मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



सनातन धर्म के सोलह संस्कार

सनातन धर्म के सोलह संस्कार सनातन धर्म में मानव जीवन के सोलह संस्कारों का प्रावधान है जो जीवन के समस्त…
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ब्राह्मण – ज्ञानवीर

– ब्रह्मा जी का मुख ब्राह्मण के होने के कारण ज्ञानी, विद्वान्, बुद्धिमान, वैज्ञानिक, न्यायविद, गुरु, आचार्य, अध्यापक, शिक्षक और…
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क्षत्रिय – शूरवीर

– # राजनीति एक वह मंच है जिससे राजनेताओं द्वारा जनता की सेवा की जाती है। इस मंच पर उन…
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सन्तान बेटा-बेटी

बेटा-बेटी में भेदभाव — परिवार में बेटे के जन्म पर हर्ष परन्तु बेटी के जन्म पर निराशा क्यों ?- बेटा…
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पति-पत्नी

नर – नारी – सृष्टि में तीन तत्व ईश्वर, जीव और प्रकृति प्रमुख हैं । सृष्टि चलाने हेतु जुगल नर…
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    स्थानीय इतिहास

    स्थानीय इतिहास ही राष्ट्र का वास्तविक दर्पण है, जो राष्ट्र का स्वरूप दिखाता l 

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    वृद्ध अवस्था

    वृद्ध अवस्था में मानव की कृश-काया भले ही उसका साथ न दे, पर वह अपने पिछले दीर्घ काल में किये गए कार्य अनुभवों से सम्पन्न अवश्य होता है l उसकी सन्तान चाहे तो उन अभिभावक के सानिध्य में बैठकर उनके कार्य अनुभवों से बहुत कुछ सीख सकती है l

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    युवा अवस्था

    युवा अवस्था में बच्चे का ज्ञान और विवेक परिपक्व हो जाता है l वह अपने जीवन में l अच्छे, बुरे या निषिद्ध कार्य का सही आंकलन कर सकता है l उसे अच्छे, बुरे या निषिद्ध कार्य का ज्ञान होता है l अभिभावक का उस पर सदैव आशीर्वाद बना रहना  चाहिए l वह अपने जीवन में कोई भी उचित निर्णय ले सकता है l 
    माता - पिता द्वारा संस्कारित, गुरु द्वारा दीक्षित और अध्यापक द्वारा शिक्षित - प्रशिक्षित युवा ही अपने जीवन की चुनौतियों, बधाओं, कठिनाइयों और दुःख - सुख का धैर्य और साहस के साथ सामना करने में सक्षम होते हैं । इससे वे सामाजिक एवंम राष्ट्रीय जिम्मेदारियों को भी भली प्रकार निभाते हैं ।

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    किशोर अवस्था

    इस अवस्था में बच्चे का ज्ञान और विवेक अपरिपक्व होता है l अच्छे बुरे या निषिद्ध कार्य का सही आंकलन नहीं होता है l वह जो भी कार्य करता है - उसे अच्छे बुरे या निषिद्ध कार्य का ज्ञान होना चाहिए l लेकिन वह कठिन और चुनौति पूर्ण जीवन यापन की अपेक्षा सुगम और सरल जीवन यापन करना अधिक पसंद करता है l कई बार अभिभावक की अनदेखी और कुसंगति में पड़कर वह अनुचित मार्ग की ओर भी अग्रसित हो जाता है l अगर समय रहते अभिभावक बच्चे का उचित मार्गदर्शन करें तो वह उस संकट से बच भी सकता है l 
    किशोर/किशोरियों के लिए यही समय सम्भलने का होता है । अगर इस समय उनके माता - पिता के द्वारा उन्हें अच्छे संस्कार, गुरु और अध्यापक द्वारा उचित शिक्षण - प्रशिक्षण प्राप्त हो तो वे अपने जीवन में संभल सकते हैं, वे दुर्व्यसनों का शिकार नहीं होते हैं । वे धैर्य और साहस के साथ अपने जीवन की चुनौतियों, बाधाओं, कठिनाइयों और दुःख - सुख का सामना करने में सक्षम होते हैं और दुर्व्यसनों का शिकार नहीं होते हैं l

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    बाल अवस्था

    यह वह अवस्था है जिसमें बच्चा नटखट होता है l कोई बच्चा बहुत नटखट होता तो कोई कम लेकिन होता अवश्य है l उसमें बोध और विवेक दोनों ही सुप्त अवस्था में होते हैं, जो उसकी आयु बढ़ने के साथ - साथ जागृत होते हैं l आरम्भ में उसे कुछ भी ज्ञान नहीं होता है, देखा देखी करता है l अकेले बच्चा नट - खट्टता कम करता है जबकि जोड़ी में बहुत अधिक l