मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: 2 पर्यावरण

  • श्रेणी:

    भू-जल

    भू-जल रक्षण  
    भू -जल आज सुरक्षित है तो हमारा जीवन भी सुरक्षित है l अगर सुरक्षित भू -जल से हम आज हैं तो इसी सहारे कल भी रह सकते हैं l





  • श्रेणी:

    समय की मांग

    कश्मीर टाइम्स 30 नवम्बर 2008  

    वह भी एक समय था जब देश में हर नौजवान किसी न किसी हस्त–कला अथवा अपने रोजगार से जुड़ा हुआ रहता था l चारों ओर सुख समृद्धि थी l देश में कृषि योग्य भूमि की कहीं कमी नहीं थी l पर ज्यों-ज्यों देश की जन संख्या टिड्डीदल की भांति बढ़ती गई, त्यों-त्यों उसकी उपजाऊ धरती और पीने के पानी में भी भारी कमी होने लगी है l प्रदूषण अनवरत बढ़ने लगा है l मानों समस्याओं की बाढ़ आ गई हो l इससे पहले कि यह समस्यायें अपना विकराल रूप धारण कर लें, हमें इन्हें नियंत्रण में लाने के लिए विवेक पूर्ण कुछ प्रयास अवश्य करने होंगे l

    हमने कृषि योग्य भूमि पर औद्योगिक इकाइयां या कल-कारखानों की स्थापना नहीं करनी है जिनसे कि कृषि उत्पादन प्रभावित हो l उसके लिए अनुपजाऊ बंजर भूमि निश्चित करनी है और सदैव प्रदूषण मुक्त ही उत्पादन को बढ़ावा देना है l

    हमने देश में पशु-धन बढ़ाना है ताकि हमें पर्याप्त मात्रा में देशी खाद प्राप्त हो सके l हमने रासायनिक खादों और कीट नाशक दवाइयों का कम से कम उपयोग करना है ताकि मित्र कीट-जीवों एवं अन्य प्राणियों की भी सुरक्षा और हम सभी का स्वास्थ्य ठीक बना रह सके l

    हमने घरेलू दुधारू पशुओं को कहीं खुला और सड़क पर नहीं छोड़ना है और न ही उन्हें कभी कसाइयों तक जाने देना है l अगर किसी कारण वश हम स्वयं उनका पालन-पोषण न कर सकें तो हमने उन्हें स्थानीय सहकारी संस्थाओं द्वारा संचालित पशु-शालाओं को ही देना है ताकि वहां उनका भली प्रकार से पालन पोषण हो सके और हमें मनचाहा ताजा व शूद्ध उत्पाद दूध, घी, पनीर, पौष्टिक खाद और अन्य जीवनोपयोगी वस्तुएं मिल सकें l

    हमने नहाने, कपड़े धोने, और साफ-सफाई के लिए भूजल स्रोतों – हैन्डपम्प, नलकूप, बावड़ियों और कुओं का स्वयं कभी प्रयोग नहीं करना है और न ही किसीको करने देना है बल्कि टंकी, तालाब, नदी या नाले के स्वच्छ रोग कीटाणु रहित पानी का प्रयोग करना है और दूसरों को करने के लिए प्रेरित करना है l 

    सिंचाई के लिए हमने विभिन्न विकल्पों द्वारा जल संचयन करना है और खेती सींचने के लिए वैज्ञानिक विधियों द्वारा फव्वारों को माध्यम बनाना है l हमने भूजल स्रोतों का अंधाधुंध दोहन नहीं करना है l भूजल हम सबका जीवन अधार होने के साथ-साथ सुरक्षित पेय जल भंडार भी है l वह हमारे लिए दीर्घ कालिक रोग मुक्त और संचित पेय जल स्रोत है जो हमने मात्र पिने के लिए प्रयोग करना है l

    स्थानीय वर्षा जल–संचयन के लिए तालाब, पोखर जोहड़ और चैकडैम अच्छे विकल्प हैं l इनसे जीव जंतुओं को पीने का पानी मिलता है l हमने स्थानीय लोगों ने मिलकर इनका नव निर्माण करना है  तथा पुराने जल स्रोतों का जीर्णोद्वार करके इन्हें उपयोगी बनाना है ताकि ज्यादा से ज्यादा वर्षा जल -संचयन हो सके और सिंचाई कार्य वाधित न हो l

    हमने समस्त भू-जल स्रोतों की पहचान करके उन्हें सरंक्षित करने हेतु उनके आस-पास अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाने हैं l इससे भू संरक्षण होगा l इनसे जीवों के प्राण रक्षार्थ प्राण-वायु तथा जल की मात्रा में वृद्धि होगी और जीव जंतुओं के पालन-पोषण हेतु चारा तथा पानी पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होगा l 

    हमने आवासीय कालोनी, मुहल्लों को साफ-सुथरा व रोग मुक्त रखने के लिए घरेलू व सार्वजनिक शौचालयों को सीवरेज व्यवस्था के अंतर्गत लाकर मल निकासी तंत्र-प्रणाली को विकसित करना है और मल को तुरंत खाद में भी परिणत करना है ताकि दूषित जल रिसाव से स्थानीय भू-जल स्रोत – हैण्ड-पम्प, नलकूप, बावड़ियों और कुओं का शुद्ध पेयजल कभी दूषित न हो सके l वह हम सबके लिए सदैव उपयोगी बना रहे l

    हमने घर पर स्वयं शुद्ध और ताजा भोजन बनाकर खाना है l डिब्बा–लिफाफा बंद या पहले से तैयार भोजन अथवा जंक फ़ूड का प्रयोग नहीं करना है ताकि हम स्वस्थ रह सकें और हमारी आय का मासिक बजट भी संतुलित बना रहे l

    युवा वर्ग को बेरोजगार नहीं रहना है l उसे धार्मिक व सामाजिक दृष्टि से रोजगार के विकल्पों की तलाश करनी है और उन्हें व्यवहारिक रूप में लाना है l योग्य इच्छुक बेरोजगार युवावर्ग के लिए हस्तकला, ग्रामोद्योग, वाणिज्य, कृषि उत्पादन, वागवानी, पशुपालन, ऐसे अनेकों रोजगार संबंधी विकल्प हैं जिनसे वह घर पर रहकर स्वरोजगार से जुड़ सकता है l उसे सरकारी या गैर सरकारी नौकरी तलाशने की आवश्यकता नहीं होगी l

    निराश युवावर्ग को सरकारी या गैर सरकारी नौकरी तलाश नहीं करनी है बल्कि स्वरोजगार पैत्रिक व्यवसाय तथा सहकारिता की ओर ध्यान देना है l इससे उसकी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ परंपरागत स्थानीय क्षेत्रीय और राष्ट्रीय कला-संस्कृति व साहित्य की नवींन संरचना, रक्षा, और उसका विकास तो होगा ही – इसके साथ ही साथ उनकी अपनी पहचान भी बनेगी l 

    स्थानीय बेरोजगार युवावर्ग गाँव में रहकर अधिक से अधिक हस्त कला, निर्माण, उत्पादन, कृषि-वागवानी, और पशुपालन संबंधी रोजगार तलाशने और स्वरोजगार शुरू करने के लिए संबंधित विभाग से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता है ताकि उसे स्वरोजगार मिल सके और गाँव छोड़कर दूर शहर न जाना पड़े l

    हमने अपने परिवार में बेटा या बेटी में भेद नहीं करना है l दोनों एक ही माता-पिता की संतान हैं l हम सबने परिवार नियोजन प्रणाली के अंतर्गत सीमित परिवार का आदर्श अपनाना है और बेटा-बेटी या दोनों का उचित पालन-पोषण करना है l उन्हें उच्च शिक्षा देने के साथ-साथ उच्च संस्कार भी देने हैं ताकि भारतीय संस्कृति की रक्षा हो सके l

    यह सब कार्य तब तक मात्र किसी सरकार के द्वारा भली प्रकार से आयोजित या संचालित नहीं किये जा सकते, और वह कारगर भी प्रमाणित नहीं हो सकते हैं, जब तक जन साधारण के द्वारा इन्हें अपने जीवन में व्यवहारिक नहीं लाया जाता l अगर हम इन्हें व्यवहारिक रूप प्रदान करते हैं तो यह सुनिश्चित है कि हम आधुनिक भारत में भी प्राचीन भारतीय परंपराओं के निर्वाहक हैं और हम अपनी संस्कृति के प्रति उत्तरदायी भी l


    चेतन कौशल "नूरपुरी"


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    पॉलीथिन का साम्राज्य

    अगर विश्व में कहीं प्राकृतिक संकट पैदा होता है तो मनुष्य द्वारा साहस के साथ उसका सामना किया जा सकता है परन्तु मनुष्य ही कोई भयानक संकट पैदा कर ले तो उसका सामना कौन और कैसे करे? है न समस्या गम्भीर।
    खुशनसीब है जम्मू क्षेत्र जो किसी प्राकृतिक आपदा से सुरक्षित है पर वह बडा़ बदनसीब है। वह स्थानीय लोगों के द्वारा स्वयं ही पैदा किए हुए संकट से संकट ग्रस्त है। भौतिकवाद की अंधी दौड़ में स्थानीय लोग पाॅलीथीन लिफाफों, प्लास्टिक बोतलों वनायलॉन और रबड़ की बनी जीवनोपयोगी वस्तुओं का तो धड़ल्ले से उपयोग कर रहे हैं पर उन्हें अनुपयोगी हो जाने पर वह उनका उचित विसर्जन नहीं कर पा रहे हैं ताकि उन्हें तुरंत किसी अन्य उत्पाद में परिणत किया जा सके। जम्मू क्षेत्र में पाॅलीथीन लिफाफों का प्रचलन इस हद तक बढ़ चुका है कि उन्हें अब हर घर की नाली में और आस-पास के छोटे-बड़े नालों के किनारों पर पड़े देखा जाने लगा है।
    लोगों को उनमें बाजार से किसी भी समय घरेलू सामान की खरीद करते हुए और घर ले जाते हुए देखा जा सकता है। ऐसा करना उन्हें जाने क्यों अच्छा लगता है, वे यह तो भली प्रकार जानते हैं कि उनके द्वारा उन्हें नाली में या सड़क पर फेंकने से कितने भयानक दुष्परिणाम निकलते हैं?
    वर्तमानकाल में जम्मू क्षेत्र के किसी मुहल्ले या कालोनी की कोई नाली, सड़क या नालों के किनारे पर फेैले गन्दगी युक्त पाॅलीथीन लिफाफों, प्लास्टिक बोतलों और दुर्गन्ध युक्त कूड़ा-कचरा के अम्बार राह में चलते और जाने-अनजाने उन लोगों के लिए मुसीबत बने हुए हैं जो पास ही के रास्ते से निकलते हैं। उन्हें सांस तक लेना दूभर हो जाता है। शुद्ध वायु के शुद्ध वातावरण में जीना व रहना तो हर कोई चाहता है पर वैसा वातावरण बनाए रखना भी तो हमारा अपना ही कार्य है। अगर हम यह कार्य स्वयं नहीं करेगे तो और कौन करेगा। समस्त मानव जाति का मात्र एक सफाई वर्ग पर पूर्ण आश्रित हो जाने से तो काम नहीं चलेगा। उसके कार्य में हम सबको मिलकर सहयोग करना होगा। क्षेत्र का हरा- भरा और प्रदूषण व रोग मुक्त बनाए रखने हेतु जरूरी है स्थानीय लोगों द्वारा विभिन्न मुहल्लों में संबंधित समितियों का गठन किया जाना जो गन्दगी फैलाने वालों पर कड़ी नजर रखेंगी। वह हर घर से निकलने वाले अनुपयोगी घरेलू सामान व कूड़ा-कचरा की उचित निकासी पौध-रोपण और सफाई के लिए लोगों का सही मार्ग दर्शन करेंगी। राज्य सरकार को चाहिए कि वह अपने पड़ोसी राज्य सरकारों की भांति जम्मू कश्मीर राज्य में भी पाॅलीथीन लिफाफों पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दे और अधिक से अधिक पौधरोपण करवाए। वह अवहेलना करने वालों के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कारर्वाई करे ताकि राज्य में व्याप्त पाॅलीथीन का साम्राज्य समाप्त हो सके। इस प्रकार जम्मू कश्मीर स्वच्छ और सुन्दर राज्य बन सकता है। उसके आकर्षण से आकर्षित होकर दुनियां का कोई भी पर्यटक वर्ग खुशी से उसकी ओर ज्यादा से ज्यादा की संख्या में आएगा और उसकी वादियों का मनचाहा आनन्द भी ले सकेगा।
    29 जून 2008 कश्मीर टाइम्स