मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: कवितायें

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    16. भू – जल दोहन

    दैनिक जागरण 18 मई 2007

    बूंद बूंद से होता है भूजल पुनर्भरण
    सुनियोजित करना है भूजल दोहन व्यवहार
    सुरक्षित रखना है शुद्ध भूजल भंडार
    सुखी रहेगा मनमोहन संसार
    भूजल धरती की है अमूल्य सम्पत्ति
    व्यर्थ दोहन है आने वाली विपत्ति
    भूजल धरती का करता है श्रृंगार
    अनावश्यक दोहन सरासर है निराधार



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    15. कविता

    दैनिक जागरण 15 मई 2007 

    वीरों की तू पोषणहारी
    तू है कविता कवि की प्यारी
    देखा है मैंने तुझे सबके साथ
    पर वे सब तुझे नहीं लगाते हाथ
    अत्याचारी की तू हत्यारी
    तू है कविता कवि की प्यारी
    जिसने किया जब नीचता को सलाम

    तूने किया उसका काम तमाम
    दुराचारी की तू संहारणहारी
    तू है कविता कवि की प्यारी


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    14. ईर्ष्या – घृणा

    दैनिक जागरण 9 मई 2007

    आग से खेल रहा क्यों?
    वह राख बनाया करती है
    ईर्ष्या से भी प्रेम कर रहा
    हंसते को रुलाया करती है
    घृणा कर नीच विचारों से
    मगर इन्सान से नहीं
    करके ईर्ष्या घृणा इन्सान से
    रह सकता तू सुख शांति से नहीं



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    13. कोटि – कोटि प्रणाम

    दैनिक जागरण 3 मई 2007

    मातृ भूमि तुझको
    करूं मैं क्या अर्पण
    साहस नहीं मुझमें
    बिन देरी करूं मैं आत्म समर्पण
    बस कार्य के सिवाय
    फल की ओर न हो मेरा ध्यान
    सेवा की हो डगर अपनी
    और नित हो तुझे कोटि कोटि मेरा प्रणाम



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    12. स्नान गृह में

    दैनिक जागरण 29 अप्रैल 2007 

    दाढ़ी बना ले चाहे तू दांत साफ कर ले
    पर भाई चल पहले नल बंद कर दे
    भूजल अनावश्यक बाहर आ रहा
    भूजल स्तर नीचे जा रहा
    अब फव्वारे से या टब में नहीं है नहाना
    बाल्टी भर पानी से ठीक है नहाना
    जब बाल्टी भर पानी से नहाया जा सके
    दो बाल्टी भर पानी बहाना है क्यों
    भूजल संरक्षण अभियान सफल बनाया जा सके
    अनावश्यक दोहन करके जल संकट बनाना है क्यों
    साबुन या धोने का पाउडर पहले है लगाना
    फिर कपड़ा भली प्रकार है धोना
    अनावश्यक जल नल से नहीं है बहाना
    ऐसे कल का जल संरक्षण नहीं है होना
    नल बंद करके साबुन है लगाना
    फिर साबुन धोने को नल है चलाना
    ऐसी नहीं करनी है नादानी
    कहना पड़े कि अब नहीं रहा है पानी