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1. आइये ! राष्ट्रभाव की जोत जगाएं
आलेख – मातृवंदना मार्च अप्रैल 2019
हम भारतवासी भारत के नागरिक हैं तो हमारा यह भी दायित्व बन जाता है कि हम देशहित में ही कार्य करें l हम जो भी कार्य कर रहे हैं, देश हित में कर रहे हैं l इस सोच के साथ हर कार्य करने से देश का विकास होना निश्चित है l हम अपने घर को अच्छा बना सकते हैं तो अपने देश भारत को क्यों नहीं ? अगर देश और समाज में कहीं अशांति हो तो हम शांति से कैसे रह सकते हैं ? भारतीय होने का दम भरने वाले ही किसी कारगर रणनीति के अंतर्गत भारत विरोधी शक्तियों को अलग-थलग कर सकते हैं l
राष्ट्रीय भावना हर व्यक्ति के हृदय में जन्म से ही विद्यमान होती है l उसे आवश्यकता होती है तो मात्र सही मार्ग दर्शन की l ताकि उसे किसी ढंग से सही दिशा का ज्ञान हो सके l सही दिशा-बोध होने पर ही वह व्यक्ति अपने जीवन में अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक हो पता है l ऐसे में एक सजग नागरिक का हृदय कह सकता है l
हमारा उन माताओं को शत-शत नमन है जो राष्ट्रहित सोचती हैं और अपनी संतानों को राष्ट्रहित के कार्य करने के योग्य बनती हैं l गुरुओं को हमारा कोटि-कोटि नमन जो विद्यार्थियों में राष्ट्रीय भाव जागृत करते हैं और उन्हें जीवन की हर चुनौति का सामना करने में सक्षम बनाते हैं l उन नेताओं को हमारे शत-शत प्रणाम जो क्षेत्र, राज्य और राष्ट्र को अपना समझते हैं और और जनता के साथ बिना भेद-भाव, एक समान व्यवहार करते हैं l हम उनका हार्दिक अभिनन्दन करते हैं जो मातृभूमि की रक्षा हेतु अपना शीश न्योछावर करते हैं l किसान देश का अन्नदाता है, उसको शत-शत नमन l विविध क्षेत्रों में कार्यरत एवं कर्तव्यनिष्ठ, कर्मठ देशवासियों को नमन जो राष्ट्र के विकास में सतत क्रियाशील हैं तथा ज्ञात-अज्ञात सभी शहीदों और सीमा की रक्षा में तत्पर शत्रुओं के दांत खट्टे करने में सक्षम वीर सैनिकों को शत-शत नमन l
देश के प्रति दुर्भावना :-
दुर्भाग्य से देश भर में कुछ धर्म और जातियों के ठेकेदारों के द्वारा देश को धर्म और जातियों में विभक्त करने का षड्यंत्र जारी है l वे देश को बाँटने के नित नये-नये हथकंडे व बहाने ढूंढ रहे हैं l उन्हें धर्म और जातियों की आढ़ में उनका उद्देश्य लोगों को एक दुसरे के विरुद्ध भडकाना है, देश को खंडित करना है l वे भूल गए हैं कि हमने जो आजादी प्राप्त की है उसकी हमें कितनी कीमत चुकानी पड़ी है ? कोई व्यक्ति जिस थाली में खा रहा हो, अगर वह उसी थाली में छेड़ करना शुरू कर दे तो उसे देश का शत्रु नहीं तो और क्या कहें ? जिनके मुंह से कभी “जयहिंद”, “वन्दे मातरम्”, “भारत माता की जय”नहीं निकलता – वे देश के हितैषी कैसे हो सकते हैं ?
शत्रु छोटा हो या बड़ा, भीतर हो या बाहर उसे कभी कम नहीं आंका जा सकता l तुम हमारे संग “भारत माता की जय“, “जय भारत”, “जयहिंद”, “वन्दे मातरम्” बोलकर दिखाओ, हम मान जायेंगे कि तुम भी भारतीय हो l देश ने आजादी वीर/वीरांगनाओं का खून देकर पाई है l किसी के द्वारा देश को धर्म या जातियों में बांटना अब हमें स्वीकार नहीं है l
आजादी मिलने के पश्चात् देश भर में जहाँ राष्ट्रीय भावना में वृद्धि होनी चाहिए थी, वहां उसमें भारी गिरावट देखी जा रही है l स्थिति गंभीर ही नहीं, अति चिंतनीय है l अब तो देश के समझदार एवं सजग नागरिकों के मन में अनेकों प्रश्न पैदा होने लगे हैं जिनका उन्हें किसी से सन्तोष जनक उत्तर नहीं मिल रहा l देशहित की भावना देशभक्तों में नहीं होगी तो क्या गद्दारों में होगी ? व्यक्ति परिवार के बिना, परिवार समाज के बिना और समाज सुव्यवस्था के बिना सुखी नहीं रह सकते l
तिनका-तिनका जोड़ने से घोंसला बनता है तो राष्ट्रहित में देशवासियों द्वारा दिया गया योगदान राष्ट्र निर्माण में सहायक होगा l शिक्षित एवं सभ्य अभिभावक बच्चों को संस्कारवान बना सकते हैं तो भावी नागरिकों को “जिम्मेदार नागरिक” देश की एक सशक्त शिक्षा–प्रणाली क्यों नहीं ? भवन का निर्माण ईंटों के बिना, राष्ट्र का विकास जन सहयोग के बिना संभव किस हो सकता है ? धर्म व जाति के नाम पर समाज को क्षति पहुँचाने वाले, क्या कभी रष्ट्र के हितैषी बन सकते हैं ? देश की सीमाएं सजग सेना के बिना और समाज आत्मरक्षा किये बिना सुरक्षित कैसे रह सकता है ?
आवश्यकता है पुनः विचार करने की :-
हर युग में राम आते हैं, रावण होते हैं l वही लोग अपने जीवन में एक नया इतिहास रच जाते हैं जो इतिहास रचने की क्षमता रखते हैं l सक्षम बनो, अक्षम नहीं l समाज में शांति बनाये रखना भी धर्म का ही कार्य है, उसकी रक्षा हेतु हम सबको हरपल तैयार रहना चाहिए l वीर पुरुष शेर की तरह जिया करते हैं l वे शहीद हो जाते हैं या फिर एक नया इतिहास रच देते हैं l जुड़ा हुआ है जो निज काम से, उम्मीद है देश को उसी से l हमेशा सजग रहो और स्वयं सुरक्षित रहो l सक्षम लोग ही अक्षमों को सक्षम बना सकते हैं l समाज की आपसी एकता ही उसके राष्ट्र की अखंडता होती है l राष्ट्र है तो हम हैं, राष्ट्र नहीं तो हम नहीं, तुम भी नहीं l
आइये ! राष्ट्रीय भावना की अखंड जोत जगायें, असामाजिक तत्वों को दूर भगाएं l
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1. साधक आत्मोवाच
मातृवन्दना दिसम्बर 2018
रख सके तो याद रख
है तेरा पांच तत्व का शरीर – रथ
जहाँ ले जाना चाहे इसको
हांके ले जा, हो के मस्त
हैं नामी बलवान बहुत
इसके दस इन्द्रिय घोड़े
जब भी बे-लगाम हो जाये कोई
दिशा छोड़ विषय रसास्वादन हेतु दौड़े
शत्रु हैं भयानक अहं, मोह,
लोभ, क्रोध और काम
शुद्ध यत्न से जय हो जाएँ
मन की जब उचित बने लगाम
रचना चक्रव्यूह संसार बेधना
नहीं यहाँ दुष्कर तेरे लिए है
न्याय प्रिय, दूरदर्शी, कुशाग्र बुद्धि, योगी
जब सन्मति सारथि तू संग लिए है
यात्रा कर रहा प्रकाशित जो तेरे शरीर में
मात्र एक स्वामी है, तेरा ही आत्मा
कठिन नहीं है तुझे मंजिल प्राप्त करना
जब हर डगर हो रहा सहायी परमात्मा
शरीर तो तेरा है अमानत प्रभु का
ठीक है समर्पित कर दे उसे आज ही
कारण है नहीं इसमें किसी दुःख का
प्राण आज नहीं तो जायेंगे छोड़ शरीर रथ – कल भी
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2. भारत का भविष्य
मातृवंदना अक्तूबर 2018
आश्चर्य है कि सनातन धर्म अति प्राचीन होने पर भी संपूर्ण संसार में आज तक हिन्दुओं का अपना कहीं एक भी हिन्दू राष्ट्र नहीं है, परन्तु धर्म से प्रेरित मुट्ठीभर लुटेरे, आतंकवादियों ने मात्र डेढ़ दो हजार वर्षों में ही धर्म के नाम पर छप्पन मुस्लिम देश और अस्सी ईसाई देश ही नहीं बना लिए बल्कि वे आज भी विश्व में लोगों को भ्रमित करके और उनमें तरह-तरह के आतंक फैलाकर नए देश बनाने के लिए सक्रिय एवंम कृत संकल्प हैं l
भारतवर्ष में दुश्मनों के चहेते एवंम स्वार्थी जयचंदों का इतिहास उतना ही पुराना है जितना उन धर्मांध आतंकवादियों का l देशभर में उनकी कहीं कोई कमी नहीं है l वे खाते हैं भारत का और गुण गाते हैं विदेश का l समय असमय भारत के साथ उन्होंने निजहित में छल ही किया है l देश को भांति-भांति की क्षति पहुंचाई है l उन्होंने दुश्मनों के समर्थकों को अपने यहाँ शरण दी है, स्वदेशियों की उपेक्षा करके विदेशियों को हर संभव सुख सुविधा प्रदान की है, परिणाम स्वरूप भारत बार-बार खंडित हुआ l इतना सब कुछ होने के पश्चात् भी आज हम उन्हें अपना मान रहे हैं, उन पर विश्वास कर रहे हैं l वास्तव में वे विश्वास करने योग्य हैं ही नहीं l
वर्तमान भारत एक धर्म निरपेक्ष लोकतान्त्रिक देश है l पर देश में दुश्मनों के चहेते, मैकाले की सोच रखने वालों के कारण हर हिन्दू व्यथित है l इस समय भारत में सौ करोड़ हिन्दू हैं l भारतीय मुसलमान एवंम इसाई लोग जिनके पूर्वज कभी हिन्दू रहे हैं, पूर्व काल के आतंकियों के द्वारा उनका जबरन धर्म परिवर्तन किया गया था l वे सब भारतीय थे l उनके वंशज आज भी भारतीय हैं l उनमें मात्र मुट्ठीभर असामाजिक तत्व जो मुस्लिम और ईसाईयों को अपने-अपने गिरोहों में भर्ती करके देश विरुद्ध भांति-भांति के षड्यंत्र कर रहे हैं, वे अपने स्वार्थपूर्ण उदेश्यों की पूर्ति करने में लगे हुए हैं l
परिणाम स्वरूप न चाहते हुए भी असंगठित, नीति और युक्ति विहीन हिन्दुओं को रातों-रात अपने कारोबार, घर, क्षेत्र ही नहीं राज्यों तक का भी त्याग करना पड़ रहा है l राज्य बहु संख्यक हिन्दुओं से अल्प संख्यक हिन्दू और फिर हिन्दू-मुक्त राज्य होते जा रहे हैं l वे असहाय होकर अपने ही देश में शरणार्थी बन रहे हैं l देश में असामाजिक तत्व संगठित हैं इसलिए वे कम होकर भी हिन्दुओं से अधिक बलशाली हैं l समझ नहीं आता, हिन्दू सौ करोड़ होकर भी उनके आगे दुर्बल कैसे हैं ? वे उनके द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का संगठित होकर किसी ठोस नीति और युक्ति से सामना तो कर ही सकते हैं l
यह बात सर्वविदित है – हिन्दुओं ने आज तक किसी पर आक्रमण नहीं किया है l वे कभी किसी शत्रु से स्वयं कमजोर भी नहीं रहे हैं l वे आक्रमणकारियों को मुंहतोड़ उत्तर देना भली प्रकार जानते हैं, पर वे किसी पर पहले कभी आक्रमण नहीं करते हैं, अगर उन पर कोई आक्रमण करता है तो वे उसे क्षमा भी नहीं करते हैं l वे जानते हैं कि जीना सबका जन्म सिद्ध अधिकार है l
आज भी अपने ही देश में, देश के जयचंदों के संरक्षण में मुट्ठीभर असामाजिक तत्व सक्रिय हैं जो समाज पर अत्याचार करने हेतु हर समय उद्यत रहते हैं l वे आतंक, लव जिहाद, और धर्मांतरण जैसे दुष्कृत्य एवंम देश, धर्म को बांटने के षड्यंत्र कर रहे हैं l भारतीय नागरिक होने के नाते हमें अब मात्र सरकार पर ही निर्भर नहीं रहना है बल्कि पुरे उत्तरदायित्व के साथ देशहित में उसे अपना सहयोग भी देना है l
हमें अपने गाँव-गाँव व शहर–शहर में सुरक्षा समितियां बनाकर देश के हर संदिग्ध व्यक्ति, संस्थान, धर्मस्थल की गतिविधियों पर दिन-रात अपनी पैनी दृष्टि रखनी होगी l हमें देश हित में प्रण करना होगा – हम भविष्य में देश की अखंडता के साथ आंतरिक या बाह्य दृष्टि से कोई भी समझौता नहीं होने देंगे l समय आ गया है – समस्त देश वासियों को हिंदुत्व की एक पताका तले संगठित होने का, आतंक के विरुद्ध हुंकार भरने का क्योंकि संगठन ही शक्ति है l
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1. जागेगा स्वाभिमान जमाना देखेगा
आलेख – राष्ट्रीय भावना मातृवंदना जनवरी 2018
प्राचीन काल से ही हमारा देश एक अध्यात्म प्रिय देश रहा है भारत के ऋषि-मुनियों का संपूर्ण जीवन ज्ञान-विज्ञान अनुसन्धान एवंम शिक्षण-प्रशिक्षण कार्य में व्यतीत हुआ है उन्होंने सनातन संस्कृति में मानव जीवन को ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास जीवन चार श्रेणियों में विभक्त किया था l वे संपूर्ण मानव जाति के कल्याणार्थ व्यक्तिगत ध्यानस्थ होकर ईश्वर से प्रार्थना करते हैं – “हे प्रभु ! तू मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चल l अँधेरे से उजाले की ओर ले चल l मृत्यु से अमरता की ओर ले चल l” उनका मानना है कि “आत्म सुधार करने से मानव जाति का सुधार होता है l” जीवन सब जीते हैं पर जीवन जीना इतना सरल नहीं, जितना कि कहना l वह हर पल कष्ट, दुःख, कठिनाइयों और चुनौतियों से घिरा रहता है l
मात्र विवेकशील मनुष्य समय और परिस्थिति अनुसार बुद्धि से निर्णय लेते हैं l वे भली प्रकार जानते हैं की संसार में जीवन नश्वर है l सुख-दुःख बादल समान हैं, वे आते हैं तो चले भी जाते हैं l वह जीवन में जनहित, समाजहित और राष्ट्रहित में कुछ नया करना चाहते हैं, जबकि अन्य मार्ग में आने वाली कठिनाइयों से बचने के लिए सरल एवंम लघु मार्ग ढूंढ़ते हैं l इस प्रकार दोनों की सोच दूसरे के विपरीत हो जाती है l मानव जीवन में फुलों भरा सरल एवंम लघु मार्ग ढूँढने वाले लोग मात्र मन की बात मानते हैं l वे उसी पर चलते हैं l वे नैतिकता और मानवता की तनिक भी प्रवाह नहीं करते हैं l
ऐसे लोगों के द्वारा स्थापित शिक्षा केन्द्रों के पाठ्यक्रमों में देश का इतिहास, वास्तविक इतिहास नहीं होता है l उसमें सच्ची घटनाओं का सदैव अभाव रहता है l समाज परंपरागत सभ्यता एवंम संस्कृति से कटता जाता है और वह धीरे-धीरे उसे भूल भी जाता है l वे सत्ता पाने के लिए नैतिकता के साथ-साथ मानवता को भी ताक पर रख देते हैं, वे व्यक्ति विशेष, परिवार-वंश की महिमा मंडित करते कभी थकते नहीं हैं l वे क्षेत्रवाद, जातिवाद, धर्म-संप्रदाय वाद को बढ़ावा देते हैं l इससे देश की एकता एवंम अखंडता कमजोर होती है l अपने हित के लिए दंगे करवाए जाते हैं l विवेकशील मनुष्य नैतिकता, मानवता और मान-मर्यादाओं को पसंद करते हैं l स्मरण रहे ! कि ऐसे ही लोगों के प्रयासों से हमारा भारत अखंड भारत “सोने की चिड़िया” बना था l वे निजी जीवन में जनहित, समाजहित और राष्ट्रहित में कष्ट, दुःख, कठिनाइयों और चुनौतियों से सीधा सामना करने की विभिन्न प्रतिज्ञाएँ करते हैं, वह विपरीत परिस्थितयों से लोहा लेने के लिए हर समय तैयार रहते हैं l उनके लिए सबका हित सर्वोपरी होता है l
उनके द्वारा संचालित विद्या केन्द्रों से बच्चों को अच्छी, संस्कारित, गुणात्मक एवंम उच्चस्तरीय शिक्षा मिलती है l उससे उनका चहुंमुखी विकास होता है l उनके प्रशासन की नीतियां सर्व कल्याणकारी होती हैं l उपरोक्त बातों से स्पष्ट हो जाता है कि समस्त मानव जाति के पास जीवन यापन करने के सरल या कठिन मात्र दो ही मार्ग होते हैं l एक मार्ग उसे पतन – असत्य, अन्धकार और दुःख-मृत्यु की ओर ले जाता है तो दूसरा उत्थान – सत्य, प्रकाश और सुख-अमरता की ओर l हमें किस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए ? उसे हमारे लिए जानना और समझना अति आवश्यक है l
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5. भारत जोड़ो – यह आज का नारा है
मातृवंदना अक्तूबर 2017
अर्थात देश तोड़ने की बात बीते कल की हो गई है l अब देश जोड़ने की बात हो रही है l युगों से हमारा भारतवर्ष जो एक अध्यात्म प्रिय देश रहा है, आज भी वैसा ही है l सदियों पूर्व सोने की चिड़िया - अखंड भारत की अपार सुख-समृद्धि देख कुछ गिने-चुने आतताइयों ने हमारी अध्यात्म प्रियता, उदारता को ललकारा था, उसे हमारी कमजोरी समझा था l उन्होंने हिंसा, धर्मांतरण और आतंकवाद जैसे घृणित कार्यों को अपनी रणनीति का आधार बनाया था l उससे उन्होंने भारतवर्ष को लूटने आरंभ किया था l हमारा देश जब उनके द्वारा एक बार लुटना आरंभ हो गया तो वह बार-बार लुटता चला गया l यह निरंतर चलने वाला सिलसिला अभी तक थमा नहीं है l
सन 1857 के सर्वप्रथम स्वतंत्रता संग्राम में हम सभी भारतीयों ने मिलकर अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध संघर्ष किया था ताकि सभी स्वतन्त्र होकर सुखी जीवन यापन कर सकें, परन्तु समय-समय पर उन सांप्रदायिकवादी, विस्तारवादी, साम्राज्यवादी शक्तियों की विघटनकारी नीतियों से प्रेरित ऐसे अनेकों संगठनों का उदय हुआ, जिनकी सोच कार्यशैली भारतीय उदारवादी सोच “सबके सुख में अपना सुख और सबके दुःख में अपना दुःख“ समझने के स्थान पर सकुचित विचारधारा मात्र “अपनाहित”, “परिवारहित” और “राजनीतिक दलहित” सिद्ध करने तक सिकुड़कर रह गई l मानव समाज को जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्रवाद के नाम पर षड्यंत्र होने लगे और बांटा जाने लगा l परिणाम स्वरूप अखंड भारत के अभिन्न अंग माने जाने वाले तिब्बत, नेपाल, बर्मा, भूटान, पाकिस्तान, जैसे अन्य कई बड़े भू-भाग भारतवर्ष से अलग कर दिए गये और उन्हें विश्व मानचित्र पर नए राष्ट्र बना दिया गया l 15 अगस्त 1947 को आजादी पाने के पश्चात हम यह भूल गए कि हमने सन 1857 का सर्व प्रथम स्वतंत्रता संग्राम किसलिए लड़ा था ? दुर्भाग्यवश देश में आज भी विद्यमान ऐसे अनेकों असामाजिक तत्व संगठित हैं जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जाति, धर्म, भाषा के नाम पर सांप्रदायिकवाद, उग्रवाद, अलगवाद, नक्सलवाद, और आतंकवाद जैसे अनेकों संगठन बनाये हुए हैं l वह सदियों पूर्व आतताइयों के दिखाए हुए पद चिन्हों पर ही चल रहे हैं l उनके लिए जनहित, समाजहित और राष्ट्रहित का कोई भी महत्व नहीं है l उनका राष्ट्रीय भावना से कुछ भी लेना-देना नहीं है l
सनातन कर्म-कांड और ज्योतिष विद्या को हर स्थान पर संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है l विद्वानों के विद्या सृजन के स्थलों की सीमायें दिन-प्रतिदिन सिकुड़ती जा रही हैं l विद्या अभ्यास, प्रतियोगिताएं और प्रयास घुट-घुटकर जीने के लिए बाध्य हैं l वैदिक विद्याओं के सृजन, पोषण और संवर्धन पर संकट के बादल छा रहे हैं l
पाश्चात्य शिक्षा की विषलता आज सुनियोजित ढंग से निश्चिन्त होकर फ़ैल-फूल रही है l भ्रष्ट प्रशासन के द्वारा उसका बढ़-चढ़कर पोषण भी किया जा रहा है l देशभर में शिक्षा का व्यापारीकरण जोरों पर हैं l किसी समय अपने आप में सशक्त, सक्षम और विश्वभर में अपनी तूती का डंका बजा चुकी सुव्यवस्था, संस्कार प्रदान करने वाली, जन उपयोगी परंपरागत गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली को आज अनावश्यक, अनुपयोगी समझा जा रहा है l
वर्तमान पाश्चात्य शिक्षा–प्रणाली देश, समाज और जन साधारण को एक दूसरे से अलग करती जा रही है l घर में बच्चे माता-पिता, दादी-दादा, ताई-ताया, चाची-चाचा जैसे परम प्रिय संबोधनों को लगभग भूल चुके हैं, मात्र माता-पिता को ममी-पापा और अन्य सभी को आंटी-अंकल ही कहते हैं l बच्चों के द्वारा अपने माँ-बाप की आज्ञा न मानना, बात-बात पर उनका निरादर करना, नशा करना, आवश्यकता पूरी न हो तो माँ-बाप को आँख दिखाना और उनकी मारपीट भी करना वर्तमान में साधारण बात हो गई है l क्या यह भारतीय संस्कृति है ? क्या हम भारत वासी हैं ? क्या भारतीय संस्कृति की रक्षा पश्चिम वाले लोग करेंगे ? देश में भारतीय संस्कृति की रक्षा कैसे होगी ? क्या भारत का विश्वगुरु बनने या बनाने का हम सबका सपना मात्र सपना ही रह जायेगा ?