दैनिक जागरण 18 दिसम्बर 2007
सर्दी का मौसम आया है
बन कर काली घटा छाया है
बर्फ बन कर गिरती फुहार है
चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है
रिमझिम पानी बरसने लगा है
किसानों का मन हर्षाने लगा है
डाली डाली फिर होने लगा श्रृंगार है
चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है
मतदान का सुहाना मौसम लगता अब है
दल का दल से गिलासिकवा भी गजब है
मतदाता से मतदाता करता सोच विचार है
चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है
इस बार मतदाता पसंद की जो सरकार बनेगी
जनता तो उसे निज हित की बात कहेगी
उसने हर समस्या का करना खण्डाधार है
चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है
सरकार चाहे जिस दल की आए
जनता की भूख प्यास अवश्य ही मिटाए
सत्ता पलटने को वह हर समय तैयार है
चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है
चेतन कौशल "नूरपुरी"
श्रेणी: 3 स्व रचित रचनाएँ
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श्रेणी:कवितायें
सुहाना मौसम
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श्रेणी:कवितायें
जाग रे नौजवान
मातृवन्दना दिसम्बर 2007
तज मोह प्राण जाग रे नौजवान
वीत रहे दिन आलस्य के सारे
कर पूरे काम जो गत जन थे हारे
है आग अंगारे तेरे चार चफेरे
हटा दे चाहे जाते हों प्राण
तज मोह प्राण जाग रे नौजवान
जीतना है तूने आशाओं को
खोना है अपनी निराशाओं को
तूने बढ़ाना है ज्ञान
दूर करना है अज्ञान
तज मोह प्राण जाग रे नौजवान
बनना है नेक तूने जग में
कोई दुखी न रहे जग में
करना है सदव्यवहार जनजन से
रहे रम्य भारत की आन
तज मोह प्राण जाग रे नौजवान
यह समय सोने का है नहीं
यह समय रोेने का है नहीं
भारत पर काली घटा छा रही
खुद संभल भारत का कर सम्मान
तज मोह प्राण जाग रे नौजवान
चेतन कौशल "नूरपुरी"
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श्रेणी:ऐतिहासिक -आलेख
जन मानस विरोधी कदम
मातृवन्दना जून 2007 अंक में पृष्ठ संख्या 8 आवरण आलेखानुसार ”कुछ वर्ष पूर्व ”नासा“ द्वारा उपग्रह के माध्यम से प्राप्त चित्रों और सामग्रियों से यह ज्ञात हुआ है कि श्रीलंका और श्रीरामेश्वरम के बीच 48 कि0 मी0 लम्बा तथा लगभग 2 कि0 मी0 चौड़ा सेतु पानी में डूबा हुआ है और यह रेत तथा पत्थर का मानवनिर्मित सेतु है। भगवान श्रीराम द्वारा निर्मित इस प्राचीनतम सेतु का जलयान मार्ग हेतु भारत और श्रीलंका के बीच अवरोध मान कर ”सेतु समुद्रम-शिपिंग- केनाल प्रोजैक्ट“ को भारत सरकार ने 2500 करोड़ रुपए के अनुबंध पर तोड़ने की जिम्मेदारी सौंपी है।“ यह भारतीय संस्कृति की धरोहर पर होने वाला सीधा कुठाराघात ही तो है जिसे जनान्दोलन द्वारा तत्काल नियन्त्रित किया जाना अनिवार्य है।
जुलाई 2007 मातृवन्दना अंक के पृष्ठ संख्या 11 धरोहर आलेख ”वैज्ञानिक तर्क“ के अनुसार ”धनषकोटी के समीप जलयान मार्ग के लिए वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध हो सकता है।“ इस सुझाव पर विचार किया जा सकता है परन्तु इसकी अनदेखी की जा रही है। एक तरफ भारत की विदेश नीति पड़ोसी पाकिस्तान, चीन, बंग्लादेश, भुटान आदि देशों के साथ आपसी संबंध सुधारने की रही है। उन्हें सड़कों के माध्यम द्वारा आपस में जोड़ कर उनमें आपसी दूरियां मिटाई जा रही हैं तो दूसरी ओर श्रीराम द्वारा निर्मित सेतु को ही तोड़ा जा रहा है। इसे वर्तमान सरकार का जन भावना विरोधी उठाया गया कदम कहा जाए तो अतिश्योक्ति नही होेगी क्योंकि इसके साथ देश-विदेश के असंख्य श्रध्दालुओं की अपार धार्मिक आस्थाएं जुड़ी हुई हैं। इससे उन्हें आघात पहुंच रहा है।
कितना अच्छा होता! अगर श्रीराम युग की इस बहुमूल्य धरोहर रामसेतु का एक वार जीर्णोध्दार अवश्य हो जाता। उसे नया स्वरूप प्रदान किया जाता। इसके लिए श्रीलंका और भारत सरकार मिलकर प्रयास कर सकती हैं। दोनों देशों के संबंध और अधिक मधुर तथा प्रगाढ़ हो सकते हैं । इस भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की किसी भी मूल्य पर रक्षा अवश्य ही की जानी चाहिए।नवम्बर 2007 मातृवन्दना
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श्रेणी:शिक्षा दर्पण -आलेख
विद्यार्थी जीवन निर्माण
मानों तो मानव जीवन का निर्माण किसी भवन का निर्माण करने से कोई कम नहीं है। भवन का निर्माण कार्य किसी निश्चित अवधि तक तो समाप्त हो जाता है पर जीवन निर्माण का कार्य बिन रोके लम्बे समय तक चलाए रखने की अपेक्षा बनी रहती है। इसका वर्णन किसी सफल साधक की जीवन गाथा से मिल सकता है।
विद्यार्थी जीवन का आधार बनाने के लिए सर्व प्रथम आवश्यक है उसके धरातल का निरीक्षण करना। घर में माता-पिता तथा विद्यालय में गुरुजनों के द्वारा उसका जीवन निर्माण करने से पूर्व उसकी नींव तैयार करनी होती है। उन्हें देखना होता है कि वह किस योग्य है? उसमें ऐसे क्या गुण विद्यमान हैं जो उसके लिए अति आवश्यक हैं। उसमें ऐसी क्या विशेषताएँ हैं जो उसके जीवन की नींव को सुदृढ़ कर सकती हैं।
माता-पिता अथवा गुरुजनों द्वारा विद्यार्थी में विद्यमान विशेष गुणों के आधार पर उसके लिए कोई उपयुक्त साध्य निर्धारित करना होता है। उसे जीवन में क्या करना है? वह स्वयं में क्या बनने की क्षमता रखता है? उसमें ऐसा कौन सा गुण है जिसे थोड़ा सा सहारा मिलने पर वह प्रगति पथ पर तांगे के घोड़े की भांति सरपट भागने में सक्षम हो सकता है। यह सब माता-पिता तथा गुरुजनों द्वारा जान लेना अनिवार्य है।
विद्यार्थी की साध्य क्षमता का अनुमान मात्र अनुमान न बना रहे, इसलिए उसे भली प्रकार से जांच-परख कर ही माता-पिता व गुरुजनों को उसके अनुकूल साधन जुटाने होते हैं ताकि वह उनकी सहायता से अपने जीवन लक्ष्य की प्राप्ति करने का अभियान तेज कर सके।
विद्यार्थी के लिए उसकी अपनी योग्यता, लक्ष्य प्राप्त करने की क्षमता और उत्तम संसाधनों का मोल और अधिक बढ़ जाता है जब उसे अपने माता-पिता और गुरुजनों के सुस्नेह और सानिध्य में स्वगुण सम्पन्न अभिरुचि के अनुरूप उपयुक्त शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त होता है। उसे लाख बाधाएं होने पर भी लक्ष्य की प्राप्ति करना अनिवार्य है। उससे स्थानीय परिवार तथा सम्पूर्ण समाज को होनहार युवा और गुण सम्पन्न नागरिक मिलते हैं। विद्यार्थी जीवन निर्माण में माता-पिता और गुरुजनों की प्रमुख भूमिका रहती है। क्या वर्तमान में हम माता-पिता और गुरुजन अपने इस दायित्व का भली प्रकार निर्वहन कर रहे हैं?20 नवम्बर 2007 दैनिक जागरण
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श्रेणी:शिक्षा दर्पण -आलेख
गुरु का महत्व
भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान सर्वोपरि है। घर पर माता-पिता और विद्यालय में गुरु को उच्च स्थान प्राप्त है। शास्त्रों में इन तीनों को गुरु कहा गया है। मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, गुरु देवो भव। गुरु माता को सर्व प्रथम स्थान प्राप्त है क्योंकि वह बच्चे को नव मास तक अपनी कोख में रखे उसका पालन-पोषण करती है। जन्म के पश्चात ज्यों-ज्यों शिशु बड़ा होता जाता है त्यों-त्यों वह उसे आहार तथा बात करना सिखाने के साथ-साथ उठने, बैठने और चलने के योग्य बनाती है। गुरु पिता परिवार के पालन-पोषण हेतु घरेलु सुख-सुविधाएं जुटाने का कार्य करता है और परिवार को अच्छे संस्कार देने का भी ध्यान रखता है।
विद्यालय में गुरुजन विद्यार्थी में पनप रहे अच्छे संस्कारों की रक्षा करने के साथ-साथ उसे धीरे-धीरे बल भी प्रदान करते हैं ताकि वह भविष्य में आने वाली जीवन की हर चुनौति का डटकर सामना कर सके।
गुरु भले ही घर का हो या विद्यालय का, वह राष्ट्र के प्रति समर्पित भाव वाला होता है। उसके द्वारा किए जाने वाले किसी भी कार्य में राष्ट्रीय भावना का दर्शन होता है। जिससे देश-प्रेम छलकता है। गुरु के मन, वचन और कर्म में सदैव निर्भीकता हिलोरे लेती रहती है। वह जनहित में निष्कपट भाव से सोचने, बोलने और कार्य करने वाला होता है। गुरु को अपने विषय का पूर्ण ज्ञान होता है। एक तत्व ज्ञानी या गुरु ही किसी विद्यार्थी को उसकी आवश्यकता अनुसार उचित शिक्षण-प्रशिक्षण देकर उसे सफल स्नातक और अच्छा नागरिक बनाता है।
गुरुर्बह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेष्वरः गुरु साक्षात परमब्रह्म तस्मै श्री गुरुवैे नमः। शास्त्रों में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश देवों के तुल्य माना गया है जिनमें सामाजिक संरचना, पालना और बुराइयों का नाश करने की अपार क्षमता होती है। गुरु आत्मोत्थान करता हुआ अपने विभिन्न अनुभवों के आधार पर विद्यार्थी को उच्च शिक्षण-प्रशिक्षण देकर समर्थ बनाता है। क्या हम घर पर गुरु माता-पिता और विद्यालय में गुरुजन अपने इन दायित्वों का भली प्रकार निर्वहन करते हैं?15 नवम्बर 2007 दैनिक जागरण