मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



लेखक: चेतन कौशल

  • श्रेणी:

    शिक्षा कहां मिलेगी ?

    3 मई 2009 कश्मीर टाइम्स

    कार्य प्रयास करें जो सबका भला,
    सबके काम आएं जो विधि-विधान,
    संस्कारों का आचरण सदा यथार्थ हो,
    कार्य-व्यवहार करें जीवनोपयोगिता बयान,
    ज्ञान बढ़े और हो जिससे आत्मरक्षा,
    स्वास्थ्य वर्धन करे और रहे सामाजिक सुरक्षा,
    देगा कौन? हमें ऐसी शिक्षा,
    मिलेगी कहां? हमें ऐसी शिक्षा,


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    मेहनत का राज

    12 अप्रेल 2009 कश्मीर टाइम्स

    मेहनत करने वालों को काम बहुत हैं,
    नहीं करने वालों को बहुत हैं बहाने,
    बही कहें आँगन टेढा,
    जो कभी नाचना न जाने,
    मेहनत लगन से होती है,
    दिल-दिमाग एक करना जो जाने,
    मेहनत करने वालों को काम बहुत हैं,
    नहीं करने वालों को बहुत हैं बहाने,
    जबरन उनको काम पर न लगाना,
    ध्यान जिन्होंने काम पर नहीं लगाना,
    लगन से मुश्किल काम आसान हो जाते,
    आओ चलें! कार्यकुशल मेहनती अपनाने,
    मेहनत करने वालों को काम बहुत हैं,
    नहीं करने वालों को बहुत हैं बहाने,
    धनदौलत अर्जित होती है
    और ठाटबाट भी, क्या कहने!
    धनदौलत उन्हीं की दासी होती है,
    धन सदुपयोग करना जो जाने,
    मेहनत करने वालों को काम बहुत हैं,
    नहीं करने वालों को बहुत हैं बहाने,
    सारा बाजार उन्हीं का होता अपना,
    जान लेते बाजार के सारे जो मायने,
    मेहनत करना अपना धर्म वो समझते,
    नहीं ढूंढते, नहीं करने के जो बहाने,
    मेहनत करने वालों को काम बहुत हैं,
    नहीं करने वालों को बहुत हैं बहाने,


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • दिल प्रीतम का घर है
    श्रेणी:

    दिल प्रीतम का घर है

    महात्मा गांधी जी का कथन है कि जिस तरह हमें अपना शरीर कायम रखने के लिए भोजन जरूरी है, आत्मा की भलाई के लिए प्रार्थना कहीं उससे भी ज्यादा जरूरी है। प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं वरन हृदय से होता है। इसलिए गूंगे , तुतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। जीभ पर अमृत - राम नाम हो और हृदय में हलाहल - दुर्भावना तो जीभ का अमृत किस काम का?
    उपरोक्त विचारों से स्पष्ट   है कि प्रार्थना या भजन हृदय से किया जाता है जिससे मनुष्य  का हृदय शुद्ध होता है। ऐसा करने के लिए उसे वाह्य संसाधनों अथवा संयत्रों की कभी आवश्यकता नहीं होती है बल्कि उसे आत्मावलोकन एवं स्वाध्य करना होता है आत्म शुद्धि करनी होती है। जिस मनुष्य के  हृदय में दुर्भावना एवं अज्ञान होता है वह समाज का न तो हित चाहता है और न कभी भलाई के कार्य ही करता है।
    इसी कारण आज देश  का प्रत्येक व्यक्ति, परिवार गांव और शहर पलपल ध्वनि प्रदूषण  का शिकार हो रहा है। उसकी दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। उससे समस्त जन जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। ध्वनि प्रदूषण  के कारण समाज में बहरापन रोग भी बढ़ रहा है। इसका उत्तरदायी कौन है?
    वर्तमान में विवाह, पार्टी, घर व दुकानों में रेडियो दूरदर्शन, टेपरिकार्डर, डैक एवं मंदिर, गुरुद्वारा मस्जिद पर टंगे बड़े-बड़े स्पीकर तथा जगराता पार्टियां बे रोक-टोक ध्वनि प्रदूषण  फैला रहे हैं।
    बच्चों के पढ़ने व रोगी के आराम करने के समय पर संयत्रों के उच्च स्वर सुनाई देते हैं। उनसे मनचाहा उच्च स्वरोच्चारण होता है। शायद ऐसा करने वाले भक्तजन व विद्वान लोगों को भजन कीर्तन सुनना कम और सुनाना ज्यादा अच्छा लगता होगा। क्या उससे बच्चे पढ़ाई कर पाते है? क्या इससे किसी दुःखी, पीड़ित या रोगी को पूरा आराम मिल पाता है?
    स्मरण रहे कि प्रार्थना या भजन स्पीकरों या डैक से नहीं मानसिक या धीमी आवाज में ही करना श्रेष्ठ व हितकारी है। उससे किसी को दुःख या कष्ट  नहीं होता है। इसी कारण बहुत से लोग आत्मचिंतन करते हैं तथा मानसिक नाम का जाप करते हैं। उन्हें किसी को सुनाने की आवश्यकता  नहीं होती है।
    रोगी, दुखियों  को कष्ट  पहुंचाना और विद्यार्थियों की पढ़ाई में बाधा डालना इंसान का नहीं शैतान का कार्य है। अगर हम मनुष्य  हैं तो हमें मनुष्यता  धारण कर मनुष्य  के साथ मनुष्य  जैसा व्यवहार आवश्य  करना चाहिए, शैतान सा नहीं।
    प्रार्थना या भजन करना हो तो हृदय से करो, वह जीवनामृत है। शैतान और अज्ञानी होकर विभिन्न संयत्रों से उच्च स्वर बढ़ाकर उसे समाज के लिए विष  मत बनाओ।
    समाज में ध्वनि प्रदूषण  न फैल सके, इसके लिए प्रशासन के द्वारा ध्वनि विस्तार रोधक कानून से अंकुश  लगाया जाना आवश्यक  है। हम सबको इस कार्य में योगदान करना चाहिए। किसी ने ठीक ही कहा है कि दिल एक मंदिर है। प्यार की जिसमें होती है पूजा, वह  प्रीतम का घर है।
    19 अप्रैल 2009
    दैनिक कष्मीर टाइम्स

  • श्रेणी:

    ललकार

    1 मार्च 2009 कश्मीर टाइम्स

    लक्ष्य जीतना है, एकाग्रता से,
    चाहे हमारा सर्वस्व लुट जाए,
    भिड़ना है हमने अज्ञान से
    चाहे शीश हमारा कट जाए,
    संघर्ष जो है करता,
    उल्लास वो है पाता,
    आलस्य जो है करता,
    हर क्षण वो है पछताता,
    यह समय आलस्य करने का है नहीं,
    समय संघर्ष करने का है यही,
    अब हमने करने हैं शोषण,अत्याचार सहन नहीं,
    समय है लोहा लेने का यही,
    अन्याय, अत्याचार नहीं जिंदगी,
    मौत हैत्याग ही नाव जिंदगी,
    प्रेम पतवार है,उठो, जागो!
    समय की ललकार है,
    मानवता करती हाहाकार है,
    आए हैं हम मानव देह में यहां,
    हमने क्रांति लानी है यहां,
    निष्कपट काम करेंगे हम सभी,
    घड़ी सुहावनी फिर आएगी तभी,


    चेतन कौशल "नूरपुरी"
    
    

  • श्रेणी:

    स्वदेश के प्रति

    22 फरवरी 2009 कश्मीर टाइम्स

    न्याय प्रेमी, शांति के पुजारी प्यारे देश,
    हिम-किरीट स्वामी, जग से न्यारे देश,
    खड़ा अज्ञानी सीमा पर, कर रहा तन छारछार है,
    समझने पर टलता नहीं, कर रहा वार पर वार है,
    मार्ग दिखा कोई, राह पर लाना है उसे
    या मशाल लगा ध्वस्त करना है उसे?
    आदेश दे कोई, हम मिटाएँ तेरे घावों का क्लेश,
    न्याय प्रेमी, शांति के पुजारी प्यारे देश,
    निष्कपट, दयालु विशाल हृदय में बनें पंचशील जब,
    सुना, विचारा विश्व ने, था कहां? वह बहरा अल्पज्ञ तब,
    चाहते हैं उसको गले लगाना, विचारें हम ऐसा करें!
    शहीद हुए शूरवीर तेरे हित, कार्य कुछ ऐसा करें!
    तन, मन, धन वार प्रिय जनहित, काम करना है स्वदेश,
    न्याय प्रेमी, शांति के पुजारी प्यारे देश,


    चेतन कौशल "नूरपुरी"