इस अवस्था में बच्चे का ज्ञान और विवेक अपरिपक्व होता है l अच्छे बुरे या निषिद्ध कार्य का सही आंकलन नहीं होता है l वह जो भी कार्य करता है - उसे अच्छे बुरे या निषिद्ध कार्य का ज्ञान होना चाहिए l लेकिन वह कठिन और चुनौति पूर्ण जीवन यापन की अपेक्षा सुगम और सरल जीवन यापन करना अधिक पसंद करता है l कई बार अभिभावक की अनदेखी और कुसंगति में पड़कर वह अनुचित मार्ग की ओर भी अग्रसित हो जाता है l अगर समय रहते अभिभावक बच्चे का उचित मार्गदर्शन करें तो वह उस संकट से बच भी सकता है l
किशोर/किशोरियों के लिए यही समय सम्भलने का होता है । अगर इस समय उनके माता - पिता के द्वारा उन्हें अच्छे संस्कार, गुरु और अध्यापक द्वारा उचित शिक्षण - प्रशिक्षण प्राप्त हो तो वे अपने जीवन में संभल सकते हैं, वे दुर्व्यसनों का शिकार नहीं होते हैं । वे धैर्य और साहस के साथ अपने जीवन की चुनौतियों, बाधाओं, कठिनाइयों और दुःख - सुख का सामना करने में सक्षम होते हैं और दुर्व्यसनों का शिकार नहीं होते हैं l