मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



लेखक: चेतन कौशल

  • श्रेणी:

    राही

    दैनिक जागरण 19 जनवरी 2007 

    हम मानव संसार के राही
    लगने न देंगे मानवता पर स्याही
    उठने न पाएगा अज्ञान हाथी
    सबके रक्षक सेवक साथी
    हम तो हैं भले मर्मान्तक
    सेवा हेतु हमें कोई न आंतक
    हम मानव संसार के राही
    लगने न देंगे मानवता पर स्याही
    हम सब अपने हृदय के दीक्षक
    सुख रहे दुख के चिकित्सक
    रावण कंस नाम फिर न होगा विख्यात
    राम कृष्ण नामों पर होगा प्रयास
    हम मानव संसार के राही
    लगने न देंगे मानवता पर स्याही


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    देश वासियो

    दैनिक जागरण 12 जनवरी 2007

    उठो नगर वासियो
    जागो देश वासियो
    दुखियारी भारत मां पुकार रही
    आजादी दुख से कराह रही
    दासता से मुक्त हुई है भारत माता
    कुरीतियों में है उसे फंसाया जाता
    उठो नगर वासियो
    जागो देश वासियो
    होना था न केवल हमनें आजाद
    प्रेम त्यागभाव भी हमनें करना था आवाद
    पगपग पर नंगा न कोई होता
    भूखा पदपथ पर न कहीं कोई सोता
    उठो नगर वासियो
    जागो देश वासियो
    संभव हर वस्तु यहां उत्पन्न होती
    हर जरूरतमंद की उस तक पहुंच होती
    कोई न कहीं देखता स्वार्थपरता को
    हटा दो यहां की अब हर विवषता को
    उठो नगर वासियो
    जागो देश वासियो


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    प्रेम पुजारी

    दैनिक जागरण 2 मार्च 2007 

    प्रेम पुजारी बढ़ता चल
    सबका कष्ट हरता चल
    कभी खो देना न ध्येय
    किसी से खाना न भय
    पानी है मंजिल आज नहीं तो कल
    प्रेम पुजारी बढ़ता चल
    सहारा मिले तो ले लेना तू
    न मिले कदम बढ़ाना तू
    निर्भय प्रतिपल आगे बढ़ता चल
    प्रेम पुजारी बढ़ता चल
    मंजिल सामने एक दिन आएगी
    घड़ी इंतजार की खत्म हो जाएगी
    सफलता मिलेगी आज नहीं तो कल
    प्रेम पुजारी बढ़ता चल


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    जिन्दगी की राह

    दैनिक जागरण 25 नवंबर 2006

    अपने ही छूट जाते हैं बहुत दूर
    छोटी सी जिन्दगी की लम्बी राह पर
    सदा नहीं रहता साथ यहां स्वदेह का भी
    बस पानी बुलबुला है सत्य की राह पर
    साथ नहीं देता हर कोई हर कहीं
    हर पल और हर डगर पर
    राह में लगती हैं ठोकरें कदम कदम पर
    चलना पड़ता है अकेला ही संभल कर
    उठता नहीं गिर कर चलता नहीं जो संभल कर
    कठिन राह अपनी आगे की समझ कर
    गिर जाता है वह फिर अन्य कोई ठोकर खाकर
    और कोसने लगता है भाग्य अपना खुद दुख पाकर


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    संघर्ष की जिंदगी

    दैनिक जागरण 18 नवंबर 2006


    है यही तो जिंदगी संघर्ष की है जिंदगी
    डगमगाना नहीं है प्रण से
    विचलित नहीं होना है पथ से
    आज का काम करना है आज
    कल पर नहीं छोड़ना है आज
    है यही तो जिंदगी संघर्ष की है जिंदगी
    जिंदगी अपनी है ही क्या
    भयभीत रहे मंजिल मिलेगी क्या
    सामना करना है जीवन संघर्ष से
    जीवन संवारना है जीवन संघर्ष से
    है यही तो जिंदगी संघर्ष की है जिंदगी
    आशीर्वाद बड़ों का लेकर साथ
    हाथ छोेटों का भी थामकर हाथ
    हर कदम बढ़ाना है मंजिल की ओर
    पूर्व में देखो हो रही भोर
    है यही तो जिंदगी संघर्ष की है जिंदगी


    चेतन कौशल "नूरपुरी"