2025 | मानवता

मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



साल: 2025

  • श्रेणी:

    मतदान करो, करवाओ – लोकतंत्र सशक्त बनाओ

    दिनांक 2 अक्तूबर 2025

    त्रिगुणमयी प्रकृति –
    गीता अनुसार – “प्रकृति त्रिगुण प्रधान है - सात्विक गुण, राजसिक गुण और तामसिक गुण l गुण गुणों में वर्तते हैं l सभी त्रिगुण एक दूसरे के विपरीत व्यवहार करते हैं l जैसे सात्विक गुण प्रबल होने पर राजसिक, तामसिक गुण निर्बल हो जाते हैं l राजसिक गुण के प्रबल होने पर सात्विक, तामसी गुण निर्बल दिखते हैं l तामसी गुण प्रबल हो तो सात्विक, राजसिक गुण निर्बल हो जाते हैं l” यह क्रम निरंतर चलता रहता है l इससे कोई भी व्यक्ति कभी अछूता नहीं रहता है l
    सात्विक गुण से प्रेरित सात्विक प्रवृत्ति का मनुष्य विवेकशील होता है, सात्विक भोजन करता है l वह ईश्वर की पूजा करता है l किसी का अहित नहीं करता है, सबका हित सोचता है, विचारता है और निहारता है l वह किसी को निर्धनता, विषमता में नहीं देख पाता है, वह उसकी सहायता करने में विश्वास रखता है, वह सबकी सुख - समृद्धि चाहता है l वह किसी के साथ अन्याय नहीं, न्याय देखना चाहता है l वह सदैव मान - मर्यादा में रहकर सबके हित में कार्य करने वाला होता है l
    राजसिक गुणों वाला विवेकशील मनुष्य राजसिक प्रवृत्ति से प्रेरित होकर राजसिक भोजन करता है l देवी - देवताओं की पूजा करता है l वह अपना, अपने परिवार, अपने संबंधियों का ही भला सोचता है, विचारता है और देखना चाहता है l वह अपने आगे किसी अन्य की सुख - समृद्धि नहीं देख पाता है, इर्ष्या करता है l वह अपने और अपनों के लाभ हेतु दूसरों के साथ अन्याय भी करने में संकोच नहीं करता है l उसके लिए हर मान - मर्यादा अपने लिए और अपनों तक ही सीमित होती है l
    तामसी गुणों का स्वामी मनुष्य तामसी प्रवृत्ति के कारण सदैव तामसी भोजन करता है l वह भूत- प्रेतों की पूजा करता है l वह मात्र अपना भला सोचता है, विचारता है और चाहता है l वह सदैव अपने मनोविकारों से प्रभावित, उनमें लिप्त और चूर रहता है l उसके लिए सत्य - ज्ञान विष समान होता है l वह मान - मर्यादा का कोई भी महत्व नहीं समझता है l वह जो चाहता है, करता है l भले ही उसे उसका कितना भी मूल्य क्यों न चूकाना पड़े l

    विभिन्न मत –
    त्रिगुणमयी मानव प्रकृति से प्रेरित हर व्यक्ति की व्यक्तिगत सोच, राय, विचार मत कहलाता है l चुनाव में मत को वोट कहा जाता है l संविधान के अनुसार स्थानीय निकायों, विधान सभा या लोक सभा के लिए चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी के पक्ष में वोट डालकर उसे जिताने की समस्त प्रक्रिया व्यक्तिगत मत पर निर्भर करती है, उसी से सम्पन्न होती है l देश भर में विभिन्न अनेकों विचारधारायें होने के कारण रजनीतिक दलों की भी कोई कमी नहीं है l कौन मतदाता चुनाव बूथ पर जाकर किसे वोट दे देगा ! यह संशय चुनाव सम्पन्न होने तक बना रहता है l हर व्यक्ति का एक - एक मत बहुमूल्य होता है l उसमें इतनी शक्ति होती है कि एक मत बढ़ जाने से किसी विधायक या सांसद की सरकार बन भी सकती है और एक मत की कमी रह जाने पर उसकी सरकार गिर भी सकती है l जन मत, सिद्धांत, पन्थ किसी संस्था, समुदाय या राजनीतिक दल के ही हो सकते हैं l

    जागरूक मतदाता –
    किसी विषय पर दूसरों के समक्ष अपनी सोच, राय या विचार प्रस्तुत करने वाला, चुनाव के समय वोट डालने वाला अथवा समर्थन करने वाला मतदाता होता है l संविधान के अनुसार - जो मतदाता भारत का नागरिक हो l जो आचार संहिता लगने तक संपूर्ण 18 वर्ष का हो गया हो l जो उस निर्वाचन क्षेत्र का निवासी हो, जहाँ मतदान सूचि में मतदाता के रूप में उसका पहली बार नाम अंकित हुआ हो, वह मतदाता मतदान करने की योग्यता रखता हो l उसे लोक तांत्रिक देश भारत में 18 वर्ष से ऊपर के हर किशोर/युवा को संवैधानिक रूप से आजीवन अपना मतदान करने का अधिकार प्राप्त होता है l निर्वाचन काल में वह मतदाता अपने मतदान से अपनी पसंद के प्रत्याशी की हो रही हार को भी अपने एक मत से उसकी जीत में परिवर्तित कर सकता है, ऐसी अपार क्षमता रखने वाले उसके मत को बहुमूल्य कहा जाता है l 1996 में माननीय अटल विहारी वाजपेयी जी की केन्द्रीय सरकार थी जिन्हें मात्र एक मत की कमी के कारण हार का सामना करना पड़ा था l हर लोकतान्त्रिक देश में किसी नेता, दल या दल की विचारधारा को लेकर उसके बारे में मतदाता की जो अपनी राय या मत होता है, उसे उसका मतदान के समय उपयोग अवश्य करना चाहिये l एक अच्छा मतदाता वही हो सकता है जो जागरुक हो l वह चंद सिक्कों के लिए कभी बिकता नहीं है, किसी से डरता नहीं है l उसे मतदान किसे देना है, उसने वोट किसे दिया है ? इन सभी बातों की वह सदा गोपनीयता बनाये रखता है l
    संयुक्त मतदान –
    किसी विषय पर अपना मत व्यक्त करने की प्रक्रिया मतदान होती है l दूसरों के समक्ष किसी विषय पर अपनी सोच, राय अथवा विचार प्रस्तुत करना, या चुनाव के समय वोट डालना, प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष समर्थन करना मतदान कहलाता है l मतदान दो प्रकार के होते हैं – पहला सबसे अच्छा चुनाव वह होता है जो निर्विरोध एवं सर्वसम्मती से सम्पन्न हो l इसमें प्रतिस्पर्धा के लिए कोई स्थान नहीं होता है और दूसरा जो ईवीएम में किसी प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव चिन्ह का बटन दबाकर मतदाताओं के द्वारा अपना संयुक्त समर्थन प्रकट किया जाता है, मतदान कहलाता है l लेकिन प्रतिस्पर्धा मात्र दो ही प्रत्याशी प्रतिद्वद्वियों में अच्छी होती है l चुनाव आयोग के द्वारा चुनाव बूथ पर निर्धारित चुनाव की निश्चित समयावधि में चरणवद्ध ढंग से मतदाताओं के द्वारा संयुक्त मतदान का समापन्न होता है l

    मतदान के लाभ –
    संविधानिक व्यवस्था के अंतर्गत हर पांच वर्ष पश्चात, मतदाताओं के द्वारा संयुक्त मतदान करने से स्थानीय निकायों, विधान सभा या लोक सभा के लिए चुनाव संपन्न होते हैं l मतदाता, व्यक्ति या संस्था के द्वारा मतदान करके महत्व पूर्ण कार्य करने या बोलने के लिए अधिकृत प्रत्याशी, व्यक्ति को उसका प्रतिनीधि चुना जाता है l मतदान करने से किसी उत्तरदायी व्यक्ति, जन समुदाय, जन संस्था को फलने - फूलने का समान अवसर मिलता है l मतदान से देश में लोकतान्त्रिक व्यवस्था सशक्त होती है l मतदान से व्यक्ति, परिवार समाज और राष्ट्र का चहुँ - मुखी उत्थान और विकास होता है, शांति स्थापित होती है, सुख - समृद्धि आती है l
    शत्रुओं की समाज विरोधी गतिविधियाँ –
    जनता को जब उसके पुरुषार्थ और सरकार से सुख सुविधाएँ प्राप्त होने लगती हैं तो वह सब देश के दुश्मनों और गद्दारों को उचित नहीं लगता है l वे ऐसी व्यवस्था को नष्ट करने में विपरीत विचारधारा के होते हुए भी एकजुट हो जाते हैं, उसके विरुद्ध तरह - तरह के षड्यंत्र करने लगते हैं l वे गुरुकुलों का विरोद्ध करते हैं l अधिक से अधिक मदरसे, स्कूल स्थापित करके बच्चों में हिंसा, आतंक वाद, जिहाद, अलगाववाद, परिवारवाद जैसे वीज वोकर, वैसी मानसिकता को बढ़ावा देते हैं और दोष दूसरों को देते हैं l वे स्थान - स्थान पर हिंसा करते हैं l महिलाओं का अपमान करते हैं, उनका अपहरण, बलात्कार और धर्मांतरण भी होता है l

    सुझाव –
    शत्रु और गद्दारों के संस्कार और उनकी नीच मानसिकता कभी बदलती नहीं है लेकिन उसे जन मत शक्ति से नियंत्रित अवश्य किया जा सकता है l इसके लिए संस्कारित मतदाताओं की अपनी सोच, राय, अथवा विचार देश, धर्म, संस्कृति से ओतप्रोत होने चाहिए l किसी भी मतदाता को अपने कार्य में चाहे वह जितना भी व्यस्त क्यों न हो उसे समय निकालकर वांछित मतदान अवश्य करना चाहिए l संविधान में लोकतान्त्रिक ढंग से संयुक्त मतदान करके सरकार चुनने की व्यवस्था है l संस्कारित मतदाता संस्कारी प्रत्याशी को वोट देकर उसे अपना सफल संस्कारी प्रतिनिधि बना सकता है l सरकार को ऐसी व्यवस्था अवश्य करनी चाहिए जिससे कोई भी मतदाता मतदान किये बिना छूट न सके l मतदान करना सभी के लिए अनिवार्य होना चाहिए l इससे उत्तरदायी और लोक प्रिय सरकार का गठन हो सकता है l वह ऐसी व्यवस्था अवश्य करेगी जिससे शत्रुओं और गद्दारों की मानसिकता के विपरीत जन साधारण में सतर्कता, जागरूकता आयेगी l वह संगठित होने की तत्परता दिखाएगा l पीड़ितों के प्रति सद्भावना, सेवा, सहायता करना उसका स्वभाव बन जायेगा l







  • श्रेणी:

    संगत और उसका प्रभाव

    दिनांक 24 सितंबर 2025 

    सत्सनातन अनास्था का दुष्प्रभाव –
    सत्सनातन धर्म के विरोधी जन और उनके समाज के द्वारा सत्सनातन धर्म और जन आस्था के विरुद्ध आचरण करने के कारण – धरती पर विशेष सम्प्रदाय के लोगों - आतताइयों की बाढ़ सी आ गई है l उनके द्वारा सत्सनातन धर्म के विरुद्ध स्थान - स्थान पर बात - बात पर उपद्रव मचाना, लूट-पाट करना, हिंसा करना, महिलाओं का ब्रेन वाश करके अपहरण, लव जिहाद, धर्मांतरण, अपमान करना वर्तमान में एक आम बात है l अब तक सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं और जागृत महानुभावों के द्वारा उनकी समाज विरोधी गतिविधियों पर विराम लगाने के सतत जो भी प्रयास हुए हैं, अपर्याप्त सिद्ध हुए हैं l उन्हें तभी रोका जा सकता है जब संख्या आधारित आतताइयों के द्वारा किये जाने वाले किसी भी उपद्रव के अनुपात में उनके विपरीत सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों एवं सुप्त अवस्था से जागृत जन, समाज के द्वारा एक जुट होकर कोई सशक्त प्रयास हो l देश का शिक्षाविद, बुद्धि जीवी वर्ग इस समस्या को भली प्रकार जानता है और समझता भी है l आवश्यकता है - जन साधारण और समाज अनास्था और आतताइयों के कुकृत्यों एवं उनके दुष्प्रभाव से बचने/बचाने हेतु विद्वानों का महत्व समझे, उनका मिलकर साथ दे, उनके प्रति अपनी श्रद्धा, प्रेम, भक्ति और विश्वास बना कर रखे l

    विद्वानों की संगत -
    # विद्वानों के प्रति श्रद्धा, प्रेम, भक्ति और विश्वास रखने से हर समस्या का निदान होता है, यथार्थ वैदिक ज्ञान वर्धन होता है, तात्विक ज्ञान प्राप्त होता है l*
    # तात्विक ज्ञान से आत्म शांति मिलती है l*
    # आत्मशांति की प्राप्ति से जन जाग्रति आती है, उससे मानवीय, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय समस्याओं का हल निकलता है l*
    # जनजागृति से धार्मिक संस्कार मिलते हैं, विद्या ज्ञान प्राप्त होता है l*

    संगत से सद्भावना –
    # विद्वानों की संगत करने से सद्भावना पैदा होती है, इन्द्रिय सयम और मनो निग्रह का मार्ग प्रसस्त होता है, स्वयं किये जाने वाले कार्य में मनायोग बना रहता है, कार्य में सफलता मिलती है l*
    # इन्द्रिय सयम और मनो निग्रह से त्याग भावना बढ़ती है l*
    # त्याग भावना से माता - पिता, गुरु, गंगा, गौ, गीता, वृद्ध, ब्राह्मण, संत और अतिथि सेवा के प्रति मन में निस्वार्थ भाव उभरते हैं l *
    # निस्वार्थ सेवा भाव से मन में दान भावना उत्पन्न होती है l*

    सद्भावना से सद्विचार –
    # सद्भावना से सद्विचार उत्पन्न होते हैं, माता - पिता, गुरु, गंगा, गौ, गीता, वृद्ध, ब्राह्मण, संत, अतिथि, राष्ट्र और मानव समाज सेवा संबंधी अच्छे विचार उत्पन्न होते हैं, जन चर्चायें होती हैं, जन संगोष्ठियाँ की जाती हैं, विचारों का अदान – प्रदान, प्रचार – प्रसार होता है l*
    # महत्वपूर्ण विचार प्रकाशित और चर्चायें करते समय मानवीय, पारिवारिक, सामजिक एवं राष्ट्रीय मान – मर्यादाओं का ध्यान रखा जाता है l*
    # मंच पर सबके सम्मुख अपना - अपना विचार रखने हेतु विभिन्न विचारकों को एक समान अवसर दिया जाता है l*
    # सभी के विचारों को ध्यान में रखते हुए सर्वहितकारी विचारों पर सर्व सहमती बनाई जाती है l*

    सद्विचारों से सत्कर्म –
    # सद्विचारों से कल्याणकारी सत्कर्म होते हैं l उन से माता - पिता, गुरु, गंगा, गौ, गीता, वृद्ध, ब्राह्मण, संत और अतिथि की सेवा होती है, सामाजिक एकता बनती है, साहित्य, संगीत जन - संस्कार, कला - संस्कृति का रक्षण होता है l*
    # साहित्य, संगीत, जन - संस्कार, कला - संस्कृति के रक्षण से हस्त - ललित कलाओं का पोषण, वर्धन होता है, जन साधारण में प्रेम बढ़ता है l*
    # हस्त - ललित कलाओं से युवाओं को व्यवसाय मिलता है l*
    # व्यवसाय मिलने से कल्याणकारी (लंगर लगाना, नियमित हवन करना, स्वच्छता एवं पवित्रता बनाये रखना जैसे अनेकों कार्य) सत्कर्म किये जाते हैं l*

    सत्कर्मों से अच्छा परिणाम -
    # सत्कर्म करने से परिणाम सदैव अच्छा ही निकलता है l*
    # अच्छा कार्य मन को संतुष्टि प्रदान करता है l*
    # अच्छे कार्य से मन प्रसन्न और आनंदित होता है l*
    # अच्छा कार्य करने से मन प्रेम से अलाहादित होता है, जिससे वह किसी भी भौतिक वादी या अध्यात्मवादी कार्य को पहले से अधिक तन्मयता के साथ करने लगता है l*



  • श्रेणी:

    विश्वव्यापी सत्सनातन धर्माध्यात्म – संस्कृति

    दिनांक 21 सितम्बर 2025

    “सत्यार्थ प्रकाश” के अनुसार - # अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र, सृष्टिकर्ता, सचिदानंदस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी मात्र एक दाता ॐ सबका राम है और सकल संसार उसके आगे भिखारी है l*

    वैदिक सत्सनातन ज्ञान व धर्म –
    # सकल संसार में मात्र वैदिक ज्ञान ही सत्सनातन ज्ञान है, जिससे समस्त मानव जाति का कल्याण और उत्थान होता है l*
    # वैदिक सत्सनातन ज्ञान मानव समाज को सदैव आपस में जोड़ता है, कभी बांटता नहीं है l*
    # वैदिक सत्सनातन ज्ञान ही सत्य का मंडन और असत्य का खंडन करने वाला है, वह मनुष्य को अन्धकार से उजाले और मृत्यु से अमरता की ओर ले जाता है l*
    # वैदिक सत्सनातन ज्ञान सब जीवों का जीवन दाता है, किसी प्राणी का जीवन हरता नहीं है l*
    # वैदिक सत्सनातन ज्ञान मानव समाज निर्माण की सशक्त जीवन पद्दति है, वैश्विक सत्सनातन धर्म है l*

    सत्सनातन धर्म की मुख्य विशेषताएं -
    # धरती की खुदाई करो या समुद्र में डुबकी लगाओ - मंदिर ही निकलता है, सत्सनातन धर्म विरोधी की चार पीढियां पीछे निहारो तो सनातनी दिखता है l यहाँ संसारभर में सब जगह सत्सनातन ही सनातन है !*
    # गर्व की बात है कि वैदिक ज्ञान बल पर कभी हमारे सत्सनातन धर्म का संपूर्ण धरती पर एकछत्र राज विद्यमान था, वह सर्वव्याप्त था l*
    # समस्त अभिभावक, गुरुजन बच्चों को संस्कार देते आये हैं, इससे पीढ़ी दर पीढ़ी सत्सनातन धर्म की रक्षा होती है, धर्म हमारी रक्षा करता है l*
    # विश्वभर में वैदिक सत्सनातन धर्म ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है, वह मानव को श्रेष्ठ मानव बनने की सीख देता है l*
    # मात्र विज्ञान सम्मत और अर्थ युक्त वैदिक मन्त्र ही मानव जीवन का प्रकाश है, शेष सब अंधकार है l*

    सत्सनातन धार्मिक कार्य -
    # देश सत्सनातन धर्म - संस्कृति की रक्षा हेतु संस्कार, सद्भावना, त्याग, प्रेम और समर्पण भाव सदैव अपेक्षित रहते हैं l*
    # कोई हजार करे तीर्थ, लाख करे स्नान, जिसका हृदय साफ नहीं, उसे कहीं नहीं मिलते हैं भगवान !*
    # आइये ! हम सब पिछड़े/अभावग्रस्त लोगों की सहायता करें, उनकी आवश्यकतायें पूरी करें, उन्हें सहयोग दें, विश्वास कीजिये वही 95% कट्टर सनातनी लोग हमारा प्यार और बराबर का सम्मान पाना चाहते हैं l*
    # सैनिक, जन रक्षक युद्कों से देश और समाज की रक्षा करते हैं तो अभिभावक व गुरुजन सत्सनातन धर्म - संस्कृति की शास्त्रों से भी रक्षा कर सकते हैं l*
    # हमने दशकों से अपने “शास्त्र - संस्कार विद्या” – “दंड – युद्ध विद्या” त्याग दी है, परिणाम स्वरूप बहुत से सत्सनातनी परिवार और समाज उपद्रवी, उदंडी और उत्पाति बन गये हैं l यही सत्सनातन धर्म एवमं सांस्कृतिक पतन का मुख्य कारण है, हम सबकी सबसे बड़ी भूल है, सुधार करना अपेक्षित है l*
    # “शास्त्र - संस्कार विद्या” ब्राह्मण की शक्ति और “दंड – युद्ध विद्या” क्षत्रिय का बल है l*
    # “शास्त्र - संस्कार विद्या” – “दंड – युद्ध विद्या” विश्व शांति रक्षण, कल्याणकारी संसाधन हैं, न कि उपद्रव या उत्पात मचाने के l*
    # जिस प्रकार घर पर कोई बच्चा उपद्रव, उत्पात मचाता है तो अभिभावक द्वारा उसे पहले प्यार से समझाया जाता है, न माने तो दंड स्वरूप उसे आँख दिखाने या डांट लगाने पड़ती है फिर भी न माने तो मार पड़ती है, इसी प्रकार समाज में “शास्त्र - संस्कार विद्या” बल से शांति बनाये रखना अति आवश्यक है l बार - बार शांति प्रयास निष्फल रहने पर राजकीय मान्यता प्राप्त विधि - विधान के अंतर्गत “दंड – युद्ध विद्या” बल का भी उपयोग किया जा सकता है l*
    # जीवन का अर्थ क्या है, जीवन का संबंध क्या है, आपसी संबंध क्यों हैं, आपसी संबंध कैसे हैं, आपसी संबंध किसलिए हैं, आपसी संबंध निभाये कैसे जाते हैं ? उत्तर पाने के लिए सत्सनातन धर्म का साहित्य, संगीत और कला (रामायण, गीता और महाभारत आदि ग्रन्थों को) पढ़ना - पढ़ाना, समझना – समझाना, स्वयं सीखना – सिखाना एवंम अच्छी बातों को अपने व्यवहार में लाना अति आवश्यक है l*
    # हमें सत्सनातन धर्म विरोधी गुट का त्याग करने वाले महानुभावों का सदैव हार्दिक अभिनंदन करना चाहिए, हमारे लिए सत्सनातन धर्म से बढ़कर अन्य कुछ भी नहीं है ।*
    # वे सभी महानुभाव अपने हैं जो हर समय देश, सत्सनातन धर्म - संस्कृति की रक्षा हेतु अपनों के संग सीना ताने खड़े रहते हैं l*
    # अभिभावकों एवं गुरुजनों के द्वारा बच्चों को “शास्त्र - संस्कार विद्या” और “दंड – युद्ध विद्या” बल में पारंगत करना चाहिए ताकि वे सभ्य, संस्कारी बन सकें, अपने समाज और राष्ट्र का भली प्रकार नेतृत्व एवं रक्षण कर सकें l*

    सत्सनातन धर्म विरोधी कार्य -
    # जिन्होंने हमारे करोड़ों वुजुर्गों के सर काटे और लाखों घर, मंदिर लुटे, तोड़े थे, हम उनकी कुरान, बाइबिल के आगे सदियों से अपना मस्तक फोड़ रहे हैं, क्यों ?*
    # अगर हम मंदिर में भक्तिभाव से नहीं, पर्यटक बनकर जाते हैं तो वह हमारे लिए आस्था का केंद्र, पूजा स्थल नहीं रहेगा, पर्यटक स्थल होगा ।*
    # वैदिक ज्ञान से जनित सत्सनातन धर्म ही विश्व को सिखाता है कि मनुष्य बनो l कुरान और बाइबल ज्ञान के संवाहक तो सदियों से जन, समाज, राष्ट्र जिहाद और धर्मांतरण कार्य करने में व्यस्त हैं l*
    # देश, सत्सनातन धर्म - संस्कृति की रक्षा कुरान, बाइबल के ज्ञान से नहीं, मात्र वैदिक ज्ञान से हो सकती है l*

    सावधान –
    # अगर हम जीवन चुनौतियों का सामना करने में “शास्त्र - संस्कार विद्या” - “दंड – युद्ध विद्याओं” में पारंगत नहीं हुए तो पिछले एक हजार वर्षों की भांति भविष्य में भी निरंतर विधर्मियों द्वारा बांस की भांति छिले जा सकते हैं l*
    # अगर अभिभावक अपने बच्चों को धार्मिक शिक्षा नहीं देंगे तो कोई अन्य दुष्ट उन्हें अधर्म की राह दिखा देगा l*
    # पाश्चात्य सभ्यता नग्नता, अश्लीलता की परम्परा कभी भारतीय सांस्कृतिक सुन्दरता नहीं बन सकती और अंग्रेजी सभ्यता कभी भारतीय परम्परागत गुरुकुल शिक्षा नहीं हो सकती l*
    # अभिभावक, गुरु जन स्वयं वेद पठन - पाठन अवश्य करें, वे पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से प्रभावित न हों, उससे प्रभावित होने से बच्चों को वैदिक संस्कार नहीं मिलेंगे, इससे विधर्मियों को किसी भी प्रकार का जिहाद, धर्मांतरण करने का अवसर मिल सकता है l सत्सनातन धर्म का पतन होने के साथ - साथ वह एक दिन समाप्त हो भी हो सकता है, इसके उत्तरदायी हम होंगे, आने वाली पीढ़ियाँ हमें कभी क्षमा नहीं करेंगीं l*



















  • श्रेणी:,

    2. भक्ति, श्रद्धा, प्रेम का पर्व श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

    भगवान श्रीकृष्ण लगभग 5000 वर्ष ईश्वी पूर्व इस धरती पर अवतरित हुए थे। उनका  जन्म द्वापर युग में हुआ था। द्वापर युग, हिंदू धर्म के चार युगों में से दूसरा युग है। यह युग सत्ययुग के बाद और कलयुग से पहले आता है। द्वापर युग को धर्म, सत्य और सदाचार का युग माना जाता है। द्वापर युग में ही महाभारत का युद्ध हुआ था, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान दिया था। 
    भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में कंस की कारागार में हुआ था। कंस जो देवकी का भाई और मथुरा का राजा था, को भविष्यवाणी हुई थी कि देवकी की आठवीं संतान उसका वध करेगी। सुनकर कंस ने देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया था l कालचक्र घुमने के साथ - साथ जब भी उनके यहाँ कोई बच्चा पैदा होता तब कंस स्वयं आकर उसे मार देता था l इस प्रकार उसने एक - एक करके उनके सात सभी बच्चों को जन्म लेने के पश्चात तुरंत मार डाला था।
    भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की आधी रात को मथुरा की कारागार में देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था l वे भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। उस समय भयंकर वर्षा और गगन में मेघों की भारी गरजना हो रही थी। श्रीकृष्ण के जन्म के समय, कारागार के सभी पहरेदार सो गए थे और भगवान विष्णु की अपार कृपा से, वासुदेव कृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के पास पहुँचाने में सफल रहे l
    कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र के दिन रात्रि के 12 बजे हुआ था l कृष्ण जन्माष्टमी, भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव, भारत में बहुत धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। भक्त उपवास रखते हैं, मंदिरों में जाते हैं, भजन गाते हैं, और भगवान कृष्ण की लीलाओं का भी पाठ करते हैं।
    जन्माष्टमी का व्रत भगवान कृष्ण के जन्मदिन के उपलक्ष्य में रखा जाता है। यह व्रत भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करने की एक युक्ति है। इस दिन व्रत रखने से भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है और माना जाता है कि इससे सुख, शांति और समृद्धि मिलती है। जन्माष्टमी का व्रत आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
    यह पर्व समाज को सत्य, धर्म और भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है l श्रीकृष्ण के आदर्श जीवन से हमें अन्याय के विरुद्ध संघर्ष, सयम और अध्यात्मिक जागरूकता का संदेश प्राप्त होता है l”
    जन्माष्टमी का व्रत पूरे दिन रखा जाता है और रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के बाद या अगले दिन सूर्योदय के बाद खोला जाता है । इस दिन लोग उपवास रखते हैं, भजन - कीर्तन और भगवान कृष्ण की पूजा - अर्चना करते हैं l जन्माष्टमी व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना, जन्माष्टमी के व्रत में अन्न ग्रहण नहीं करना, व्रत को रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के बाद या अगले दिन सूर्योदय के बाद खोलना, जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण के मंदिर जाना, सुबह और रात में विधि - विधान से भगवान कृष्ण की पूजा करना, भगवान को अर्पित किये गए प्रसाद को ही ग्रहण करके व्रत खोलना, व्रत के दौरान दिन में नहीं सोना, किसी को अपशब्द नहीं कहना अदि नियमों का पालन किया जाता है l
    सुबह जल्दी उठकर स्नान करके व्रत का संकल्प करना । घर के मंदिर को साफ करना और लड्डू गोपाल को स्नान कराना। लड्डू गोपाल को सुंदर वस्त्र, मुकुट, माला पहनाना और चंदन का तिलक लगाना । लड्डू गोपाल को झूले में बैठाना और उन्हें झूला झुलाना । भगवान को फल, मिठाई, पंचामृत, पंजीरी आदि का भोग लगाना । रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के बाद विधि - विधान से पूजा करना । भगवान की आरती करना और प्रसाद चढ़ाना । भगवान को अर्पित किए गए प्रसाद को ग्रहण करके व्रत खोलना । पूरे दिन राधा-कृष्ण के नाम का जप करना । भगवान कृष्ण का अधिक से अधिक ध्यान करना । किसी से झगड़ा नहीं करना और क्रोध से बचना । इन नियमों का पालन करके जन्माष्टमी का व्रत रखने से भक्तों को भगवान कृष्ण की अपार कृपा प्राप्त हो सकती है ।

  • सशक्त न्याय व्यवस्था की आवश्यकता

    दिनांक 29 जुलाई 2025 

    सत्य, न्याय, नैतिकता, सदाचार, देश, सत्सनातन धर्म, संस्कृति के विरुद्ध मन, कर्म और वचन से की जाने वाली कोई भी चेष्टा अपराध मानी जा सकती है l
    अपराधों की श्रेणियां – देखा जाये तो विश्व भर में अपराधों की अनेकों श्रेणियां हैं l कोई भी व्यक्ति, कोई भी व्यक्ति संगठन या कोई भी जन समूह बिना भय के, किसी न किसी रूप में, गुप्त और भ्रष्ट-तंत्र के अंतर्गत अमुक अपराध की श्रेणी में सक्रिय अवश्य रहता है l असंस्कारी होने के कारण – विश्वासघात करना, आत्मघात करना या आत्म हत्या करना “आत्मिक अपराध” है l परिवार में अपनों से आपसी मन मुटाव रखना, बात-चीत नहीं करना, लड़ाई - झगड़े, मारपीट करना और हिंसा करना “पारिवारिक अपराध” है l अवैध शरणार्थी होना, स्थान - स्थान पर हिंसा का तांडव करना, आतंक मचाना, जिहाद करना, महिलाओं का शोषण, अत्याचार अपमान, अपहरण, बलात्कार और धर्मांतरण करना “सामाजिक अपराध” है l भ्रष्टाचारी होना - चोरी, हेराफेरी, गबन करना, सरकारी कर न देना “आर्थिक अपराध” है l बच्चों को शिक्षा से वंचित रखना, बाल - श्रम करवाना, शिक्षा का व्यपारीकरण करना “शैक्षणिक अपराध” है l दूसरों का हित से पहले अपना हित सोचना, कार्य करना “नैतिक अपराध” है l दूसरों की संस्कृति से प्रभावित होकर अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं का त्याग कर देना, संस्कृति भूल जाना, सांस्कृतिक अपमान करना, देखना, सहन करना, “सांस्कृतिक अपराध” है l अपने देवी – देवताओं की मूर्तियों, मंदिर भीति चित्रों, फूल-वनस्पति चित्र-कला की उपेक्षा करना, अपमान करना, सहन करना “कलात्मक अपराध” है l मूक दर्शक बनकर, राष्ट्र विरोधी कुचेष्टाएं - घुसपैठ, षड्यंत्र का समर्थन करना, साथ देना ”राजनैतिक अपराध” है और छल बल से दूसरों को छलना या बहुरूपिया बन कर लोगों को वेद ज्ञान के विपरीत मन, वचन और कर्म से भ्रमित करना “धार्मिक अपराध” है l
    अपराधी – मात्र कोई अपराध करने वाला ही व्यक्ति अपराधी नहीं हो सकता - अपराधी का समर्थन करने वाला, अपराधी को शरण देने वाला, अपराधी को बचाने वाला और उसे पालने वाला व्यक्ति भी अपराधी ही होता है l
    जब कोई छोटा- बड़ा अपराधी पकड़ा जाता है l उसे कारागार में डाला जाता है तो वह वेल पर तुरंत बाहर भी हो जाता है l इससे स्पष्ट है कि उसके सर पर किसी समर्थवान की कृपा का हाथ है l अगर वह बाहर न आए तब भी उसके समर्थकों के द्वारा बढ़ – चढ़कर उसकी महिमा मंडित की जाती है l वह उनका नेता बन जाता है l वह चुनाव के लिए अपना नामांकन भरता है, चुनाव लड़ता है l उसके समर्थक जनता को लालच देकर उसका प्रचार-प्रसार करते हैं l मूर्ख जनता उनके बहकावे में आकर उसके पक्ष में मतदान करती है l जनता की मुर्खता ही के कारण वह कारागार में रहकर भी चुनाव जीत जाता है l फिर वह वेल पर छूट जाता है l
    अपराधी नेता – ऐसे अग्रज नेता प्रायः दूसरे देशों में बैठे अपने आकाओं की कठपुतली होते हैं l उन्हें विदेशों से अपार धन - बल मिलता है l इस कारण वे जिस देश में रहते हैं, जिस देश का खाते हैं, वे उसी का बुरा सोचते हैं, उसका बुरा करते हैं l वे कभी उस देशहित में नहीं होते हैं l सोचने वाली बात है - वे उस देश का संविधान ही नहीं मानते हैं या मानने का नाटक करते हैं l वे देश की सेना का कभी सम्मान नहीं करते हैं l उनसे उस देश का विकास सहन नहीं होता है l उन्हें देश हित की सरकार से हर काम का प्रमाण चाहिय l ऐसे अपराधी नेताओं के दूसरे देशों में बैठे हुए आकाओं के इशारों और उनके नेतृत्व से ही किसी देश में भय मुक्त घुसपैठिये आते हैं, अवैध शरणार्थी आते हैं, नागरिकता मिलती है और वे स्थान - स्थान पर हिंसा करते हैं l महिलाओं का अपमान करते हैं, उनका अपहरण, बलात्कार और धर्मांतरण भी होता है l ऐसी घटनाओं को प्रशासन द्वारा नकार दिया जाता है या वह मूक - दर्शक बना रहता है, कोई भी अधिकारी किसी पीड़ित/पीड़िता की पीड़ा नहीं सुनता है l
    समाज विरोधी संगठन - विभिन्न विचार धाराओं के वेल पर छूटे हुए अन्य अपराधी नेता अपने-अपने संगठनों के साथ मिलकर चुनाव लड़ते हैं l समर्थकों का उन्हें समर्थन मिलता है l वे अपना उल्लू सीधा करने हेतु जनता को अपनी चिकनी - चुपड़ी बातों में उलझाते हैं l चुनाव में जीत होती है l उनकी सरकार बनती है l फिर उनके द्वारा अपराधियों को शरण दी जाती है, अपराधियों को दंड से बचाया जाता है l वे भय मुक्त रहते हैं l
    समाज में - अपराधी नेताओं के नेतृत्व में ही सत्य, न्याय, नैतिकता, सदाचार, देश, सत्सनातन धर्म, संस्कृति के विरुद्ध मन, कर्म और वचन से निःसंकोच चेष्टाएँ होती हैं l समाज में अपराधों को बढ़ावा मिलता है, पल-प्रतिपल निर्दोषों को सताया जाता है l उन पर अनेकों अत्याचार होते हैं l गली - गली, दंगे होते हैं, हत्याएं होती हैं, समाज त्राहिमाम – त्राहिमाम करने लगता है l बहुसंख्यक अल्प संख्यक बनते जाते हैं l चहुँ ओर अराजकता, अशांति होती है l अपराधी इकट्ठे होकर, होटलों में पार्टियाँ करते हैं, अपनी जीत का आनंद मनाते हैं l किसी पीड़ित/पीड़िता को कभी कहीं न्याय नहीं मिलता है l
    परिभाषा पुनर्विचार की आवश्यकता – संविधान की धाराओं में अपराध और अपराधियों की परिभाषा पर जब तक गहनता के साथ पुनर्विचार नहीं होगा, उनकी समीक्षा नहीं होगी, समाज के निर्दोष और अपराधी वर्ग को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया जायेगा, उनकी स्थाई पहचान नहीं होगी, उन अपराधियों पर अंकुश नहीं लगेगा, तब तक समाज में तूफान की गति समान बढ़ती हुई अपराधियों की जन - संख्या पर विराम लगना कठिन ही नहीं, असंभव भी होगा l
    कठोर दंड व्यवस्था - समाज में जो अपराधी हैं, उन्हें उनके अपराध अनुपात के अनुसार इतना अधिक प्रतिशत कठोर दंड अवश्य मिलना चाहिए जितना संगीन उनका अपराध हो l समाज में अपराध या अपराध तंत्र का भय नहीं, कठोर दंड व्यवस्था का भय होना चाहिए l कठोर दंड भय व्यवस्था से ही स्वछंद हो रहे अपराधियों के अपराधों पर अंकुश लगाया जा सकता है l निर्दोषों को बचाया जा सकता है l समाज में सुख – शांति, समृद्धि आ सकती है और राम- राज्य का सपना भी साकार हो सकता है l