मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



2. भक्ति, श्रद्धा, प्रेम का पर्व श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

भगवान श्रीकृष्ण लगभग 5000 वर्ष ईश्वी पूर्व इस धरती पर अवतरित हुए थे। उनका जन्म द्वापर युग में हुआ था।…
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सशक्त न्याय व्यवस्था की आवश्यकता

दिनांक 29 जुलाई 2025 सत्य, न्याय, नैतिकता, सदाचार, देश, सत्सनातन धर्म, संस्कृति के विरुद्ध मन, कर्म और वचन से की…
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सनातन धर्म के सोलह संस्कार

दिनांक 20 जुलाई 2025 सनातन धर्म के सोलह संस्कारसनातन धर्म में मानव जीवन के सोलह संस्कारों का प्रावधान है जो…
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ब्राह्मण – ज्ञानवीर

उद्देश्य – विश्व कल्याण हेतु ज्ञान विज्ञान का सृजन, पोषण और संवर्धन करना l – ब्रह्मा जी का मुख ब्राह्मण…
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क्षत्रिय – शूरवीर

उद्देश्य –  ब्राह्मण, नारी, धर्म, राष्ट्र, गाये के प्राणों की रक्षा – सुरक्षा की सुनिश्चितता  बनाये रखना l   -…
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  • 1. श्रृंगार धौलाधार का

    पंजाब केसरी 21 मई 2007 

    कैसी सुंदर ओढ़ी बर्फीली
    चादर धौलाधार ने
    शुष्क मौसम से पाई
    मुक्ति धौलाधार ने
    नाले भरे नदियाँ सब बहने
    लगे हैं
    ताल बावड़ियाँ कूप सब
    जल से भरने लगे हैं
    धरती, खेतों, खलिहानों को
    मिलने लगा है पानी
    रिमझिम बरसने लगा है पानी
    बर्फ से किया फिर शृंगार
    धौलाधार ने
    आह! कैसी सुंदर ओढ़ी
    बर्फीली चादर धौलाधार ने




  • 1. श्रृंगार धौलाधार का

    पंजाब केसरी 21 मई 2007

    कैसी सुंदर ओढ़ी बर्फीली
    चादर धौलाधार ने
    शुष्क मौसम से पाई
    मुक्ति धौलाधार ने
    नाले भरे, नदियाँ सब बहने
    लगे हैं
    ताल, बावड़ियाँ, कूप सब
    जल से भरने लगे हैं
    धरती, खेतों, खलिहानों को
    मिलने लगा है पानी
    रिमझिम बरसने लगा है पानी
    बर्फ से किया फिर शृंगार
    धौलाधार ने
    आह ! कैसी सुंदर ओढ़ी
    बर्फीली चादर धौलाधार ने

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    16. भू – जल दोहन

    दैनिक जागरण 18 मई 2007

    बूंद बूंद से होता है भूजल पुनर्भरण
    सुनियोजित करना है भूजल दोहन व्यवहार
    सुरक्षित रखना है शुद्ध भूजल भंडार
    सुखी रहेगा मनमोहन संसार
    भूजल धरती की है अमूल्य सम्पत्ति
    व्यर्थ दोहन है आने वाली विपत्ति
    भूजल धरती का करता है श्रृंगार
    अनावश्यक दोहन सरासर है निराधार



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    15. कविता

    दैनिक जागरण 15 मई 2007 

    वीरों की तू पोषणहारी
    तू है कविता कवि की प्यारी
    देखा है मैंने तुझे सबके साथ
    पर वे सब तुझे नहीं लगाते हाथ
    अत्याचारी की तू हत्यारी
    तू है कविता कवि की प्यारी
    जिसने किया जब नीचता को सलाम

    तूने किया उसका काम तमाम
    दुराचारी की तू संहारणहारी
    तू है कविता कवि की प्यारी


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    14. ईर्ष्या – घृणा

    दैनिक जागरण 9 मई 2007

    आग से खेल रहा क्यों?
    वह राख बनाया करती है
    ईर्ष्या से भी प्रेम कर रहा
    हंसते को रुलाया करती है
    घृणा कर नीच विचारों से
    मगर इन्सान से नहीं
    करके ईर्ष्या घृणा इन्सान से
    रह सकता तू सुख शांति से नहीं