मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: 7 स्व रचित रचनाएँ

  • श्रेणी:,

    1. श्रृंगार धौलाधार का

    पंजाब केसरी 21 मई 2007 

    कैसी सुंदर ओढ़ी बर्फीली
    चादर धौलाधार ने
    शुष्क मौसम से पाई
    मुक्ति धौलाधार ने
    नाले भरे नदियाँ सब बहने
    लगे हैं
    ताल बावड़ियाँ कूप सब
    जल से भरने लगे हैं
    धरती, खेतों, खलिहानों को
    मिलने लगा है पानी
    रिमझिम बरसने लगा है पानी
    बर्फ से किया फिर शृंगार
    धौलाधार ने
    आह! कैसी सुंदर ओढ़ी
    बर्फीली चादर धौलाधार ने




  • श्रेणी:,

    16. भू – जल दोहन

    दैनिक जागरण 18 मई 2007

    बूंद बूंद से होता है भूजल पुनर्भरण
    सुनियोजित करना है भूजल दोहन व्यवहार
    सुरक्षित रखना है शुद्ध भूजल भंडार
    सुखी रहेगा मनमोहन संसार
    भूजल धरती की है अमूल्य सम्पत्ति
    व्यर्थ दोहन है आने वाली विपत्ति
    भूजल धरती का करता है श्रृंगार
    अनावश्यक दोहन सरासर है निराधार



  • श्रेणी:,

    15. कविता

    दैनिक जागरण 15 मई 2007 

    वीरों की तू पोषणहारी
    तू है कविता कवि की प्यारी
    देखा है मैंने तुझे सबके साथ
    पर वे सब तुझे नहीं लगाते हाथ
    अत्याचारी की तू हत्यारी
    तू है कविता कवि की प्यारी
    जिसने किया जब नीचता को सलाम

    तूने किया उसका काम तमाम
    दुराचारी की तू संहारणहारी
    तू है कविता कवि की प्यारी


  • श्रेणी:,

    14. ईर्ष्या – घृणा

    दैनिक जागरण 9 मई 2007

    आग से खेल रहा क्यों?
    वह राख बनाया करती है
    ईर्ष्या से भी प्रेम कर रहा
    हंसते को रुलाया करती है
    घृणा कर नीच विचारों से
    मगर इन्सान से नहीं
    करके ईर्ष्या घृणा इन्सान से
    रह सकता तू सुख शांति से नहीं



  • श्रेणी:,

    13. कोटि – कोटि प्रणाम

    दैनिक जागरण 3 मई 2007

    मातृ भूमि तुझको
    करूं मैं क्या अर्पण
    साहस नहीं मुझमें
    बिन देरी करूं मैं आत्म समर्पण
    बस कार्य के सिवाय
    फल की ओर न हो मेरा ध्यान
    सेवा की हो डगर अपनी
    और नित हो तुझे कोटि कोटि मेरा प्रणाम