मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



2. भक्ति, श्रद्धा, प्रेम का पर्व श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

भगवान श्रीकृष्ण लगभग 5000 वर्ष ईश्वी पूर्व इस धरती पर अवतरित हुए थे। उनका जन्म द्वापर युग में हुआ था।…
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सशक्त न्याय व्यवस्था की आवश्यकता

दिनांक 29 जुलाई 2025 सत्य, न्याय, नैतिकता, सदाचार, देश, सत्सनातन धर्म, संस्कृति के विरुद्ध मन, कर्म और वचन से की…
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सनातन धर्म के सोलह संस्कार

दिनांक 20 जुलाई 2025 सनातन धर्म के सोलह संस्कारसनातन धर्म में मानव जीवन के सोलह संस्कारों का प्रावधान है जो…
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ब्राह्मण – ज्ञानवीर

उद्देश्य – विश्व कल्याण हेतु ज्ञान विज्ञान का सृजन, पोषण और संवर्धन करना l – ब्रह्मा जी का मुख ब्राह्मण…
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क्षत्रिय – शूरवीर

उद्देश्य –  ब्राह्मण, नारी, धर्म, राष्ट्र, गाये के प्राणों की रक्षा – सुरक्षा की सुनिश्चितता  बनाये रखना l   -…
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    4. बोलने की अपेक्षा

    प्रकाशित 8 फरवरी 2009 कश्मीर टाइम्स

    धर्म की जय हो l अधर्म का नाश हो l प्राणियों में सद्भावना हो l विश्व का कल्याण हो l गौमाता की जय हो l यह उपदेश देश के गाँव-गाँव व शहर-शहर के मन्दिरों में सुबह – शाम सुनाई देते हैं l यहाँ यह बात ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है कि हम वहां कौन सा उद्घोष कितने जोर से उच्च स्वर में उचारण करते हैं बल्कि वह यह है कि हम उसे आत्मसात भी करते हैं/आचरण में भी लाते हैं कि नहीं l 

    धर्म और अधर्म दोनों एक दूसरे के विपरीतार्थक शब्द हैं l जहाँ धर्म होता है वहां अधर्म किसी न किसी रूप में अपना अस्तित्व जमाने का प्रयास अवश्य करता है पर जहाँ अधर्म होता है वहां धर्म तभी साकार होता है जब वहां के लोग स्वयं जागृत होते हैं l लोगों की जाग्रति के बिना अधर्म पर धर्म की विजय हो पाना कठिन है l धर्म दूसरों को सुख-शांति प्रदान करता है, उनका दुःख-कष्ट हरता है जबकि अधर्म सबको दुःख-अशांति और पीड़ा ही पहुंचता है l

    सद्भावना सत्संग करने से आती है l सत्संग का अर्थ यह नहीं है कि भजन, कीर्तन, और प्रवचन करने के लिए बड़े-बड़े पंडाल लगा लिए जाएँ l लोगों की भारी भीड़ इकट्ठी कर ली जाये l स्पीकरों व डैक्कों से उच्च स्वर में सप्ताह या पन्द्रह दिनों तक खूब बोल लिया और फिर उसे भूल गए l सत्संग अर्थात सत्य का संग या उसका आचरण करना जो हमारे हर कार्य, बात और व्यवहार में दिखाई दिया जाना अनिवार्य है l जहाँ सत्संग होता है वहां सद्भावना अपने आप उत्पन्न हो जाती है l

    इस प्रकार जहाँ सद्भावना होती है वहां दूसरों की भलाई के कार्य होना आरम्भ हो जाते हैं l इसी विस्तृत कार्य-प्रणाली को परोपकार कहा गया है l जिस व्यक्ति में परोपकार की भावना होती है और वह परोपकार भी करता है, उससे उसका परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व प्रभावित अवश्य होता है l परोपकार से विश्व कल्याण होना निश्चित है l

    गौ माता की जय करने के लिए गाये के आहार हेतु चारा, पीने के लिए पानी के साथ-साथ रहने के लिए गौशाला और उसकी उचित देखभाल भी करना जरूरी है l उसे  कसाई घर और कसाई से बचाना धर्म है l जो व्यक्ति और समाज ऐसा करता है, उसे उद्घोषणा करने की कभी आवश्यकता नहीं पड़ती है बल्कि वह गौ-सेवा कार्य को अपने कार्य प्रणाली से प्रमाणित करके दिखाता है l

    वास्तव में धर्म की जय, अधर्म का नाश, प्राणियों में सद्भावना, विश्व का कल्याण और गौ माता की जय तभी होगी जब हम सब सकारात्मक एवं रचनात्मक कार्य करेंगे l यदि विश्व में मात्र बोलने से सब कार्य हो जाते तो यहाँ हर कोई बोलने वाला ही होता, कार्य करने वाला नहीं l संसार में कभी किसी को कोई कार्य करने की आवश्यकता न पड़ती l 

    प्रकाशित 8 फरवरी 2009 कश्मीर टाइम्स


  • 3. भूतपूर्व सैनिकों के बुलंद हौंसले
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    3. भूतपूर्व सैनिकों के बुलंद हौंसले

    1 फरवरी 2009 दैनिक कश्मीर टाइम्स

    अभी कुछ समय पूर्व इंगलिश व हिंदी समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार भूतपूर्व सैनिकों  की आगामी लोकसभा के लिए कांगड़ा क्षेत्र से चुनाव में उतरने की तैयारी से उनके हौंसले बुलंद दिखाई दे रहे हैं जो सैनिक सेवा निवृत्ति के पश्चात  भी कम नहीं हुए हैं बल्कि और अधिक बढ़े हैं। उनके द्वारा लिया गया यह निर्णय एक उचित कदम इसलिए है  कि युद्ध की समाप्ति के पश्चात  हमारा समाज उन सैनिकों की सेवाओं और कुर्बानियों को पूरी तरह भुल जाता है। वह उनकी विधवाओं की पीड़ा व उनके माता पिता के दुख में शामिल होकर उन्हें दिलासा देने तक खानापूर्ति तो करता है पर इससे आगे उनके जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं  की हर स्थान पर उपेक्षा होती है।
    सैनिक जब सेवा निवृत्त होकर निजघर पहुंचते हैं तब उनके पास जिंदगी गुजारने के लिए मात्रा उनकी पेंशन के अतिरिक्त कोई अन्य आय का स्रोत नहीं होता है जिससे कि वह अपने परिवार और रिश्ते -नाते के सुख-दुख में को समान रूप से भागीदार हो सके। वह उससे अपने बच्चों को उच्च शिक्षा नहीं दिला पाते हैं। उन्हें सैनिक स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध होते हुए भी वह उनका उपयोग नहीं कर पाते हैं क्योंकि वह गांव से बहुत दूर होती हैं। जान-माल की रक्षा करने वाले व सुरक्षा रखने वाले उनके कठोर हाथ असंगठित होने के कारण कुछ नहीं कर पाते हैं। भले ही उनका कठोर अनुशासन राष्ट्र  की उन्नति करने व उसकी एकता एवं अखंडता बनाए रखने में सहायक भी क्यों न हो। इसलिए उचित यही था के वह किसी राजनैतिक दल में शामिल हो जाते या वे अपना कोई अलग से संगठन बना लेते। उन्होंने अब संगठित होकर लोकसभा चुनाव लड़ने और अपनी अवाज को लोकसभा में पहुंचाने का निर्णय कर लिया है जो चहुं ओर स्वागत करने योग्य है और हिमाचल के पड़ोसी  राज्यों को प्रेरणा दायक भी है।
    सेवानिवृत्त सैनिकों  के बुलंद हौंसले  कह रहे हैं कि -
    सेना से सेवानिवृत्त हो गए तो क्या हुआ,
    जिंदगी गुजारना अभी बाकी है,
    देश सेवा करना अभी बाकी है।


    1 फरवरी 2009 दैनिक कष्मीर टाइम्स

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    2. जीवन नाटक

    25 जनवरी 2009 कश्मीर टाइम्स

    गूंज रही नभ में तान, क्षणिक जीवन नाटक सकल जहान,
    थोथा नहीं, अन्तरतम में वास करती, कुटिलाई का पवित्रता नाश,
    हम नहीं नायक, समय हमारा, पल-पल बीत रहा जीवन सारा,
    गूंज रही नभ में तान, क्षणिक जीवन नाटक सकल जहान,
    आज तक क्या कर लिया, आगे क्या कर लोगे?
    अब तक झगड़ लिया, आगे लड़कर क्या कर लोगे?
    स्पष्ट कर दो अरमान, क्या तुम्हारा कोई ध्येय है?
    या जीवन में पगपग पर पानी पराजय है?
    गूंज रही नभ में तान, क्षणिक जीवन नाटक सकल जहान,




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    1. न्याय

     18 जनवरी 2009 कश्मीर टाइम्स

    होगा फिर न्याय, बस न्याय होगा
    नहीं तो और कुछ न होगा,
    मांगनी नहीं स्वत्वों की भिक्षा,
    मिली है हृदय जन्य की शिक्षा,
    करना है मानवधर्म का सृजन,
    सुलझेगा पेचीदा सदियों का प्रश्न,
    होगी खुशहाली, बस न्याय होगा,
    नहीं तो और कुछ न होगा,
    खून शेर दौड़ता है निज शिराओं में,
    होते गीदड़ न बसते शहरों में,
    बपुरा चिरकाल फंसा विपत्ति,
    तड़पता कारागार पाँवर की तृप्ति,
    परहित त्राण, बस न्याय होगा,
    नहीं तो और कुछ न होगा,
    प्रचलन रहा, हमेशा जहां रिश्वत का,
    आरक्षण का और सिफारिश का,
    कंचन कांति योग्यता ने तोड़े दम,
    जो है गहरा गर्त, जानते है हम,
    प्रगति द्वंद नहीं, बस न्याय होगा,
    नहीं तो और कुछ न होगा,
    नहीं खेलेंगे, हम अब खून की होली,
    चलेगी मिलकर, हम सब जन की टोली,
    चाहे बध हो हमारा, न होगा प्रयाण,
    क्षीणहीन का करेंगे कल्याण,
    घातक आभाव न्याय, बस न्याय होगा,
    नहीं तो और कुछ न होगा,




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    2. विलुप्त होंगी राष्ट्रीय श्वेत धाराएँ

    11 जनवरी 2009 कश्मीर टाइम्स सामाजिक जन चेतना -14

    “अब आसान नहीं होगा पशुओं को आवारा छोड़ना l विभाग ने बनाई योजना l पंचायतों के निमायंदों को किया जा रहा जागरुक l” जी हाँ, यही है दैनिक पंजाब केसरी में दैनिक दिनांक 14 जून 2008 का प्रकाशित समाचार l स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारतीय इतिहास में वर्तमान हिमाचल प्रदेश की सरकार ने जनहित में लगाया एक और मील का पत्थर जो पड़ोसी राज्य सरकारों को अवश्य ही प्रेरणादायक सिद्ध होगा l

    समाचार के अनुसार – “पशुओं को आवारा छोड़ना अब प्रदेश के किसानों को भारी पड़ सकता है l” संबंधित विभाग द्वारा शुरू की गई मुहीम में जहाँ किसानों को अपने पशु आवारा छोड़ने पर जुर्माना भरना पड़ सकता है वहां दुबारा गलती करने पर उनके विरुद्ध विभाग द्वारा कड़ी कार्रवाई भी की जाएगी l विभाग ने विस्तृत योजना बना ली है l पशु का रिजिस्ट्रेशन – “उसके बाएं कान पर प्रान्त व जिला कोड तथा दायें कान पर ब्लाक, पंचायत व पशु मालिक कोड सब मशीन द्वारा अंकित किये जायेंगे l” इस प्रकार पशु की पूर्ण पहचान होगी और पशु मालिकों के द्वारा अपना पशु कहीं आवारा छोड़ना आसान न होगा l    

    प्रायः देखने में आया है कि पशु मालिक दुधारू पशुओं का दूध निकाल लेने के पश्चात् या जब वे दूध देना बंद कर देते हैं तो वे उन्हें घर से बाहर निकाल देते हैं l वे आवारा होकर गाँव या शहर की सड़कों व गलियों में भटकना आरंभ कर देते हैं जिन्हें वहां कूड़ा-कचरा के अंबारों पर या कूड़ादानों से गंदगी में सने हुए लिफाफे व सड़ी-गली साग-सब्जी के छिलके खाते हुए देखा जा सकता है l आहार की तलाश में कभी-कभी उन्हें चलती बस, ट्रक या रेल से टकराकर अपनी जान भी गंवा देनी पड़ती है l

    कुछ सिर फिरे लोगों ने तो पशुओं का जीना हराम कर दिया है l वे उन्हें आये दिन आवारा छोड़ देते हैं या अनजान लोगों को बेच देते हैं l पशु चोरों को समय मिले तो वे पशु चुराकर उन्हें कसाई घर में भी पहुंचा देते हैं l उनके लिए पशुओं का कोई महत्व नहीं होता है जिस कारण रोजाना बूचड़खानों में हजारों की संख्या में बड़ी क्रूरता पूर्ण पशुओं को मौत के घाट उतार दिया जाता है l इससे लोगों को चमड़े की बनी वस्तुएं मिलती हैं l  

    भारत देश में जहाँ श्रीकृष्ण जी के द्वारा गौ-प्रेम से गौ-वंश वर्धन हुआ था, देश में दूध की हर नदियाँ बही थीं, वहीँ आज क्रूर मानव अपनी क्रूरता वश गौ-वंश वध करके गौ धनाभाव कर रहा है l प्रतिदिन सुबह-शाम मंदिरों में “गौमाता की जय हो” कहने वाला समाज आज स्वयं ही कथनी और करनी में समानता रखने में असमर्थ है l

    सूरसा माँ-मुख की भांति बढ़ रही भारतीय जन संख्या और कल-कारखानों के बढ़ रहे साम्राज्य के आगे जहां कृषि प्रधान भारत की कृषि भूमि और जंगल सिकुड़ रहे हैं l वहां उसके गौ-वंश के भरण पोषण हेतु चरागाहों का भी क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है l इससे भारतीय परंपरागत गौ-वंश पालन व्यवस्था चरमरा गई है l

    भारत में चिरकाल से ही गौ-वंश पशुओं के मल-मूत्र का कृषि उत्पादन में पौष्टिक खाद के रूप में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, के स्थान पर अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए रासायनिक खादों का धड़ल्ले से प्रयोग किया जा रहा है l पौष्टिकता में भारी गिरावट आ रही है l किसान बैलों से ह्ल जोतना छोड़ चुके हैं अथवा भूल गए हैं l उसका स्थान ट्रैक्टरों और भारी मशीनों ने ले लिया है l इससे पशु-वंश नकारा हुआ है l तस्करी वश पशु-वंश में कमी आने के कारण पौष्टिक खाद प्रभावित हुई है l

    पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित वर्तमान भारतीय युवावर्ग पशु-प्रेम के अभाव में पशु-पालन व्यवसाय छोड़ता जा रहा है l वह गुणवत्ता के अभाव में भी लिफाफा बंद दूध खरीदना सर्वश्रेष्ठ  समझता है l यह बात बुरी ही नहीं है बल्कि हानिकारक, रोग और दोषपूर्ण भी है l इससे उसे भविष्य में सदैव जागरूक रहना होगा l

    राष्ट्रीय परंपरागत पशुपालन व्यवसाय युवावर्ग के लिए एक अच्छा रोजगार बन सकता है l इच्छुक, साहसी और पुरुषार्थी युवावर्ग को संगठित होकर एवं सहकारिता आन्दोलन के साथ जुड़कर पशुपालन के व्यवसाय को स्वरोजगार बनाना होगा l बाजार से लिफाफा बंद, महंगा, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक उपलब्ध दूध के स्थान पर वह स्थानीय गौशालाओं के माध्यम से ताजा शुद्ध और गुणवत्ता से भरपूर दूध उत्पादन करके एवं दुग्ध उत्पादों से स्थानीय लोगों की आवश्यकता सहज में पूर्ण कर सकता है l इससे वह अच्छा आर्थिक लाभ कमा सकता है l

    उपरोक्त वर्तमान हिमाचल सरकार का प्रान्त तथा राष्ट्रहित में लिया गया एक सराहनीय और प्रशंसनीय निर्णय है जो युवावर्ग द्वारा राष्ट्र का नवनिर्माण करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है l इसके लिए युवावर्ग को कल-कारखानों व मशीनों पर पूर्णरूप से आश्रित न रहकर अधिक से अधिक स्वयं शरीर-श्रम प्रारंभ करना होगा l

    भारतवर्ष में चिरकाल से श्वेत धाराएँ गौवंश से प्राप्त हुई हैं, प्राप्त हो रही हैं और आगे भी प्राप्त होंगी l स्मरण रहे अगर भविष्य में हमने स्वस्थ रहना है तो हमें गुण संपन्न दूध की आवश्यकता होगी l तब दूध पाने के लिए हमें मशीनों की नहीं, दुधारू गौ-वंश की आवश्यकता होगी l धरती पर गौ-वंश ही नहीं रहेंगे तो हमें दूध कहाँ से प्राप्त होगा ? जीवन की रक्षा गौ-वंश/गौ-धन की सुरक्षा पर निहित है l कल-कारखाने और मशीनें तो हमारे लिए भोग-विलास संबंधी वस्तुओं का उत्पादन करने वाले साधन मात्र है l इनका हमें सदैव विवेक पूर्ण और सीमित ही उपयोग करना होगा l इसी में हम सबकी और भारत की भलाई है l 

    प्रकाशित 11 जनवरी 2009 कश्मीर टाइम्स