मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



धीरे-धीरे


खाना है तो ठंडा करके होंठ नाजुक जलते हैं l
काम अच्छा होता धीरे-धीरे, मनः शहद के भी छत्ते भरते हैं ll

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