दैनिक जागरण 16 नवम्बर 2007
कदम से कदम मिलाकर जो चलेगा,
वोट तो हमारा, उसी को मिलेगा,
पीछे हमसे अब कोई रहेगा नहीं,
अकेला वो कष्ट सहेगा नहीं,
अपने साथ, सबको लेकर जो चलेगा,
वोट तो हमारा, उसी को मिलेगा,
मन में कोई मैल आए न,
मन की बात, मन में छुपाए न,
विश्वास मत, दोबारा प्राप्त जो करेगा,
वोट तो हमारा, उसी को मिलेगा,
जनतन्त्र है हमारा, हम जनता के,
जनता का काम अपना, हम सेवक जनता के,
समझकर काम अपना, जनता का जो करेगा,
वोट तो हमारा, उसी को मिलेगा,
सर्वोच्च स्थान, राष्ट्र का है,
राष्ट्र का नायक, राष्ट्र का है,
राष्ट्र का माथा सम्मानित, ऊंचा जो करेगा,
वोट तो हमारा, उसी को मिलेगा,
चेतन कौशल "नूरपुरी"
श्रेणी: 3 स्व रचित रचनाएँ
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श्रेणी:कवितायें
वोट हमारा
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श्रेणी:कवितायें
सीख
दैनिक जागरण 25 अक्तूबर 2007
ऐ तूफान! तेरी क्या हस्ती?
जहां तू, वहां मैं चला,
सहारा साथ लिए मस्ती,
आंचल में तेरे मैं पला,
चिंता नहीं, जिऊं या मरूं,
घमण्ड न कर, तू प्यारे!
प्रेरणा देता रहा, मैं आऊं पास तेरे,
शीश अपना हथेली पर धारे,
हो जाएं मेरे,
जीवन प्राण न्यारे,
ऐ तूफान! हूं नहीं कम मैं भी तुझसे,
सीख दी तूने, सीख ले तू आज मुझसे,
चेतन कौशल "नूरपुरी"
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श्रेणी:शिक्षा दर्पण -आलेख
विद्यार्थी जीवन आधार
जिस प्रकार मकान बनाने के लिए किसी निर्माता विशेषज्ञ के द्वारा मकान की नींव का निर्माण करने से पूर्व उसकी निर्माण- स्थली का सूक्षमता से निरीक्षण करना अनिवार्य होता है ठीक उसी प्रकार गुरुजनों द्वारा किसी विद्यार्थी जीवन को मूर्ति रूप देने से पूर्व विद्यार्थी जीवन का भी भली प्रकार जांच-परख करना होता है। उसकी नींव में प्रयुक्त होने वाली सामग्री जितनी बढ़िया होती है निर्माणाधीन विद्यार्थी जीवन रूपी भवन स्वयं में उतना ही सुरक्षित एवं संकट से मुक्त होता है।
गुरुजन विद्यार्थी की बौद्धिक क्षमता अथवा योग्यता के आधार पर उसकी कार्य क्षमता का अनुमान लगाते हैं। वे उस पर कार्यभार का दबाव नहीं बल्कि उसके कार्य में सहयोग देते हैं। इससे उसमें विद्यमान प्रतिभा उजागर होती है और उसका प्रगति मार्ग सुगम होता है।
गुरुजन विद्यार्थी में विद्यमान इच्छा शक्ति या उसकी लग्न का विशेष ध्यान रखते हैं। वह उसकी इच्छा शक्ति को ओर अधिक तीव्र करने में योगदान करते हैं तथा उसके मार्ग में आने वाली विभिन्न बाधाओं से समय-समय पर सावधान करके उसे आत्मरक्षा के उपायों द्वारा अवगत करवाते रहते हैं।
विद्यार्थी की श्रमशीलता और लग्नशीलता उसकी कार्यक्षमता दर्शाती है। गुरुजनों की दृष्टि सदैव उसके कार्य में आने वाली विसंगतियों पर स्थिर रहती है जो आवश्यकता पड़ने पर उन्हें दूर करने में उसकी सहायता करती है। विद्यार्थी की सफलता गुरुजनों की कृपादृष्टि पर निर्भर करती है।
विद्यार्थी की बौद्धिक क्षमता, इच्छाशक्ति, श्रमशीलता के साथ-साथ उसकी कार्यक्षमता भी उसके अदम्य साहस के आगे नतमस्तक होती है। लग्नशील विद्यार्थी ही साहसी और निर्भीक होकर जनहित कार्य करता है। इससे गुरुजनों की मेहनत सफल होती है। क्या वर्तमान विद्यार्थी बौद्विक क्षमता, इच्छाशक्ति, श्रमशीलता और साहस से परिवार एवं समाज के प्रति अपने दायित्वों का पूर्ण रूप से निर्वहन करता है?अक्तूवर 2007 दैनिक जागरण
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श्रेणी:शिक्षा दर्पण -आलेख
विद्यार्थी जीवन विकास
खरबूजा खरबूजे को देख कर अपना रंग बदलता है – कहावत विश्व विख्यात है। परिवार में बच्चे और विद्यालय में विद्यार्थी आस-पड़ोस में जैसा देखते व सुनते हैं, वे स्वयं वैसा करने का प्रयत्न भी करते हैं। उन्हें वहां उत्तम संस्कार मिलें इसलिए माता-पिता और गुरु जन घर अथवा विद्यालय का वातावरण कभी दूषित नहीं होने देते हैं क्योंकि वे भली प्रकार जानते हैं कि अच्छे वातावरण में ही सुसंगत का उद्गम होता है जिससे सद्भावना, सद्विचार, सद्कर्मों का शुभारम्भ होता है जो किसी घर, परिवार और समाज के लिए अति आवश्यक है।
उस घर, विद्यालय और समाज में किसी नर-नारी के साथ अन्याय, अनाचार,शोषण अथवा अत्याचार हो ही नहीं सकता जहां जागृत माता-पिता तथा गुरु जन समय-समय पर उपरोक्त बुराइयों के विरुद्ध किसी संयुक्त मंच से श्रोताओं के समक्ष निर्भीकता से क्रांतिकारी स्वर उठाते रहते हैं। इससे बच्चों और विद्यार्थियों में नव चेतना जागृत होती है। उनमें बल, बुद्धि, विद्या और सद्गुणों का सृजन होता है। उन्हें इस कार्य को करने के लिए उनका सहयोग मिलता है।
बच्चों और विद्यार्थियों का सदाचारी जीवन कैसा होता है? जीवन की अपनी मर्यादाएं क्या होती हैं? उसकी रक्षा कैसे होती है? उससे क्या लाभ होते हैं? माता-पिता और गुरुजन समय-समय पर उन्हें इसका ज्ञान करवाते रहते हैं।
सामाजिक मान मर्यादा की पालना कब, कहां, किससे और कैसे हो? माता-पिता और गुरुजन इसका हर समय ध्यान रखते हैं और बच्चों तथा विद्यार्थियों के लिए आदर्श बन कर दिखाते हैं ताकि वे भावी सभ्य समाज के नव निर्माण मे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें। क्या हम इस ओर अग्रसर है? नहीं तो हमें भविष्य संवारने के लिए ऐसा कुछ करना चाहिए क्या?10 अक्तूबर 2007 दैनिक जागरण
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श्रेणी:राष्ट्रीय भावना – आलेख
कर्तव्य विमुखता का काला साया
आज बुराई का प्रतिरोध करने वाला हमारे बीच में कोई एक भी साहसी, वीर, पराक्रमी, बेटा, जन नायक, योद्धा अथवा सिंहनाद करने वाला शेर नौजवान दिखाई नहीं दे रहा है। मानों जननियों ने ऐसे शेरों को पैदा करना छोड़ दिया है। गुरु जन योद्धाओं को तैयार करना भूल गए हैं अथवा वे समाज विरोधी तत्वों केे भय से भयभीत हैं।
उचित शिक्षा के अभाव में आज समस्त भारत भूमि भावी वीरों से हीन होने जा रही है। उद्यमी युवा जो एक बार समाज में कहीं किसी के साथ अन्याय, शोषण अथवा अत्याचार होते देख लेता था, अपराधी को सन्मार्ग पर लाने के लिए उसका गर्म खून खौल उठता था, उसका साहस परास्त हो गया है। यही कारण है कि जहां भी दृष्टि जाती है, मात्र भय, निराशा अशांति और अराजकता का तांडव होता हुआ दिखाई देता है। धर्माचार्यों के उपदेशों का बाल-युवावर्ग पर तनिक भी प्रभाव नही पड़ रहा हैै।
बड़ी कठिनाई से पांच प्रतिशत युवाओं को छोड़ कर आज का शेष भारतीय नौजवान वर्ग भले ही बाहर से अपने बल, धन, सौंदर्य और जवानी से अपना यश और नाम कमाने के लिए बढ़चढ़ कर लोक प्रदर्शन करता हो परन्तु वह भीतर से तो है विवश और असमर्थ ही। इसी कारण सृजनात्मक एवं रचनात्मक कार्य क्षेत्र में कोरा होने के साथ-साथ वह अधीर भी हैै। वह सन्मार्ग भूल कर स्वार्थी, लोभी, घमंडी और आत्म विमुख होता जा रहा है। उसमें सन्मार्ग पर चलने की इच्छा-शक्ति भी तो शेष नही बची है। वह भूल गया है कि वह स्वयं कौन है?
आज का कोई भी विद्यार्थी, स्नातक, बे-रोजगार नौजवान मानसिक तनाव के कारण आत्म विमुख ही नहीं हताष-निराश भी हो रहा है जिससे वह जाने-अनजाने में आत्महत्या अथवा आत्मदाह तक कर लेता है। प्राचीन काल की भांति क्या माता-पिता बच्चों में आज अच्छे संस्कारों का सृजन कर पाते हैं? क्या गुरुजन विद्यार्थी वर्ग में विद्यमान उनके अच्छे गुण व संस्कारों का भली प्रकार पालन-पोषण, संरक्षण और संवर्धन करते हैं? वर्तमान शिक्षा से क्या विद्यार्थी संस्कारवान बनते हैं? नहीं तो ऐसा क्या है जिससे कि हम अपना कर्तव्य भूल रहे हैं? हम अपना कर्तव्य पालन नहीं कर रहे।26 सितम्बर 2007 दैनिक जागरण