
जाप सके तो जाप ले तू, ॐ ॐ हर साँस l
फिर क्या जाप पायेगा, मनः निकल जाएगी तेरी हर साँस ll
कश्मीर टाइम्स 30 नवम्बर 2008
वह भी एक समय था जब देश में हर नौजवान किसी न किसी हस्त–कला अथवा अपने रोजगार से जुड़ा हुआ रहता था l चारों ओर सुख समृद्धि थी l देश में कृषि योग्य भूमि की कहीं कमी नहीं थी l पर ज्यों-ज्यों देश की जन संख्या टिड्डीदल की भांति बढ़ती गई, त्यों-त्यों उसकी उपजाऊ धरती और पीने के पानी में भी भारी कमी होने लगी है l प्रदूषण अनवरत बढ़ने लगा है l मानों समस्याओं की बाढ़ आ गई हो l इससे पहले कि यह समस्यायें अपना विकराल रूप धारण कर लें, हमें इन्हें नियंत्रण में लाने के लिए विवेक पूर्ण कुछ प्रयास अवश्य करने होंगे l
हमने कृषि योग्य भूमि पर औद्योगिक इकाइयां या कल-कारखानों की स्थापना नहीं करनी है जिनसे कि कृषि उत्पादन प्रभावित हो l उसके लिए अनुपजाऊ बंजर भूमि निश्चित करनी है और सदैव प्रदूषण मुक्त ही उत्पादन को बढ़ावा देना है l
हमने देश में पशु-धन बढ़ाना है ताकि हमें पर्याप्त मात्रा में देशी खाद प्राप्त हो सके l हमने रासायनिक खादों और कीट नाशक दवाइयों का कम से कम उपयोग करना है ताकि मित्र कीट-जीवों एवं अन्य प्राणियों की भी सुरक्षा और हम सभी का स्वास्थ्य ठीक बना रह सके l
हमने घरेलू दुधारू पशुओं को कहीं खुला और सड़क पर नहीं छोड़ना है और न ही उन्हें कभी कसाइयों तक जाने देना है l अगर किसी कारण वश हम स्वयं उनका पालन-पोषण न कर सकें तो हमने उन्हें स्थानीय सहकारी संस्थाओं द्वारा संचालित पशु-शालाओं को ही देना है ताकि वहां उनका भली प्रकार से पालन पोषण हो सके और हमें मनचाहा ताजा व शूद्ध उत्पाद दूध, घी, पनीर, पौष्टिक खाद और अन्य जीवनोपयोगी वस्तुएं मिल सकें l
हमने नहाने, कपड़े धोने, और साफ-सफाई के लिए भूजल स्रोतों – हैन्डपम्प, नलकूप, बावड़ियों और कुओं का स्वयं कभी प्रयोग नहीं करना है और न ही किसीको करने देना है बल्कि टंकी, तालाब, नदी या नाले के स्वच्छ रोग कीटाणु रहित पानी का प्रयोग करना है और दूसरों को करने के लिए प्रेरित करना है l
सिंचाई के लिए हमने विभिन्न विकल्पों द्वारा जल संचयन करना है और खेती सींचने के लिए वैज्ञानिक विधियों द्वारा फव्वारों को माध्यम बनाना है l हमने भूजल स्रोतों का अंधाधुंध दोहन नहीं करना है l भूजल हम सबका जीवन अधार होने के साथ-साथ सुरक्षित पेय जल भंडार भी है l वह हमारे लिए दीर्घ कालिक रोग मुक्त और संचित पेय जल स्रोत है जो हमने मात्र पिने के लिए प्रयोग करना है l
स्थानीय वर्षा जल–संचयन के लिए तालाब, पोखर जोहड़ और चैकडैम अच्छे विकल्प हैं l इनसे जीव जंतुओं को पीने का पानी मिलता है l हमने स्थानीय लोगों ने मिलकर इनका नव निर्माण करना है तथा पुराने जल स्रोतों का जीर्णोद्वार करके इन्हें उपयोगी बनाना है ताकि ज्यादा से ज्यादा वर्षा जल -संचयन हो सके और सिंचाई कार्य वाधित न हो l
हमने समस्त भू-जल स्रोतों की पहचान करके उन्हें सरंक्षित करने हेतु उनके आस-पास अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाने हैं l इससे भू संरक्षण होगा l इनसे जीवों के प्राण रक्षार्थ प्राण-वायु तथा जल की मात्रा में वृद्धि होगी और जीव जंतुओं के पालन-पोषण हेतु चारा तथा पानी पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होगा l
हमने आवासीय कालोनी, मुहल्लों को साफ-सुथरा व रोग मुक्त रखने के लिए घरेलू व सार्वजनिक शौचालयों को सीवरेज व्यवस्था के अंतर्गत लाकर मल निकासी तंत्र-प्रणाली को विकसित करना है और मल को तुरंत खाद में भी परिणत करना है ताकि दूषित जल रिसाव से स्थानीय भू-जल स्रोत – हैण्ड-पम्प, नलकूप, बावड़ियों और कुओं का शुद्ध पेयजल कभी दूषित न हो सके l वह हम सबके लिए सदैव उपयोगी बना रहे l
हमने घर पर स्वयं शुद्ध और ताजा भोजन बनाकर खाना है l डिब्बा–लिफाफा बंद या पहले से तैयार भोजन अथवा जंक फ़ूड का प्रयोग नहीं करना है ताकि हम स्वस्थ रह सकें और हमारी आय का मासिक बजट भी संतुलित बना रहे l
युवा वर्ग को बेरोजगार नहीं रहना है l उसे धार्मिक व सामाजिक दृष्टि से रोजगार के विकल्पों की तलाश करनी है और उन्हें व्यवहारिक रूप में लाना है l योग्य इच्छुक बेरोजगार युवावर्ग के लिए हस्तकला, ग्रामोद्योग, वाणिज्य, कृषि उत्पादन, वागवानी, पशुपालन, ऐसे अनेकों रोजगार संबंधी विकल्प हैं जिनसे वह घर पर रहकर स्वरोजगार से जुड़ सकता है l उसे सरकारी या गैर सरकारी नौकरी तलाशने की आवश्यकता नहीं होगी l
निराश युवावर्ग को सरकारी या गैर सरकारी नौकरी तलाश नहीं करनी है बल्कि स्वरोजगार पैत्रिक व्यवसाय तथा सहकारिता की ओर ध्यान देना है l इससे उसकी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ परंपरागत स्थानीय क्षेत्रीय और राष्ट्रीय कला-संस्कृति व साहित्य की नवींन संरचना, रक्षा, और उसका विकास तो होगा ही – इसके साथ ही साथ उनकी अपनी पहचान भी बनेगी l
स्थानीय बेरोजगार युवावर्ग गाँव में रहकर अधिक से अधिक हस्त कला, निर्माण, उत्पादन, कृषि-वागवानी, और पशुपालन संबंधी रोजगार तलाशने और स्वरोजगार शुरू करने के लिए संबंधित विभाग से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता है ताकि उसे स्वरोजगार मिल सके और गाँव छोड़कर दूर शहर न जाना पड़े l
हमने अपने परिवार में बेटा या बेटी में भेद नहीं करना है l दोनों एक ही माता-पिता की संतान हैं l हम सबने परिवार नियोजन प्रणाली के अंतर्गत सीमित परिवार का आदर्श अपनाना है और बेटा-बेटी या दोनों का उचित पालन-पोषण करना है l उन्हें उच्च शिक्षा देने के साथ-साथ उच्च संस्कार भी देने हैं ताकि भारतीय संस्कृति की रक्षा हो सके l
यह सब कार्य तब तक मात्र किसी सरकार के द्वारा भली प्रकार से आयोजित या संचालित नहीं किये जा सकते, और वह कारगर भी प्रमाणित नहीं हो सकते हैं, जब तक जन साधारण के द्वारा इन्हें अपने जीवन में व्यवहारिक नहीं लाया जाता l अगर हम इन्हें व्यवहारिक रूप प्रदान करते हैं तो यह सुनिश्चित है कि हम आधुनिक भारत में भी प्राचीन भारतीय परंपराओं के निर्वाहक हैं और हम अपनी संस्कृति के प्रति उत्तरदायी भी l
चेतन कौशल "नूरपुरी"
अगस्त 2022 मातृवंदना शिक्षा दर्पण
माँ-बाप का सान्निध्य घर/परिवार बच्चे के लिए संस्कार, संस्कृति और सभ्यता निर्माण करने की पहली पाठशाला है l
गुरु का सान्निध्य पाठशाला, विद्या मंदिर विद्यार्थी के लिए देश, सनातन धर्म-संस्कृति के प्रति जागरूक एवं सेवा हेतु तैयार करने वाली दूसरी पाठशाला है l
शिक्षा नीति :–
कोई भी भाषा सीखना बुरा नहीं है, जितना बुरा अन्य भाषा सीखकर मातृभाषा/राष्ट्रीय भाषा भूल जाना है l
भारत एक राष्ट्र है l देशभर में एक शिक्षा नीति, एक पाठ्यक्रम और विभिन्न पुस्तकों का हर स्थान पर एक समान मूल्य निर्धारित करना अति आवश्यक है l
मुफ्त में किसी को कुछ भी नहीं देना चाहिए l प्रत्येक विद्यार्थी को इस योग्य शिक्षा मिलनी चाहिए कि वो अपने गुण, ज्ञान स्वभावानुसार स्वयं के पैरों पर खड़ा होकर अपने घर/परिवार का उचित पालन–पोषण और रक्षा कर सके l
चर्च के स्कूलों में अंग्रेजी, मस्जिदों के मदरसों में उर्दू पढ़ाया जा सकता है तो मंदिरों के गुरुकुलों में संस्कृत भी पढ़ाई जा सकती है l
विद्या तर्कशक्ति, विज्ञान, स्मरण शक्ति, तत्परता और कार्यशीलता यह छ: गुण जिसके पास हैं, उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है l
जिन अभिभावकों ने कान्वेंट स्कूल/मदरसे में शिक्षा पाई है, विशेषकर उनके बच्चों को देश, सनातन धर्म-संस्कृति की शिक्षा अवश्य मिलनी चाहिए l
धर्म क्या है ? रामायण से, धर्म की रक्षा कैसे की जाती है ? महाभारत से, दोनों को जानने हेतु उन्हें विद्यार्थियों के पाठ्यक्रमों में सम्मिलित किया जाना चाहिए l
रामायण चरित्र निर्माण करती है, गीता उचित कार्य करना सिखाती है – मानव जीवन में दोनों संस्कार अपेक्षित हैं, हर विद्यार्थी को मिलने चाहियें l
शिक्षण-प्रशिक्षण :–
गुरु-शिष्य का वह संयुक्त प्रयास जिससे शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का विकास हो, उनमें दिव्य शक्तियों का संचार हो, शिक्षण-प्रशिक्षण कहलाता है l
गुरुजन व्यक्ति/परिवार/समाज और विश्व हित में विद्यार्थियों को शास्त्र और देश हित में शस्त्र विद्याओं का शिक्षण-प्रशिक्षण देते थे, उन्हें ज्ञात था – आने वाले समय में विधर्मी किसी को चैन से नहीं जीने देंगे l
हमें अपने बच्चों को ऐसे विद्यालय में प्रवेश अवश्य करवाना चाहिए जहाँ उन्हें प्राचीन व आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ देश, सनातन धर्म-संस्कृति से प्रेम का भी शिक्षण-प्रशिक्षण मिल सके l
विद्यालय में विद्यार्थियों को योग, आयुर्वेद, अध्यात्मिक शिक्षा, संस्कार तथा भारतीय इतिहास का शिक्षण-प्रशिक्षण अवश्य मिलना चाहिए l
कलात्मक शिक्षण-प्रशिक्षण देने से विद्यार्थी की योग्यता में निखार आता है l जीवन में निखार आ जाए तो उस कलात्मक शिक्षण-प्रशिक्षण को चार चाँद लग सकते हैं l
विद्यार्थी जीवन में शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक शक्तियों का विकास करने के लिए उसे स्वयं में छिपी हुई किसी न किसी कला (पाक विद्या, बागवानी, सिलाई, बुनाई, कढाई, वादक-यंत्र वादन, नृत्य, संगीत, अभिनय, भाषण, साहित्य लेखन जैसी अन्य जो अनेकों कलाएँ हैं l) से प्रेम अवश्य करना चाहिए l विद्यार्थी के पास जीवन निर्वहन करने के साथ-साथ अपना जीवन संवारने हेतु इससे बढ़िया अन्य और संसाधन क्या हो सकता है !
अगर वर्तमान में वामपंथी/इस्लामी और सेक्युलर सोच या कट्टरता के विरुद्ध समय रहते बच्चों और विद्यार्थियों को शास्त्र-शस्त्र विद्याओं का शिक्षण-प्रशिक्षण नहीं मिला तो बहुत देर हो जाएगी l
मार्च-अप्रैल 2022 मातृवंदना
मनुष्य जीवन में गुरु मनुष्य जीवन में गुरु का महत्वपूर्ण और सर्वोच्च स्थान है l भारतीय संस्कृति में सबसे पहला गुरु माता को माना गया है l शिशु के बड़ा होने पर उसे अक्षर ज्ञान देने वाला गुरु उसके बाद आता है l अध्यात्म और भक्तिमार्ग में दिशा देने वाला गुरु उसके बाद आता है l विश्व की सभी मानव सभ्यताओं में व्यक्ति को गुरु की आवश्यकता रहती है l आप चाहे गुरु, टीचर, शिक्षक या उस्ताद जो भी कहें, उनका मुख्य धर्म है अपनी शरण में आये बालक को दिशा देना और उसकी जिज्ञासा का समाधान करना l
भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान का दर्जा प्राप्त है l व्यक्ति के जीवन और सम्पूर्ण समाज पर छाए संकट के बादल के समय गुरु मार्गदर्शक बन ढाल बन जाता है l परतंत्रता काल में अध्यात्मिक गुरुओं ने समाज को देश और धर्म की रक्षा हेतु तथा अनेकों राष्ट्र भक्त और सैनिकों को बलिदान हेतु प्रेरित किया l मुगलकाल में छत्रपति शिवाजी समर्थ गुरु रामदास की प्रेरणा से मराठा सम्राज्य से हिन्दवी साम्राज्य की स्थापना करने में समर्थ हुए l इससे पूर्व आदि शंकराचार्य दशनामी समुदाय के शिष्यों ने आगे चलकर स्वतंत्रता आन्दोलन में ही सक्रिय भूमिका निभाई और अनेक राज-महाराजाओं को संघर्ष के लिए प्रेरित किया l आर्य समाज के संस्थापक महाऋषि दयानंद आजीवन मातृभूमि की रक्षा हेतु शस्त्र और शास्त्र दोनों तरह से समाज को प्रेरित करते रहे l अनेकों क्रन्तिकारी उनसे प्रेरणा प्राप्त करते थे l स्वामी श्रद्धानंद ने वैदिक प्रचार और धर्म, संस्कृति शिक्षा, और दलित समाज के उद्धार के लिए अनेकों देश भक्तों को प्रेरित किया और स्वयं भी आजीवन क्रन्तिकारी सन्यासी के रूप में जूझते रहे l
स्वामी दयानंद सरस्वती जी -
इनका बचपन का नाममूल शंकर था l इनका जन्म 12 फरवरी 1824 में टंकारा-काठियाबाड़मोरवी,राज्य-गुजरात में हुआ था l इनके पिता श्री करशन जी लाल जी तिवारी एक कलेक्टर होने के साथ-साथ शिव-भक्त, ब्राह्मण परिवार से धनी, समृद्ध और प्रभाव शाली व्यक्ति थे l उनके आदेशानुसार मूल शंकर ने शिवरात्रि के दिन व्रत रखा l आधी रात में शिव मूर्ति पर चूहों को प्रसाद खाते देख उनका मूर्ति पूजा का विश्वास टूट गया और इन्होंने सच्चे शिव को पाने की लग्न में 22 वर्ष की आयु में घर से निकल पड़े l दंडी स्वामी पूर्णानंद जी से इन्हें सन्यास की दीक्षा मिली और स्वामी दयानंद सरस्वती नाम से विख्यात हुए l इसके पश्चात् इन्होंने ज्वालानंद गिरी तथा शिवानन्द गिरी से क्रिया समेत पूर्ण योग विद्या प्राप्त की और गुरु विरजानंद सरस्वती से वेद एवं संस्कृत व्याकरण की शिक्षा प्राप्त की l गुरु दक्षिणा में शिष्य दयानंद ने आजीवन वेद तथा आर्ष ग्रन्थों के प्रचार-प्रसार का प्रण लिया जिसे इन्होंने आजीवन निभाया l वैदिक धर्म प्रचार-प्रसार करते हुए इन्होंने 10 अप्रैल 1875 में “आर्य समाज” की स्थापना की जिसने राष्ट्र निर्माण और देश की स्वतंत्रता के लिए सराहनीय कार्य किया l स्वामी जी अपने उपदेशों के माध्यम से युवाओं में देश-प्रेम और देश-भक्ति की भावना भरकर स्वतंत्रता के लिए मर मिटने की भावना पैदा किया करते थे l स्वामी दयानंद जी ने स्वराज का नारा दिया था जिसे माननीय लोकमान्य तिलक जी ने आगे बढाया था l शहीद भक्त सिंह, वीर सावरकर, मदन लाल ढींगरा, राम प्रसाद विस्मिल, अशफाक उल्ला खान तथा लाला लाजपतराय जैसे क्रांतिवीरों ने आर्य समाज से ही प्रेरणा पाई थी l स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने वेद मन्त्रों की व्याख्या की जिसकी मुक्त कंठ से प्रसंशा करते हुए महऋषि अरविन्द जी ने अपनी पुस्तक ”वेदों का रहस्य” में लिखा है दयानंद ने हमें ऋषियों के भाषा-रहस्य समझाने का सूत्र दिया तथा वैदिक धर्म के मूलभूत सिद्धांत को रेखांकित किया l विविध नामों वाले देवता एक ही ईश्वरीय सत्ता की विविध शक्तियों को दर्शाते हैं l l
स्वामी दयानंद जी मानते थे कि ज्ञान की कमी ही हिन्दू धर्म में प्रक्षिप्त अंशों की मिलावट का कारण है l इन्होंने अपने शिष्यों को वेदों का ज्ञान सिखाने और उनके लिए ज्ञान का प्रचार करने के लिए अनेकों गुरुकुल स्थापित किये थे l इन्होंने हिन्दू धर्म में व्याप्त समाजिक कुरीतियों, बाल विवाह, सती प्रथा, तथा अंध विश्वास और रुढियों, बुराइयों का निर्भयता पूर्वक विरोध किया था l इन्होंने महिलाओं के अधिकारों का और विधवा पुनर्विवाह का भरपूर समर्थन किया था l एक बार किसी चर्मकार के हाथों रोटी खाने पर किसी ने इनसे पूछा – आपने एक चर्मकार की रोटी क्यों खाई ? तब इन्होंने कहा – रोटी चर्मकार की नहीं, गेहूं की थी l इन्होंने अपने जीवन काल में अनेकों आर्ष ग्रंन्थों की रचना की थी l इन सबमें “सत्यार्थ प्रकाश” एक प्रमुख रचना है जो वेद सम्मत असत्य का खंडन और सत्य का मंडन करती है l इन्हें वर्तमान भारत में वेदों का उद्धारक भी कहा जाता है l इनका “आर्य समाज की स्थापना” करने के पीछे हिन्दू समाज में वेदों के प्रति जाग्रति लाना प्रमुख उद्देश्य था l
महर्षि अरविन्द घोष जी -
अरविन्द घोष जी एक योगी और दार्शनिक थे l उनका 15 अगस्त 1872 को कलकत्ता में जन्म हुआ था l उनके पिता एक डाक्टर थे l वे इन्हें उच्च शिक्षा दिलाकर उच्च पद दिलाना चाहते थे l सात वर्ष की अल्पायु में इन्हें लन्दन भेजा गया था l अठारह वर्ष की आयु में इन्होंने आईसीएस की परीक्षा उतीर्ण कर ली थी l वे अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, ग्रीक और अटैलियन भाषाओँ में निपुण हो गए थे l देशभक्ति से प्रेरित होकर इस युवा ने घुड़सवारी की परीक्षा देने से मना कर दिया और देश सेवा करने की ठान ली l इनकी प्रतिभा से बड़ोदा नरेश बड़े प्रभावित हुए l इन्होंने उनके राज्य में शिक्षा के क्षेत्र में शास्त्री, प्राध्यापक, वाइस प्रिंसिपल, निजी सचिव आदि पदों पर रहकर अपनी योग्यता का प्रमाण दिया था और हजारों छात्रों को चरित्रवान, देश-भक्त भी बनाया था l 1896 से 1905 तक इन्होंने बड़ोदा के राजस्व अधिकारी से लेकर कालेज के फ्रेंच के अध्यापक और उपाचार्य रहने तक राज्य की सेना में क्रांतिकारियों को शिक्षण दिलाया और दीक्षा भी दिलाकर दीक्षित भी करवाया l इन्होंने राज्य मं0 रहकर उनके लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक योजना बनाई थी l
लार्ड कर्जन द्वारा बंग भंग योजना रखने पर विरोध में एक आन्दोलन हुआ जिसमें इन्होंने सक्रीय रूप में भाग लिया l उन्हीं दिनों “नेशनल ला कालेज” की स्थापना हुई थी जिसमें इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा था l मात्र पचहतर रूपये मासिक वेतन पर इन्होंने अध्यापन कार्य आरम्भ किया l वे धोती, कुर्ता और चादर पहनते थे l बाद में वे राष्ट्रीय विद्यालय से अलग हो गए और “वन्दे मातरम पत्रिका” का सम्पादन करने लगे l ब्रिटिश सरकार इनके आन्दोलन से बड़ी आतंकित थी lइन्हें उनके समर्थक कुछ युवाओं सहित बंदी बना लिया गया और अलीपुर जेल भेज दिया l इनके मुकदमें की पैरवी बैरिस्टर चितरंजन दास ने की थी और उन्होंने इन्हें सभी आरोपों से मुक्त करवा लिया था l इन्होंने जीवन के अंतिम पड़ाव में पांडिचेरी में एक आश्रम की स्थापना की थी जहाँ पांच दिसम्बर 1950 को इनकी मृत्यु हो गईl
इन्हें जेल में हिन्दू धर्म एवं हिन्दू राष्ट्र विषयक अध्यात्मिक अनुभूति हुई थी l वे गीता पढ़ा करते थे और श्रीकृष्ण जी की आराधना किया करते थे l कहा जाता है – जब वे जेल में थे तब उनको जेल में साधना के दौरान श्रीकृष्ण जी के साक्षात दर्शन भी हुए थे lउनकी प्रेरणा से ही वे क्रांतिकारी आन्दोलन छोड़कर योग और साधना में रम गए थे l जेल से बाहर आकर उन्होंने किसी भी आन्दोलन में भाग नहीं लिया l इन्होंने अपने जीवनकाल में अनेकों ग्रंथों की रचना की जो युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत रहे हैं l इनका मानना था कि “समग्र जीवन दृष्टि मानव के ब्रह्म में लीन या एकाकार होने पर विकसित होती है l ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण द्वारा मानव महामानव बन जाता है l अर्थात वह सत, रज और तम की प्रवृत्तिओं से ऊपर उठकर ज्ञानी बन जाता है l महामानव की स्थिति में व्यक्ति सभी प्राणियों को अपना ही रूप समझता है l” इनका कहना है कि “हमारा वास्तविक शत्रु कोई बाहरी ताकत नहीं है, बल्कि हमारी खुद की कमजोरियों का रोना, हमारी कायरता, हमारा स्वार्थ, हमारा पाखंड और हमारा पूर्वाग्रह है l”
आलेख – सामाजिक चेतना मातृवन्दन फरवरी 2022
साधू भूखा भाव का धन का भुखा नाहीं, धन का भूखा जो फिरे वो तो साधू नाहीं ll संत कवीर जी के इस कथनानुसार सज्जन या सत्पुरुष वही होता है जिसे किसी प्रकार का कोई लोभ न हो l लोभी पुरुष कभी साधू नहीं हो सकता l अगर लघु मार्ग द्वारा धन संग्रह करने के उद्देश्य से कोई व्यक्ति सेवक का चोला धारण करके जनसेवा के पथपर चलता है तो उससे जनसेवा नहीं, निज की सेवा होती है जैसे कमीशन का जुगाड़ करना, रिश्वत लेना, घूस खाना और गवन करना l क्योंकि जन सेवा हेतु सीमित दृष्टिकोण या संकीर्ण विचारधारा की नहीं बल्कि विशाल हृदय, शांत मस्तिष्क और मात्र राष्ट्र एवम् जनहित के कार्य करने की आवश्यकता होती है l यह सब गुण सज्जन एवम् सत्पुरुषों में विद्द्यमान होते हैं l
जिस व्यक्ति का मन परहित के लिए दिन-रात तड़पता हो, बुद्धि परहित का चिंतन करती हो और हाथ परहित के कार्य करने हेतु सदैव तत्पर रहते हों – उसके लिए यह सारा संसार अपना और वह स्वयं सारे संसार का अपना होता है l इस प्रकार एक दिन वह व्यक्ति श्रीराम, या श्रीकृष्ण जी के समान भी गुणवान बन सकता है l परन्तु जो व्यक्ति मात्र दिखावे का सेवक बनकर मन से नित निजहित के लिए परेशान रहता हो, बुद्धि से निजहित सोचता हो और जिसके हाथ निजहित के कार्य करने हेतु व्याकुल रहते हों – उसके लिए जनसेवा का कोई अर्थ नहीं होता है l वह विश्व में किसी का अपना नहीं होता है और जो उसके अपने होते हैं वो भी दुःख में उसे अकेला छोड़ने वाले होते हैं l
राष्ट्रहित, समाजहित और जनहित के लिए वह मुद्दे जो भारत के समक्ष उसकी स्वतंत्रता प्राप्ति के समय उजागर हुए थे, वह आज भी ज्यों के त्यों बने हुए हैं l वह हमसे टस से मस इसलिए नहीं हो पाए हैं क्योंकि हमने उन्हें समाज या जन का सेवक बनकर कम और निज सेवक होकर अधिक निहारा है l सौभाग्य वश हमारा भारत लोकतान्त्रिक देश है जिसमें जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए सरकार बनाने का हमें संवैधानिक अधिकार प्राप्त है l हम अपने मतदान द्वारा अपना मनचाहा प्रतिनिधि चुनकर विधानसभा या लोकसभा तक भेज सकते हैं l अगर हम उसके माध्यम से अपनी आवाज संसद भवन तक नहीं पहुंचाते हैं तो हमें किसीको दोष नहीं देना चाहिए l
वर्तमान राष्ट्रहित में देश की एक ऐसी सशक्त एवम् सकारात्मक राष्ट्रीय शिक्षा-प्रणाली होनी चाहिए जिसमें कलात्मक कृषि-बागवानी एवम् रोजगार प्रशिक्षण, व्यवहारिक आत्मरक्षा एवम् जन सुरक्षा प्रशिक्षण, सृजनात्मक पठन-पाठन और रचनात्मक शिक्षण-प्रशिक्षण की व्यवस्था हो l इससे भारत की दूषित शिक्षा-प्रणाली से जन साधारण को अवश्य ही राहत मिल सकती है l जनहित में जन साधारण को विश्वसनीय स्थानीय जन स्वास्थ्य सेवा मिलनी चाहिए l इसके लिए सुविधा सम्पन्न चिकित्सालय, सर्वसुलभ प्रसूति-गृह, उचित चिकित्सा सुविधाएँ, पर्याप्त औषध भंडार, योग्य डाक्टर व रोग विशेषज्ञ, रोगी की उचित देखभाल, स्वास्थ्य कर्मचारी वर्ग और त्वरित चिकित्सा-वाहन सेवा का होना अनिवार्य है l वह इसलिए कि त्रुटिपूर्ण और अभावग्रस्त जन स्वास्थ्य सेवा समाप्त हो सके l
जनहित देखते हुए आज बारह मासी स्थानीय व्यवसायिक व्यवस्था की महती आवश्यकता है l इसके लिए सहकारीता आन्दोलन को पुनः जीवित किया जा सकता है जिसके अंतर्गत पशुधन, पौष्टिक खाद, पर्याप्त सिंचाई सुविधाएँ, जल, जंगल, जमीन का सरंक्षण सहकारी वाणिज्य-व्यापार, स्वरोजगार, सहकारी ग्रामाद्द्योग तथा सहकारी सम्पदा का संवर्धन हो ताकि सहकारी खेती को बढ़ावा मिल सके l जन साधारण को मात्र 100, 200 दिनों तक का नहीं बल्कि पुरे 365 दिनों का व्यवसाय मिल सके l
जन-जन हित में स्थानीय जानमाल की रक्षा-सुरक्षा को सुनिश्चित बनाए रखने के लिए जरूरी है पीने का स्वच्छ पानी, पौष्टिक खाद्द्य वस्तुएं व पेय पदार्थ, रसोई गैस, मिटटी का तेल, विद्दुत ऊर्जा, स्थानीय नागरिकता की विश्वसनीय पहचान और स्थानीय जानमाल की रक्षा-सुरक्षा समितियों का गठन किया जाना ताकि जन साधारण की जीवन रक्षक आवश्यकताएँ पूर्ण हो सकें और उसे आतंकवाद, उग्रवाद जिहाद, अपहरण, धर्मांतरण, बलात्कार तथा हिंसा से अभय प्राप्त हो सके l इस प्रकार राष्ट्रीय जनहित में आवश्यक है – सशक्त एवम् सकारात्मक राष्ट्रीय शिक्षा-प्रणाली, विश्वसनीय जन स्वास्थ्य सेवा, बारह मासी स्थानीय व्यवसायिक व्यवस्था और जानमाल रक्षा-सुरक्षा की सुनिश्चितता l ऐसा कार्य मात्र परहित चाहने वाले न्याय प्रिय, दूरदर्शी राजनीतिज्ञ, नीतिवान और धर्मात्मा लोग ही कर सकते हैं l अगर हम परहित करना चाहते हैं तो हमें सत्पुरुषों और परमार्थियों को ही अपना प्रतिनिधि बनाना होगा l उन्हें उनके क्षेत्र से विजयी करवाने हेतु अपनी ओर से उनकी हर संभव सहायता करनी होगी l अन्यथा निजहित चाहने वालों के मायाजाल से हमें कभी मुक्ति नहीं मिलेगी l बस हमें मिलती रहेगी मात्र दूषित शिक्षा, त्रुटिपूर्ण व अभावग्रस्त जन स्वास्थ्य सेवा, 100, 150 और 200 दिनों का व्यवसाय की लालीपाप l
देशवासियों ! यदि सोये हुए हो तो जाग जाओ और स्वयं जागने के साथ-साथ दूसरों को भी जगा लो l निजहित चाहने वाले बेचारे अपनी आदत से बड़े मजबूर हैं l बे मजबूर ही रहेंगे क्योंकि उन्होंने निजहित में कमीशन जुटाना है, रिश्वत लेनी है, घूस खानी है, राष्ट्र तथा समाज की सम्पदा डकारनी है तथा भ्रष्टाचार ही फैलाना है l आप उनसे राष्ट्रहित, जनहित और समाजहित की चाहना रखना छोड़ दो l यह आपकी आशा पूर्ण होने वाली नहीं है l उनके पास अतिरिक्त कार्य करने का समय नहीं है l इसका निर्णय अब आपने मतदान करके करना है l निडर होकर मतदान कीजिये और अपनी पसंद के उम्मीदवार को विजयी बनाइए l देखना कहीं आपसे चूक न हो जाये l