दैनिक जागरण 18 नवंबर 2006
गधे सा बोझा उठाए हुए
देखो विद्यार्थी विद्यालय जाता है
किताबी ज्ञान है सारा थैले में
पढ़कर बाबू बन जाता है
हर साल बाबू ही बाबू बनते रहेंगे
अगर देश के नौजवान
खाद्यानों का काम चलेगा कैसे
मिलेंगे खेतों के कहां से किसान
मशीनों का चालक बनेगा कौन
कलाओं का विकास करेगा कौन
शिक्षा दीक्षा दी जाती है परिश्रम करने के लिए
सभ्यता संस्कृति सुरक्षित रखने के लिए
सन्मार्ग जो दिखा न सके वह ज्ञान है कैसा
परिश्रम से जो तुडव़ा दे नाता वह ज्ञान है कैसा
अमल हो न सके जिसका वह शिक्षा मिलती है कैसी
जिससे समाज सेवा हो न सके वह दीक्षा मिलती है कैसी
चेतन कौशल "नूरपुरी"
लेखक: चेतन कौशल
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श्रेणी:कवितायें
शिक्षा-दीक्षा
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श्रेणी:कवितायें
जय भारत के नौजवान
दैनिक जागरण 29 सितम्बर 2006
जय भारत के नौजवान
आओ सब मिल कर अपना कर्तव्य निभाएं
करके काम कुछ जग हित खुशहाल कहाएं
रश्मी शीतल मिल कर नहाएं
देखे हमें सकल जहान
जय भारत के नौजवान
प्रतिज्ञा करके जहां भी ने सुखी बाप बनाया
शूलों से बिंध कर जो नहीं प्रण से डगमगाया
प्राण तज व्रतधारी ने सबको सच्चा मार्ग दिखाया
करके प्रण निभाए भारत की सन्तान
जय भारत के नौजवान
थे यहां वीर वीरों की यह धरती है
किससे तुम कम किससे तुम्हें भीति है
नित अज्ञान से टकराना तुम करना ज्ञान से प्रीति
बनना है तुम्हें भी महान
जय भारत के नौजवान
चेतन कौशल "नूरपुरी"
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श्रेणी:कवितायें
शिक्षा का विदेशीकरण
दैनिक जागरण 24 सितम्बर 2006
स्वदेशी शिक्षा का विदेशीकरण करने वालो
स्वदेश की पहचान का अनादर करने वालो
विदेशी कोई अनजाना स्वदेश आ जाएगा
करके मीठी बातें तुमसे भेद सारे ले जाएगा
खुद तुम्हें घर से निकालेगा धक्के देकर
बन जाएगा वह स्वामी तुम्हारा सर्वस्व लेकर
तब बन जाओगे तुम उसके सामने क्या
फिर कर पाओगे तुम अपने लिए क्या
चेतन कौशल "नूरपुरी"
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श्रेणी:कवितायें
सत्य आचरण
दैनिक जागरण 16 सितम्बर 2006
श्रेष्ठ साहित्य है कामधेनु
दूध सम मिलती है शक्ति
ज्ञानी की बात ही छोड़ो
मूर्ख भी करने लगता है भक्ति
सद्ग्रंथ खोलो पढ़ लो जरा
जीवन कल्याण हो जाएगा
सत्य आचरण करते चलो
जमाना सत्युग हो जाएगा
चेतन कौशल "नूरपुरी"
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श्रेणी:कवितायें
धरती मां
दैनिक जागरण 15 जुलाई 2006
धरती मां धरती मां
तू है सबकी पालक पोषक धरती मां
सर्दी गर्मी वर्षा सब सहती जाती
मीठे कन्दमूल वनस्पति उपजाती
फूलफल अन्न दालें खिलाती
देकर सकल पदार्थ घर बाहर भरती मां
धरती मां धरती मां
तू है सबकी पालक पोषक धरती मां
ऊंचे पहाड़ों से बनी तेरी छाती है
वन्य सम्पदा की तू ओढ़े साड़ी है
कल कल करते झरने तेरे दूध के धारे हैं
लहराती फसलें प्राणी पोशण करती मां
धरती मां धरती मां
तू है सबकी पालक पोशक धरती मां
नहीं दुर्योधन दुशासन तेरी इज्जत लूट हैं सकते
हर समय यहां रक्षा तेरी कृष्ण मुरारी हैं करते
पूत कपूत हो जाता माता नहीं कुमाता होती है
तू सबके सिर आंचल की ठण्डी छाया करती मां
धरती मां धरती मां
तू है सबकी पालक पोषक धरती मां
चेतन कौशल "नूरपुरी"