मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: कवितायें

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    1. संपर्क भाषा

    ज्ञान वार्ता छमाही 2010  

    मेरे मन भाया तेरा विचार, भाषा हिंदी
    इसकी लिपी बनी भाषा उसकी, भाषा हिंदी
    हिन्द की सम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी

    फोन कन्याकुमारी से पहुँचता कश्मीर, भाषा हिंदी
    फैक्स गुजरात से पहुँचती आसाम, भाषा हिंदी
    हिन्द की सम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी

    हर व्यक्ति की साँस, हिन्द की धड़कन, भाषा हिंदी
    हर स्थान की बोल, हिन्द की पहचान, भाषा हिंदी
    हिन्द की सम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी

    हम बोल - लिख सकते, भाषा हिंदी
    हम सीखकर कार्य कर सकते, भाषा हिंदी
    हिन्द की सम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी

    हम मनाएंगे नहीं पखवाड़े, सब जानते भाषा हिंदी
    सरकारी, गैर सरकारी कार्य करेंगे पूरे साल, भाषा हिंदी
    हिन्द की सम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी


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    3. चोर

    21 मार्च 2010 कश्मीर टाइम्स

    काला होता है मन मेरा, काला ही सबको कहता हूँ,
    चोर भाव छुपाता है मन मेरा, चोर ही सबको कहता हूँ,
    नजर मेरी सबको देखती है, पर खुद को न कभी देख पाई है,
    ढूंढता हूँ बाहर, छुपाए चोर भीतर, नहीं बात समझ में आई है,
    चोर हूँ, क्यों न चोरी छोड़ूँ! कुछ ऐसे भी कर लूँ काम,
    सज्जन मैं भी बन जाऊं, दुर्जनों के सब छोड़ दूँ काम,
    छोटी-छोटी चीज के लिये, क्यों नियत खराब कर लूँ मैं?
    इज्जत हो जमाने में मेरी भी, वस्तु पूछकर क्यों न ले लूँ मैं?


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    2. भटका राही

    कश्मीर टाइम्स 21 फरवरी 2010 

    भटक गया हूँ, राह से
    राह मैं अपनी भूलकर
    सही राह पर, आऊं भी तो
    कैसे? मैं राह खुद की खुद पहचानकर
    इच्छा और आशाओं के गहन अंधेरे में
    खो गया मेरा जीवन है
    तालाश खुद की, खुद करूँ कैसे?
    मैं नाहक बन गया दीन हीन हूँ
    क्या है अच्छा, क्या है बुरा?
    उलझन में उलझकर रह गया हूँ
    मैं खुद को देखू कैसे, हूँ कहां?
    पता नहीं, मैं कर रहा हूँ क्या?
    ऊपर मेरे नीली चादर,
    खड़ा मैं तपती जमी पर,
    करना है मैनें, जाने क्या
    और किधर है अपनी मेरी डगर?


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    1. चैक डैम

    कश्मीर टाइम्स 7 फरवरी 2010 

    थम जा,
    ये जल की धारा!
    छोड़ उतावली,
    बहे जाती है किधर?
    मुंह उठा,
    देख तो जरा,
    चैक डैम
    बन गया है इधर
    तू बाढ़ का
    भय दिखाना पीछे,
    पहले गति
    मंद करले अपनी,
    तू भूमि
    कटाव भी करना पीछे,
    पहले चाल
    धीमी करले अपनी,
    यहां रोकना है,
    थोड़ी देर,
    रुक सके
    तो रुक जाना,
    करके सूखे
    स्रोतों का पुनर्भरण,
    चाहे तू
    आगे बढ़ जाना,
    चैक डैम पर
    जलचर, थलचर,
    नभचरों ने
    आना है,
    मंडराना है
    तितली-भौरों ने
    फुल-वनस्पतियों पर
    गुनगुनाना है,
    प्रकृति का
    दुःख मिटने को,
    पर्यावरण की
    हंसी लौटने को,
    थोड़ा थम जा,
    ये जल की धारा!
    जरा रुक जा,
    ये जल की धारा!




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    1. छब्बीस जनवरी

    मातृवंदना जनवरी 2010 

    दुखिया का दुःख मिटाने को,
    दुःख से राहत दिलाने को,
    आशा का दीपक बन हम जगमगाएँ,
    छब्बीस जनवरी है आज,
    आओ! खुशी का दिन मनाएं
    युवावर्ग में हो नवजीवन का संचार,
    दूर भागे सबकी निराशाओं का अंधकार,
    काँटों में से फूल हम चुनचुन कर लाएँ,
    छब्बीस जनवरी है आज,
    आओ! खुशी का दिन मनाएं
    बंद हों यहां अब स्वार्थ लालच के धंधे,
    उबरने नहीं देते इच्छाओं के फंदे,
    खाता निस्वार्थ सेवा का खुलवाएं,
    छब्बीस जनवरी है आज,
    आओ! खुशी का दिन मनाएं
    खुशियां बांटें, गणतंत्र मनाएं,
    दलितों को प्यार से गले लगाएं,
    खुद जियें और दूसरों को भी जीने दें,
    छब्बीस जनवरी है आज,
    आओ! खुशी का दिन मनाएं