मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: स्व रचित रचनाएँ

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    भारत-श्रीलंका संबंध

    26 दिसम्बर 2007 के दिन दैनिक जागरण में प्रकाशित ”रामायण में वर्णित स्थलों को विकसित करेगी श्रीलंका सरकार – दुनियां को रामायण की लंका का न्योता“ एक सुखद समाचार है। इस समाचार के अनुसार – ”श्रीलंका सरकार रामायण में आए लंका प्रकरण से जुड़े तमाम स्थलों को प्रयटन केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना बना रही है। इस परियोजना पर अध्ययन करने के लिए उसने एक टीम भारत भेजी है जो रामायण में दिए गए ”सोने की लंका“ के ब्योरे को समझेगी, उसका खाका तैयार करेगी“ इससे लंका आने वाले विदेशी, विशेष कर भारतीय प्रयटकों को रावण की लंका और रामायण से संबंधित लंका के स्थलों को देखने का सुअवसर मिलेगा।
    इस शुभ समाचार से राम भक्तों का हृदय बेहद गर्वित और हर्षित हुआ है। यह भारत में सत्तासीन उन राजनीतिज्ञों के लिए सीख है जो श्रीराम के अस्तित्व को नकार रहे हैं। रामायण के पात्रों के मात्र कवि की कल्पना बता रहे हैं और उन्हें नाटक ही के पात्र कह रहे हैं। यह सर्वविदित है कि आयोध्या नरेश दशरथ नन्दन श्रीराम का लंका नरेश रावण के मध्य धर्म-अधर्म का युद्ध हुआ था उस धर्म-युद्ध में विजयी श्रीराम ने धर्म परायण रावण के छोटे भाई विभीषण को लंका का राज्य सोंपा था और लंका के साथ ठोस रामसेतु के समान अजीवन अपने प्रगाढ़ संबंध बनाए थे जिसका आज तक विश्व में उदाहरण ढुंढने पर कहीं भी मिलता नहीं है।
    धर्म-संस्कृति और समाज के प्रति जागृत आज श्रीलंका सरकार ने भारत के साथ मधुर संबंध बनाने के लिए स्वंय अपेक्षा की है। उसने सहायता पाने के लिए अपना हाथ भी बढ़ाया है। इस पर भारत की वर्तमान सरकार को संकोच क्यों? उसे चाहिए कि वह राम-रावण जीवन से संबंधित रामायण में वर्णित स्थल जो दोनों देशों के लोगों की धार्मिक आस्था ही नहीं सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर भी है, को विकसित करने की श्रीलंका सरकार की भांति परियोजना बनाए और उसे साकार भी करे।
    आज भारत को श्रीलंका के साथ जोड़ने के लिए जहाज रानी-मार्ग की नहीं, रामसेतु की ज्यादा आवश्यकता है। भारत की वर्तमान सरकार को उसकी रक्षा करनी चाहिए, जीर्णोंद्वार करना चाहिए ताकि भारत की विदेश नीति राम-विभीषण की मित्रता पर आधारित, श्रीलंका-भारत को जोड़ने वाले ठोस रामसेतु के रूप में युग-युगों तक सुदृढ़ बनी रह सके।
    30 जनवरी 2008 दैनिक जागरण

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    फौलादी सीना

    दैनिक जागरण 1 जनवरी 2008 

    श श श सावधान सावधान
    आ गया तूफान तूफान तूफान
    श श श सावधान सावधान
    समुद्री तूफान थम जाते हैं
    किनारा ठोस रामसेतु होने दो
    आंधी तूफान दिशा बदल लेते हैं
    हर कदम अडिग हिमालय सा होने दो
    तूफान जिन्दगी धराशायी हो जाते हैं
    नेक इरादे इन्सान के होने दो


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

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    सुहाना मौसम

    दैनिक जागरण 18 दिसम्बर 2007

    सर्दी का मौसम आया है
    बन कर काली घटा छाया है
    बर्फ बन कर गिरती फुहार है
    चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है
    रिमझिम पानी बरसने लगा है
    किसानों का मन हर्षाने लगा है
    डाली डाली फिर होने लगा श्रृंगार है
    चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है
    मतदान का सुहाना मौसम लगता अब है
    दल का दल से गिलासिकवा भी गजब है
    मतदाता से मतदाता करता सोच विचार है
    चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है
    इस बार मतदाता पसंद की जो सरकार बनेगी
    जनता तो उसे निज हित की बात कहेगी
    उसने हर समस्या का करना खण्डाधार है
    चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है
    सरकार चाहे जिस दल की आए
    जनता की भूख प्यास अवश्य ही मिटाए
    सत्ता पलटने को वह हर समय तैयार है
    चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है


    चेतन कौशल "नूरपुरी"


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    जाग रे नौजवान

    मातृवन्दना दिसम्बर 2007 

    तज मोह प्राण जाग रे नौजवान
    वीत रहे दिन आलस्य के सारे
    कर पूरे काम जो गत जन थे हारे
    है आग अंगारे तेरे चार चफेरे
    हटा दे चाहे जाते हों प्राण
    तज मोह प्राण जाग रे नौजवान
    जीतना है तूने आशाओं को
    खोना है अपनी निराशाओं को
    तूने बढ़ाना है ज्ञान
    दूर करना है अज्ञान
    तज मोह प्राण जाग रे नौजवान
    बनना है नेक तूने जग में
    कोई दुखी न रहे जग में
    करना है सदव्यवहार जनजन से
    रहे रम्य भारत की आन
    तज मोह प्राण जाग रे नौजवान
    यह समय सोने का है नहीं
    यह समय रोेने का है नहीं
    भारत पर काली घटा छा रही
    खुद संभल भारत का कर सम्मान
    तज मोह प्राण जाग रे नौजवान


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

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    जन मानस विरोधी कदम

    मातृवन्दना जून 2007 अंक में पृष्ठ संख्या 8 आवरण आलेखानुसार ”कुछ वर्ष पूर्व ”नासा“ द्वारा उपग्रह के माध्यम से प्राप्त चित्रों और सामग्रियों से यह ज्ञात हुआ है कि श्रीलंका और श्रीरामेश्वरम के बीच 48 कि0 मी0 लम्बा तथा लगभग 2 कि0 मी0 चौड़ा सेतु पानी में डूबा हुआ है और यह रेत तथा पत्थर का मानवनिर्मित सेतु है। भगवान श्रीराम द्वारा निर्मित इस प्राचीनतम सेतु का जलयान मार्ग हेतु भारत और श्रीलंका के बीच अवरोध मान कर ”सेतु समुद्रम-शिपिंग- केनाल प्रोजैक्ट“ को भारत सरकार ने 2500 करोड़ रुपए के अनुबंध पर तोड़ने की जिम्मेदारी सौंपी है।“ यह भारतीय संस्कृति की धरोहर पर होने वाला सीधा कुठाराघात ही तो है जिसे जनान्दोलन द्वारा तत्काल नियन्त्रित किया जाना अनिवार्य है।
    जुलाई 2007 मातृवन्दना अंक के पृष्ठ संख्या 11 धरोहर आलेख ”वैज्ञानिक तर्क“ के अनुसार ”धनषकोटी के समीप जलयान मार्ग के लिए वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध हो सकता है।“ इस सुझाव पर विचार किया जा सकता है परन्तु इसकी अनदेखी की जा रही है। एक तरफ भारत की विदेश नीति पड़ोसी पाकिस्तान, चीन, बंग्लादेश, भुटान आदि देशों के साथ आपसी संबंध सुधारने की रही है। उन्हें सड़कों के माध्यम द्वारा आपस में जोड़ कर उनमें आपसी दूरियां मिटाई जा रही हैं तो दूसरी ओर श्रीराम द्वारा निर्मित सेतु को ही तोड़ा जा रहा है। इसे वर्तमान सरकार का जन भावना विरोधी उठाया गया कदम कहा जाए तो अतिश्योक्ति नही होेगी क्योंकि इसके साथ देश-विदेश के असंख्य श्रध्दालुओं की अपार धार्मिक आस्थाएं जुड़ी हुई हैं। इससे उन्हें आघात पहुंच रहा है।
    कितना अच्छा होता! अगर श्रीराम युग की इस बहुमूल्य धरोहर रामसेतु का एक वार जीर्णोध्दार अवश्य हो जाता। उसे नया स्वरूप प्रदान किया जाता। इसके लिए श्रीलंका और भारत सरकार मिलकर प्रयास कर सकती हैं। दोनों देशों के संबंध और अधिक मधुर तथा प्रगाढ़ हो सकते हैं । इस भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की किसी भी मूल्य पर रक्षा अवश्य ही की जानी चाहिए।
    नवम्बर 2007 मातृवन्दना