है
    जानता नहीं मैं खुद को
    पूछता हूं, तू है कौन?
    क्या जान लूं? मैं पहले खुद को
    फिर पूछूं, बता तू है कौन?


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

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    आत्म विश्वास

    विषय वस्तु समझ आ जाएगी
    लोक-भ्रमण करके देख ले
    बात ज्ञान-विज्ञान की समझ आएगी
    सुसंगत करके देख ले
    विषय-वस्तु का ज्ञान-वर्धन हो जाएगा
    साहित्य-ग्रंथ पढ़कर देख ले
    योग्यता में निखार आ जाएगा
    कलात्मक शिक्षण-प्रशिक्षण ले कर देख ले
    सांसारिक ज्ञान मिल जाएगा
    सत्यनिष्ठ रह कर देख ले
    आत्म ज्ञान-विज्ञान बढ़ जाएगा
    विरही आंतरिक जिज्ञासा जगा कर देख ले
    ज्ञान-विज्ञान का विस्तार हो जाएगा
    शैक्षणिक वातावरण बना कर देख ले
    दूसरों तक ज्ञान जाएगा
    कलात्मक अभिनय करके देख ले
    मेरी बात पर न हो विश्वास
    अपने जीवन में उतार कर देख ले
    अगर स्वयं पर हो विश्वास
    तो मेरी बात मान कर देख ले


    चेतन कौशल "नूरपुरी"