19 फरवरी 2008 दैनिक जागरण
जो थे पहले हम कभी हैं आज
और रहेंगे कल भी
हमनें फिर दुनियां का संशय मिटाना है
लौह पुरुष बन दिखाना है
गर भारत की ओर कोई अंगुली उठे
उसे तुरन्त काट गिराना है
हमनें फिर दुनियां का संशय मिटाना है
जो थे पहले हम कभी हैं आज
और रहेंगे कल भी
कर्मशील रह कर हम निर्धनता मिटाने वाले
संस्कारवान हो कर मानवता दिखाने वाले
चरित्रवान बन कर हमने दुखियों का संताप मिटाना है
हमनें फिर दुनियां का संशय मिटाना है
जो थे पहले हम कभी हैं आज
और रहेंगे कल भी
चेतन कौशल "नूरपुरी"
श्रेणी: कवितायें
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हम वही हैं जो
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अभिलाषा
फरवरी 2008 मातृवंदना
सेवा करना धर्म हमारा, सेवा करते जाएंगे,
दुःख-सुःख हैं हमारे साथी, हंस-हंस सहते जाएंगे,
हम संघर्ष करने वाले, रहते नहीं कभी संकल्पहीन,
बनाएंगे माँ तुझको हम जग में, अद्वितीय ओजस्विन,
तेरा पुनः हो आकर्षण असीम प्रतीक,
गए वापिस आएंगे, समझ निज प्यारा नीड़ मणिक,
हम सब मिलकर गीत खुशी के गाएंगे,
सेवा करना धर्म हमारा, सेवा करते जाएंगे,
धरती माँ हमारी, तू सब सुखदायनी है,
शीश पुष्प चरणार्पित करना हमनें ठानी है,
जहां गोदी में तेरी अगनित फूल खिले,
वहां महकें फुल बन हम भी, हमारा प्रण पले,
हम मिलकर अगनित पुष्प, नई सुषमा लाएंगे,
सेवा करना धर्म हमारा, सेवा करते जाएंगे,
चेतन कौशल "नूरपुरी"
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फौलादी सीना
दैनिक जागरण 1 जनवरी 2008
श श श सावधान सावधान
आ गया तूफान तूफान तूफान
श श श सावधान सावधान
समुद्री तूफान थम जाते हैं
किनारा ठोस रामसेतु होने दो
आंधी तूफान दिशा बदल लेते हैं
हर कदम अडिग हिमालय सा होने दो
तूफान जिन्दगी धराशायी हो जाते हैं
नेक इरादे इन्सान के होने दो
चेतन कौशल "नूरपुरी"
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सुहाना मौसम
दैनिक जागरण 18 दिसम्बर 2007
सर्दी का मौसम आया है
बन कर काली घटा छाया है
बर्फ बन कर गिरती फुहार है
चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है
रिमझिम पानी बरसने लगा है
किसानों का मन हर्षाने लगा है
डाली डाली फिर होने लगा श्रृंगार है
चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है
मतदान का सुहाना मौसम लगता अब है
दल का दल से गिलासिकवा भी गजब है
मतदाता से मतदाता करता सोच विचार है
चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है
इस बार मतदाता पसंद की जो सरकार बनेगी
जनता तो उसे निज हित की बात कहेगी
उसने हर समस्या का करना खण्डाधार है
चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है
सरकार चाहे जिस दल की आए
जनता की भूख प्यास अवश्य ही मिटाए
सत्ता पलटने को वह हर समय तैयार है
चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है
चेतन कौशल "नूरपुरी"
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श्रेणी:कवितायें
जाग रे नौजवान
मातृवन्दना दिसम्बर 2007
तज मोह प्राण जाग रे नौजवान
वीत रहे दिन आलस्य के सारे
कर पूरे काम जो गत जन थे हारे
है आग अंगारे तेरे चार चफेरे
हटा दे चाहे जाते हों प्राण
तज मोह प्राण जाग रे नौजवान
जीतना है तूने आशाओं को
खोना है अपनी निराशाओं को
तूने बढ़ाना है ज्ञान
दूर करना है अज्ञान
तज मोह प्राण जाग रे नौजवान
बनना है नेक तूने जग में
कोई दुखी न रहे जग में
करना है सदव्यवहार जनजन से
रहे रम्य भारत की आन
तज मोह प्राण जाग रे नौजवान
यह समय सोने का है नहीं
यह समय रोेने का है नहीं
भारत पर काली घटा छा रही
खुद संभल भारत का कर सम्मान
तज मोह प्राण जाग रे नौजवान
चेतन कौशल "नूरपुरी"