मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



2. भक्ति, श्रद्धा, प्रेम का पर्व श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

भगवान श्रीकृष्ण लगभग 5000 वर्ष ईश्वी पूर्व इस धरती पर अवतरित हुए थे। उनका जन्म द्वापर युग में हुआ था।…
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सशक्त न्याय व्यवस्था की आवश्यकता

दिनांक 29 जुलाई 2025 सत्य, न्याय, नैतिकता, सदाचार, देश, सत्सनातन धर्म, संस्कृति के विरुद्ध मन, कर्म और वचन से की…
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सनातन धर्म के सोलह संस्कार

दिनांक 20 जुलाई 2025 सनातन धर्म के सोलह संस्कारसनातन धर्म में मानव जीवन के सोलह संस्कारों का प्रावधान है जो…
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ब्राह्मण – ज्ञानवीर

उद्देश्य – विश्व कल्याण हेतु ज्ञान विज्ञान का सृजन, पोषण और संवर्धन करना l – ब्रह्मा जी का मुख ब्राह्मण…
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क्षत्रिय – शूरवीर

उद्देश्य –  ब्राह्मण, नारी, धर्म, राष्ट्र, गाये के प्राणों की रक्षा – सुरक्षा की सुनिश्चितता  बनाये रखना l   -…
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    13. कोटि – कोटि प्रणाम

    दैनिक जागरण 3 मई 2007

    मातृ भूमि तुझको
    करूं मैं क्या अर्पण
    साहस नहीं मुझमें
    बिन देरी करूं मैं आत्म समर्पण
    बस कार्य के सिवाय
    फल की ओर न हो मेरा ध्यान
    सेवा की हो डगर अपनी
    और नित हो तुझे कोटि कोटि मेरा प्रणाम



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    12. स्नान गृह में

    दैनिक जागरण 29 अप्रैल 2007 

    दाढ़ी बना ले चाहे तू दांत साफ कर ले
    पर भाई चल पहले नल बंद कर दे
    भूजल अनावश्यक बाहर आ रहा
    भूजल स्तर नीचे जा रहा
    अब फव्वारे से या टब में नहीं है नहाना
    बाल्टी भर पानी से ठीक है नहाना
    जब बाल्टी भर पानी से नहाया जा सके
    दो बाल्टी भर पानी बहाना है क्यों
    भूजल संरक्षण अभियान सफल बनाया जा सके
    अनावश्यक दोहन करके जल संकट बनाना है क्यों
    साबुन या धोने का पाउडर पहले है लगाना
    फिर कपड़ा भली प्रकार है धोना
    अनावश्यक जल नल से नहीं है बहाना
    ऐसे कल का जल संरक्षण नहीं है होना
    नल बंद करके साबुन है लगाना
    फिर साबुन धोने को नल है चलाना
    ऐसी नहीं करनी है नादानी
    कहना पड़े कि अब नहीं रहा है पानी



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    11. समय का स्वभाव

    दैनिक जागरण 24 अप्रैल 2007

    समय तो बहता जल है
    वह बहता जाता गाता है
    तू संभाल पलपल की करता चल
    जीवन पलपल से बन पाता है
    गोली छूटती है बन्दूक से
    फिर कभी नहीं आती है हाथ
    सकल दिवस जाता पलपल में
    घड़ी भी नहीं देती है साथ



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    10. आलस्य

    दैनिक जागरण 18 अप्रैल 2007 

    प्राप्त वस्तु से संतुष्ट हुआ
    तूने मेहनत करना छोड़ा क्यों
    कोई वस्तु रहेगी कब तक पास तेरे
    कर्म से तूने नाता तोड़ा क्यों
    आलस्य में क्यों बैठ गया
    तू अपने हाथपांव पसार
    मिट्टी का खिलौना मिट्टी में मिला दे
    देख मेहनत का भी चमत्कार
    आलसी नहीं आलस्य भगा दे
    तू अगल बगल से दूर
    घोड़ा तन है तेरा
    चाबुक मेहनत मार भरपूर
    लगेगी भूख भागेगा सरपट
    अपनी ही मंजिल ओर
    चाहे कठिन है राह तेरी अपनी
    पाएगा तू जरूर मंजिल छोर



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    3. मेहनत

    अमर उजाला 4 अप्रैल 2007

    कली से बनते हैं फूल
    खिलते हैं फूल कांटों में
    अभ्यास बनती है मेहनत
    रहती नहीं है मेहनत बातों में
    खोज जिसे होती है
    मंजिल पा ही लेता है
    बिना परिश्रम किए जो ढूंढता है
    अपना समय नष्ट कर लेता है
    मेहनत से मिलता है मान
    मेहनत से बनती है शान
    पहचान बनाती मेहनत अपनी
    मेहनत से मिलता है भगवान