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महीना: जनवरी 2022

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    1. स्वाधीनता – हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है

    मातृवंदना जनवरी 2022 

    लोकमान्य तिलक जी ने कहा था - स्वाधीनता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, हम उसे लेकर रहेंगे l 15 अगस्त 1947 से राजनीतिक दृष्टि से विश्व मानचित्र पर भारतवर्ष एक स्वतंत्र राष्ट्र है l उसका एक अपना संविधान है l दुसरे राष्ट्रों की भांति भारतवासी भी हर वर्ष अपना स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं l क्या स्वाधीनता जन साधारण तक पहुंच पाई है ?
    सदियों पूर्व हमारे देश भारतवर्ष को कमजोर करने के लिए आतताइयों ने अपने हित में साम, दाम, दंड और भेद से अनेकों षड्यंत्र आरम्भ किए थे l स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में संगठित राष्ट्र विरोधी शक्तियां आज भी सक्रिय हैं l ऐसा लगता है कि हमें अभी स्वतंत्रता की एक और लड़ाई लड़ना बाकी है l हमारे अपने जीवन से संबंधित संबोधन, वाचन, और श्रवण, पहनावा, दिनचर्या, खाना-पीना, रहन-सहन सब विदेशी हैं l शायद इसलिए कि हम लम्बे समय तक पराधीन रहे हैं, हम विदेशी सभ्यता-संस्कृति के प्रभाव में आकर उसके उपासक बन गए हैं l
    भारत की पाठशालाओं से लेकर विद्द्यालय, महा विद्द्यालय, विश्व विद्द्यालय तक सभी का शिक्षा माध्यम अंग्रेजी भाषा है l देश के हजारों विद्द्यार्थी अंग्रेजी में पढ़ने के लिए विदेशों में जाते हैं और काले अंग्रेज बनकर लौटते हैं l हमें ज्ञान–विज्ञान विकसित करने के लिये विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है l चिकित्सालयों में हम हर रोग का निदान अंग्रेजी चिकित्सा पद्दति से करवाना अच्छा समझते हैं l युगों से भारतवर्ष गौवंश का पोषक रहा है लेकिन हम गौवंश के स्थान पर मशीनों के सहारे खेती का कार्य करते हैं, यह जानते हुए भी कि गौवंश खेती के लिए कितना उपयोगी है ? अधिक पैदावार चाहने की लालसा से हम खेती में घातक कीटनाशक दवाईयों का छिड़काव, रासायनी खाद का धुंआंधार प्रयोग, दुधारू पशुओं एवम् फल-सब्जियों का टीकाकरण करते हैं l इससे खाद्द्य, पेय पदार्थों से पौष्टिकता विलुप्त हो रही है l अब खेत घातक दवाईयों व रासायनी खाद के कुप्रभाव से जहर उगलने लगे हैं l अन्न, दूध, फल, साग-सब्जियां खाद्द्य और पेय पदार्थ सब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो गए हैं l ऐसा जानकर भी हम अनजान बने हुए हैं, समाज में अनेकों समस्याएं और घातक रोग उत्पन्न हो रहे हैं l देशभर में पर्याप्त मानवी ऊर्जा होते हुए भी हम उसके स्थान पर मशीनों और मशीनी उत्पादन को बढ़ावा दे रहे हैं l युवावर्ग अपने परम्परागत कार्यों से निरंतर कट रहा है l वह हर जगह बेरोजगार दिखाई दे रहा है l उसमें दिन-प्रतिदिन अपराध की प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं l
    स्वतंत्रता की दृष्टि से भारतवर्ष कभी अपने स्वाभिमान के लिए विश्व विख्यात था l देश इतना समृद्ध एवम् वैभवशाली था कि वह सोने की चिड़िया के नाम से सर्वत्र जाना जाता था l भारत के वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों के द्वारा जिन जग-हितकारी कार्यों का शुभारम्भ किया गया था, उन्हें निरंतर जारी रखने की आवश्यकता थी, पर हम आये दिन उन्हें भूलते जा रहे हैं l बच्चों को गुरुकुलों में सत्य पर आधारित वैदिक शिक्षा दी जाती थी l संस्कृत भाषा शिक्षा का माध्यम थी l अपना हर ज्ञान-विज्ञान सम्पूर्ण विकसित था जिसे पढ़ने और सीखने के लिए विदेशों से हजारों विद्द्यार्थी हमारे देश में आते थे l चिकित्सालयों में आयुर्वेदाचर्यों द्वारा हर रोगी की चिकित्सा आयुर्वैदिक चिकित्सा पद्दति से करवाई जाती थी l
    सावधान ! 15 अगस्त 1947 से भारत स्वाधीन है मगर क्या वह स्वाधीनता जन साधारण तक पहुँच पाई है, नहीं ना ? आज हर कोई किसी न किसी रूप से पराधीन अवश्य है l देशभर में अब भी ऐसे अनेकों षड्यंत्र जारी हैं जिनसे देश की अखंडता पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं l अगर हमने विदेशी सभ्यता-संस्कृति का परित्याग करने में देरी की, अपने घर में छिपे हुए गद्दारों को पहचानकर उन्हें अलग-थलग नहीं किया और भारतीय वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों द्वारा दर्शाए गए दिव्य मार्ग को अपने जीवन में नहीं अपनाया तो वह दिन दूर नहीं कि हम विदेशियों के द्वारा रचे गए चक्कर-व्यूह में फंसकर अपने ही घर में अपने आप राजनैतिक दृष्टि से पुनः पराधीन हो जायेंगे l अनेकों सदियाँ बीत जाने के पश्चात् ही बड़ी कठिनता से डूबते हुए बेड़े को किनारे लगाने हेतु किसी एक महान, कुशल मल्लाह का जन्म होता है l अगर हम समय रहते उसे शीघ्रता से नहीं पहचान पाए, हमने उसका साथ नहीं दिया तो यह भी निश्चित है कि हमसे पुनः एक और बहुत बड़ी चूक हो जाएगी l