भक्ति, श्रद्धा, प्रेम का पर्व श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
चेतन कौशल
भगवान श्रीकृष्ण लगभग 5000 वर्ष ईश्वी पूर्व इस धरती पर अवतरित हुए थे। उनका जन्म द्वापर युग में हुआ था। द्वापर युग, हिंदू धर्म के चार युगों में से दूसरा युग है। यह युग सत्ययुग के बाद और कलयुग से पहले आता है। द्वापर युग को धर्म, सत्य और सदाचार का युग माना जाता है। द्वापर युग में ही महाभारत का युद्ध हुआ था, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान दिया था। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में कंस की कारागार में हुआ था। कंस जो देवकी का भाई और मथुरा का राजा था, को भविष्यवाणी हुई थी कि देवकी की आठवीं संतान उसका वध करेगी। सुनकर कंस ने देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया था l कालचक्र घुमने के साथ - साथ जब भी उनके यहाँ कोई बच्चा पैदा होता तब कंस स्वयं आकर उसे मार देता था l इस प्रकार उसने एक - एक करके उनके सात सभी बच्चों को जन्म लेने के पश्चात तुरंत मार डाला था। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की आधी रात को मथुरा की कारागार में देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था l वे भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। उस समय भयंकर वर्षा और गगन में मेघों की भारी गरजना हो रही थी। श्रीकृष्ण के जन्म के समय, कारागार के सभी पहरेदार सो गए थे और भगवान विष्णु की अपार कृपा से, वासुदेव कृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के पास पहुँचाने में सफल रहे l कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र के दिन रात्रि के 12 बजे हुआ था l कृष्ण जन्माष्टमी, भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव, भारत में बहुत धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। भक्त उपवास रखते हैं, मंदिरों में जाते हैं, भजन गाते हैं, और भगवान कृष्ण की लीलाओं का भी पाठ करते हैं। जन्माष्टमी का व्रत भगवान कृष्ण के जन्मदिन के उपलक्ष्य में रखा जाता है। यह व्रत भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करने की एक युक्ति है। इस दिन व्रत रखने से भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है और माना जाता है कि इससे सुख, शांति और समृद्धि मिलती है। जन्माष्टमी का व्रत आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। “यह पर्व समाज को सत्य, धर्म और भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है l श्रीकृष्ण के आदर्श जीवन से हमें अन्याय के विरुद्ध संघर्ष, सयम और अध्यात्मिक जागरूकता का संदेश प्राप्त होता है l” जन्माष्टमी का व्रत पूरे दिन रखा जाता है और रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के बाद या अगले दिन सूर्योदय के बाद खोला जाता है । इस दिन लोग उपवास रखते हैं, भजन - कीर्तन और भगवान कृष्ण की पूजा - अर्चना करते हैं l जन्माष्टमी व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना, जन्माष्टमी के व्रत में अन्न ग्रहण नहीं करना, व्रत को रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के बाद या अगले दिन सूर्योदय के बाद खोलना, जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण के मंदिर जाना, सुबह और रात में विधि - विधान से भगवान कृष्ण की पूजा करना, भगवान को अर्पित किये गए प्रसाद को ही ग्रहण करके व्रत खोलना, व्रत के दौरान दिन में नहीं सोना, किसी को अपशब्द नहीं कहना अदि नियमों का पालन किया जाता है l सुबह जल्दी उठकर स्नान करके व्रत का संकल्प करना । घर के मंदिर को साफ करना और लड्डू गोपाल को स्नान कराना। लड्डू गोपाल को सुंदर वस्त्र, मुकुट, माला पहनाना और चंदन का तिलक लगाना । लड्डू गोपाल को झूले में बैठाना और उन्हें झूला झुलाना । भगवान को फल, मिठाई, पंचामृत, पंजीरी आदि का भोग लगाना । रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के बाद विधि - विधान से पूजा करना । भगवान की आरती करना और प्रसाद चढ़ाना । भगवान को अर्पित किए गए प्रसाद को ग्रहण करके व्रत खोलना । पूरे दिन राधा-कृष्ण के नाम का जप करना । भगवान कृष्ण का अधिक से अधिक ध्यान करना । किसी से झगड़ा नहीं करना और क्रोध से बचना । इन नियमों का पालन करके जन्माष्टमी का व्रत रखने से भक्तों को भगवान कृष्ण की अपार कृपा प्राप्त हो सकती है ।
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