कश्मीर टाइम्स 4.8.1996
इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि भारतीय परंपरागत जन उपयोगी शिक्षा-प्रणाली ने विश्व की विशाल धरती पर मानव समाज, स्थानीय भाषा, विद्या, कला, ज्ञान-विज्ञान, सभ्यता-संस्कृति और साहित्य सृजन, पोषण और उसका विकास किया l उसके सामने आई समस्या व्यक्तिगत विकास की रही हो या समाजिक. आर्थिक हो या राजनैतिक, सभ्यता, कला–सांस्कृतिक हो या राष्ट्रीय – भारतीय शिक्षा-प्रणाली को मिली हर क्षेत्र में पूर्ण सफलता उसके अपने अस्तित्व का प्रमाण रही है l वह अपने आप में पूर्ण थी, सक्षम थी और समर्थ भी l
प्रमाणिकता के अनुसार भारतीय इतिहास उन महान विभूतियों के vls Hkjk gqvk gS अदम्य साहस, पराक्रम, न्याय प्रियता, दूरदर्शिता, सद्चरित्रता, धीरता-वीरता, त्याग, सेवाभाव, बलिदान, परोपकार सादगी, सत्य, प्रेम-भक्ति, तपस्या, जप-तप, योग साधना की पवित्र गाथाओं से भरा हुआ है जिनका गुण-गान व्यख्यान करती कलम कभी रूकती नहीं है l वाणी कहते, कान सुनते थकते नहीं हैं और आँखें सोना भूल जाती हैं l यह सब भारतीय शिक्षा-प्रणाली ही की बात है l जिससे विश्व भर में “सोने की चिड़िया” के नाम से, भारत की पहचान बनी l
“सारी धरती गोपाल की है l” अथवा “धरती पर रहने वाले सभी प्राणियों का स्वामी एक है l” कहने वाला अगर विश्व में कोई राष्ट्र है तो वह भारतवर्ष ही है l इससे उसके सत्य ज्ञान सर्वोदयी भावना और शुद्ध संकल्प का पता चलता है l ऐसा विश्व ने माना है l
विश्व में हर कोई किसी का शत्रु नहीं है और हर कोई सदा मित्र भी नहीं रहता है l जो आज शत्रु है, कल मित्र हो सकता है और आज का मित्र कल का शत्रु बन सकता है l पतन के पश्चात् उत्थान और उत्थान के बाद पतन का होना निश्चित है जो धुप-छाँव के समान हैं l बात सर्व विदित है कि किसी घर की कमजोरी का लाभ कोई बुद्धिमान, महाचतुर, कुटनीतिज्ञ शत्रु ही उठाता है l वह पहले उस घर में फूट की ज्वाला प्रज्वलित करता है फिर उस खेल का दृश्य भी देखता है l समय या असमय पर सोने की चिड़िया भारत वर्ष के साथ कुछ ऐसा ही हुआ है l
महाचतुर, कुटनीतिज्ञ, बुद्धिमान मैकाले ने भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक की यात्रा करने के पश्चात् यह भली प्रकार जान लिया था कि जिस प्रकार उसके अपने राष्ट्र में सुख-समृद्धि के लिए एक लोक प्रिय सरकार और उसे दीर्घ काल तक अपने अस्तित्व में बनाये रखने के लिए एक स्वच्छ पारदर्शी एवंम कुशल प्रशासन अनिवार्य है – ठीक उसी प्रकार शांतिप्रिय, ज्ञान-विज्ञान, अपार सुख समृद्धि से संपन्न भारतवर्ष “सोने की चिड़िया” को हर प्रकार से खोखला व कमजोर करने और उसे लूटने के लिए एक ऐसी उद्देश्यहीन, दिशाहीन, शिक्षा-प्रणाली की आवश्यकता है जो भारत की सर्वोच्च ब्रह्म विद्या, कला, ज्ञान-विज्ञान धर्म संस्कृति, साहित्य और सभ्यता का समूल विनाश कर दे l वह फिर कभी पनपे भी तो वह भारत के हित के लिए नहीं मात्र ब्रिटिश साम्राज्य के हित ही में समर्पित हो l
इसी भावना के साथ 2 अक्तूबर 1835 के दिन वह भारत के किसी भू-भाग पर गोरों द्वारा गोरों के लिए आयोजित एक गुप्त सम्मेलन में उपस्थित हुआ था l वहां उसने गोरों को संबोधित करते हुए कहा था – “हमने शिक्षा द्वारा भारत में एक ऐसा नया वर्ग तैयार करना है जो हाड-मांस और रक्त से भले ही भारतीय हो परन्तु वह ह्रदय और मस्तिष्क से अंग्रेज अवश्य होगा l”
जहाँ पन्द्रह अगस्त 1947 के दिन भारत स्वतंत्र हुआ था वहीँ उसे धरोहर रूप में भी मिली थी पाश्चात्य शिक्षा-प्रणाली l उसका हम आज भी उसी प्रकार अनुसरण किये जा रहे हैं जैसा कि अपने शासन-काल में अंग्रेज किया करते थे l हमें चाहिए था - पाश्चात्य शिक्षा-प्रणाली का पूर्णतया त्याग कर देते और उसके स्थान पर फिर से अपनी परंपरागत गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली अपनाते परन्तु ऐसा हुआ नहीं l इसकी जमने आवश्यकता ही नहीं समझी l भारतवासी आज भी अपने हृदय और मस्तिष्क से भारतीय बनने को तैयार नहीं हैं l
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