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6. अति वृष्टिपात और बाढ़-संकट

मातृवंदना अगस्त 2023

जल, वायु, अग्नि, धरती और आकाश सृष्टि के पंच महाभूत, सर्व विदित हैं l धरती पर वायु अग्नि और जल तत्वों की प्रतिशत मात्रा जब कभी कम या अधिक हो जाती है तब उस पर असंतुलन पैदा हो जाता है l वायु का दबाव कम या अधिक होने पर आंधी या तूफ़ान आने और पेड़, जंगल के अभाव में वायुमंडल में ताप अधिक बढ़ने से जंगल में आग लगने का भय बना रहता है l इसी प्रकार धरती पर जब कभी भारी वृष्टिपात होता है तो वर्षाजल बाढ़ के रूप में परिवर्तित हो जाता है और उससे धरती का कटाव होता है, जान-माल की हानि होती है l
बाढ़ आने का कारण -
अवैध खनन – कभी नदियों और नालों में विद्यमान बड़े-बड़े पत्थर जल बहाव की गति को कम किया करते थे l लोगों के मकान मिट्टी, लकड़ी के बने होते थे l वे उसी में संतुष्ट रहते थे l परन्तु जबसे पक्के भवन, पुल और मकानों के निर्माण हेतु नदियों और नालों में पत्थर, रेत और बजरी का अवैध खनन किया जाने लगा है तब से उनमें वर्षा काल में जल बहाव की गति भी तीव्र होने लगी है और उसे बाढ़ के नाम से जाना जाता है l
अवैध पेड़-कटान से वन्य क्षेत्रफल की कमी – अवैध पेड़ कटान होने से धरती का निरंतर चीर-हरण किया जा रहा है l धरती हरित पेड़, पौधे, झाड़ियों और घास के अभाव में बे-सहारा/नग्न होती जा रही है जिससे कम बर्षा होने पर भी वह वर्षाजल का वेग सहन नहीं कर पाती है, निरंकुश बाढ़ बन जाती है और वह विनाश लीला करने लगती है l l
नदियों के किनारे पर बढ़ती जन संख्या – नदी, नालों के किनारों पर अन्यन्त्रित जन संख्या बढ़ने से दिन-प्रतिदिन हरे पेड़, पौधे, झाड़ियों और घास का आभाव हो रहा है l जिससे जल बहाव मार्ग परिवर्तित होता रहता है l जल बहाव को तो उसका मार्ग मिलना चाहिए, उसे नहीं मिलता है l उसके मार्ग में अवैध निर्माण होते हैं l अगर मनुष्य जाति नदी, नालों में अपने लिए आवासीय घर, पार्क और अन्य आवश्यक निर्माण करवाती है तो नदी, नाला भी अपने बहाव के लिए मार्ग तो बनाएगा ही l जल प्रलय अवश्य आएगी l धरती के रक्षण हेतु नदी, नालों के किनारों पर तो अधिक से अधिक हरे पेड़, पौधे, झाड़ियां और घास होने चाहिए, न कि मनुष्य द्वारा निर्मित कंक्रीट, पत्थरों का जंगल l
पहाड़ों पर अधिक सड़क निर्माण – विकास की दौड़ के अंतर्गत मैदानी क्षेत्रों में चार, छेह लेन के राष्ट्रीय राज-मार्ग निर्माण कार्य जोरों से हो रहा है l उससे पहाड़ी राज्य-क्षेत्र अछूते नहीं रहे हैं l वहां भी चार लेन की सडकें बननी आरंभ हो गई हैं l इससे भूमि का कटाव जोरों पर है l लाखों पेड़ों की बलि दी जा रही है l धरती हरे पेड़, पौधे, झाड़ियां और घास से विहीन होती जा रही है l वृहत जंगल वृत्त, वन्य संपदा के सिकुड़ने से, असंतुलित वृष्टिपात होने तथा बाढ़ आने से धरती का कटाव बढ़ रहा है l
देश, धर्म-संस्कृति के प्रति बढ़ती मानवीय उदासीनता - संपूर्ण धरा पर मानव और दानव दो जातियां पाई जाती हैं l नर और मादा उनके दो रूप हैं l वेदज्ञान मानव को ही मानव नहीं बनाये रखता है बल्कि दानवों को भी मानव बनाने की क्षमता रखता है l जब तक मनुष्य वेद सम्मत अपना जीवन यापन करता रहा, वह मानव ही बना रहा l वह देश, सनातन धर्म-संस्कृति का भी सम्मान करता था पर जब से वह वेद विमुख हुआ है, तब से वह दानव बन गया है l वेदज्ञान जल, वायु, अग्नि, आकाश और धरती की पूजा के साथ-साथ धरती पर विद्यमान पहाड़, नदियों, पत्थर, पेड़, फूल-वनस्पतियों जीवों के भरन-पोषण का ध्यान रखने में मानव को सन्मार्ग पर चलने हेतु मार्ग-दर्शन करते थे l मानव की स्वार्थ पूर्ण दानव प्रवृत्ति बढ़ने से अब वह देश, धर्म-संस्कृति के विरुद्ध आचरण करने लगा है, जो उसके विनाश का कारण बनता जा रहा है l
बाढ़ का दुष्प्रभाव –
बाढ़ आने से नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है l खेतों की फसल नष्ट हो जाती है l स्कूल, विद्यालय, महाविद्यालय बंद हो जाते हैं l व्यापारिक, व्यवसायिक, कार्यशालाओं की गतिविधियाँ मंद पड़ जाती हैं l नदियों के किनारे की वस्तियाँ उजड़ जाती हैं l राष्ट्रीय राजमार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं l पेय जलस्रोत नष्ट हो जाते हैं l जल बाँध टूट जाते हैं l खेत–खलिहान, वस्तियाँ जलमग्न हो जाती हैं l राष्ट्रीय संपदा की भारी हानि होती है l यह सब चिंता के ऐसे ज्वलंत विषय हैं जिन्हें समय रहते सुलझा लेना अति आवश्यक है l
बाढ़ की रोक-थाम के उपाए
नदी, नालों के किनारों पर आवासीय वस्तियाँ वसाने के स्थान पर अधिक से अधिक पोधा-रोपण किया जाना चाहिए l नदियों और पहाड़ों का खनन रोका जाना चाहिए l नदियों के किनारे पर और अधिक वस्तियों को नहीं वसाना चाहिए l नदियों नालों के किनारों से अवैध कब्जे हटाए जाने चाहिए l कार्यशालाओं के माध्यम से लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए l विकास की आड़ और अंधी दौड़ में पहाड़ों का सीना छलनी न किया जाना चाहिए l नदी नालों में प्लास्टिक कचरा नहीं बहाना चाहिए l वन काटुओं व खनन माफियाओं पर नकेल कसी जानी चाहिए l
इस कार्य को कार्यान्वित करने हेतु सरकार, प्रशासन, प्रशासकों, आचार्यों, विद्यार्थियों, स्वयंसेवी संस्थाओं, स्वयं सेवकों को व्यवस्था के अंतर्गत आगे बढ़कर अपना-अपना दायित्व निभाना चाहिए ताकि आने वाले महा विनाश से देश, धर्म-संस्कृति और मानवता की रक्षा सुनिश्चित हो सके l

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