मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: आलेख

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    क्रांति लाने हेतु

    जो भाई-बहन और नौजवान सकारात्मक सोच रखते हैं, उनसे हमारा विनम्र अनुरोध है कि वे रचनात्मक कार्य करने हेतु अपने-अपने गांव या शहर में शाखाओं का गठन करें और क्षेत्र में क्रांति लाने हेतु निम्न प्रयास तेज करके शिव-शक्ति ग्राम सेवा मंच के इस कार्यक्रम में सहयोग दें।
    शैक्षणिक क्रांति – वैदिक पाठशाला से प्रतिभाओं का उजागर, प्रोत्साहन, संरक्षण करना।
    शासनिक क्रांति – स्वशासन से राष्ट्र एवं समाज हित में सनातन धर्म और संस्कृति की सेवा, त्याग और बलिदान की भावना को बढ़ावा देना।
    जल क्रांति – वर्षा जल संग्रहण करना।
    हरित क्रांति – फुलवारी, बागवानी, पेड़-पौधों को बढ़ावा देना।
    श्वेत क्रांति – गाय सेवा से दूध उत्पादन को बढ़ावा देना।
    औद्योगिक क्रांति – ग्रामोद्योग से लघु एवं कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना।
    सहमत हैं? तो सांझा अवश्य करें।


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    मेरा गांव ‘सुल्याली’

    अठाहरवीं सदी के अंत में और उन्नीसवीं सदी के पहले दूसरे दशक में गांव सुल्याली, एक बहुत बड़ा व्यापारिक केन्द्र रहा था। इस गांव के जाने माने धनाड्डयों में स्व0 श्री किरपा राम जी, वोटी, स्व0 भवानी शंकर जी व स्व0 श्री उग्रसेन जी, सौगुनी, स्व0 जयकरण जी पिता स्व0 श्री मुकुन्द लाल जी, चौधरी सुल्याली निवासी व स्व0 श्री दिवान चन्द जी, चौधरी , बकलोह निवासी, स्व0 श्री मल्हू राम जी पिता स्व0 श्री तुलसीराम जी, सुनार तथा स्व0 राधाकृष्ण  जी व स्व0 श्री रामचन्द जी, दुनेरा निवासी प्रतिष्ठित परिवार थे। यहां पर पठानकोट से चक्की के रास्ते वाया देवी भराड़ी से होते हुए ऊँट, खच्चर और घोड़ों पर खाने-पीने, पहनने और अन्य हर प्रकार का उपयोगी सामान आया करता था। इससे आगे उसकी यहां से 70-80 मील की परिधि में भरमौर, चम्बा, डलहौजी, चुआड़ी आदि दूरदराज के क्षेत्रों तक आपूर्ति की जाती थी।
    वर्तमान में इस गांव के बीचों-बीच एक अच्छा बाजार है जिसमें करयाना, बजाजी, हलवाई, इलैक्टरोनिक्स, मैडिकल स्टोर, स्टेश्नरी , सब्जी, दर्जी, नाई, तरखान आदि की दुकानें स्थित हैं। इनसे रोज-मररा की वस्तुएं आवश्यकता अनुसार गांव वासियों को सहजता से मिल जाती हैं।
    यहां की भूमि मैदानी, उपजाऊ होते हुए भी वर्षा जल पर निर्भर करती है। कनक, मक्का और धान यहां की मुख्य पैदावार है। यहां की माश और कुलथ की दालें बहूत मशहूर हैं।
    यहां देशी मीठे व आचारी आमों के अनेकों बाग हुआ करते थे। इस कारण यह गांव आम, आमपापड़, आमचूर और कुत्तरा (टुकड़ों में सूखाए हुए खट्टे आम) के लिए भी बहुत प्रसिद्ध था। अब इनका स्थान भले ही कलमी आमों ने ले लिया हो लेकिन अब भी यहां देशी आमों का अभाव नहीं है।
    स्व0 नित्यानन्द जी, गौड़ पुरोहित, सुल्याली निवासी की बहु श्रीमती निर्मला देवी जी धर्मपत्नी स्व0 श्री विशनदास जी ने बताया - स्वर्गीय गंगा राम जी, गौड़ पुरोहित, के पूर्वज जम्मू कश्मीर राज्य के बसोहली नगर से यहां आए थे। स्व0 श्री मल्हू राम जी व स्व0 नित्यानन्द जी उनके दो बेटे थे। श्री मल्हू राम जी की कोई संतान नही थी। स्व0 नित्यानन्द जी ने दो शादियां की थीं। पहली पत्नि से एक लड़की हुई थी। कुछ समय पश्चात उनकी इस पत्नि की मृत्यु हो गई। इसके पष्चात् उन्होंने दूसरी शादी कर ली। उससे उनके छह बेटे स्व0 श्री त्रिलोकी नाथ जी, वासदेव जी, गोविंद राम जी, विशनदास जी, प्रेमनाथ जी तथा पुष्पराज जी हुए। इस समय श्री वासदेव जी का परिवार पठानकोट तथा शेष के सुल्याली में रहते हैं। श्री मल्हू राम जी, गौड़ पुरोहित, ज्योतिष विद्या के प्रकांड विद्वान थे। उनके जीवन काल में सुल्याली गांव ज्योतिष विद्या का गढ़ माना जाता था। यहां पर गुरुकुल प्रथा पर आधारित एक वैदिक पाठशाला भी चलाई जाती थी जिसमें ज्योतिष ज्ञान प्राप्ति करने के लिए दूर-दूर से विद्यार्थी विद्या ग्रहण करने हेतु आया करते थे।
    गांव में डिब्बकेश्वर महादेव गुफा के अतिरिक्त पूजनीय बाबा सुखयाली जी की बाराहदरी के ठीक वाईं ओर पास ही में एक उतना ही पुराना प्राचीन दुर्गा मंदिर है जितना कि सुल्याली गांव। कालांतर में आक्रांताओं ने उसमें विराजित दुर्गा माता जी की मूर्ति खंडित कर दी थी। अब गांव वासियों ने उस मंदिर का जीर्णोद्वार कर उसमें पुनः माता जी की मूर्ति प्रतिष्ठित कर दी है।
    पूजनीय बाबा सुखयाली जी की चरण पादुका के पास श्री राधाकृष्ण जी, शनिदेव जी, मां दुर्गा जी, महादेव जी, यमराज जी, गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण जी के मंदिर स्थित हैं। जन स्वास्थ्य केन्द्र, सुल्याली के पास पीपल पेड़ के नीचे शिवजी का मंदिर, बस ठहराव स्थल के पास पीपल पेड़ के नीचे एक और शिवजी का मंदिर, मकोड़ जामुन में मल्हमाता जी, सत्योति माता जी और शिवजी के मंदिर हैं। इसी तरह देवी भराड़ी में मां दुर्गा जी का एक भव्य मंदिर है।
    पूजनीय बाबा जी की चरण पादुका के पास एक अति प्राचीन श्रीराधा - कृष्ण जी का एक छोटा सा मंदिर हुआ करता था जिसके पुजारी स्व0 पंडित श्री वीरभद्र जी थे। वे प्रायः ठाकुरों को गर्मियों में मकोड़ जामुन में स्थित एक अन्य मन्दिर में ले जाया करते थे, वहां से वे उन्हें सर्दियों में वापिस पहले वाले स्थान पर ले आया करते थे।
    मकोड़ जामुन स्थान का नामकरण मकोड़ जामुन इसलिए हुआ कि वहां कभी तीन-चार विशाल जामुन के पेड़ हुआ करते थे, में से अब मात्र एक पेड़ शेष रह गया है, के तनों से असंख्य मोटे ओर बड़े आकार के 'काढ़े' मकोड़े-चींटियां निकला करते थे। मकोड़ जामुन में परंपरागत हर वर्ष छिंज होती है और मेला भी लगता है। इसी तरह देवी भराड़ी में स्थित दुर्गा मां मंदिर के पास भी बैसाखी का मेला सजता है। इन मेलों में पहलवानों के तो दंगल होते ही हैं गांव वासियों द्वारा गांव के अन्य निश्चित स्थानों पर भी दंगल करवाए जाते हैं और जीतने वालों को उचित पारितोषिक दे कर नवाजा जाता है। यहां की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। स्थानीय लोग इसका भरपूर लाभ उठाते हैं।
    सदियों पूर्व से यहां होली और दशहरे के दिनों में देवी-देवताओं की पूजा अर्चना करने के उपरांत असंख्य मनमोहक झांकियां निकाली जाती हैं जिनका प्रचलन आज भी देखा जा सकता है। यहां की रामलीला, जन्माष्टमी , गणेशोत्सव, गणेश -पूजन व गणेश -मूर्ति विसर्जन जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने योग्य हैं।
    यहां के आसपास के ऊँचे पहाड़ी क्षेत्रों पर भेड़-बकरियों पर आश्रित लोगों का अपना एक अच्छा व्यवसाय है। सर्दी के मौसम में जब ऊँचे पहाड़ों पर बर्फ पड़ जाती है तो गद्दी, गुज्जर तथा बकरवाल अपने मवेशियों के साथ नीचे मैदानी क्षेत्रों में आ जाते हैं । जिन से यहां के लोगों को बढ़िया किसम की ऊन व पश्मीना मिल जाता है। यहां के हर घर में महिलाओं के पास अपना-अपना चरखा हुआ करता था जो अब नही है, फिर भी यहां ऊन, पश्मीना लोगों की जीविका का एक अनूठा संसाधन है। ऊन व पश्मीना से खड्डी पर बुन कर महिला व पुरुष वर्ग के लिए सर्दियों में ओढ़ी जाने वाली गर्म शालें व चादरें बनाई जाती हैं जिन्हें कांगड़ी शाल का नाम दिया गया है। इनकी बाजार में अच्छी विक्री हो जाया करती है। यहां का पुरुष वर्ग खेती-बाड़ी करता है। इसके अतिरिक्त सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों में ऊँचे-ऊँचे पदों पर अपनी सेवाएं दे रहा है तथा सेवाएं देकर सेवा निवृत्त भी हो गये हैं ।
    कृषि प्रधान राष्ट्र होने के नातेे इस गांव के हर घर में दो-तीन गायें अवश्य हुआ करती थीं। इस कारण यहां दूध व घी की भी कोई कमी नहीं रहती थी। इसलिए यहां के नौजवानों का स्वास्थ्य भी सराहने योग्य था। आधुनिकता की दौड़, प्रयाप्त भूजल भंडार एवं सिंचाई के अभाव के कारण आज भले ही पशुपालन के स्तर में गिरावट आ गई हो पर गौ प्रेमियों ने अब भी अपने घरों में गौ-सेवा करना जारी रखा हुआ है। सदियों से यहां सभी वर्गों के लोग बड़े सौहार्द और प्रेम पूर्वक रहते आए हैं जो एक बड़ी अनूठी मिसाल है।
    सन् 1962 ई0 से लेकर 1968 तक बनकर तैयार होेेेने वाले देहाती पेयजल आपूर्ति योजना के अंतर्गत भवन जो लबीणेंयां दी बां (बावड़ी) से आगे चिंतपूर्णी मां के मंदिर के पास बनाया गया था, हिमाचल प्रदेश के भूतपूर्व राजस्व मंत्री श्री लालचंद प्रार्थी जी ने अपने कार्यकाल में सरकार की ओर से पेयजल वितरण प्रणाली का शुभारम्भ किया था। सुनने में आता है कि यहां सन् 1962 ई0 से पूर्व बहुत संख्या में वानर हुआ करते थे। पेयजल सेवा भवन निर्माण के पश्चात यहां उनकी संख्या नाम मात्र की रह गई है। सिंचाई व जन स्वास्थ्य विभाग कार्यालय के अभाव में पानी का बिल उगाही के लिए उससे संबंधित कर्मचारियों को यहां नूरपुर से आना पड़ता है।
    स्व0 त्रिलोक सिंह पठानियां जी, सुल्याली निवासी तथा उनके भागीदारों ने गांव वासियों के स्वास्थ्य लाभ हेतु भूदान करके वहां एक स्लेटपोश प्राथमिक आयुर्वेदिक चिकित्सालय का निर्माण करवाया था जो अब दस विस्तरों वाला आयुर्वेदिक चिकित्सालय के नाम से जाना जाता है।
    ग्राम सरपंच स्व0 श्री ध्यान सिंह पठानियां जी, सुल्याली निवासी तथा उनके भागीदारों ने बच्चों के शिक्षण हेेतु सुल्याली विद्यालय के लिए भूदान किया था। वहां अब राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला विद्यमान है।
    कैप्टन स्व0 श्री विशन सिंह पठानियां जी, सुल्याली निवासी तथा उनके भागीदारों ने विद्यालय के बच्चों कोे खेल का मैदान के लिए सुल्याली विद्यालय के लिए भूदान किया था। इसके चारों ओर अब राजकीय वरिश्ठ माध्यमिक पाठशाला के अंतर्गत एक ऊँची चार दीवारी का नवनिर्माण कर दिया गया है। इस समय हटली, सिंबली, वारड़ी, नेरा, सुल्याली, लुहारपुरा और देवी भराड़ी में राजकीय प्राथमिक पाठशालाएं स्थित हैं।
    सड़क के अभाव में यहां गांव के लोग पैदल आया जाया करते थे। गांव में डाकघर का काम किसी दुकान या घर में किया जाता था। नूरपुर से डाक घोडे़ से लाई जाती थी। यह काम स्व0 श्री रामप्रसाद जी, भटारा किया करते थे। सड़क बन जाने के पश्चात गांव के बाजार में वृद्धि हुई है और गांव का डाकघर अब ठीक बाजार के मध्य स्थित है। इसका भवन स्व0 श्रीमती कलावती, सेवा निवृत्त सरकारी शिक्षा विभाग, (हिमाचल प्रदेश) ने डाक विभाग को दान किया था।
    गांव वासियों के हित में यहां पहले मात्र एक ही उचित मूल्य की सरकारी दुकान हुआ करती थी। पर अब उसके स्थान पर दो हो गई हैं।
    यहां पर लोक निर्माण विभाग का भी कार्यालय स्थित है जिसमें गांव वासियों की सेवा में उससे संबंधित कार्य किया जाता है तथा विभाग का यहां अपना एक भ्ंडार भी है।
    बस ठहराव स्थल के पास यहां गांव वासियों की सेवा के लिए, विद्युत विभाग का कार्यालय खुल जाने से अब उन्हें बिल जमा करवाने हेतु नूरपुर नहीं जाना पड़ता है अथवा नूरपुर से किसी सरकारी कर्मचारी को बिल उगाही हेतु यहां नहीं आना पड़ता है।
    गांव वासियों के पालतु पशुओं के स्वास्थ्य लाभ हेतु पहले नूरपुर जाना पड़ता था पर अब यहां के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठषाला के पास सरकारी विभाग ने अपना पशु चिकित्सालय भवन निर्माण कर लिया है। इसके लिए श्री संदीप सिंह जी, सपुत्र स्व0 श्री बलवीर सिंह जी, पठानियां ने भवन निर्माण हेतु भूदान किया है।
    गांव की सम्पूर्ण धरती का उचित व्योरा रखने हेतु यहां के बस ठहराव स्थल के पास गांव का अपना पटवार खाना स्थित है।
    बस ठहराव स्थल के पास गांव वासियों की सुविधा के लिए यहां ग्रामीण बैंक खुल गया है। इससे गांव के वृद्धजनों को धनराशि जमा करवाने अथवा निकलवाने हेतु नूरपुर के चक्कर नहीं काटने पड़ते हैं। इस तरह उनका अपना काफी धन और समय बच जाता है।

  • भूजल स्तर में कैसे होगी वृद्धि?
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    भूजल स्तर में कैसे होगी वृद्धि?

    भूजल स्तर में आ रही निरंतर गिरावट को जल का सदुपयोग करने से रोका जा सकता है। इससे भूजलस्तर की पुनः वृद्धि हो सकती है इसके लिए हमें आज ही से निरंतर जागरूक रहकर स्वयं कुछ प्रयास करने होंगे।
    जब भी पानी पीना हो, स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए, पीने के लिए  सदा गहरे हैंडपंप, नलकूप, प्राकृतिक चश्में और बावड़ियों के पानी का ही प्रयोग करें। यह जल निरोग तथा स्वास्थ्य के लिए हितकर है।
    रसोई में खाद्य पदार्थो की धुलाई एवं वर्तनों की सफाई के लिए प्रयोग किया गया जल जो गंदा हो जाता है, उसे सदा पौधों व क्यारियों में ही डालें। आइस ट्रे से बर्फ छुड़वाने के लिए मग से जल का प्रयोग करें। जल प्रयोग करने के पश्चात नल बंद अवश्य  कर देें।
    अगर भूमिगत जल की टंकी में टोंटी का अभाव हो तो उसे वहां तुरंत लगा दें। नल सदा अच्छी तरह बंद करके रखें। पाइप पुरानी हो और वह कहीं से रिसाव करे तो उसे तुरंत बदलवा दें।
    घर या सार्वजनिक स्नानगृह में खुले नल या शावर के नीचेे कभी स्नान न करें। खुले नल के आगेे कपड़े न धोएं, ब्रुश न करें, दाढ़ी न बनाएं। अच्छा है, बाल्टी में जल लेकर छोटे मग का ही प्रयोग करें। घर या सार्वजनिक स्थान पर नल धीमे से खोलें और जल बैंकराशि की तरह उपयोग करने के पश्चात उसे बंद कर दें।
    घर या सार्वजनिक शौचालयों में जितनी अवश्यकता हो, उतने ही पानी का प्रयोग करें। किसी के द्वारा खुले छोड़े हुए नल को तुरंत बंद कर दें। भूजल की हानि को अपनी हानि समझें। घर या सार्वजनिक स्थान पर भूजल सरंक्षण के नियमों का पालन अवश्य करें। अगर भूजल आपूर्ति तंत्र में कहीं रिसाव होता हुआ दिखे तो स्थानीय निकायों को अवश्य सूचित करें।
    घर, पशुशाला की सफाई करने के लिए झाड़ू और बाल्टी का तथा पशु और गाड़ी की सफाई हेतु बाल्टी और मग का प्रयोग करें ताकि भूजल का अधिक दुरुपयोग न हो।
    आवश्यकता अनुसार मात्र फुहारे से क्यारी व पोैधों की सिंचाई करें। फसलों में पानी की आवश्यकता का हिसाब अवश्य रखें। खेत में जितनी आवश्यकता हो नलकूप से उतना ही पानी लगाएं। आवश्यकता से अधिक कभी भूजल दोहन न करें। फसल की बढ़ोतरी की दर से पानी के प्रयोग को घटाएं-बढ़ाएं। फसल, मिट्टी और जलवायु से अच्छी तरह मेल खाने वाली जल सिंचाई-प्रणाली ही का चुनाव करें और उसी के अनुसार खाली पड़ी भूमि पर फलदायक एवं भवन निर्माण संबंधि लकड़ी के लिए, नई पौध अवश्य लगाएं। सिंचाई समय बतलाने वाले सेंसरों का प्रयोग करें। ड्रिप एवं स्प्रिंकलर पद्धति का प्रयोग करें। स्प्रिंकलर पद्धति में रिसाव से बचने के लिए समय-समय पर जोड़ों और कपलिंगों की जांच करते रहें। सिंचाई प्रणाली का अच्छी तरह रख रखाव करें। सिंचाई के लिए सवेरे सूर्योदय से पहले लान पाट लें। उपयोगी जानकारी प्राप्त करके सिंचाई समय को ध्यान में रखें। सिंचाई समय सारिणी बनाएं और चयनित पद्धति से उचित समय पर सिंचाई करें। खेत, क्यारी की पूर्ण सिंचाई से थोड़ा पहले पानी बंद कर दें ताकि पूरे पानी का प्रयोग हो सके।
    निर्माण कार्यों में भूजल का कभी प्रयोग न करें। उसके स्थान पर जोहड़, पोखर, तालाब, नदी. नाले तथा संचित वर्षा जल का ही प्रयोग करें। समाज में बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण पाने के लिए परिवार नियोजन अपनाकर उसमें अपना योगदान दें और जहां तक संभव हो, कल के लिए भूजल पुनर्भरण अवश्य करें।
    भूजल पुनर्भरण हेतु सदाबहार नालों पर आवश्यकता अनुसार लघु चैकडैम बनाएं। उनसे छोटे बिजली घर पनचक्कियों का निर्माण करके हम अपनी अवश्यक्ताओं की पूर्ति कर सकते हैं। इससे बड़े-बड़े डैमों पर हमारी निर्भरता कम हो जाएगी और प्रतिवर्ष हमारे सिर पर मंडराने वाले बाढ़ के संकट भी कम होंगे। भूजल पुनर्भरण को प्रभावी बनाने हेतु गांव व शहरी स्तर पर आवश्यकता अनुसार गहरे, तल से कच्चे जल पुनर्भरण हेतु तालाब और पोखरों का अधिक से अधिक नवनिर्माण एवं संरक्षण करके परम्परागत जल संचयन प्रणाली का सम्मान करें। अगर हम उपलिखित उपायों का अपने जीवन में चरित्रार्थ करें तो भविष्य में अवश्य ही भूजल स्तर में वृद्धि होगी। आईये! हम सब मिलकर राष्ट्रीय भूजल संरक्षण अभियान को सफल बनाएं।

  • राष्ट्रीय  समर्थ भाषा
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    राष्ट्रीय समर्थ भाषा

    वह समाज और राष्ट्र  गूंगा है जिसकी न तो कोई अपनी भाषा  है और न लिपि। अगर भाषा  आत्मा है तो यह कहना अतिश्योक्ति  नहीं होगी कि भाषा  से किसी व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र  की अभिव्यक्ति होती हैं।
    विश्व में व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र का भौतिक विकास और आध्यात्मिक उन्नति के लिए स्थानीय, क्षेत्रीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं का सम्मान तथा उनसे प्राप्त ज्ञान की सतत वृद्धि करने में ही सबका हित है।
    राष्ट्र की विभिन्न भाषाओं का सम्मान करने से राष्ट्रीय  भाषा  का सूर्य स्वयं ही दीप्तमान हो जाता है।राष्ट्रीय  भाषा  स्वच्छन्द विचरने वाली वह सुगंध युक्त पवन है जिसे आज तक किसी चार दीवारी में कैद करने का कोई भी महत्वाकांक्षी प्रयास सफल नहीं हुआ है।
    स्थानीय, क्षेत्रीय, प्रांतीय भाषाओं के नाम पर भेद-भाव, वाद-विवाद और टकराव की मनोवृत्तियां महत्वाकांक्षा की जनक रहीं हैं जिससे कभी राष्ट्र  हित नहीं हुआ है। विभिन्न मनोवृत्तियां महत्वाकांक्षा उत्पन्न होने से पैदा होती हैं और उसके मिटते ही वह स्वयं नष्ट  हो जाती हैं।
    संस्कृत व हिन्दी भाषाओं ने सदाचार, सत्य, न्याय, नीति, सदव्यवहार और सुसंस्कार संवर्धन करने के हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कई सदियां बीत जाने के पश्चात  ही कोई एक भाषा  राष्ट्रीय सम्पर्क भाषा  और फिर वह राष्ट्र  की सर्व सम्मानित राजभाषा बन पाती है। भारत में कभी सर्वसुलभ बोली और समझी जाने वाली संस्कृत भाषा  देश  की वैदिक भाषा  थी जिसमें अनेकों महान ग्रंथों की रचनाएं हुई हैं। संस्कृत भाषा  को कई भाषाओं की जननी माना जाता है। इस समय हिन्दी भारत की राष्ट्रीय  सम्पर्क भाषा  होने के साथ-साथ राजभाषा  भी है। हमें उस पर गर्व है। भारत में हिन्दी भाषा  अति सरल बोली, लिखी, पढ़ी, समझी और समझाई जा सकने वाली मृदु भाषा  है। आशा  है कि इसे एक न एक दिन संयुक्त राष्ट्र मंच पर उचित सम्मान अवश्य  मिलेगा। भारत के भूतपूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपयी जी, संयुक्त राष्ट्र  मंच पर अपने सर्वप्रथम भाषण में हिन्दी का प्रयोग करके इसका शुभारम्भ कर चुके हैं। वे राष्ट्र  के महान सपूत हैं।
    हिन्दी के प्रोत्साहन हेतु देश  भर में अब तक हिन्दी दिवस/सप्ताह/पखवाड़ा/आयोजन के सरकारी अथवा गैर सरकारी अनेकों सराहनीय एवं प्रसंशनीय प्रयास हुए हैं। इससे आगे हमें हिन्दी दिवस/सप्ताह/पखवाड़ा/ आयोजनों  के स्थान पर हिन्दी मासिक/तिमाही/छःमाही और वार्षिक आयोजनों का आयोजन करना होगा। हिन्दी भाषा को अधिकाधिक प्रोत्साहित करने हेतु सरल सुबोध हिन्दी शब्द कोष कारगर सिद्ध हो सकते हैं जिन्हें प्रतियोगियों का प्रोत्साहन बढ़ाने हेतु पुरस्कार रूप में प्रदान किया जा सकता है और पुस्तकालयों में पाठकों की ज्ञानसाधनार्थ उपलब्ध करवाया जा सकता है।
    सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्थांओं के कार्यालयों में फाइलों व रजिस्टरों के नाम हिन्दी भाषा  में लिखे जा सकते हैं। कार्यालयों की सब टिप्पणियां/आदेश /अनुदेश  हिन्दी भाषी  जारी किए जा सकते हैं। कार्यालयों में अधिकारी व कर्मचारी नाम पट्टिकाएं तथा उनके परिचय पत्र हिन्दी भाषी बनाए जा सकते हैं। कार्यालय संबंधी पत्र व्यवहार/बैठकें/संगोष्ठियाँ /विचार विमर्श  इत्यादि कार्य अधिक से अधिक हिन्दी भाषा में हो सकते हैं।
    जन-जन की सम्पर्क भाषा  हिन्दी को राज भाषा में भली प्रकार विकसित करने का प्रयास सरकारी या स्वयं सेवी संस्थांओं द्वारा मात्र खानापूर्ति के आयोजनों तक ही सीमित होकर न रह जाए। इसके लिए प्रांतीय, शहरी और ग्रामीण स्तर के बाजारों में तथा सार्वजनिक स्थलों पर जैसे स्वयं सेवी संस्थाओ, दुकानों, पाठशालाओं, विद्यालयों, विश्व  विद्यालयों रेलवे स्टेशनों  और वाहनों आदि के नाम, परिचय, सूचना पट्ट इत्यादि हिन्दी भाषा  में लिखकर यह अवश्य  ही सुनिश्चित  किया जा सकता है कि भारत देश  की राष्ट्रीय  सम्पर्क भाषा  हिन्दी है और हिन्दी ही उसकी अपनी राजभाषा  है। कन्याकुमारी से कश्मीर  तक और असम से सौराष्ट्र  तक भारत एक अखण्ड देश  है। हिन्दी भाषा   अपने आप में हिन्द देश  को सुसंगठित एवं अखण्डित बनाए रखने में पूर्ण सक्षम है। वह विश्व  में अंग्रेजी के समकक्ष होने में हर प्रकार से समर्थ है।
    छमाही
    ज्ञान वार्ता

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    सशक्त जनसेवक

    ब्रह्मभाव में स्थिर रहकर, ब्रह्मतत्व का विश्वकल्याण हेतु प्रचार-प्रसार करने वाला ब्रह्मज्ञानी, ज्ञानवीर होता है।

    क्षत्रियभाव में स्थिर रहकर, जन, समाज और राष्ट्र हित में जान-माल की रक्षा करने वाला, शूरवीर होता है।


    वैश्यभाव में स्थिर रहकर, गौसेवा, कृषि और व्यापर से जन, समाज और राष्ट्र हित में कार्य करने वाला, धर्मवीर होता है।


    शुद्रभाव में स्थिर रहकर, हस्त-ललित कला, लघु एवं कुटीर उद्दोग धंधों से जन, समाज और राष्ट्र हित में कार्य करने वाला, कर्मवीर होता है।
    ज्ञानवीर, शूरवीर, धर्मवीर और कर्मवीर एक दूसरे के पूरक हैं।