मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: कवितायें

  • श्रेणी:

    सार्थक दीपावली

    26 अक्तूबर 2008 मातृवंदना

    नगर देखो! सबने दीप जलाए हैं द्वार-द्वार पर,
    घर आने की तेरी ख़ुशी में मेरे राम!
    तुम आओगे कब? मेरे मन मंदिर,
    अँधेरा मिटाने मेरे राम!
    आशा और तृष्णा ने घेरा है मुझको,
    स्वार्थ और घृणा ने दबोचा है मुझको,
    सीता को मुक्ति दिलाने वाले राम!
    विकारों की पाश काटने वाले राम !
    दीप बनकर मैं जलना चाहूँ,
    दीप तो तुम्हीं प्रकाशित करोगे मेरे राम!
    अँधेरा खुद व खुद दूर हो जाएगा,
    हृदय दीप जला दो मेरे राम !
    सार्थक दीपावली हो मेरे मन की,
    घर-घर ऐसे दीप जलें मेरे राम!
    रहे न कोई अँधेरे में संगी-साथी दुनियां में,
    सबके हो तुम उजागर मेरे राम!


    चेतन कौशल "नूरपुरी"


  • श्रेणी:

    राजभाषा हिंदी

    5 अक्तूबर 2008 कश्मीर टाइम्स

    मेरे मन भाया तेरा विचार, भाषा हिंदी,
    इसकी लिपि बनी भाषा उसकी, भाषा हिंदी,
    हिन्द की संम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी,
    फोन कन्याकुमारी से पहुंचता कश्मीर, भाषा हिंदी,
    फैक्स गुजरात से पहुंचती आसाम, भाषा हिंदी,
    हिन्द की संम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी,
    हर व्यक्ति की सांस, हिन्द की धड़कन, भाषा हिंदी,
    हर स्थान की बोली, हिन्द की पहचान, भाषा हिंदी,
    हिन्द की संम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी,
    हम बोल, लिख सकते, भाषा हिंदी,
    हम सीखकर कार्य कर सकते, भाषा हिंदी,
    हिन्द की संम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी,
    हम मनाएंगे नहीं पखवाड़े, सब जानते, भाषा हिंदी,
    सरकारी, गैरसरकारी कार्य करेंगे पूरा साल, भाषा हिंदी,
    हिन्द की संम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी,



    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    शहरी नाले की व्यथा

    27 जुलाई 2008 कश्मीर टाइम्स

    अपना भी स्वच्छ जल था मेरा
    सदा स्वच्छ ही नीर बहता था
    हर जगह उपयोगी पानी चाहने बालो
    मुझमें गंदगी बहाओ न
    मुझे और दूषित बनाओ न
    तुम सुबहशाम आकर यहीं नहाते थे
    धोकर कपड़े साहिल पर ही सुखाते थे
    बना शिकार मच्छली चाव से खाने बालो
    मुझमें गंदगी बहाओ न
    मुझे और दूषित बनाओ न
    मेरे जल संग जल गंदा गंदगी बहाने बालो!
    मुझसे लिफाफे पालीथिन बोतलें प्लास्टिक नहीं गलाए जाते
    गड्ढे नालियों में रोग किटाणुओं को बढा़ने बालो
    मुझमें गंदगी बहाओ न
    मुझे और दूषित बनाओ न
    तुम चाहो तो स्वच्छ उपयोगी बनाए रखो मुझको
    दूसरों की रक्षा करो और सुरक्षित रखो खुद को
    कोई गंदगी फेैलाए न परदोष निहारने बालो
    मुझमें गंदगी बहाओ न
    मुझे और दूषित बनाओ न



    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    चिंगारी

    मई 2008 मातृवंदना

    रुकेंगे नहीं बिना किए निस्वार्थ काम
    निश्चय है अपना करना है निस्वार्थ काम
    अरमान अपना कर सम्पन्न
    पांएगे लक्ष्य जो सामने खड़ा उत्पन्न
    कार्य बना है आज प्रतिदवंदी सामने
    जय चाहता है प्रभुत्व अपने
    रुकेंगे नहीं बिना किए निस्वार्थ काम
    निश्चय है अपना करना है निस्वार्थ काम
    आगे बढ़ना है हमने साहस के बहानेे
    मात्र फूल शीश अर्पित करना हम हैं जाने
    यहां लालसा तन मन धन कोई न मायने
    निर्णय बुद्धि का हम सब माने
    रुकेंगे नहीं बिना किए निस्वार्थ काम
    निश्चय है अपना करना है निस्वार्थ काम
    जब तक प्रपंचात्मक हमने बनाई सृष्टि
    नहीं कर सकता यहां कोई तृष्णातुष्टि
    ऐसा यहां स्रष्टा का न कभी रहा है काल
    मुक्त कर लेंगे खुद को काटना है जंजाल
    रुकेंगे नहीं बिना किए निस्वार्थ काम
    निश्चय है अपना करना है निस्वार्थ काम
    है यह चिंगारी नहीं आग
    आग ही नहीं महाकाल व्याल
    विध्वंस करती है नीचता का काम
    समूल नष्ट करती राख बनाती है तमाम
    रुकेंगे नहीं बिना किए निस्वार्थ काम
    निश्चय है अपना करना है निस्वार्थ काम


    चेतन कौशल "नूरपुरी"


  • श्रेणी:

    प्रभा प्रभात

    29 फरवरी 2008 दैनिक जागरण

    पशु धन से हो श्रृंगार घरघर का
    पौष्टिकता से लहलहाएं सब खेत देश के
    दूध दही घी से बलवान बने हर बच्चा घरघर का
    तेजस्वी कहलाएं नौजवान देश के
    घरघर पहुंचे फिर ऐसी शिक्षा
    मांगे न कोई किसी से भिक्षा
    हर हाथ रोजगाार दिलाए शिक्षा
    बयार तो कोई लाल लाए शिक्षा
    खुद समझे जो औरों को समझाए
    सत्यअसत्य में भेद कर पाएं
    ऐसे फिर किसी से न हो नादानी
    कहना पड़े कि फुलफल रही बेईमानी
    गुणों ही की अब आगे हो पूजा
    मन कर्म वचन से न कोई कार्य हो दूजा
    चापलूसों के सिर पर बरसें डंडे
    पगपग अरमान भ्रष्टाचारी पड़ें ठंडे
    देश विदेश में जनजन को पड़े कहना
    बल बुद्धि विद्या और गुण भारत का है गहना



    चेतन कौशल "नूरपुरी"