जून, 2025 | मानवता - Part 4

मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



महीना: जून 2025

  • श्रेणी:

    शिक्षा

    - गुरु - शिष्य के जिस संयुक्त प्रयास से शिष्य के जीवन का चहुँमुखी अर्थात शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का विकास होता है , शिक्षा कहलाती है l
    - # हर मंदिर, मठ में वेदाचार्य की नियुक्ति करनी चाहिए जो स्थानीय बालक/बालिकाओं को वैदिक विद्याओं का शिक्षण - प्रशिक्षण दे सकें l*



  • श्रेणी:

    एकाकी परिवार

    परंपरागत संयुक्त परिवार से वर्तमान एकाकी परिवार बहुत भिन्न हैं । इनमें मात्र माता - पिता और नौकर - चाकर ही होते हैं । पिता नौकरी करता है और माता घर का सब कार्य करती है या दोनों ही नौकरी करने बहार जाते हैं । अगर वे दोनों नौकरी करते हों तो घर और बच्चे की देख भाल के लिए उन्हें दूसरों पर या मात्र नौकर, आया या नौकरानी पर निर्भर रहना पड़ता है, जिनसे उन्हें संकट का भी सामना करना पड़ सकता है l   

  • श्रेणी:

    संयुक्त परिवार

    विश्व भर में अन्य सभ्यताओं की अपेक्षा मात्र सत्सनातन समाज ही एक ऐसा समाज है जिसकी दृष्टि से देखने पर मातृ - पक्ष में नानी - नाना, मामी - मामा, मासी - मासड़ मिलते हैं जबकि पितृ - पक्ष में पति-पत्नी, बेटी - बेटा, दादी - दादा, चाची - चाचा, ताई - ताया, बुआ - फूफ़ा, बहन - बहनोई, भावी - भाई, देवरानी-देवर, जेठानी - जेठ मिलते हैं । इन दोनों परिवारों के सभी संस्करी लोग कभी अपने - अपने परिवार में संयुक्त रूप से रहते थे । वे आपस में मिलजुल कर कार्य करते थे और एकजुट रहकर पारिवारिक दुःख - सुख का भी सामना करते थे, बच्चों को सबका प्यार व अच्छे संस्कार मिलते थे । वह संयुक्त परिवार कहलाता था । लेकिन वर्तमान में भाग - दौड़ की जिन्दगी में ऐसे परिवार या तो लुप्त हो गए हैं या जो बचे हैं, वे लुप्त होने के कगार पर पहुँच गए हैं ।  

  • श्रेणी:

    माता – पिता 


    माता-पिता –
    गुरु माता – पिता बच्चे को वेद सम्मत संस्कार देते हैं । इसके साथ ही साथ वे परिवार/समाज का निर्माण/कल्याण भी करते हैं । जिस प्रकार महिला अपने परिवार और समाज की आंतरिक जिम्मेदारियों को भली प्रकार संभालती है, ठीक उसी प्रकार पुरुष भी परिवार हित में बाह्य जिम्मेदारियों को संभालते हैं ।परिवार में माता – पिता द्वारा संस्कारित, गुरु द्वारा दीक्षित और अध्यापक द्वारा शिक्षित – प्रशिक्षित स्नातक युवा ही अपने जीवन की चुनौतियों, बधाओं, कठिनाइयों और दुःख – सुख का धैर्य और साहस के साथ सामना करने में सक्षम होते हैं । इससे वे सामाजिक एवंम राष्ट्रीय जिम्मेदारियों को भी भली प्रकार निभाते हैं ।

    भ्रूण हत्या –
    अगर बेटी का कोई अपराध ही नहीं तो माँ-बाप उसे जन्म लेने से पहले मार क्यों देते हैं ? ऐसा करने से कहीं उनका सम्मान बढ़ता है क्या ?
    भ्रूण-हत्या को सदा के लिए भूल ही जाना होगा, ये किसी सभ्य समाज की संस्कृति नहीं है l
    बेटे की लालसा में बेटी की भ्रूण-हत्या एक जघन्य अपराध नहीं तो और क्या है ?
    पहले अभिभावक उस बेटी का अपराध तो बताएं, जिसे वे जन्म लेने से पहले उसे मार देना चाहते हैं l
    जन्म लेने से पूर्व बेटी की हत्या करके, समाज में नर- नारी असंतुलन बढ़ाकर माँ-बाप अपना कौनसा दायित्व पूरा कर लेंगे ?


    सुरक्षा कवच –
    माता-पिता के मन से निकला हुआ प्रत्येक आशीर्वाद सन्तान के लिए जन्म-जन्मान्तरण तक सुरक्षा कवच बन जाता है l