दिनांक 29 जुलाई 2025
सत्य, न्याय, नैतिकता, सदाचार, देश, सत्सनातन धर्म, संस्कृति के विरुद्ध मन, कर्म और वचन से की जाने वाली कोई भी चेष्टा अपराध मानी जा सकती है l
अपराधों की श्रेणियां – देखा जाये तो विश्व भर में अपराधों की अनेकों श्रेणियां हैं l कोई भी व्यक्ति, कोई भी व्यक्ति संगठन या कोई भी जन समूह बिना भय के, किसी न किसी रूप में, गुप्त और भ्रष्ट-तंत्र के अंतर्गत अमुक अपराध की श्रेणी में सक्रिय अवश्य रहता है l असंस्कारी होने के कारण – विश्वासघात करना, आत्मघात करना या आत्म हत्या करना “आत्मिक अपराध” है l परिवार में अपनों से आपसी मन मुटाव रखना, बात-चीत नहीं करना, लड़ाई - झगड़े, मारपीट करना और हिंसा करना “पारिवारिक अपराध” है l अवैध शरणार्थी होना, स्थान - स्थान पर हिंसा का तांडव करना, आतंक मचाना, जिहाद करना, महिलाओं का शोषण, अत्याचार अपमान, अपहरण, बलात्कार और धर्मांतरण करना “सामाजिक अपराध” है l भ्रष्टाचारी होना - चोरी, हेराफेरी, गबन करना, सरकारी कर न देना “आर्थिक अपराध” है l बच्चों को शिक्षा से वंचित रखना, बाल - श्रम करवाना, शिक्षा का व्यपारीकरण करना “शैक्षणिक अपराध” है l दूसरों का हित से पहले अपना हित सोचना, कार्य करना “नैतिक अपराध” है l दूसरों की संस्कृति से प्रभावित होकर अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं का त्याग कर देना, संस्कृति भूल जाना, सांस्कृतिक अपमान करना, देखना, सहन करना, “सांस्कृतिक अपराध” है l अपने देवी – देवताओं की मूर्तियों, मंदिर भीति चित्रों, फूल-वनस्पति चित्र-कला की उपेक्षा करना, अपमान करना, सहन करना “कलात्मक अपराध” है l मूक दर्शक बनकर, राष्ट्र विरोधी कुचेष्टाएं - घुसपैठ, षड्यंत्र का समर्थन करना, साथ देना ”राजनैतिक अपराध” है और छल बल से दूसरों को छलना या बहुरूपिया बन कर लोगों को वेद ज्ञान के विपरीत मन, वचन और कर्म से भ्रमित करना “धार्मिक अपराध” है l
अपराधी – मात्र कोई अपराध करने वाला ही व्यक्ति अपराधी नहीं हो सकता - अपराधी का समर्थन करने वाला, अपराधी को शरण देने वाला, अपराधी को बचाने वाला और उसे पालने वाला व्यक्ति भी अपराधी ही होता है l
जब कोई छोटा- बड़ा अपराधी पकड़ा जाता है l उसे कारागार में डाला जाता है तो वह वेल पर तुरंत बाहर भी हो जाता है l इससे स्पष्ट है कि उसके सर पर किसी समर्थवान की कृपा का हाथ है l अगर वह बाहर न आए तब भी उसके समर्थकों के द्वारा बढ़ – चढ़कर उसकी महिमा मंडित की जाती है l वह उनका नेता बन जाता है l वह चुनाव के लिए अपना नामांकन भरता है, चुनाव लड़ता है l उसके समर्थक जनता को लालच देकर उसका प्रचार-प्रसार करते हैं l मूर्ख जनता उनके बहकावे में आकर उसके पक्ष में मतदान करती है l जनता की मुर्खता ही के कारण वह कारागार में रहकर भी चुनाव जीत जाता है l फिर वह वेल पर छूट जाता है l
अपराधी नेता – ऐसे अग्रज नेता प्रायः दूसरे देशों में बैठे अपने आकाओं की कठपुतली होते हैं l उन्हें विदेशों से अपार धन - बल मिलता है l इस कारण वे जिस देश में रहते हैं, जिस देश का खाते हैं, वे उसी का बुरा सोचते हैं, उसका बुरा करते हैं l वे कभी उस देशहित में नहीं होते हैं l सोचने वाली बात है - वे उस देश का संविधान ही नहीं मानते हैं या मानने का नाटक करते हैं l वे देश की सेना का कभी सम्मान नहीं करते हैं l उनसे उस देश का विकास सहन नहीं होता है l उन्हें देश हित की सरकार से हर काम का प्रमाण चाहिय l ऐसे अपराधी नेताओं के दूसरे देशों में बैठे हुए आकाओं के इशारों और उनके नेतृत्व से ही किसी देश में भय मुक्त घुसपैठिये आते हैं, अवैध शरणार्थी आते हैं, नागरिकता मिलती है और वे स्थान - स्थान पर हिंसा करते हैं l महिलाओं का अपमान करते हैं, उनका अपहरण, बलात्कार और धर्मांतरण भी होता है l ऐसी घटनाओं को प्रशासन द्वारा नकार दिया जाता है या वह मूक - दर्शक बना रहता है, कोई भी अधिकारी किसी पीड़ित/पीड़िता की पीड़ा नहीं सुनता है l
समाज विरोधी संगठन - विभिन्न विचार धाराओं के वेल पर छूटे हुए अन्य अपराधी नेता अपने-अपने संगठनों के साथ मिलकर चुनाव लड़ते हैं l समर्थकों का उन्हें समर्थन मिलता है l वे अपना उल्लू सीधा करने हेतु जनता को अपनी चिकनी - चुपड़ी बातों में उलझाते हैं l चुनाव में जीत होती है l उनकी सरकार बनती है l फिर उनके द्वारा अपराधियों को शरण दी जाती है, अपराधियों को दंड से बचाया जाता है l वे भय मुक्त रहते हैं l
समाज में - अपराधी नेताओं के नेतृत्व में ही सत्य, न्याय, नैतिकता, सदाचार, देश, सत्सनातन धर्म, संस्कृति के विरुद्ध मन, कर्म और वचन से निःसंकोच चेष्टाएँ होती हैं l समाज में अपराधों को बढ़ावा मिलता है, पल-प्रतिपल निर्दोषों को सताया जाता है l उन पर अनेकों अत्याचार होते हैं l गली - गली, दंगे होते हैं, हत्याएं होती हैं, समाज त्राहिमाम – त्राहिमाम करने लगता है l बहुसंख्यक अल्प संख्यक बनते जाते हैं l चहुँ ओर अराजकता, अशांति होती है l अपराधी इकट्ठे होकर, होटलों में पार्टियाँ करते हैं, अपनी जीत का आनंद मनाते हैं l किसी पीड़ित/पीड़िता को कभी कहीं न्याय नहीं मिलता है l
परिभाषा पुनर्विचार की आवश्यकता – संविधान की धाराओं में अपराध और अपराधियों की परिभाषा पर जब तक गहनता के साथ पुनर्विचार नहीं होगा, उनकी समीक्षा नहीं होगी, समाज के निर्दोष और अपराधी वर्ग को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया जायेगा, उनकी स्थाई पहचान नहीं होगी, उन अपराधियों पर अंकुश नहीं लगेगा, तब तक समाज में तूफान की गति समान बढ़ती हुई अपराधियों की जन - संख्या पर विराम लगना कठिन ही नहीं, असंभव भी होगा l
कठोर दंड व्यवस्था - समाज में जो अपराधी हैं, उन्हें उनके अपराध अनुपात के अनुसार इतना अधिक प्रतिशत कठोर दंड अवश्य मिलना चाहिए जितना संगीन उनका अपराध हो l समाज में अपराध या अपराध तंत्र का भय नहीं, कठोर दंड व्यवस्था का भय होना चाहिए l कठोर दंड भय व्यवस्था से ही स्वछंद हो रहे अपराधियों के अपराधों पर अंकुश लगाया जा सकता है l निर्दोषों को बचाया जा सकता है l समाज में सुख – शांति, समृद्धि आ सकती है और राम- राज्य का सपना भी साकार हो सकता है l