मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: स्व रचित रचनाएँ

  • श्रेणी:

    कहना है क्या

    दैनिक जागरण 15 फरवरी 2007

    आत्म बोध प्राप्त करने को
    आत्म चिन्तन करना अच्छा
    आत्म ज्ञान हो जाए
    तो कहना है क्या
    आत्म दर्शन करने को
    आत्मावलोकन करना अच्छा
    आत्म साक्षात्कार हो जाए
    तो कहना है क्या
    आत्म विश्वास बढ़ाने को
    कलात्मक प्रतियोगिताओं में भाग लेना अच्छा
    अपनी पहचान बन जाए
    तो कहना है क्या
    संसार एक परिवार निहारने को
    आध्यात्मिक दृष्टि अपना लेना अच्छा
    कोई सद्गुरु बन जाए
    तो कहना है क्या


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    बोल सके तो

    अमर उजाला 13 फरवरी 2007                      

    बोल सके तो बोल प्यारे
    मीठे बोल तू बोल
    कीमती बोल तू बोल प्यारे
    बोल संभल कर बोल
    फूल मुरझा जाते हैं अक्सर
    कली सदा रहती नहीं
    घाव तलवार के भर जाते हैं
    मगर बात कड़वी मिटती नहीं


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    प्यारा वतन

    दैनिक जागरण 26 जनवरी 2007 

    है वही मेरा प्यारा वतन
    हिमालय चूमता जहां ऊंचा गगन
    कण कण सौरभ लाती नित नूतन पवन
    पुण्य जीवन पाते मिलते जनगण
    नित क्रांतियों के जहां होते यत्न
    है वही मेरा प्यारा वतन
    मिलता जहां देखने विशाल पाहन सेतु
    उस पार पापी मारा था रक्षा मानवता हेतु
    होता जहां अधर्म का प्रतिक्षण पतन
    है वही मेरा प्यारा वतन


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    राही

    दैनिक जागरण 19 जनवरी 2007 

    हम मानव संसार के राही
    लगने न देंगे मानवता पर स्याही
    उठने न पाएगा अज्ञान हाथी
    सबके रक्षक सेवक साथी
    हम तो हैं भले मर्मान्तक
    सेवा हेतु हमें कोई न आंतक
    हम मानव संसार के राही
    लगने न देंगे मानवता पर स्याही
    हम सब अपने हृदय के दीक्षक
    सुख रहे दुख के चिकित्सक
    रावण कंस नाम फिर न होगा विख्यात
    राम कृष्ण नामों पर होगा प्रयास
    हम मानव संसार के राही
    लगने न देंगे मानवता पर स्याही


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    देश वासियो

    दैनिक जागरण 12 जनवरी 2007

    उठो नगर वासियो
    जागो देश वासियो
    दुखियारी भारत मां पुकार रही
    आजादी दुख से कराह रही
    दासता से मुक्त हुई है भारत माता
    कुरीतियों में है उसे फंसाया जाता
    उठो नगर वासियो
    जागो देश वासियो
    होना था न केवल हमनें आजाद
    प्रेम त्यागभाव भी हमनें करना था आवाद
    पगपग पर नंगा न कोई होता
    भूखा पदपथ पर न कहीं कोई सोता
    उठो नगर वासियो
    जागो देश वासियो
    संभव हर वस्तु यहां उत्पन्न होती
    हर जरूरतमंद की उस तक पहुंच होती
    कोई न कहीं देखता स्वार्थपरता को
    हटा दो यहां की अब हर विवषता को
    उठो नगर वासियो
    जागो देश वासियो


    चेतन कौशल "नूरपुरी"