मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: 3 स्व रचित रचनाएँ

  • श्रेणी:

    ईर्ष्या घृणा

    दैनिक जागरण 9 मई 2007

    आग से खेल रहा क्यों?
    वह राख बनाया करती है
    ईर्ष्या से भी प्रेम कर रहा
    हंसते को रुलाया करती है
    घृणा कर नीच विचारों से
    मगर इन्सान से नहीं
    करके ईर्ष्या घृणा इन्सान से
    रह सकता तू सुख शांति से नहीं


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    कोटि कोटि प्रणाम

    दैनिक जागरण 3 मई 2007

    मातृ भूमि तुझको
    करूं मैं क्या अर्पण
    साहस नहीं मुझमें
    बिन देरी करूं मैं आत्म समर्पण
    बस कार्य के सिवाय
    फल की ओर न हो मेरा ध्यान
    सेवा की हो डगर अपनी
    और नित हो तुझे कोटि कोटि मेरा प्रणाम


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    स्नान गृह में

    दैनिक जागरण 29 अप्रैल 2007 

    दाढ़ी बना ले चाहे तू दांत साफ कर ले
    पर भाई चल पहले नल बंद कर दे
    भूजल अनावश्यक बाहर आ रहा
    भूजल स्तर नीचे जा रहा
    अब फव्वारे से या टब में नहीं है नहाना
    बाल्टी भर पानी से ठीक है नहाना
    जब बाल्टी भर पानी से नहाया जा सके
    दो बाल्टी भर पानी बहाना है क्यों
    भूजल संरक्षण अभियान सफल बनाया जा सके
    अनावश्यक दोहन करके जल संकट बनाना है क्यों
    साबुन या धोने का पाउडर पहले है लगाना
    फिर कपड़ा भली प्रकार है धोना
    अनावश्यक जल नल से नहीं है बहाना
    ऐसे कल का जल संरक्षण नहीं है होना
    नल बंद करके साबुन है लगाना
    फिर साबुन धोने को नल है चलाना
    ऐसी नहीं करनी है नादानी
    कहना पड़े कि अब नहीं रहा है पानी


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    समय का स्वभाव

    दैनिक जागरण 24 अप्रैल 2007

    समय तो बहता जल है
    वह बहता जाता गाता है
    तू संभाल पलपल की करता चल
    जीवन पलपल से बन पाता है
    गोली छूटती है बन्दूक से
    फिर कभी नहीं आती है हाथ
    सकल दिवस जाता पलपल में
    घड़ी भी नहीं देती है साथ


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    आलस्य

    दैनिक जागरण 18 अप्रैल 2007 

    प्राप्त वस्तु से संतुष्ट हुआ
    तूने मेहनत करना छोड़ा क्यों
    कोई वस्तु रहेगी कब तक पास तेरे
    कर्म से तूने नाता तोड़ा क्यों
    आलस्य में क्यों बैठ गया
    तू अपने हाथपांव पसार
    मिट्टी का खिलौना मिट्टी में मिला दे
    देख मेहनत का भी चमत्कार
    आलसी नहीं आलस्य भगा दे
    तू अगल बगल से दूर
    घोड़ा तन है तेरा
    चाबुक मेहनत मार भरपूर
    लगेगी भूख भागेगा सरपट
    अपनी ही मंजिल ओर
    चाहे कठिन है राह तेरी अपनी
    पाएगा तू जरूर मंजिल छोर


    चेतन कौशल "नूरपुरी"