मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: ज्ञानवार्ता जम्मू

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    2. स्लोगन जल बाईसा

    ज्ञान वार्ता छमाही 2013 

    जल है गुणों की खान,
    धरती की बढ़ाये शान,

    जल रहेगा,
    जीवन बचेगा,

    भू-जल बढ़ाओ,
    जीवन बचाओ,

    जल के संग,
    जल के रंग,

    जल है जहाँ,
    जीवन है वहां,

    जल, जीवन की आशा,
    सूखा, निराशा ही निराशा,

    जल की कहानी,
    जीवन की कहानी,

    जहाँ भू-जल सहारा है,
    वहां जीवन हमारा है,

    जल से पढ़, पेड़ों से जंगल,
    सूखे में सबका करते मंगल,

    पेड़, पानी हैं जीवन आधार,
    बंद करो, इन पर अत्यचार,
    जल संपदा, जंगल संग,
    खिलता जीवन, भरता रंग,

    जल मिलेगा जब तक,
    जीवन रहेगा तब तक,

    जल गुणों की खान,
    बचाए हम सबकी जान,

    भूजल के सहारे,
    प्राण रहेंगे हमारे,

    पेड़ों से शुद्ध मिलती है वायु,
    वायु से लंबी होती है आयु,

    जंगल संतुलित वर्षा हैं लाते,
    हम सबका जीवन हैं बचाते,

    जल, जमीन, जंगल संरक्षण प्रण हमारा,
    पल-पल बारी जाये इन पर जीवन हमारा,

    सूखी धरती करे पुकार,
    मुझ पर करो यह उपकार,
    बहते पानी पर बाँध बनाओ,
    भूजल बढ़ाओ, पुनर्भरण अपनाओ,

    जीवन होगा खुशहाल तभी,
    जल बचायेंगे, जब हम सभी,
    जल है,
    जीवन है,

    भूजल संचित,
    जीवन सुरक्षित,

    खुद जागो, दूसरों को जगाओ,
    जल, जमीन, जंगल को बचाओ,
    स्वच्छ बहे जल - धारा
    स्वस्थ रहे जीवन हमारा,

    बहते जल को बांधकर,
    करो यह उपकार,
    भूमि जलस्तर बढ़ेगा,
    सम्पन्न होगा संसार,



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    1. जल संचयन

    ज्ञान वार्ता छमाही 2013 

    हमने बात वर्षा जल संचयन करने की मानी है,
    कृत्रिम भू-जल पुनर्भरण करने की ठानी है,
    बावड़ी, कुआँ, तलब, पोखर, जोहड़ का पानी,
    जंगल, पेड़-पोधे, खेतों में लाता है हरियाली,
    भू-जल दोहन नियम से अपनाओ,
    भू-जल बचाओ और जीवन बचाओ,
    आज बचाए पानी ने कल सबको बचाना है,
    बाग़ - बगीचे, फूलों पर भंवरों ने गुनगनाना है,
    परागण होगा इससे, फसलें होंगी भरपूर,
    निर्धनता, मजबूरी, भूख, लाचारी होगी दूर,
    आओ ! मिलकर जल संचयन अपनाएँ,
    भू-जल पुनर्भरण कार्य सफल बनाएं,


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    1. मैकाले की सोच और भारतीय शिक्षा

    आलेख - शिक्षा दर्पण ज्ञानवार्ता छमाही 2011

    हिमाचल की मासिक पत्रिका “मातृवन्दना” अगस्त 2010 में पृष्ठ संख्या 19 पर प्रकाशित आलेख “मैकाले की सोच-1835 ई० में" के अनुसार यह एक वास्तविक लेख है l इसकी प्रति मद्रास हाईकोर्ट के अभिलेखों से प्राप्त हुई है l ब्रिटिश पार्लियामेंट के रिकार्ड में सुरक्षित है l लार्ड मैकाले को भारत में तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर जनरल लार्ड विलियम वेंटिंग की कौंसिल का सदस्य नामजद कर भारत भेजा गया था l अपने भारत-भ्रमण के अनुभवों एवंम अध्ययन के पश्चात् उसने ब्रिटिश पार्लियामेंट को यह रिपोर्ट भेजी थी -
    “मैंने पूरे भारत की एक छोर से दूसरे छोर तक यात्रा की है पर मुझे एक भी भिखारी नहीं मिला, जो चोर हो l ऐसे धनी देश के अपने ऊँचे सामाजिक मूल्य हैं l यहाँ लोगों के पास बड़ी दृढ़शक्ति है l इस देश को हम कभी जीतने की सोच भी नहीं सकते l हम इसे तब तक नहीं जीत सकते, जब तक हम इसकी, विरासत इस देश की रीढ़, आध्यात्मिकता और संस्कृति को तोड़ नहीं देते l इसलिए मैं इसकी प्राचीन आध्यात्मिक शिक्षा-पद्धति को हटाने का सुझाव देता हूँ l जब भारतीय सोचने लगेंगे कि विदेशी चीजें और अंग्रेजी भाषा अपने से अच्छी है, तब वे अपना आत्मसम्मान और अपनी संस्कृति को भी खो देंगे l उसे भूल जाएँगे और तब वे वैसा बन जाएँगे जैसा अधिपत्य राष्ट्र हम चाहते हैं” l
    यह उसका एक ऐसा सुझाव था जो आगे चलकर भारतीय सभ्यता-संस्कृति, धर्म संस्कार और परंपरागत गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली के लिए महाघातक सिद्ध हुआ l मैकाले के उपरोक्त सुझाव के आधार पर अंग्रेजों ने 1840 ई० में कानून बनाकर भारत की जनोपयोगी गुरुकुल प्रधान शिक्षा-प्रणाली को हटा दिया, जो भारतीय छात्र-छात्राओं एवं साधकों में वैदिक धर्म, ज्ञान, कर्मनिष्ठा, शौर्यता और वीरता जैसे संस्कारों का संचार करने के कारण राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के रूप में उसकी रीढ़ थी l उसके स्थान पर उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य हित की पोषक अंग्रेजी भाषी शिक्षा-प्रणाली लागू की, जो भविष्य में ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार करने में अत्यंत कारगर सिद्ध हुई l
    स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् सत्तासीन राजनेताओं को यह भी ध्यान नहीं रहा कि उन्होंने सशक्त भारत का निर्माण करना है और इसके लिए उन्हें जनप्रिय स्थानीय भाषा, हिंदी अथवा संस्कृत के आधार पर गुरुकुलों की भी स्थापना करनी है l देखने में आ रहा है कि निहित स्वार्थ में डूबे हुए, देश को भीतर ही भीतर खोखला एवंम खंड-खंड करने के कार्य में सक्रिय आमुक देशद्रोही, अंग्रेजी पिट्ठू प्रशासकों के द्वारा देश के गाँव-गाँव और शहर-शहर में मात्र मैकाले की सोच के आधार पर अंग्रेजी भाषी पाठशालाएं, विद्यालय एवंम महाविद्यालय ही खोले जा रहे हैं l उनके द्वारा राष्ट्रीय जनहित–अहित का विचार किये बिना उन्हें धड़ाधड़ सरकारी मान्यताएं भी दी जा रही हैं l जबकि वे न कभी भारतीय सभ्यता एवंम संस्कृति के अनुकूल रहे और न कभी हुए l उनमें गुरुकुलों जैसी कहीं कोई गरिमा भी नहीं दिखाई देती l
    युगों से सोने की चिड़िया–भारत की पहचान बनाये रखने में समर्थ रह चुके गुरुकुल उच्च संस्कारों के संरक्षक, पोषक, संवर्धक होने के साथ-साथ मानव जीवन की कार्यशालाओं के रूप में छात्र – छात्राओं एवं साधकों के नव जीवन निर्माता भी थे l नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला और उनके सहायक विद्यालय तथा महा विद्यालयों से भारतीय सभ्यता-संस्कृति, धर्म-संस्कार और शिक्षा न केवल भली प्रकार से फूली-फली थी बल्कि उनसे जनित उसकी सुख-समृद्धि की महक विदेशों तक भी पहुंची थी l इस बात को कौन नहीं जानता है कि आतंक फैलाकर आपार धन सम्पदा लूटना, भारतीय सभ्यता संस्कृति नष्ट करना और फूट डालकर संपूर्ण भारत वर्ष पर ब्रिटिश साम्राज्य का अधिपत्य स्थापित करना ही आक्रान्ता ईष्ट इण्डिया कंपनी का मूल उद्देश्य था l
    आज भारतीय राजनीतिज्ञ भारतीय संस्कृति की सुगंध की कामना तो करते हैं पर उनके पास उसकी जननी गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली उपलब्ध नहीं है l इसलिए हम सब जागरूक अभिभावकों, गुरुजनों, प्रशासकों और राजनेताओं को एक मंच पर एकत्रित होकर होनहार बच्चों, छात्र – छात्राओं एवं साधकों के संग अंग्रेजी शिक्षा-प्रणाली के स्थान पर जनोपयोगी एवंम परंपरागत भारतीय गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली की पुनर्स्थापना करके उसे अपने जीवन में समझना और जांचना होगा क्योंकि बच्चों और शिक्षार्थियों के जीवन का नव निर्माण राजनीति, भाषण, या उससे जुड़े ऐसे किसी आन्दोलन से कभी नहीं हुआ है और न हो ही सकता है बल्कि एक सशक्त शिक्षा-प्रणाली के द्वारा ज्ञानार्जित करने से ही ऐसा होता रहा है और आगे होगा भी l इसकी पूर्ति करने में भारतीय परंपरागत गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली पूर्णतया सक्षम और समर्थ रही है l इसका भारतीय इतिहास साक्षी है जिसे पढ़कर जाना जा सकता है l
    अगर मैकाले 1840 ई० में अपने संकल्प से भारत में परंपरागत गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली समाप्त करवाकर अंग्रेजी शिक्षा-प्रणाली जारी करवा सकता था तो हम भी सब मिलकर राष्ट्रीय जनहित में न्यायलय तक अपनी संयुक्त आवाज पहुंचा सकते हैं l वहां से अध्यादेश पारित करवाकर भारतीय आशाओं के विपरीत अंग्रेजी शिक्षा-प्रणाली को निरस्त करवा सकते हैं l क्या हम इस योग्य भी नहीं रहे कि हम उसके स्थान पर फिर से भारतीय गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली को लागू करवा सकें ? अतीत में हम सब सार्वजनिक रूप से जागरूक और सुसंगठित रहे हैं – अब हैं और भविष्य में भी रहेंगे l विश्व में कोई भी शक्ति भारत को विश्वगुरु बनने से नहीं रोक सकती l ऐसा हमारा दृढ विशवास है l
    आइये ! हम सब मिलकर प्रण करें और इस पुनीत कार्य को सफल करने का प्रयास करें l यह तो सत्य है कि बबूल के बीज से कभी आम के पेड़ की आशा नहीं की जा सकती l हम पाश्चात्य शिक्षा-प्रणाली के बल पर भारत के पुरातन गौरव एवंम सुख –समृद्धि की मनोकामना कैसे कर सकते हैं ?......................

  • 1. राष्ट्रीय समर्थ भाषा
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    1. राष्ट्रीय समर्थ भाषा

    2010 छमाही ज्ञान वार्ता

    वह समाज और राष्ट्र  गूंगा है जिसकी न तो कोई अपनी भाषा  है और न लिपि। अगर भाषा  आत्मा है तो यह कहना अतिश्योक्ति  नहीं होगी कि भाषा  से किसी व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र  की अभिव्यक्ति होती हैं।
    विश्व में व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र का भौतिक विकास और आध्यात्मिक उन्नति के लिए स्थानीय, क्षेत्रीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं का सम्मान तथा उनसे प्राप्त ज्ञान की सतत वृद्धि करने में ही सबका हित है।
    राष्ट्र की विभिन्न भाषाओं का सम्मान करने से राष्ट्रीय  भाषा  का सूर्य स्वयं ही दीप्तमान हो जाता है।राष्ट्रीय  भाषा  स्वच्छन्द विचरने वाली वह सुगंध युक्त पवन है जिसे आज तक किसी चार दीवारी में कैद करने का कोई भी महत्वाकांक्षी प्रयास सफल नहीं हुआ है।
    स्थानीय, क्षेत्रीय, प्रांतीय भाषाओं के नाम पर भेद-भाव, वाद-विवाद और टकराव की मनोवृत्तियां महत्वाकांक्षा की जनक रहीं हैं जिससे कभी राष्ट्र  हित नहीं हुआ है। विभिन्न मनोवृत्तियां महत्वाकांक्षा उत्पन्न होने से पैदा होती हैं और उसके मिटते ही वह स्वयं नष्ट  हो जाती हैं।
    संस्कृत व हिन्दी भाषाओं ने सदाचार, सत्य, न्याय, नीति, सदव्यवहार और सुसंस्कार संवर्धन करने के हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कई सदियां बीत जाने के पश्चात  ही कोई एक भाषा  राष्ट्रीय सम्पर्क भाषा  और फिर वह राष्ट्र  की सर्व सम्मानित राजभाषा बन पाती है। भारत में कभी सर्वसुलभ बोली और समझी जाने वाली संस्कृत भाषा  देश  की वैदिक भाषा  थी जिसमें अनेकों महान ग्रंथों की रचनाएं हुई हैं। संस्कृत भाषा  को कई भाषाओं की जननी माना जाता है। इस समय हिन्दी भारत की राष्ट्रीय  सम्पर्क भाषा  होने के साथ-साथ राजभाषा  भी है। हमें उस पर गर्व है। भारत में हिन्दी भाषा  अति सरल बोली, लिखी, पढ़ी, समझी और समझाई जा सकने वाली मृदु भाषा  है। आशा  है कि इसे एक न एक दिन संयुक्त राष्ट्र मंच पर उचित सम्मान अवश्य  मिलेगा। भारत के भूतपूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपयी जी, संयुक्त राष्ट्र  मंच पर अपने सर्वप्रथम भाषण में हिन्दी का प्रयोग करके इसका शुभारम्भ कर चुके हैं। वे राष्ट्र  के महान सपूत हैं।
    हिन्दी के प्रोत्साहन हेतु देश  भर में अब तक हिन्दी दिवस/सप्ताह/पखवाड़ा/आयोजन के सरकारी अथवा गैर सरकारी अनेकों सराहनीय एवं प्रसंशनीय प्रयास हुए हैं। इससे आगे हमें हिन्दी दिवस/सप्ताह/पखवाड़ा/ आयोजनों  के स्थान पर हिन्दी मासिक/तिमाही/छःमाही और वार्षिक आयोजनों का आयोजन करना होगा। हिन्दी भाषा को अधिकाधिक प्रोत्साहित करने हेतु सरल सुबोध हिन्दी शब्द कोष कारगर सिद्ध हो सकते हैं जिन्हें प्रतियोगियों का प्रोत्साहन बढ़ाने हेतु पुरस्कार रूप में प्रदान किया जा सकता है और पुस्तकालयों में पाठकों की ज्ञानसाधनार्थ उपलब्ध करवाया जा सकता है।
    सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्थांओं के कार्यालयों में फाइलों व रजिस्टरों के नाम हिन्दी भाषा  में लिखे जा सकते हैं। कार्यालयों की सब टिप्पणियां/आदेश /अनुदेश  हिन्दी भाषी  जारी किए जा सकते हैं। कार्यालयों में अधिकारी व कर्मचारी नाम पट्टिकाएं तथा उनके परिचय पत्र हिन्दी भाषी बनाए जा सकते हैं। कार्यालय संबंधी पत्र व्यवहार/बैठकें/संगोष्ठियाँ /विचार विमर्श  इत्यादि कार्य अधिक से अधिक हिन्दी भाषा में हो सकते हैं।
    जन-जन की सम्पर्क भाषा  हिन्दी को राज भाषा में भली प्रकार विकसित करने का प्रयास सरकारी या स्वयं सेवी संस्थांओं द्वारा मात्र खानापूर्ति के आयोजनों तक ही सीमित होकर न रह जाए। इसके लिए प्रांतीय, शहरी और ग्रामीण स्तर के बाजारों में तथा सार्वजनिक स्थलों पर जैसे स्वयं सेवी संस्थाओ, दुकानों, पाठशालाओं, विद्यालयों, विश्व  विद्यालयों रेलवे स्टेशनों  और वाहनों आदि के नाम, परिचय, सूचना पट्ट इत्यादि हिन्दी भाषा  में लिखकर यह अवश्य  ही सुनिश्चित  किया जा सकता है कि भारत देश  की राष्ट्रीय  सम्पर्क भाषा  हिन्दी है और हिन्दी ही उसकी अपनी राजभाषा  है। कन्याकुमारी से कश्मीर  तक और असम से सौराष्ट्र  तक भारत एक अखण्ड देश  है। हिन्दी भाषा   अपने आप में हिन्द देश  को सुसंगठित एवं अखण्डित बनाए रखने में पूर्ण सक्षम है। वह विश्व  में अंग्रेजी के समकक्ष होने में हर प्रकार से समर्थ है।

    छमाही ज्ञान वार्ता

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    1. स्वाधीन भारत में

    ज्ञान वार्ता छमाही 2010 

    पराधीन देश में, वो घड़ी लगती अच्छी थी
    स्थान-स्थान पर तिरंगा फहराने को
    लगाना जान की बाजी, लगती अच्छी थी
    आज गीत वन्दे मातरम् गाने को
    राष्ट्रीय गान का, अपमान हो रहा क्यों ?
    हमारे स्वाधीन भारत में !
    आतंकी संसद पर हमला हैं करते
    हम आर-पार की लड़ाई करने की हैं सोचा करते
    उस पर हमला न करो, वो हैं कहते
    हम सेना को वापिस हैं बुलाया करते
    देश की स्वतंत्रता सुरक्षित रहेगी कैसे ?
    हमारे स्वाधीन भारत में !
    राष्ट्रीय आर्थिक नीतियां बनती हैं
    विश्व बैंक की अनुमति लेने से
    सब्सिडी देनी या हटानी होती है
    विश्व व्यपार संगठन की सहमती से
    देश का आर्थिक विकास होगा कैसे ?
    हमारे स्वाधीन भारत में !
    जिस गाँव में परिवार की बेटी व्याही जाति थी
    उस गाँव का, गाँव वाले जल ग्रहण नहीं करते थे
    परिवार की बेटी, गाँव की बेटी होती थी
    लोग गाँव में नारी सम्मान किया करते थे
    आज परिवार की बेटी को, बुरी नजर से बचाएगा कौन ?
    हमारे स्वाधीन भारत में !
    मठ, मंदिर की आय पर कर लगने की तैयारी हो रही
    राजनेताओं द्वारा धार्मिक सत्ता को चुनौती दी जा रही
    देश की सीमाएं सिकुड़ती जा रहीं
    देश की सुरक्षा खतरे में घिरती जा रही
    राष्ट्रीय सुरक्षा के उपायों पर राजनीति कर रहा कौन ?
    हमारे स्वाधीन भारत में !