मानवता सेवा की गतिविधियाँ
तरह-तरह का जलना है, तरह-तरह की है आग lजिन्दा जलाती चिंता तुझको, मनः मुर्दा भस्म करती है आग ll
चेतन कौशल
खोज जिसे होती है, मंजिल पा ही लेता है lपरिश्रम बिना जो ढूंढता है, मनः जीवन नष्ट कर लेता है ll
मुसीबत में करते जो आह नहीं, बूझने नहीं देते जो योगाग्नि को lसदाचार होता है संग उनके, मनः सतगुरु पार भव सागर ले जाने को ll
कली बनता गुल, गुल खिलता है काँटों में lअभ्यास बनता है मेहनत, मनः होती नहीं मेहनत बातों में ll
महंदी रंग लाती है पत्थर पर घिसने के बाद lअक्कल का गुल खिलता है, मनः ठोकर खाने के बाद ll