मानवता सेवा की गतिविधियाँ
ठोकर बड़ी होती है, बड़ा तू नहीं इंसान lजब तुझको ठोकर लगी , तब होश आई है इन्सान ll
चेतन कौशल
खाना है तो ठंडा करके होंठ नाजुक जलते हैं lकाम अच्छा होता धीरे-धीरे, मनः शहद के भी छत्ते भरते हैं ll
पैदा हुआ सो मिट जायेगा, है यही जगत को रीत lझूठी है हर वस्तु यहाँ, मनः ज्यादा न बढ़ा प्रीत ll
ओह ! चेहरा भीग गया है, क्यों आंसू गिराती हैं आँखें lयहाँ घर अपना नहीं है किसीका, मनः तू भर न यों ही आहें ll
मुसीबत की कोई मजाल नहीं, शक्ति तो तेरी भुजाओं में है l चाहे तो उनका मुकाबला कर, मनः हिम्मत तो तेरे दिल में है ll