मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: कवितायें

  • श्रेणी:

    नारी

    दैनिक जागरण 10 जून 2006 

    उठ जाग ऐ नारी भारत की
    मिट न पाए अब पहचान और भारत की
    तू नकल पश्चिम की क्यों करती है
    तू रंगरूप अपना क्यों बिगाड़ा करती है
    जीन्स पैंटकमीज पहनें सिर मुंडवा करके
    दिखाए खुद को जैकेट कोट हैट लगा करके
    उठ जाग ऐ नारी भारत की
    मिट न पाए अब पहचान और भारत की
    तू शराब सिगरेट पान करती क्लब क्यों जाती है
    हाथ पति का छोड़कर कमर क्यों मटकाती है
    तू बाहें बनाए गैर मर्द की अपने गले का हार जहां
    देह प्रदर्शन करके भी नहीं मिलता है पति का प्यार वहां
    उठ जाग ऐ नारी भारत की
    मिट न पाए अब पहचान और भारत की
    तू बेटी है मां भी प्यारे भारत की
    तू बहना बहु और लाज है भारत की
    देवी दुर्गा काली और सरस्वती भी
    अर्धांगिनी संगिनी मन्त्री नर-नारायण की
    उठ जाग ऐ नारी भारत की
    मिट न पाए अब पहचान और भारत की


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    समर्थ की पहचान

    दैनिक जागरण 14 मई 2006 

    निर्बल असमर्थ ही छुपता बनता कायर है
    बलवान समर्थ करता शूरता का कार्य है
    रखता है ध्यान सदा अपने हर कर्म का
    छोड़ता है संग अपने हर दुष्कर्म का
    करता सद्गुणों से जीवन का श्रृंगार है
    देखता जन का जन से होता प्यार है
    मनवा जब तू करेगा पाप नहीं
    तब बन पाएगा समर्थ कैसे आप नहीं


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    बुरा नहीं है

    दैनिक जागरण 29 मार्च 2006 

    अपनी बात काटने वाले से
    कारण पूछ लेना अच्छा
    अपनी कमीं जानी जा सके
    तो कोई बुरा नहीं है
    बात स्पष्ट करने वाले को
    अभय दान देना अच्छा
    कोई सच्चाई सामने आ जाए
    तो कोई बुरा नहीं है
    अपनी बात कहने वाले की
    जरूरत जान लेना अच्छा
    कोई अमूल्य जीवन संवर जाए
    तो कोई बुरा नहीं है
    सभा में भाग लेने को
    समय निकाल लेना अच्छा
    ज्ञान की बात मिल जाए
    तो कोई बुरा नहीं है


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    विद्यालय

    दैनिक जागरण 20 मार्च 2006 

    विद्यालय में ज्ञान बीज का रोपण होता है
    वहां विद्यार्थी होता है किसी अंकुर से कम नहीं
    गुरु से विद्यार्थी पौध का पोषण होता है
    वहां गुरु होता है किसी किसान से कम नहीं
    विद्यालय में राजनीति की पैदा होती है नर्सरी
    खेती करने का वह कोई स्थान नहीं है
    राष्ट्र ने विद्यालय से पौध प्राप्त है करनी
    पेड़ लगाने का वह कोई स्थान नहीं है


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    स्वदेशी

    दैनिक जागरण 25 फरवरी 2006

    देश है प्यारा अपना स्वदेशी
    रहना है नित प्यारे स्वदेश
    जीना मरना लगे प्यारा स्वदेशी
    प्यार हुआ है संग प्यारे स्वदेष
    पा लेना है ज्ञान विदेशी
    भूल नहीं जाना है स्वदेश
    स्वदेश से नहीं प्यारे प्राण स्वदेशी
    स्वर्ग से भी प्यारा है स्वदेश
    उत्पादन बढ़ाना है देशी स्वदेशी
    पहुंचाना है उसे देश विदेश
    मुद्रा अर्जित करना देशी विदेशी
    चिड़िया सोने की फिर बनाना है स्वदेश
    कभी नीयत खराब न करना स्वदेशी
    चाहे बाधाएं आएं अनेक देश विदेश
    मुहं तोड़ एक उत्तर देना स्वदेशी
    गूंज पड़े जिसकी देश विदेश
    असीमित धन सम्पदा हो देशी विदेशी
    जरूरतमंद तक पहुंचाना है देश विदेश
    चाहे लाख षड्यंत्र करे कोई देशी विदेशी
    प्रभावित नहीं होने देनी है संस्कृति स्वदेश
    सभ्यता संस्कृति विचित्र है स्वदेशी
    मची धूम मची रहे देश विदेश
    उठ जाग जागते रहना है स्वदेशी
    ना जाग उठे जब तलक देश विदेश


    चेतन कौशल "नूरपुरी"