मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



सनातन धर्म के सोलह संस्कार

सनातन धर्म के सोलह संस्कार सनातन धर्म में मानव जीवन के सोलह संस्कारों का प्रावधान है जो जीवन के समस्त…
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ब्राह्मण – ज्ञानवीर

– ब्रह्मा जी का मुख ब्राह्मण के होने के कारण ज्ञानी, विद्वान्, बुद्धिमान, वैज्ञानिक, न्यायविद, गुरु, आचार्य, अध्यापक, शिक्षक और…
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क्षत्रिय – शूरवीर

– # राजनीति एक वह मंच है जिससे राजनेताओं द्वारा जनता की सेवा की जाती है। इस मंच पर उन…
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सन्तान बेटा-बेटी

बेटा-बेटी में भेदभाव — परिवार में बेटे के जन्म पर हर्ष परन्तु बेटी के जन्म पर निराशा क्यों ?- बेटा…
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पति-पत्नी

नर – नारी – सृष्टि में तीन तत्व ईश्वर, जीव और प्रकृति प्रमुख हैं । सृष्टि चलाने हेतु जुगल नर…
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    सन्यास आश्रम

    सत्सनातन धर्म में मनुष्य के आत्म कल्याण हेतु गृहस्थ जीवन त्यागकर, वानप्रस्थ आश्रम या एकांत निवास में रहकर स्व इन्द्रिय शमन और मनो निग्रह करके सन्यास आश्रम में प्रवेश करने का प्राबधान है l 

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    वानप्रस्थ आश्रम

    सत्सनातन धर्म के अनुसार जब घर में पुत्र का पुत्र पैदा हो जाये, तब मनुष्य को 50 वर्ष के पश्चात गृहस्थ जीवन त्यागकर वानप्रस्थ आश्रम या एकांत निवास में प्रवेश कर लेना चाहिए l वह समय मानव जीवन के कल्याणार्थ सर्वश्रेष्ठ माना गया है l 

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    गृहस्थ आश्रम

    सत्सनातन धर्म के अनुसार जितेंद्रिय गुरु - शिष्य द्वारा वेद शास्त्र का संयुक्त पठन – पाठन, शस्त्र - शास्त्रों का शिक्षण - प्रशिक्षण अभ्यास द्वारा शारीरिक, मानसिक, बौध्दिक, और अध्यात्मिक शक्तियां अर्जित करने तथा स्नातक बनने के पश्चात युवा के लिए योग्य वर देखकर शादी करने या गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने का प्रावधान है l 
    परिवार में नर – नारी पति - पत्नी के रूप में, एक दूसरे के पूरक होते हैं । इसके साथ ही साथ वे परिवार/समाज का निर्माण/कल्याण भी करते हैं । जिस प्रकार महिला अपने परिवार और समाज की आंतरिक जिम्मेदारियों को भली प्रकार संभालती है, ठीक उसी प्रकार पुरुष भी बाह्य जिम्मेदारियों को संभालते हैं ।

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    ब्रह्मचर्य आश्रम

    सत्सनातन धर्म के अनुसार जिस आश्रय स्थली से जितेंद्रिय गुरु - शिष्य द्वारा वेद शास्त्र का संयुक्त पठन – पाठन, शस्त्र - शास्त्रों का शिक्षण - प्रशिक्षण अभ्यास के लिए गुरुकुल जाते हैं और उसके पश्चात उनके द्वारा जहाँ लौटकर विश्राम किया जाता है - ब्रह्मचर्य आश्रम कहलाता है l 

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    जीवन के चार आश्रम

    आर्ष दृष्टिकोण से जीवन के चार आश्रम माने गए हैं l ये आश्रम जीवन के समस्त कर्मों को चार वर्गों में विभक्त करते हैं l ऐसा जीवन यापन करने से जीवन की बहुत सी समस्याओं को बड़ी सुगमता से निपटाया जा सकता है l