मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: 5 विविध

  • श्रेणी:

    सम्मान भावना


    लुटाया था अपना आप उसने तो तू उन्हें पूज रहा l
    क्यों पूजेगा, कौन तुझे ? मनः तू तो सबको लूट रहा ll


  • श्रेणी:

    खुद को ढाल


    सुहागा सत्य है, आग अहिंसा, सोना शरीर तपा ले l
    सांचे में खुद को ढाल, मनः मानव जीवन संवार ले l


  • श्रेणी:

    हृदय की बात


    सुन बात दूसरों की, कर ले भली प्रकार विचार l
    हृदय की बात पत्थर की लकीर, मनः कर तुरंत व्यवहार ll


  • श्रेणी:

    बढ़ना है आगे


    पिछला काम निपटा दे, फिर तू बढ़ आगे l
    गति बना तू कुछ ऐसी अपनी, मनः तन आलस छोड़ कर भागे ll


  • श्रेणी:

    जीवन की सफलता


    बातों में उनको न लगा, तू मुर्ख क्यों बनता है ?
    रह मग्न तू अपने कर्म में. मनः जीवन सफल बनता है l