चेतन विचार -धर्म आस्था अध्यात्म संस्कृति
# सनातन विरोधी गुट का त्याग करने वाले महानुभावों का हार्दिक अभिनंदन, हमारे लिए सनातन से बढ़कर अन्य कुछ भी नहीं ।*
चेतन कौशल "नूरपुरी"
श्रेणी: 3 स्व रचित रचनाएँ
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श्रेणी:धर्म अध्यात्म संस्कृति -आलेख
सनातन धर्म
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श्रेणी:सामाजिक बुराइयाँ – आलेख
मक्कारी
चेतन विचार - सामाजिक बुरायाँ
# समाज में क्षेत्र, भाषा, जाति, धर्म, ऊंच-नीच, रंग, मत, पंथ, संप्रदाय, लिंगादि भेद-भाव फैलाना और सनातनी समाज, देश, धर्म- संस्कृति को मिटाना ही मक्कारों की राजनीति है। *
चेतन कौशल "नूरपुरी"
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श्रेणी:राष्ट्रीय भावना – आलेख
मतदान के प्रति मतदाता की जागरूकता
मातृवंदना नवंबर 2022
1 जागरूक मतदाता :-
जो मतदाता भारत का नागरिक हो l जो आचार संहिता लगने तक संपूर्ण 18 वर्ष का हो गया हो l जो उस निर्वाचन क्षेत्र का निवासी हो जहाँ उसका पहली बार नाम अंकित होना हो, मतदान की योग्यता रखता है l लोक तांत्रिक देश भारत में 18 वर्ष से ऊपर के हर किशोर/युवा को संवैधानिक रूप से अपना मतदान करने का अधिकार प्राप्त है l निर्वाचन काल में वह मतदाता बनकर अपने मतदान से अपनी पसंद के प्रत्याशी की हो रही हार को भी अपने एक मत से उसकी जीत में परिवर्तित कर सकता है, ऐसी अपार क्षमता रखने वाले उसके मत को बहुमूल्य कहा जाता है l 1996 में माननीय अटल विहारी वाजपेयी जी की केन्द्रीय सरकार थी जिसे मात्र एक मत कम मिलने के कारण हार का सामना करना पड़ा था l हर लोकतान्त्रिक देश में किसी नेता, दल या दल की विचारधारा को लेकर उसके बारे में मतदाता की जो अपनी राय या मत होता है, उसे उसका मतदान के समय उपयोग अवश्य करना होता है l मतदाता जागरुक होना चाहिए ताकि जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए मजबूत लोकतंत्र की स्थापना को बल मिल सके l
2 मताधिकार का प्रयोग :-
छब्बीस जनवरी 1950 के दिन भारत में भारत के संविधान को स्वीकृति मिली थी l उसे पूर्ण रूप से लागु किया गया था l तब से लेकर अब तक मतदाता के द्वारा मतदान करने का अपना बहुत बड़ा महत्व है l मतदाता मतदान करके अपने पसंद का प्रत्याशी चुनता है l उसके द्वारा चुना हुआ प्रत्याशी अन्य क्षेत्रों से चुने गये प्रत्याशियों के साथ आगे चलकर स्थानीय निकाएं – ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, नगर पालिका, जिला परिषद् का ही नहीं, विधान सभा और लोक सभा का भी गठन में भी साह्भागी बनता है और सरकार बनाता है l
इस व्यवस्था की प्रक्रिया से सरकार द्वारा जो योजनायें बनाई जाती हैं, उन्हें साकार करने हेतु प्रारंभ किये गये जनहित विकास कार्यों का लाभ व सुविधाएँ जन-जन तक पहुंचाई जाती हैं l इसलिए मतदाता को अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करना चाहिए - क्योंकि यह केवल अधिकार ही नहीं, उसका कर्तव्य भी है l
3 गोपनीयता :-
देश में राजनीति से संबंधित वर्तमान में अनेकों विचार धाराएँ विद्यमान हैं l देखा जाये तो सभी विचार धाराओं के अपने-अपने दल और उनके विभिन्न उद्देश्य हैं l पर उनमें कुछ एक नेता निजहित, परिवार हित, दलहित की दलदल की राजनीति में ही धंसे हुए हैं l उन्हें जनहित, क्षेत्रहित, प्रांतहित, राष्ट्रहित और मानवता की भलाई कुछ भी दिखाई नहीं देती है l या तो उन्हें राजनीति की दलदल से बाहर निकलने का कोई मार्ग/सहारा नहीं मिलता है, या फिर वे उससे बाहर ही निकलना नहीं चाहते हैं l इस दौरान उन्हें जो मार्ग/सहारा मिलता भी है तो वह मार्ग पहले ही दलदल से भरा हुआ होता है या सहारा उस दलदल में धंसा हुआ मिलता है, जो उसे बाहर निकलने/निकालने में असमर्थ होता है l
निर्वाचन की व्यार चलते समय भारतीय राजनेता/राजनीतिक दल जनता को अपनी ओर आकर्षित करने हेतु मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त धन - मदिरा-मास, मासिक युवा बे-रोजगारी भत्ता, रोजगार देने, गरीबी दूर करने, सुशासन देने जैसे लुभावने तरह-तरह के प्रलोभन दिखाते हैं, उन्हें तो मात्र किसी तरह सत्ता की प्राप्ती करनी होती है, जनहित, देशहित किसने, कब देखा है ? निर्वाचन काल में उनके द्वारा किये जाने वाली घोषनाएँ /वायदे अथवा किये जाने वाले कार्य मात्र जनता को प्रलोभन दिखाकर मुर्ख बनाना होता है l
मतदान के दो प्रकार :- मतदान का पहला प्रकार सबसे अच्छा चुनाव वह होता है जो निर्विरोध एवं सर्व सम्मति से सम्पन्न होता है l इसमें प्रति स्पर्धा के लिए कोई स्थान नहीं होता है और दूसरा जो मतपेटी में प्रत्याशी के समर्थन में उसके चुनाव चिन्ह पर अपनी ओर से चिन्हित की गई पर्ची डालकर या ईवीएम मशीन से किसी मनचाहे प्रत्याशी के पक्ष में, चुनाव चिन्ह का बटन दबाकर अपना समर्थन प्रकट किया जाता है, मतदान कहलाता है l लेकिन प्रतिस्पर्धा मात्र पक्ष-विपक्ष दो ही प्रत्याशी प्रतिद्वद्वियों में अच्छी होती है जिसमे अधिक अंक लेने वाले की जीत और कम अंक लेने वाले की हार निश्चित होती है l
समय या असमय देखा गया है कि विधायक चुनी हुई सरकार से अपना समर्थन वापस ले लेते हैं परिणाम स्वरूप सरकार गिर जाती है l अगर विधायक को अपना समर्थन वापस लेने का अधिकार है तो मतदाताओं को भी उस विधायक से अपना मत वापस लेने का अधिकार होना चाहिए ताकि वो कभी बिकने का दुस्साहस न कर सके l मतदाता के द्वारा सदैव बिना किसी भय, बिना किसी दबाव, बिना किसी लोभ, अपनी इच्छा और पसंद के, सर्व कल्याणकारी विचार धारा को मध्यनजर रखते हुए, बिना किसी व्यक्ति को बताये अपना गुप्त मतदान करना चाहिए l मतदाता के पास अपना बहुमूल्य मत होता है जिससे वह समाज विरोधी विचारधारा को हराकर, राष्ट्रवादी विचारधारा को विजय दिला सकता है l आगे भेज सकता है और उससे एक अच्छी सरकार की आशा भी कर सकता है l अन्यथा उस बेचारे मतदाता को पांच वर्ष तक अधर्म, अन्याय, अनीति और असत्य का सामना करना पड़ता है l
4 शत प्रतिशत मतदान :-
“मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं लहर नहीं, पहले व्यक्ति देखूंगा l मैं प्रचार नहीं, छवि देखूंगा l मैं धर्म नहीं, विजन देखूंगा l मैं दावे नहीं, समझ देखूंगा l मैं नाम नहीं, नियत देखूंगा l मैं प्रत्याशी की प्रतिभा देखूंगा l मैं पार्टी को नहीं, प्रत्याशी को देखूंगा l मैं किसी प्रलोभन में नहीं आऊंगा l” इस तरह मतदाता का स्वयं जागरूक होना या दूसरों को जागरूक करना परम आवश्यक है और स्वभाविक भी l
इसी माह 12 नवंबर को प्रदेश में लोक सभा के चुनाव होने हैं l सभी नर-नारी, युवा और वृद्ध शत-प्रतिशत लोक-सभा मतदान करने की प्रतिज्ञा करें l कोई भी 18 वर्ष की आयु से ऊपर वाला युवा जो वैधानिक दृष्टि से मतदान करने का अधिकारी बन चुका है, मतदान से वंचित नहीं रहना चाहिए l
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श्रेणी:हमारा पर्यावरण – आलेख
अति वृष्टिपात और बाढ़-संकट
मातृवन्दना अगस्त 2023
जल, वायु, अग्नि, धरती और आकाश सृष्टि के पंच महाभूत, सर्व विदित हैं L धरती पर वायु अग्नि और जल तत्वों की प्रतिशत मात्रा जब कभी कम या अधिक हो जाती है तब उस पर असंतुलन पैदा हो जाता है L वायु का दबाव कम या अधिक होने पर आंधी या तूफ़ान आने और पेड़, जंगल के अभाव में वायुमंडल में ताप अधिक बढ़ने से जंगल में आग लगने का भय बना रहता है L इसी प्रकार धरती पर जब कभी भारी वृष्टिपात होता है तो वर्षाजल बाढ़ के रूप में परिवर्तित हो जाता है और उससे धरती का कटाव होता है, जान-माल की हानि होती है L
बाढ़ आने का कारण -
अवैध खनन – कभी नदियों और नालों में विद्यमान बड़े-बड़े पत्थर जल बहाव की गति को कम किया करते थे L लोगों के मकान मिट्टी, लकड़ी के बने होते थे L वे उसी में संतुष्ट रहते थे L परन्तु जबसे पक्के भवन, पुल और मकानों के निर्माण हेतु नदियों और नालों में पत्थर, रेत और बजरी का अवैध खनन किया जाने लगा है तब से उनमें वर्षा काल में जल बहाव की गति भी तीव्र होने लगी है और उसे बाढ़ के नाम से जाना जाता है L
अवैध पेड़-कटान से वन्य क्षेत्रफल की कमी – अवैध पेड़ कटान होने से धरती का निरंतर चीर-हरण किया जा रहा है L धरती हरित पेड़, पौधे, झाड़ियों और घास के अभाव में बे-सहारा/नग्न होती जा रही है जिससे कम बर्षा होने पर भी वह वर्षाजल का वेग सहन नहीं कर पाती है, निरंकुश बाढ़ बन जाती है और वह विनाश लीला करने लगती है L
नदियों के किनारे पर बढ़ती जन संख्या – नदी, नालों के किनारों पर अन्यन्त्रित जन संख्या बढ़ने से दिन-प्रतिदिन हरे पेड़, पौधे, झाड़ियों और घास का आभाव हो रहा है L जिससे जल बहाव मार्ग परिवर्तित होता रहता है L जल बहाव को तो उसका मार्ग मिलना चाहिए, उसे नहीं मिलता है L उसके मार्ग में अवैध निर्माण होते हैं L अगर मनुष्य जाति नदी, नालों में अपने लिए आवासीय घर, पार्क और अन्य आवश्यक निर्माण करवाती है तो नदी, नाला भी अपने बहाव के लिए मार्ग तो बनाएगा ही L जल प्रलय अवश्य आएगी L धरती के रक्षण हेतु नदी, नालों के किनारों पर तो अधिक से अधिक हरे पेड़, पौधे, झाड़ियां और घास होने चाहिए, न कि मनुष्य द्वारा निर्मित कंक्रीट, पत्थरों का जंगल L
पहाड़ों पर अधिक सड़क निर्माण – विकास की दौड़ के अंतर्गत मैदानी क्षेत्रों में चार, छेह लेन के राष्ट्रीय राज-मार्ग निर्माण कार्य जोरों से हो रहा है L उससे पहाड़ी राज्य-क्षेत्र अछूते नहीं रहे हैं L वहां भी चार लेन की सडकें बननी आरंभ हो गई हैं L इससे भूमि का कटाव जोरों पर है L लाखों पेड़ों की बलि दी जा रही है L धरती हरे पेड़, पौधे, झाड़ियां और घास से विहीन होती जा रही है L वृहत जंगल वृत्त, वन्य संपदा के सिकुड़ने से, असंतुलित वृष्टिपात होने तथा बाढ़ आने से धरती का कटाव बढ़ रहा है L
देश, धर्म-संस्कृति के प्रति बढ़ती मानवीय उदासीनता - संपूर्ण धरा पर मानव और दानव दो जातियां पाई जाती हैं L नर और मादा उनके दो रूप हैं L वेदज्ञान मानव को ही मानव नहीं बनाये रखता है बल्कि दानवों को भी मानव बनाने की क्षमता रखता है L जब तक मनुष्य वेद सम्मत अपना जीवन यापन करता रहा, वह मानव ही बना रहा L वह देश, सनातन धर्म-संस्कृति का भी सम्मान करता था पर जब से वह वेद विमुख हुआ है, तब से वह दानव बन गया है L वेदज्ञान जल, वायु, अग्नि, आकाश और धरती की पूजा के साथ-साथ धरती पर विद्यमान पहाड़, नदियों, पत्थर, पेड़, फूल-वनस्पतियों जीवों के भरन-पोषण का ध्यान रखने में मानव को सन्मार्ग पर चलने हेतु मार्ग-दर्शन करते थे L मानव की स्वार्थ पूर्ण दानव प्रवृत्ति बढ़ने से अब वह देश, धर्म-संस्कृति के विरुद्ध आचरण करने लगा है, जो उसके विनाश का कारण बनता जा रहा है L
बाढ़ का दुष्प्रभाव –
बाढ़ आने से नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है L खेतों की फसल नष्ट हो जाती है L स्कूल, विद्यालय, महाविद्यालय बंद हो जाते हैं L व्यापारिक, व्यवसायिक, कार्यशालाओं की गतिविधियाँ मंद पड़ जाती हैं L नदियों के किनारे की वस्तियाँ उजड़ जाती हैं L राष्ट्रीय राजमार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं L पेय जलस्रोत नष्ट हो जाते हैं L जल बाँध टूट जाते हैं L खेत–खलिहान, वस्तियाँ जलमग्न हो जाती हैं L राष्ट्रीय संपदा की भारी हानि होती है L यह सब चिंता के ऐसे ज्वलंत विषय हैं जिन्हें समय रहते सुलझा लेना अति आवश्यक है L
बाढ़ की रोक-थाम के उपाए -
नदी, नालों के किनारों पर आवासीय वस्तियाँ वसाने के स्थान पर अधिक से अधिक पोधा-रोपण किया जाना चाहिए L नदियों और पहाड़ों का खनन रोका जाना चाहिए L नदियों के किनारे पर और अधिक वस्तियों को नहीं वसाना चाहिए L नदियों नालों के किनारों से अवैध कब्जे हटाए जाने चाहिए L कार्यशालाओं के माध्यम से लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए L विकास की आड़ और अंधी दौड़ में पहाड़ों का सीना छलनी न किया जाना चाहिए L नदी नालों में प्लास्टिक कचरा नहीं बहाना चाहिए L वन काटुओं व खनन माफियाओं पर नकेल कसी जानी चाहिए L
इस कार्य को कार्यान्वित करने हेतु सरकार, प्रशासन, प्रशासकों, आचार्यों, विद्यार्थियों, स्वयंसेवी संस्थाओं, स्वयं सेवकों को व्यवस्था के अंतर्गत आगे बढ़कर अपना-अपना दायित्व निभाना चाहिए ताकि आने वाले महा विनाश से देश, धर्म-संस्कृति और मानवता की रक्षा सुनिश्चित हो सके L
आलेख - पर्यावरण चेतना मातृवन्दना अगस्त 2023
चेतन कौशल "नूरपुरी"
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श्रेणी:धर्म अध्यात्म संस्कृति -आलेख
आस्था की दहलीज
आलेख - धर्म अध्यात्म संस्कृति दैनिक जागरण 1.8.2007
हमारे देश में ऐसे अनेकों धार्मिक व तीर्थ स्थल हैं जिनके साथ हमारी पवित्र आस्थाएं जुड़ी हुई हैं l हम वहां अपनी किसी न किसी कामना सहित देव दर्शनार्थ जाते हैं और अपनी कामना पूरी होने पर उन्हें श्रद्धा सुमन भी अर्पित करते हैं l इससे हमें मानसिक शांति मिलती है l पर दुर्भाग्य से इन्हीं धार्मिक व तीर्थ स्थलों पर समाज विरोधी तत्वों का साम्राज्य स्थापित हो गया है l मंदिर परिसरों में भारी भीड़, महिलाओं से छेड़-छाड़, दुर्व्यवहार, उनके कीमती जेवरों का छिना जाना और पुरुषों की जेब तक कट जाना प्रतिदिन एक गंभीर समस्या बनती जा रही है l ऐसा व्रत-त्योहार व मेलों में होता है l इस समस्या से निपटने के लिए आवश्यक है कि मंदिर प्रशासन और मेला आयोजकों के कार्यक्रमों को सुव्यवस्थित व अनुशासित बनाने के लिए स्वयं सेवी संस्थाओं को भी आगे आने का सुअवसर दिया जाये l उन्हें प्रशासन की ओर से पूर्ण सहयोग मिले ताकि हमारे मंदिर और तीर्थ स्थान आस्था के केंद्र बने रहें और श्रद्धालु, भक्त जनों को वहां सदा भय एवम् तनाव मुक्त वातावरण मिल सके l पंजाब से सीखना चाहिए कि इन स्थलों की शुचिता कैसे बनाये रखी जाती है l
चेतन कौशल “नूरपुरी”