विचारकों के कथन :-
"जिस तरह हमें अपना शरीर कायम रखने के लिए भोजन जरूरी है, आत्मा की भलाई के लिए प्रार्थना कहीं उससे भी ज्यादा जरूरी है। प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं वरन हृदय से होता है। इसलिए गूंगे, तुतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। जीभ पर अमृत - राम नाम और हृदय में हलाहल - दुर्भावना हो तो जीभ का अमृत किस काम का?"
- महात्मा गाँधी
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श्रेणी:विचारकों के कथन
महात्मा गाँधी
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श्रेणी:विचारकों के कथन
जयशंकर प्रसाद
विचारकों के कथन :-
पाषाण के भीतर भी मधुर स्रोत होते हैं, उसमें मदिरा नहीं, शीतल जल की धारा बहती है।
- जयशंकर प्रसाद
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श्रेणी:विचारकों के कथन
आचार्य श्रीराम शर्मा
विचारकों के कथन :-
संपदा जोड़-जोड़ रखने वाले को भला क्या पता कि दान में कितनी मिठास है।
- आचार्य श्रीराम शर्मा
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श्रेणी:विचारकों के कथन
आचार्य चाणक्य
विचारकों के कथन :-
गुणों से ही मानव की पहचान होती है। ऊँचे सिँहासन पर बैठने से नहीं। महलों के उच्च शिखर पर बैठने के बावजूद कौवे का गरुड़ होना असम्भव है।
- आचार्य चाणक्य
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श्रेणी:विचारकों के कथन
मुंशी प्रेमचंद
विचारकों के कथन :-
अच्छे कामों की सिद्धि में बड़ी देर लगती है। पर बुरे कामों की सिद्धि में यह बात नहीं।
- मुंशी प्रेमचंद