मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: 5 विविध

  • श्रेणी:

    ईर्ष्या


    आग से खेलता है क्यों? वह रख बनाया करती है l
    तू इर्ष्या करता है क्यों ? मनः हँसते हुए को रुलाया करती है ll


  • श्रेणी:

    सत्य


    जान सके तो जान, सत्य ही है भगवान् l
    जायेगा तू पहचान, मनः थोड़ा-थोड़ा कर ध्यान ll


  • श्रेणी:

    तीन शत्रु


    आलस्य, झूठ, और अभिमान तीनों हैं तेरे शत्रु महान l
    एक को भी निकट न आने देना, मनः सुन ले तू देकर ध्यान ll


  • श्रेणी:

    आशाओं का अँधेरा


    आशाओं के घोर अँधेरे में, क्यों खो गया तेरा जीवन है ?
    तालाश खुद की खुद कर, मनः नाहक बना क्यों दीन-हीन है ll


  • श्रेणी:

    विपदा


    मुसीबत आ गई तो आने दे विपदा नहीं है कोई खास l
    नरमी-गर्मी का मौसम है, मनः तू हुआ है क्यों उदास ll