मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



2. भक्ति, श्रद्धा, प्रेम का पर्व श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

भगवान श्रीकृष्ण लगभग 5000 वर्ष ईश्वी पूर्व इस धरती पर अवतरित हुए थे। उनका जन्म द्वापर युग में हुआ था।…
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सशक्त न्याय व्यवस्था की आवश्यकता

दिनांक 29 जुलाई 2025 सत्य, न्याय, नैतिकता, सदाचार, देश, सत्सनातन धर्म, संस्कृति के विरुद्ध मन, कर्म और वचन से की…
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सनातन धर्म के सोलह संस्कार

दिनांक 20 जुलाई 2025 सनातन धर्म के सोलह संस्कारसनातन धर्म में मानव जीवन के सोलह संस्कारों का प्रावधान है जो…
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ब्राह्मण – ज्ञानवीर

उद्देश्य – विश्व कल्याण हेतु ज्ञान विज्ञान का सृजन, पोषण और संवर्धन करना l – ब्रह्मा जी का मुख ब्राह्मण…
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क्षत्रिय – शूरवीर

उद्देश्य –  ब्राह्मण, नारी, धर्म, राष्ट्र, गाये के प्राणों की रक्षा – सुरक्षा की सुनिश्चितता  बनाये रखना l   -…
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    1. पन्द्रह अगस्त

    अगस्त 2009 मातृवंदना

    आज दिन पन्द्रह अगस्त का आया है
    जीने का अधिकार सबने पाया है
    रिश्वत किसी से नहीं लेनी थी इसने
    घूस किसी को नहीं देनी थी उसने
    तूने कमिशन खाने का अधिकार किससे पाया है
    आज दिन पन्द्रह अगस्त का आया है
    यहांवहां गबनों का दौर चल रहा है
    आए दिन घेटालों का पिटारा खुल रहा है
    पलपल माल चोरी का जाता है मोरी में
    यहां मानसिक गुलामी को किसने बुलाया है
    आज दिन पन्द्रह अगस्त का आया है
    तू इतनी जल्दी भूल गया कैसे
    आजादी इसी दिन हमें मिली थी
    था हर जिगर का टुकड़ा विछुड़ गया कैसे
    आहत हुआ नारीवक्ष घाव नहीं भर पाया है
    आज दिन पन्द्रह अगस्त का आया है
    अब शोषण हम यहां किसी का नहीं होने देंगे
    अधिकार गरीब दुखिया अनाथ का नहीं खोने देंगे
    दलितों को उठाकर हमने गले लगाना है
    तूने मनमानी करने का अधिकार किससे पाया है
    आज दिन पन्द्रह अगस्त का आया है




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    14. क्या तुम ———-?

    कश्मीर टाइम्स 23 अगस्त 2009 

    जब निजहित तुम्हारा होगा देशहित से ऊँचा,
    और निज सुख तुम्हें दिखने लगेगा महान,
    तब क्यों कोई देशहित की बात करेगा?
    क्यों देशहित में कोई करेगा काम?
    जब देश नहीं रहेगा समृद्धि-सुरक्षा का अधिकारी,
    तब तुम क्या कर लोगे? निजहित में,
    जगह-जगह बनें हो नन्द भाई, भ्रष्टाचारी,
    क्यों धंसे हो? तुम भोग विलासी दलदल में,
    क्या जागेगा फिर कोई चाणक्य प्यारा?
    गाँठ चोटी खोलकर भरेगा हुंकार,
    क्या ढूंढेगा वह कोई चन्द्रगुप्त न्यारा?
    और नेकदिल जननायक करेगा तैयार,
    जब वह बजाएगा ईंट से ईंट तुम्हारी,
    तब तुम क्या कर लोगे? निज सुख में,
    जगह-जगह बनें हो नन्द भाई, भ्रष्टाचारी,
    क्यों धंसे हो? तुम भोग विलासी दलदल में,





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    13. मुफ्त प्रदूषण

    2 अगस्त 2009 कश्मीर टाइम्स 

    कंकरीट, पत्थरों के इस शहर में,
    मानव ही प्रदूषण फैलाता है,
    जगह-जगह ढेर लगाता है गंदगी के,
    पास से नहीं निकला जाता है,
    कंकरीट, पत्थरों के इस शहर में
    पॉलिथीन लिफाफे, प्लास्टिक सामान बनाती हैं फैक्ट्रियां,
    बांधकर गांठे शहर-शहर पहुंचाती हैं फैक्ट्रियां,
    शहरी प्रदुषण फैले तो फैले, उन्हें क्या?
    कंकरीट, पत्थरों के इस शहर में
    अच्छा होता, अगर इनका प्रचलन न होता,
    पॉलिथीन, प्लास्टिक सामान का कहीं निशान न होता,
    हर कोई स्वस्थ होता, अगर मुफ्त प्रदूषण न होता,
    कंकरीट, पत्थरों के इस शहर में




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    7. पालीथीन प्रतिबंधित हुआ, परन्तु —

    12 जुलाई 2009 कश्मीर टाइम्स पर्यावरण चेतना 

    हिमाचल सरकार पालीथीन पर प्रतिबंध लगा चुकी है l जम्मू कश्मीर सरकार ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया है l इन प्रांतीय सरकारों का यह कार्य प्रयास चहुँ ओर प्रशंसनीय रहा है l अब इन प्रान्तों के शहर व गाँव की गलियों व नालियों पालीथीन लिफ़ाफ़े तो कम अवश्य हुए हैं पर वह अभी समाप्त नहीं हुए हैं l उन पर मात्र प्रतिबंध लगा है l सरकार द्वारा लगाया गया यह प्रतिबन्ध, पूर्ण प्रतिबन्ध सार्थक तब होगा जब पालीथीन परिवार के अन्य हानिकारक उत्पादों का जन साधारण द्वारा विरोध किया जायेगा l पालीथीन का उत्पादन एवम प्रयोग होना बंद हो जायेगा l  

    देखने में आ रहा है कि अनाज, दालें, तिलहन, दूध, दही, पनीर, मक्खन, घी, सब्जी, टाफी, तथा श्रृंगार का सामान मोमी पारदर्शी लिफाफों, प्लास्टिक की बोतलों में सिले सिलाये वस्त्र प्रिंटिंग मोमी थैलों और डिब्बों में पैक करके बाजार में ग्राहकों को बेचे जाते हैं जो पर्यावरण हित में नहीं है l    

      गंदे पालीथीन, मोमी पारदर्शी लिफ़ाफों को खाकर पशु मर जाते हैं l नालियां गंदगी से अवरुद्ध हो जाती हैं l स्वाइन फ्लू जैसे भयानक जानलेवा घातक रोग पैदा होते हैं l गंदा पानी रिसकर पेयजल स्रोतों की उपयोगिता नष्ट करता है l पालीथीन, मोमी लिफ़ाफों से पेयजल स्रोत अवरुद्ध हो जाते हैं l वे अपना या तो जल प्रवाह की दिशा बदल लेते हैं, या नष्ट हो जाते हैं l

    पालीथीन, मोमी लिफ़ाफे लम्बे समय तक नष्ट नहीं होते हैं l उनसे खेतों की उपजाऊ शक्ति नष्ट हो जाती है l खेत बंजर हो जाते हैं l बरसात के दिनों में जगह-जगह पर गंदे पालीथीन, मोमी पारदर्शी लिफ़ाफों से गंदगी फ़ैल जाने से सफाई कर पाना अति कठिन हो जाता है l इसका यह अर्थ हुआ कि हम सफाई पससंड नहीं करते हैं l हम दूसरों का सफाई का कार्यभार कम करने की अपेक्षा उसे और अधिक बढ़ा देते हैं l

    बात स्पष्ट है कि पालीथीन, मोमी लिफ़ाफे, प्लास्टिक की बोतलें व पैकिंग का सामान बनाने की वर्तमान वैज्ञानिक तकनीक पर्यावरण विरुद्ध है l वह पर्यावरण मित्र न होकर, शत्रु बन चुकी है l वैज्ञानिकों के द्वारा अब नई एक ऐसी तकनीक विकसित करनी होगी जो पर्यावरण की अविलम्ब निर्विघ्न सुरक्षा कर सके जिससे पर्यावरण विरोधी उत्पादों की वृद्धि न हो बल्कि पर्यावरण स्वच्छ एवं संतुलित बन सके l 

    पर्यावरण में बढ़ता हुआ तापमान और निरंतर पिघलते हुए ग्लेशियर इस बात का प्रमाण हैं कि हमारा भविष्य सुरक्षित नहीं है l हमें भविष्य में कल-कल करती नदिया, झर-झर करते झरने, मीठे-मीठे  जल के चश्मे और मनमोहक झीलें कहीं दिखाई नहीं देंगी l शुद्ध पेयजल स्रोत सुरक्षित न रहने के कारण हम रोग मुक्त एवं सुरक्षित नहीं रहेंगे, ऐसा जानते हुए भी हम पर्यावरण विरुद्ध कार्य कर रहे हैं l

    सावधान ! हमें पर्यावरण विरुद्ध किये जाने वाले ऐसे सभी कार्य तत्काल बंद कर देने होंगे और एक ऐसी तकनीक विकसित करनी होगी जिससे मानव जाति में पर्यावरण प्रेम जागृत हो l वह निजहित की चार दीवारी से बाहर निकलकर जनहित एवं समाज कल्याण के कार्य करे l उससे किसी जानमाल की हानि न हो l हर तरफ हर कोई सुख शांति से जी सके l 

    सरकार द्वारा पर्यावरण सुरक्षा बनाये रखने हेतु ऐसा विधेयक पारित किया जाना चाहिए जिससे उत्पादकों को विशेष निर्देश दिया गया हो कि वे अपने यहाँ उत्पादित उपयोगी पालीथीन, मोमी लिफ़ाफे, प्लास्टिक की बोतलें व पैकिंग के सामान पर वैधानिक चेतावनी लिखने के साथ-साथ उन्हें अनुपयोगी हो जाने पर, जल्द नष्ट करने या रिसाईकलिंग करने की विधि भी सुनिश्चित करें जिससे पर्यावरण असंतुलन और प्रदूषण रोकने में सरकार को जन साधारण का सहयोग मिल सके l

    अतः पालीथीन तो अभी प्रतिबंधित हुआ है l उस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना शेष है l  आइये ! हम सब वैज्ञानिक, उत्पादक, भंडार पाल, व्यापारी, दुकानदार, ग्राहक और गृहणिया सरकार द्वारा पालीथीन विरुद्ध लगाये गए प्रतिबंध को पूर्ण प्रतिबंध में परिणत करने हेतु रचनात्मक एवं सकारात्मक कार्य करें और उन सब वस्तुओं को सदा के भूल जायें जिनसे पर्यावरण असंतुलन और प्रदूषण बढ़ता और फैलता है l इन्हें भूल जाने में ही हमारी सबकी समझदारी और भलाई है l 

    प्रकाशित 12 जुलाई 2009 कश्मीर टाइम्स

  • 6. भारतीय शिक्षा-प्रणाली
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    6. भारतीय शिक्षा-प्रणाली

    28 जून 2009 कश्मीर टाइम्स

    प्रिय होने के नाते आदि काल से ही भारतवर्ष  महान पुरुषों  का देश  रहा है। उनमें श्री राम, श्री कृष्ण , गुरु नानक देव, आदि गुरु शंकराचार्य, स्वामी विवेकानन्द जी का नाम सर्वोपरि है।
    इन महान पुरुषों के जीवन चरित्रों का अध्ययन, चिन्तन-मनन करने से हमें अनेकों ऐसे दीप्त ज्ञान-स्तंभ दिखाई देते हैं जिनके प्रकाश  में समग्र मानव जाति का कल्याण होना निश्चित  है।
    इस समय आवश्यकता  इस बात की है कि पहले हम स्वयं उन दिव्य ज्ञान-स्तंभों की भली भांति पहचान कर लें और फिर उनके बारे में दूसरों को भी बताएं। अतः स्थानीय गुरु के सानिध्य में, गुरु व शिष्य  के मध्य मानवीय, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, शैक्षणिक, धार्मिक, साहित्यिक, ज्ञान-विज्ञान और कला-सांस्कृतिक विषयों  के बारे में कुछ सीखने-सिखाने की प्रकिया ही का दूसरा नाम शिक्षा है। इसके बारे में स्वामी जी रामतीर्थ का कथन है - ‘‘वास्तविक शिक्षा का आदर्श  यह है कि हम अपने भीतर से कितनी विद्या बाहर निकाल चुके हैं, यह नहीं कि बाहर से कितनी अन्दर डाल चुके हैं। सच्चा ज्ञान वही है जो सृष्टि  के कल्याण के लिए उपयोगी हो।
    आज के भारत को किस प्रकार की शिक्षा-प्रणाली की आवश्यकता  है? आइए! हम इस गहन-गम्भीर प्रश्न  का उत्तर पाने के लिए भारतीय महान पुरुषों  के द्वारा स्थापित किए गए उन दिव्य ज्ञान-स्तम्भों का अवलोकन करें जो वर्तमान राजनैतिक इच्छा-शक्ति न होने पर भी हमारा पग-पग पर मार्ग-दर्शन  कर रहे हैं।
    आध्यात्मवादी शिक्षा
    1 भेद-भाव रहित सबके लिए एक समान आध्यात्मिक शिक्षा ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, छूत-अछूत, छोटा-बड़ा, गोरा या काला की दीवारों और लिंग-भेद आदि से स्वयं सदैव अनभिज्ञ रहती है। आध्यात्मिक शिक्षा से समग्र मानव जाति का एक समान कल्याण होता है। इससे मानवात्माओं का परमात्मा से मिलन होता है। छात्र-छात्राओं के द्वारा गुरुजनों के सानिध्य में रह कर योग, ध्यान, प्राणायाम, संबंधी पुरुषार्थ  करने पर आत्म शांति  का मार्ग प्रप्रशस्त होता है।
    2 यथार्थवादी शिक्षा सत्य-असत्य में ज्ञान-अज्ञान का भाव रखती है। गुण-अवगुण में लाभ-हानि का अन्तर समझाती है।?
    भौतिक वादी शिक्षा
    1 स्थानीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रति उत्तरदायी शिक्षा मानव जाति, मानव के खान-पान, रहन-सहन, आचार-व्यवहार और परिवार के साथ-साथ स्थानीय भाषा , पहनावा, रीति-रिवाज तथा कला-संस्कृति की स्पष्ट  झलक दर्शाने  वाली है।
    2 मानवीय मूल्यों पर आधारित शिक्षा सदगुणों को बढ़ावा देती है। छोटों में बड़ों के प्रति श्रद्धा, प्रेम, भक्ति और विश्वास  जगाती है। बड़ों में छोटों के प्रति सुस्नेह का वर्धन करती है। समर्थवानों में दुखियों के प्रति करुणा, दया, त्याग और बलिदान की पवित्र भावना उपजाती है।
    3 कलात्मक एवं व्यावसायिक शिक्षा से शिक्षार्थी कला अथवा व्यवसाय का शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त करता है जिससे वह अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण करता है। इसी से वह समाज की यथा संभव तथा यथा शक्ति सेवा करता है।
    4 नैतिक एवं व्यावहारिक शिक्षा से छात्र-छात्राओं को स्वयं जीने और समाज में रहने की कलाओं का ज्ञान होता है। वे सीखते हैं कि समाज में उन्हें स्वयं कैसे रहना है? उन्हें दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करना है?
    5 महिला संबंधी जीवनोपयोगी शिक्षा से छात्राओं को अपने जीवन की उपयोगिता का ज्ञान होता है। इससे उन्हें अपने कर्तव्यों और अधिकारों की पहचान होती है। इससे वे आत्म-रक्षा करना सीखती हैं। शादी के पश्चात  ज्ञान के आधार पर ही वे अपने परिवार में, अपने बच्चों का भली-भांति पालन-पोषण  करती हैं और समाज के प्रति सजग भी रहती हैं।
    6 सहशिक्षा या छात्र-छात्राओं की संयुक्त शिक्षा से छात्र-छात्राओं को आपस में एक दूसरे से वार्तालाप करने और एक दूसरे को समझने का सुअवसर मिलता है। इससे उनका मानसिक, कार्मिक तथा वाचिक विकास तो होता है, साथ ही साथ उनमें विद्यमान संकोच की भावना भी नष्ट  हो जाती है। छात्र मित्र की भांति छात्रा मित्र भी लक्ष्य प्राप्ति में अधिक विश्वास  पात्र सिद्ध हो सकती है अगर वे दोनों अपने-अपने लक्ष्यों के प्रति जागरुक हों। वे दिव्य-पथ से भटक न पाएं इसलिए उनमें अपने-अपने लक्ष्य-वेधन के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति, शुद्ध भावना और कड़ी मेहनत के साथ-साथ ब्रहमचर्य जीवन का महत्व समझना तथा व्यावहारिक जीवन अपनाना अति आवश्यक  है। इस प्रकार वे विशेष  जीवनोपयोगी उर्जा संचित करते हुए पूर्ण स्नातक बनते हैं । इसी बल पर वे अपने होने वाले भावी गृहस्थ जीवन को सुखी बनाते हैं।
    7 मितव्ययी उच्चशिक्षा कभी किसी को कहीं मिलती नहीं है बल्कि उसकी व्यवस्था करनी पड़ती है। इसके लिए सजग अभिभावकों, गुरुजनों, राजनीतिज्ञों और प्रशासकों  को मिल कर एक मंच बनाना होता है और उसके लिए उन्हें समर्पित भाव से कार्य करना पड़ता है ताकि देश  का कोई गरीब से गरीब होनहार प्रतिभाशाली अपने जीवन लक्ष्य की प्राप्ति करने से कभी वंचित न रह सके।
    8 स्वदेशी  शिक्षा किसी स्वदेशी  या विदेशी  प्रशासक के द्वारा स्वदेशी शिक्षार्थी पर थोपी या लादी जाने वाली वस्तु नहीं है बल्कि स्वदेशी  शिक्षक की अन्तरात्मा द्वारा उद्घोशित तथा आत्म स्वीकृत प्रतिभा का विषय  है जिसे एक अनुभवी प्रतिभावान स्वदेशी  शिक्षक ही उचित समय पर नवोदयी प्रतिभाशाली  शिक्षार्थी को अपना क्षणिक मात्र सहारा दे सकता है। वह प्रतिभाशील उसका सहारा पा कर स्वयं प्रकाशित हो जाता है।
    9 सशक्त  एवं समर्थ शिक्षा शिक्षार्थी जीवन को समर्थ बनाती है। इससे राष्ट्र सशक्त  एवं समर्थवान बनता है।
    10 प्रदूषण  मुक्त शैक्षिक वातावरण से मन, कर्म, वाणी के आचार-व्यवहार में शुद्धता आती है। व्यक्तित्व में निखार आता है और इससे प्रकृति एवं पर्यावरण को भी चार चांद लग जाते हैं।
    11 आदर्श शिक्षा-प्रणाली की अपनी पहचान होती है। आदर्श शिक्षा-प्रणाली संसार में जन कल्याणकारी, रचनात्मक एवं व्यावहारिक ज्ञान का प्रकाश  फैलाती है। इससे मानसिक, कार्मिक, तथा वाचिक अज्ञान नष्ट  होता है।
    12 विकासशील राष्ट्रीय  प्रमाणिक पाठयक्रम पर आधारित शिक्षा से युवावर्ग की शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक तथा आत्मिक शक्तियों का विकास होता है। इसी से राष्ट्र  की अपनी पहचान और उसकी शक्ति का संवर्धन होता है। युवा वर्ग राष्ट्र  के प्रति सेवा एवं भक्ति भाव वाला होता है।
    13 राजनैतिक हस्तक्षेप मुक्त शैक्षिक प्रशासनिक और प्रबंधन से शिक्षा-तन्त्र ठोस, सुरक्षित, गतिशील रहता है। शैक्षिक प्रशासन और प्रबंधन से सतर्कता, तत्परता, पारदर्शिता और कार्यकुशलता का होना अति आवश्यक  है। इस आवश्यकता की पूर्ति सर्वदा राजनैतिक हस्तक्षेप मुक्त वरिष्ट  शिक्षाविदों के संरक्षण में मात्र स्वशासित राष्ट्रीय शैक्षनिक अनुसन्धान एवं[प्रशिक्षण  संस्थान ही कर सकती है।
    14 योग्य शिक्षक योग्य शिक्षार्थी का निर्माता होता है इसलिए शिक्षक का योग्य होना अनिवार्य है।
    15 योग्य शिक्षार्थी ही राष्ट्र  का योग्य नागरिक बनता है अतः शिक्षार्थी का योग्य होना अति आवश्यक  है।
    इससे स्पष्ट  हो जाता है कि भारत की आध्यात्मिक एवं भौतिकवादी संयुक्त शिक्षा-प्रणाली ही भारत का अपना मूल दर्पण है। अगर किसी जिज्ञासु को भारत-दर्शन करना है तो उसे मार्ग-दर्शन पाने हेतु पहले गुरुजनों के द्वारा संरक्षित भारत की गुरुकुल प्रधान भारतीय शिक्षा-प्रणाली का एक बार अवलोकनअवश्य  कर लेना चाहिए।


    28 जून 2009 कश्मीर टाइम्स