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1. शहरी नाले की व्यथा
27 जुलाई 2008 कश्मीर टाइम्स
अपना भी स्वच्छ जल था मेरा
सदा स्वच्छ ही नीर बहता था
हर जगह उपयोगी पानी चाहने बालो
मुझमें गंदगी बहाओ न
मुझे और दूषित बनाओ न
तुम सुबहशाम आकर यहीं नहाते थे
धोकर कपड़े साहिल पर ही सुखाते थे
बना शिकार मच्छली चाव से खाने बालो
मुझमें गंदगी बहाओ न
मुझे और दूषित बनाओ न
मेरे जल संग जल गंदा गंदगी बहाने बालो!
मुझसे लिफाफे पालीथिन बोतलें प्लास्टिक नहीं गलाए जाते
गड्ढे नालियों में रोग किटाणुओं को बढा़ने बालो
मुझमें गंदगी बहाओ न
मुझे और दूषित बनाओ न
तुम चाहो तो स्वच्छ उपयोगी बनाए रखो मुझको
दूसरों की रक्षा करो और सुरक्षित रखो खुद को
कोई गंदगी फेैलाए न परदोष निहारने बालो
मुझमें गंदगी बहाओ न
मुझे और दूषित बनाओ न
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2. बलि का बकरा
13 जुलाई 2008 कश्मीर टाइम्स समाजिक जन चेतना
आज तक हमने देव स्थानों पर बकरों की बलि दिया जाना सुना था पर यह नहीं सुना था कि सड़क के किनारे बस की सवारियों को भी बलि का बकरा बनाया जाता है l जी हाँ, ठीक सुना आपने, ऐसा अब खुले आम हो रहा है l अगर हम अन्य स्थानों को छोड़ मात्र जम्मू से लखनपुर तक की बात करें तो राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे बने ढाबों, भोजनालयों और चाय की दुकानों को कसाई घरों के रूप में देख सकते हैं l वहां सवारियों को प्रति चपाती पांच रूपये के साथ नाम मात्र की फराई दाल दस रूपये में और चाय का प्रति कप पांच रूपये के साथ एक कचोरी तीन रूपये के हिसाब से धड़ल्ले से बेची जाती है l वहां कहीं मूल्य सारिणी दिखाई नहीं देती है l शायद उन्हें प्रशासन की ओर से पूछने वाला कोई नहीं है l क्या यह दुकानदार सरकारी मूल्य सूचि के अंतर्गत निर्धारित मूल्यानुसार सामान बेचते हैं ? संबंधित विभाग पर्यटक वर्ग अथवा सवारी हित की अनदेखी क्यों कर रहा है ?
राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारों पर ढाबों और चाये की दुकानों पर लम्बे रुट की बसें रूकती हैं l वहां पर चालक और परिचालकों को तो खाने-पीने के लिए मूल्य विहीन बढ़िया और उनका मनचाहा खाना-पीना मिल जाता है, मानों जमाई राजा अपने ससुराल पधारे हों l पर बस की सवारियों को उनकी सेवा के बदले में दुकानदारों मनमर्जी का शिकार होना पड़ता है l अंतर मात्र इतना होता है कि कोई कटने वाला बकरा तो गर्दन से कटता है पर सवारियों की जेब दुकानदारों द्वारा बढ़ाई गई जबरन मंहगाई की तेज धार छुरी से काटी जाती है l कई बार सवारियों के पास गन्तव्य तक पहुँचने के मात्र सीमित पैसे होते हैं l अगर रास्ते में भूख-प्यास लगने पर उन्हें कुछ खाना-पीना पड़ जाये तो वह खाने-पीने की वस्तुएं खरीदकर न तो कुछ खा सकते हैं और न पी सकते हैं l क्या लोकतंत्र में उन्हें जीने का भी अधिकार शेष नहीं बचा है ?
यह पर्यटक एवं सवारी वर्ग भी तो अपने ही समाज का एक अंग हैं जो हमारे साथ कहीं रहता है l स्वंय समाज सेवी और इससे संबंधित सरकारी संस्थाओं को प्रशासन के साथ इस ओर विशेष ध्यान देना होगा और सहयोग भी देना पड़ेगा l उसके हित में उन्हें राष्ट्रीय राजमार्ग तथा बस अड्डों पर खाने-पीने और अन्य आवश्यक सामान खरीदने हेतु उचित मूल्य की दुकानों व ठहरने या विश्राम करने के लिए सुख-सुविधा संपन्न सस्ती सरायों की व्यवस्था करनी होगी ताकि स्थानीय दुकानदारों द्वारा सवारियों और पर्यटकों से मनमाना मूल्य न वसूला जाये और कोई किसी के निहित स्वार्थ पूर्ति के लिए कभी बलि का बकरा न बन सके l
प्रकाशित 13 जुलाई 2008 कश्मीर टाइम्स
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3. आओ पर्यावण स्वच्छ बनाएं
जून 2008 मातृवंदना
विश्व में हमारी दैनिक आवश्यकताएं बहुत हैं। वह इस समय इतनी अधिक बढ़ गई हैं कि उनसे हमें पल-पल सोचने ही के लिए नहीं बल्कि कुछ न कुछ करने के लिए भी बाध्य होना पड़ता है। हम जो भी कार्य करते हैं भले ही के लिए करते हैं परन्तु कभी-कभी यह भलाई के कार्य समाज हित के लिए वरदान सिद्ध होने के स्थान पर अभिशाप भी बन जाते हैं जिनसे हमें सतर्क रहना अति आवश्यक है। इस समय हमारी परंपरागत सर्वांगीण विकास करने वाली प्राचीन भारतीय संस्कृति पर काले बादल छा रहे हैं। अगर हमने समय रहते इस ओर तनिक ध्यान नही दिया तो वो दिन दूर नहीं कि वह हमें कहीं दिखाई नहीं देगी।
हमने किसी धातु, शीशा , गत्ता, कागज, प्लास्टिक, पाॅलीथीन, नायलान और रबड़ से निर्मित लेकिन अनुपयोगी हो चुके घरेलु सामान को इधर-उधर नहीं फैंकना है बल्कि उन्हें इकट्ठा करके गांव में आने वाले कबाड़ी को बेच देना है और उससे आर्थिक लाभ कमाना है।
हमने घर का हर रोज जलाने वाला कूड़ा-कचरा जला देना है तथा साग-सब्जी, फल के छिलकों को पालतु पशुओं को खिलाना है अथवा उसे भोजनालय के साथ लगती क्यारी में गड्ढा बनाकर उसमें दबा देना है ताकि वह वहां सड़-गल कर पौष्टिक खाद बन जाए और हम उसका खेती में उपयोग कर सकें।
हमनें प्रति दिन घर व गांव के आस-पास की नालियों और गलियों में कूड़ा-कचरा फैेंकने वालों पर कड़ी नजर रखनी है और जरूरत पड़ने पर हमने उन्हें गंदगी से फेैलने वाली बीमारियों से भी अवगत करवाना है ताकि वे साफ-सफाई रखने की ओर ध्यान देकर हमारा सहयोग कर सकें।
हमने लघुशंका व दीर्घशंका निवार्ण हेतु गांव के खेतों, गलियों, नालियों, नदियों और नालों का न तो स्वयं उपयोग करना है और न ही किसी को करने देना है। उसके स्थान पर हमने सदैव घरेलू व सार्वजनिक शौचालयों का ही प्रयोग करना है और दूसरों को करने के लिए कहना है ताकि मल-मूत्र सीवरेज व्यवस्था के अंतर्गत विसर्जित हो सके और कहीं पेयजल स्रोतों - बावड़ी, कूंआ, हैंडपंप और नलकूप का शुद्ध पानी दूषित न हो सके।
स्थानीय प्रदूषण एवं रोग प्रतिरोधक, रोग विनाशक तथा औषधीय गुण सम्पन्न पेड़-पौधे, झाड़, जड़ी-बूटियों और कंदमूलों को संरक्षित करके हमने जीव प्राणों की रक्षा हेतु उनकी सतत वृद्धि करनी है ताकि आवश्यकता पड़ने पर हम उनका भरपूर उपयोग कर सकें।
हमने गांव में सामाजिक, धार्मिक, विवाह और पार्टियों के शुभ अवसरों पर होने वाले हवन-यज्ञ, भंडारा, भोज या लंगर से प्रसाद अथवा खाना खाने के लिए पत्तों की बनी पतलों व डुन्नों का ही उपयोग करना है। वहां से अपने घर प्रसाद या खाना ले जाने के लिए थाली अथवा टिफन का प्रयोग करना है ना कि पाॅलीथीन लिफाफों का। इनसे अनाज की बर्बादी होती है और प्रदुषण फेैलता है।
हमने ऐसी सब सुख-सुविधाओं का सर्वदा के लिए परित्याग कर देना है अथवा उनका दुरुपयोग नहीं करना है जिनसे जल, थल, वायु, अग्नि, आकाश, शब्द, वाणी, कार्य, विचार, चरित्र, हृदय और वातावरण दूषित होते हों।
गांव के मृत पशुओं को खुले में फैेंकने से सतही जल, भूजल और वायुमंडल दूषित न हो इसलिए हमने किसी भी मृत पशु को ऐसी जगह फैेंकवाना है जहां उसे मांसाहारी पशु-पक्षी तुरंत और आसानी से खा जाएं।
ग्राहक सेवा में गांव का कोई भी दुकानदार अपनी दुकान से बेचा हुआ सामान सदैव अखवार के ही बनाए हुए लिफाफों में डालकर देगा और ग्राहक किसी दुकान से पाॅलीथीन लिफाफों में डाला हुआ सामान नहीं लेगा। वह बाजार जाते हुए अपने साथ घर से कपड़े का बना हुआ थैला अवश्य लेकर जाएगा ताकि सामान लाने में उसे कोई कठिनाई न हो।
कोई भी दुकानदार अपनी दुकान अथवा गोदाम के कूड़े-कचरे को सड़क पर, नाली में या कहीं आस-पास नहीं फैेंकेगा। वह उसे कूड़ादान में डालेगा जिसकी नियमित सफाई होगी। वह उसे जला देगा या फिर कबाड़ी को बेच देगा। इससे बाजार देखने में अच्छा और सुंदर लगेगा।
दूषित जल विसर्जित करने वाले कल-कारखानों, अस्पताल और बूचड़खानों के स्वामी यह सुनिश्चित करेंगे कि उनकी ओर से प्रवाहित होने वाला दूषित जल - शुद्ध भूजल, सतही जल और वायु मण्डल को कभी दूषित नहीं करेगा। वह कोई रोग नहीं फेैलाएगा। वहां से निकलने वाला कचरा धरती की उपजाऊ गुणवत्ता को नष्ट नहीं करेगा।
धूल, जहरीली गैसें और धूंआ उगलने वाले मिल - कारखानों के स्वामी और वाहन मालिक सुनिश्चित करेंगे कि उनसे उत्सर्जित धूल, गैसें व धुंआ स्वच्छ एवं रोग मुक्त पर्यावरण को कोई हानि नहीं पहुंचाएगा क्योंकि जीवन की सुरक्षा सुख सुविधा से कहीं अधिक जरूरी है।
प्रौद्योगिकी इकाइयां विभिन्न प्रकार से प्रदूषण एवं रोगों से मुक्ति दिलाने वाली जीवनोपयोगी सामग्री, वस्तुओं और उत्पादों का उत्पादन, निर्माण और उनकी सतत वृद्धि करेंगी ताकि प्राणियों का जीवन सुरक्षित एवं रोग मुक्त रह सके।
उपरोक्त परंपरागत प्राचीन भारतीय संस्कृति हमारी जीवनशैली रही है। आइए! हम सब मिलकर इसे और अधिक समृद्ध प्रभावशाली एवं सफल बनाने का अपना दायित्व निभाने हेतु प्रयत्नशील सरकार तथा स्वयं सेवी संस्थानों को सहयोग दें और सफल बनाएं।
जून 2008 मातृवंदना
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1. पालीथीन का साम्राज्य
पर्यावरण चेतना – 6
अगर विश्व में कहीं प्राकृतिक संकट पैदा होता है तो मनुष्य द्वारा साहस के साथ उसका सामना किया जा सकता है परन्तु मनुष्य ही कोई भयानक संकट पैदा कर ले तो उसका सामना कौन और कैसे करे ? है ना समस्या गंभीर !
खुशनशीब है जम्मू क्षेत्र जो किसी प्राकृतिक आपदा से सुरक्षित है पर वह बड़ा बदनशीब है, स्थानीय लोगों के द्वारा वह स्वयं ही पैदा किए हुए संकट से संकट ग्रस्त है l भौतिकवाद की अंधी दौड़ में स्थानीय लोग पालीथीन लिफ़ाफों, प्लास्टिक बोतलों व नायलन और रबड़ की बनी जीवनोपयोगी वस्तुओं का तो धड़ल्ले से उपयोग कर रहे हैं पर अनुपयोगी हो जाने पर वह उनका उचित विसर्जन नहीं कर पा रहे हैं ताकि उन्हें तुरंत किसी अन्य उत्पाद में परिणत किया जा सके l
जम्मू क्षेत्र में पालीथिन लिफाफों का प्रचलन इस हद तक बढ़ गया है कि उन्हें अब हर घर की नाली में और आस - पास के छोटे - बड़े नालों के किनारों पर पड़े देखा जाने लगा है l लोगों को उनमें बाजार से किसी भी समय घरेलू सामान की खरीददारी करते हुए और उसे घर ले जाते हुए देखा जा सकता है l ऐसा करना उन्हें जाने क्यों अच्छा लगता है ! वे यह तो भली प्रकार जानते हैं कि उनके द्वारा उन्हें नाली में या सड़क पर फैंकने से कितने भयानक दुष्परिणाम निकलते हैं ?
वर्तमानकाल में जम्मु क्षेत्र के किसी मुहल्ले या कालोनी की कोई नाली, सड़क या नालों के किनारों पर फैले गंदगी युक्त पालीथीन लिफाफों, प्लास्टिक बोतलों और दुर्गन्ध युक्त कूड़ा-कचरा के अम्बार राह में चलते हुए और जाने - अनजाने उन लोगों के लिए संकट बने हुए हैं जो पास ही के मार्ग से निकलते हैं l उन्हें साँस तक लेना दूभर हो जाता है l
शुद्ध वायु के शुद्ध वातावरण में जीना व रहना हर कोई चाहता है पर वैसा वातावरण बनाये रखना भी हमारा अपना ही कार्य है l अगर हम यह कार्य स्वयं नहीं करेंगे तो और कौन करेगा ?
समस्त मानव जाति का मात्र एक सफाई कर्मचारी वर्ग पर पूर्ण आश्रित हो जाने से तो काम नहीं चलेगा l उसके कार्य में हम सबको मिलकर सहयोग करना होगा l क्षेत्र को हरा-भरा और प्रदूषण व रोग मुक्त बनाये रखने हेतु जरूरी है स्थानीय लोगों द्वारा विभिन्न मुहल्लों में संबंधित समितियों का गठन किया जाना जो गंदगी फ़ैलाने वालों पर कड़ी नजर रखेंगी l वह हर घर से निकलने वाले अनुपयोगी घरेलू सामान व कूड़ा-कचरा की उचित निकासी, पौध-रोपण और सफाई के लिए लोगों का सही मार्ग दर्शन करेंगी l
राज्य सरकार को चाहिए कि वह अपने पड़ोसी राज्य सरकारों की भांति जम्मू-कश्मीर राज्य में भी पालीथीन लिफाफों के उत्पाद पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दे, उसके स्थान पर किसी अन्य उत्पाद के निकालने हेतु प्रोत्साहन दे और अधिक से अधिक पौध-रोपण करवाए l वह अवहेलना करने वालों के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई करे ताकि राज्य में व्याप्त पालीथिन का साम्राज्य समाप्त हो सके l
इस प्रकार जम्मू-कश्मीर राज्य एक स्वच्छ और सुंदर राज्य बन सकता है l उसके आकर्षण से आकर्षित होकर दुनियां का कोई भी पर्यटक वर्ग ख़ुशी से उसकी ओर अधिक से अधिक की संख्या में ,आएगा और उसकी वादियों का मनचाहा आनंद भी ले सकेगा l
29 जून 2008 दैनिक कश्मीर टाइम्स
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श्रेणी:धरती
पॉलीथिन का साम्राज्य
अगर विश्व में कहीं प्राकृतिक संकट पैदा होता है तो मनुष्य द्वारा साहस के साथ उसका सामना किया जा सकता है परन्तु मनुष्य ही कोई भयानक संकट पैदा कर ले तो उसका सामना कौन और कैसे करे? है न समस्या गम्भीर।
खुशनसीब है जम्मू क्षेत्र जो किसी प्राकृतिक आपदा से सुरक्षित है पर वह बडा़ बदनसीब है। वह स्थानीय लोगों के द्वारा स्वयं ही पैदा किए हुए संकट से संकट ग्रस्त है। भौतिकवाद की अंधी दौड़ में स्थानीय लोग पाॅलीथीन लिफाफों, प्लास्टिक बोतलों वनायलॉन और रबड़ की बनी जीवनोपयोगी वस्तुओं का तो धड़ल्ले से उपयोग कर रहे हैं पर उन्हें अनुपयोगी हो जाने पर वह उनका उचित विसर्जन नहीं कर पा रहे हैं ताकि उन्हें तुरंत किसी अन्य उत्पाद में परिणत किया जा सके। जम्मू क्षेत्र में पाॅलीथीन लिफाफों का प्रचलन इस हद तक बढ़ चुका है कि उन्हें अब हर घर की नाली में और आस-पास के छोटे-बड़े नालों के किनारों पर पड़े देखा जाने लगा है।
लोगों को उनमें बाजार से किसी भी समय घरेलू सामान की खरीद करते हुए और घर ले जाते हुए देखा जा सकता है। ऐसा करना उन्हें जाने क्यों अच्छा लगता है, वे यह तो भली प्रकार जानते हैं कि उनके द्वारा उन्हें नाली में या सड़क पर फेंकने से कितने भयानक दुष्परिणाम निकलते हैं?
वर्तमानकाल में जम्मू क्षेत्र के किसी मुहल्ले या कालोनी की कोई नाली, सड़क या नालों के किनारे पर फेैले गन्दगी युक्त पाॅलीथीन लिफाफों, प्लास्टिक बोतलों और दुर्गन्ध युक्त कूड़ा-कचरा के अम्बार राह में चलते और जाने-अनजाने उन लोगों के लिए मुसीबत बने हुए हैं जो पास ही के रास्ते से निकलते हैं। उन्हें सांस तक लेना दूभर हो जाता है। शुद्ध वायु के शुद्ध वातावरण में जीना व रहना तो हर कोई चाहता है पर वैसा वातावरण बनाए रखना भी तो हमारा अपना ही कार्य है। अगर हम यह कार्य स्वयं नहीं करेगे तो और कौन करेगा। समस्त मानव जाति का मात्र एक सफाई वर्ग पर पूर्ण आश्रित हो जाने से तो काम नहीं चलेगा। उसके कार्य में हम सबको मिलकर सहयोग करना होगा। क्षेत्र का हरा- भरा और प्रदूषण व रोग मुक्त बनाए रखने हेतु जरूरी है स्थानीय लोगों द्वारा विभिन्न मुहल्लों में संबंधित समितियों का गठन किया जाना जो गन्दगी फैलाने वालों पर कड़ी नजर रखेंगी। वह हर घर से निकलने वाले अनुपयोगी घरेलू सामान व कूड़ा-कचरा की उचित निकासी पौध-रोपण और सफाई के लिए लोगों का सही मार्ग दर्शन करेंगी। राज्य सरकार को चाहिए कि वह अपने पड़ोसी राज्य सरकारों की भांति जम्मू कश्मीर राज्य में भी पाॅलीथीन लिफाफों पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दे और अधिक से अधिक पौधरोपण करवाए। वह अवहेलना करने वालों के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कारर्वाई करे ताकि राज्य में व्याप्त पाॅलीथीन का साम्राज्य समाप्त हो सके। इस प्रकार जम्मू कश्मीर स्वच्छ और सुन्दर राज्य बन सकता है। उसके आकर्षण से आकर्षित होकर दुनियां का कोई भी पर्यटक वर्ग खुशी से उसकी ओर ज्यादा से ज्यादा की संख्या में आएगा और उसकी वादियों का मनचाहा आनन्द भी ले सकेगा।29 जून 2008 कश्मीर टाइम्स