मातृवंदना दिसंबर 2021
सनातन धर्म की कालगणना के अंतर्गत सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग चार युग माने गए हैं l हर युग में धर्मी और अधर्मी लोग होते हैं l इतिहास साक्षी है कि सृष्टि में जब–जब अधर्म की वृद्धि और धर्म की हानि हुई है, तब-तब धर्म की रक्षा करने हेतु किसी न किसी महान आत्मा का धरती पर अवतरण भी हुआ है जिसने धर्म की पुनर्स्थापना और अधर्म का विनाश किया है l त्रेता युग में आर्यपुत्र श्रीराम जी ने विधर्मी रावण का और द्वापर युग में श्रीकृष्ण जी ने कंस का संहार किया था l अखंड भारत की भूमि “आर्य भूमि” है l
मुगलों के आगमन से पूर्व आर्यवर्त में “सामाजिक वर्ण व्यवस्था” कर्म आधारित सर्वमान्य थी l मुगल शासकों ने उसे अपने स्वार्थ हेतु जन्म आधारित जाति सूचक बनाया l वह आगे चलकर “वर्ण व्यवस्था” के लिए बड़ा घातक सिद्ध हुआ l लोग भूल गए कि सनातन धर्म एक विशाल वट वृक्ष समान है और “सामाजिक वर्ण व्यवस्था” के चारों वर्ण उसकी ठोस टहनियां l जातियों में विभक्त भारतीय समाज सनातन धर्म की उपेक्षा करके शनै-शनै मात्र जातियों की रक्षा-सुरक्षा करने लग गया l लोग वैदिक पेड़ सनातन धर्म की “वर्ण व्यवस्था” के स्थान पर उसके पत्ते “जातियां” बचाने का प्रयास करने लगे l
मुगल शासनकाल ने भारत में इतना अधिक आतंक, जिहाद फैलाया और जबरन धर्मांतरण किया कि बहुत से लोगों ने अपने राष्ट्र के कुशल नेतृत्व और रक्षा-सुरक्षा के आभाव में अत्याचारी मुगलों के भय से “इस्लामी मजहब” स्वीकार कर लिया l जो नहीं माने उन्हें बड़ी निर्दयता पूर्वक मार दिया गया l उनमें एक ऐसा भी वर्ग था जिसने कभी हार नहीं मानी l उसने मरे हुए पशु उठाये, उनका चमड़ा उतारने का भी कार्य किया l कुछ लोग महलों और हवेलियों से मैला उठाने का कार्य करने लगे, वे भंगी कहलाये l उन्हें समाज में अछूत भी कहा जाने लगा l
अंग्रेजी शासनकाल में “गुरुकुल शिक्षा–प्रणाली” को बंद करके उसके स्थान पर अंग्रेजी शिक्षा–प्रणाली आरम्भ की l अंग्रेजी स्कूल, कान्वेंट स्कूल स्थापित किये ताकि देश, धर्म-संस्कृति का मानचित्र बदला जा सके l देशभर में “गुरु-शिष्य परम्परा” की जगह निरंतर अंग्रेजी स्कूल, कान्वेंट स्कूल खुलते रहे और बच्चे सेक्युलर बनते गए l
सेक्युलर वादी सरकारों के द्वारा “परम्परागत भारतीय इतिहास” को मनमाने ढंग से छिपाया गया l उसके स्थान पर भारत विरोधी इतिहास पाठ्यक्रमों में जोड़कर पीढ़ी दर पीढ़ी पढ़ाया गया l
धर्म के ठेकेदारों ने भी धर्म की मनमानी परिभाषा गढ़कर भारतीय समाज को भ्रमित और दिशाहीन किया है l
रामायण के अनुसार आर्यपुत्र श्रीराम जी का चरित्र हमें सनातन धर्म का अर्थ, कर्तव्य-पालन करना
सिखाता है न कि उससे विमुख होना l नवयुवाओं का आर्यपुत्र लक्ष्मण की तरह गर्म खून और श्रीराम जी की तरह शीतल मस्तिष्क सर्वहितकारी हो सकता है l महाभारत में कहा गया है कि “अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है किन्तु धर्म की रक्षा करने के लिए हिंसा करना उससे भी अधिक श्रेष्ठ है l
किसी व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र पर आई विपदा, कठिनाई, संकट और बीमारी के समय पर समर्थवान नवयुवाओं द्वारा पीड़ितों की सेवा-सुश्रुषा करने हेतु तत्परता, सहायता, सेवा, रक्षा-सुरक्षा किया जाना ही परम धर्म, परम कर्तव्य है l जिन जिहादी दानवों को लवजिहाद, आतंक और धर्मांतरण फ़ैलाने से आनंद मिलता है, उन्हें आर्यपुत्र श्रीराम, भारत, संविधान, कानून, राष्ट्रीय ध्वज और उसकी सेना से कभी प्रेम नहीं हो सकता l देशभर में लवजिहाद, आतंक और धर्मांतरण करने वाले लोगों के विरुद्ध समस्त समाज को शास्त्र और शस्त्र का उचित प्रयोग किया जाना अनिवार्य होना चाहिए l संगीत, नृत्य, अभिनय, भाषण, संवाद, लेखन जैसी विभिन्न कलाओं के पैमानों से भारत, सनातन धर्म संस्कृति और सभ्यता का सम्मान हर समय छलकना चाहिए l जो फ़िल्मी स्टार संगीत, नृत्य, अभिनय, भाषण, संवाद, लेखन जैसी कलाओं से देश धर्म-संस्कृति का अपमान करते हैं, उनका सामाजिक बहिष्कार अवश्य होना चाहिए l
सनातन धर्म के अंतर्गत सभी मंदिरों में संस्कृत भाषा का भयमुक्त पठन-पाठन करने वाले भगवाधारी पंडितों का समाज द्वारा हार्दिक सम्मान व अभिनन्दन किया जाना चाहिए l मंदिरों द्वारा संचालित गुरुकुलों में भी देश, धर्म-संस्कृति की सेवा-कार्य करने वाले सनातनी सन्यासियों का समाज द्वारा हार्दिक सम्मान व अभिनन्दन होना चाहिए l अपने देश, धर्म-संस्कृति के विरुद्ध हो रहे निरंतर षड्यंत्रों, आक्रमणों को हम सहजता से समझ पायें, उनके विरुद्ध कुछ ठोस कदम उठा सकें, तभी हमारा जीवन सार्थक हो सकता है l मानव जीवन का उद्देश्य तो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति करना था लेकिन वर्तमान में अखंड भारत भूमि “आर्य भूमि” के आर्यपुत्र युवाओं का मात्र पैसा कमाना, परिवार को खुश रखना, मौज मस्ती करना और मात्र अपने काम तक सीमित रहना, उद्देश्य बन गया है l वर्तमान में अंग्रेजी सियार-सेक्युलर बनकर देश, धर्म-संस्कृति का बात-बात पर अधिक से अधिक राजनीति और उसका अपमान करना एक आम बात हो गई है जो एक बड़ा चिंतनीय विषय है l
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