सद्भावना से आत्मोत्थान और दुर्भावना से आत्म पतन होता है l
मन में शुद्ध भाव रखने से आत्म विशवास बढ़ता है l
प्रेम बल से दूरस्थ व्यक्ति भी समीप लगता है मगर द्वेष से समीप रहने वाला भी दूर होता है l
दान, त्याग, समर्पण और सेवा भाव से कठिन से कठिन कार्य भी सहजता से सिद्ध हो जाते हैं l
निरभिमान से लोकप्रियता बढ़ती है l
सफल लोगों की दिनचर्या उनका मन नहीं, लक्ष्य तय करता है l
जन सेवा हेतु समर्पित भाव से कार्य करना ही भक्तियोग है l
चेतन कौशल "नूरपुरी"
श्रेणी: सशक्त मन – धैर्यशील मन
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श्रेणी:सशक्त मन – धैर्यशील मन
मानसिक ऊर्जा
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श्रेणी:सशक्त मन – धैर्यशील मन
सद्भावना और दुर्भावना
भावनाएं दो प्रकार की होती हैं – सद्भावना और दुर्भावना l सद्भावना से मनुष्य का अपना और समाज का उत्थान होता है जबकि दुर्भावना से दोनों का पतन होता है l मनुष्य को किस भावना से कार्य करना चाहिए ? ये बात उसकी बुद्धि और प्रकृति पर निर्भर करती है l सद्भावना और दुर्भावना में मात्र इतना अंतर है, सद्भावना गैर को अपना बनाती है जबकि दुर्भावना अपनो को गैर बना देती है l सद्भावना से बिखरा हुआ समाज एक सूत्र में पिरोया जा सकता है l चेतन कौशल "नूरपुरी "
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श्रेणी:सशक्त मन – धैर्यशील मन
मानसिक विकार
चेतन आत्मोवाच 77 :-
काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, अहंकार हैं सब नर्क के द्वार l
इधर कहते हैं संत प्यारे, मनः उधर बताते हैं गुरुद्वार ll
चेतन कौशल "नूरपुरी"