21 मार्च 2010 कश्मीर टाइम्स
काला होता है मन मेरा, काला ही सबको कहता हूँ,
चोर भाव छुपाता है मन मेरा, चोर ही सबको कहता हूँ,
नजर मेरी सबको देखती है, पर खुद को न कभी देख पाई है,
ढूंढता हूँ बाहर, छुपाए चोर भीतर, नहीं बात समझ में आई है,
चोर हूँ, क्यों न चोरी छोड़ूँ! कुछ ऐसे भी कर लूँ काम,
सज्जन मैं भी बन जाऊं, दुर्जनों के सब छोड़ दूँ काम,
छोटी-छोटी चीज के लिये, क्यों नियत खराब कर लूँ मैं?
इज्जत हो जमाने में मेरी भी, वस्तु पूछकर क्यों न ले लूँ मैं?
चेतन कौशल "नूरपुरी"