मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: कवितायें

  • श्रेणी:

    स्वाधीन भारत

    दैनिक जागरण 2 फरवरी 2006

    पराधीन देश में वो घड़ी लगती अच्छी थी
    स्थान स्थान पर तिरंगा फहराने को
    लगाना जान की बाजी लगती अच्छी थी
    आज गीत वंदे मात्रम गाने को
    राष्ट्रीय गान का अपमान हो रहा क्यों
    हमारे स्वाधीन भारत में
    आतंकी संसद पर हमला हैं करते
    हम आरपार की लड़ाई करने की हैं सोचा करते
    उस पर हमला न करो वो हैं कहते
    हम सेना को वापिस हैं बुलाया करते
    देश की स्वतन्त्रता सुरक्षित रहेगी कैसे
    हमारे स्वाधीन भारत में
    राष्ट्रीय आर्थिक नीतियां बनती हैं
    विश्व बैंक की अनुमति लेने से
    सब्सिडी देनी या हटानी होती है
    विश्व व्यापार संगठन की सहमती से
    देश का आर्थिक विकास होगा कैसे
    हमारे स्वाधीन भारत में
    जिस गांव में परिवार की बेटी ब्याही जाती थी
    उस गांव का गांव वाले जल ग्रहण नहीं करते थे
    परिवार की बेटी गांव की बेटी होती थी
    लोग गांव में नारी सम्मान किया करते थे
    आज परिवार की बेटी को बुरी नजर से बचाएगा कौन
    हमारे स्वाधीन भारत में
    मठ मंदिरों की आय पर कर लगने की तैयारी हो रही
    राजनीतिज्ञों द्वारा धार्मिक सत्ता को चुनौति दी जा रही
    देश की सीमाएं सिकुड़ती जा रहीं
    देश की सुरक्षा खतरे में घिरती जा रही
    राष्ट्रीय सुरक्षा के उपायों पर राजनीति कर रहा कौन
    हमारे स्वाधीन भारत में


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    देख सके तो

    दैनिक जागरण 8 जनवरी 2006 

    स्वामी सबका ईश्वर है प्राणी हैं अनेक
    जीवन सबका समान है देख सके तो मन से देख
    नारी सबकी जननी है माताएं हैं अनेक
    बच्चे सबके समान हैं देख सके तो मन से देख
    ज्ञान जननी बुद्धि है मस्तिष्क हैं अनेक
    आत्म ज्ञान समान है देख सके तो मन से देख
    खून सबका लाल है विचार हैं अनेक
    प्रेम से सब समान हैं देख सके तो मन से देख
    जाति सबकी मानव है नरनारी हैं अनेक
    जन्म से सब समान हैं देख सके तो मन से देख
    धर्म सबका मानवता है सम्प्रदाय हैं अनेक
    अपने पराए सब समान हैं देख सके तो मन से देख
    धरती सबकी सांझी है परंपराएं हैं अनेक
    मिलकर सब समान हैं देख सके ता मन से देख


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    चेतना

    सेवा जो कर न सके
    वह तन है किस काम का
    नाम जो जाप न सके
    वह मन है किस काम का
    कार्य जो सिद्ध कर न सके
    वह धन है किस काम का
    सन्मार्ग जो दिखा न सके
    वह ज्ञान है किस काम का
    जीवनरस जो भर न सके
    वह धर्म है किस काम का
    मानवसृजन जो कर न सके
    वह दाम्पत्य है किस काम का


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    भूजल भंडार करे उद्धार

    दिव्य हिमाचल 23 दिसम्बर 2004

    नभ से बूंदाबांदी होती टिप टिप टिप
    धरा पर इधर उधर गिरती पड़ती टिप टिप टिप
    सांए सांए करती जलधारा बन कर
    नाली नाला नदी रूप बन कर
    पहाड़ से जंगल और मैदान की ओर
    जलधारा बढ़ती जलाश्य की ओर
    उसे बहना है वह बहती जाती है
    पहाड़ से चलती सागर से मिल जाती है
    वर्षा जल आता आंधी बन कर
    बढ़ जाता आगे तूफान बन कर
    भूजल धरती को नहीं मिल पाता है
    कष्ट सहती धरती ज्यादा नहीं सहा जाता है
    गर्म सीना धरती का जलता जा रहा
    भूमि का जल स्तर घटता जा रहा
    मनवा प्यासी धरती करे पुकार
    सुरक्षित भूजल भंडार सबका करे उद्धार


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    जल संकट नहीं होने देंगे

    दिव्य हिमाचल 7 दिसम्बर 2004

    जल की हर बूंद है अनमोल
    जल से जीवन का है मोल
    बूंदबूंद से भर जाता है घड़ा
    पगपग पर जल करना है खड़ा
    बावड़ी बना कर कूप बना कर
    तालाब बना कर जलाशय बना कर
    बावड़ी यहां पर कूप वहां पर
    तालाब यहां पर जलाशय वहां पर
    भूजल का स्तर बढ़ाना है
    नमीदार पेड़ जंगल उगाना है
    नदियों को स्वच्छ बनाना है
    पर्यावरण का प्रदूषण हटाना है
    मनवा अब हम कोई बूंद व्यर्थ नही होने देंगे
    यहां वहां कल का जल संकट नही होने देंगे


    चेतन कौशल "नूरपुरी"