मातृवन्दना अगस्त 2021
क्या कभी एक देश के चार नाम आर्यावर्त, भारत वर्ष, हिंदुस्तान और इण्डिया हैं? नहीं ना, पर उन नामों पर राजनीति क्यों हो रही है, कभी सोचा अपने?
हमारे राष्ट्र का पुरातन नाम आर्यावर्त था l सतयुग, त्रेता, द्वापर तक हम सब मात्र आर्य (श्रेष्ठ) कहलाए l आर्यों में हर समय एक जोश भरा रहता था & आर्य हूँ मैं, आर्यावर्त है देश मेरा, बुरी नजर वाले की ऑंखें फोडूं, खून खौलता है मेरा l मैं ही ब्राह्मण हूँ, मैं ही क्षत्रिय हूँ, मैं ही वैश्य हूँ, में ही शूद्र हूँ लेकिन इससे पहले मैं एक आर्यवीर हूँ l वेद कहते हैं - मनुष्य बनो l हम सब संस्कृत – भाषी वेद सम्मत कार्य करते थे l फिर भी उस समय आर्यों का बहुत विरोध होता था l आर्य ऋषि आश्रमों में हो रहे पवित्र हवन कुंडों में राक्षस विघ्न डालकर हवन को अपवित्र करते थे l राक्षस आर्य ऋषियों के शत्रु थे l वे उनके शुभ कार्यों में विघ्न विघ्न डालते थे l आर्य कालीन भारत में वीर शिरोमणी भरत का जन्म हुआ था जिनके नाम पर देश का नाम भारत वर्ष रखा गया l देश भर में गौ, गंगा, गीता, गुरु, ब्राह्मण, वृद्ध और नारी का सदैव सम्मान होता था l
मुगलकाल से पूर्व देश में अनेकों सभ्यताओं का आगमन हुआ l उनमें यूनानियों ने आर्यावर्त देश को नया नाम दिया “हिंदुस्तान” l वह सप्त सिन्धु से हप्त हिन्दू, बाद में हिन्दू और फिर “हिन्दूस्तान” देश कहलाया l मुगलकाल में अरब फारसी भाषी मजहबी कुरान कहती है, सब मुस्लिम बनो l उससे जनित मुस्लिम समुदाय का इस्लामिक जिहाद व आतंकवाद का भारत में लगभग एक हजार वर्ष पूर्व आगमन हुआ था l उन्होंने मजहब के नाम पर आर्यावर्त ßअखंड भारतÞ में आर्यों के विरुद्ध असत्य, अधर्म के अधार पर कई अनाचार और अत्याचार करने आरंभ कर दिए l उनके जिहाद व के पीछे उनका एक ही उद्देश्य है – भारत का अस्तित्व मिटाना, सबको मुस्लिम बनाना और गजबा ए हिन्द की स्थापना करना l
भारत में 1600 ई0 में अंग्रेजों की “ईस्ट इण्डिया कंपनी“ की स्थापना हुई और 1757 में रावर्ट के नेतृत्व में बंगाल के नबाब सिराजुद्दौला के साथ प्लासी में युद्ध हुआ जिसमें सिराजुद्दौला की पराजय हुई l इसके पश्चात् भारत में “ईस्ट इण्डिया कंपनी“ का शासन स्थापित हो गया l धीरे - धीरे देश के अनेकों राजाओं का छल से अंत कर दिया गया, बहुत से गद्दार व जयचंद उनके साथ मिलते गए, उनकी सैन्य शक्ति बढ़ती रही और वह दिन-प्रतिदिन शक्तिशाली होते गए l 1857 ई० का क्रन्तिकारी आन्दोलन विफल हो जाने के पश्चात् गोरे अंग्रेजों ने अंग्रेजी साम्राज्य हित में भारतियों पर तरह-तरह के मनचाहे कर लगा दिए l 1885 ई0 में एक ऐसा राजनीतिक संगठन बनाया गया जिसका उदेश्य समाज में फूट डालो - राज करो की नीति अपनाना था l धर्म-संस्कृति, कृषि, ज्ञान-विज्ञान, शोध-अनुसन्धान, शिक्षा, चिकित्सा, कला और न्याय व्यवस्था का जमकर अंग्रेजीकरण किया गया l इससे भारतीय व्यवस्था प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी l
1947 ई0 में भारत से गोरे अंग्रेज चले गए फिर भी गोरे अंग्रेजों द्वारा स्थापित राजनीतिक संगठन के काले अंग्रेजों ने अंग्रेजी व्यवस्था के अनुसार भारत में अधूरे कार्यों को पूरा करना जारी रखा है l परिणाम स्वरूप हमारा देश मुस्लिम और इसाई समुदाय के षड्यंत्रों से अब भी मुक्त नहीं है l सेकुलरों ने भारत के इतिहास से छेड़छाड़ की और लुटेरे मुगलों का महिमामंडन किया गया l भारतीय संविधान पक्षपात पूर्ण इस्लामी परस्त बन गया है l मजहब के आधार पर भारत से अलग हुए दो मुस्लिम राष्ट्र मिलने पर भी मुस्लिम प्रायोजित विभिन्न जिहादी व आतंकवाद जो एक हजार वर्ष पूर्व आरंभ हुआ था, अब भी देश में जारी है l मुस्लिम समुदाय भारत के अभी और टुकड़े करना चाहता है l इसी तरह ईसाईयों की बाइबल सबको इसाई बनाना चाहती है l उनकी मिशनरियां हिन्दुओं का धर्मांतरण करके हिन्दू बहुल जन संख्या को निरंतर के किये जा रही है l देश में जिहादियों और धर्मांतरण करने वालों का भयानक षड्यंत्र जारी है ताकि वहां उनके नये इस्लामी और इसाई देश बन सकें l इस समय संसार भर में 85 इसाई देश और 58 मुस्लिम देश बन चुके हैं l
2014 के पश्चात् बहुत कुछ बदला-बदला सा अनुभव हो रहा है l सेना पहले से मजबूत हुई है l ज्ञान-विज्ञान अनुसन्धान को नई संजीवनी मिली है l निर्धनों के हित में बहुत सी योजनाओं का शुभारम्भ ही नहीं हुआ है, उन्हें लाभ भी मिल रहा है l इस प्रकार अभी बहुत से कार्य जिन पर सरकार का गंभीरता पूर्वक मंथन चल रहा है, आशा है बहुत जल्दी परिणाम सबके सामने आ जाएंगे l सरकार को एक देश के चार नाम आर्यावर्त, भारत वर्ष, हिंदुस्तान और इण्डिया में मात्र “अखंड भारत” नाम का अनुमोदन करना चाहिए ताकि इस संवेदनशील मुद्दे पर स्थाई विराम लग सके l “अखंड भारत” का इतिहासिक महत्व है, सब प्रिय देशों को मान्य होगा l उसके अंचल में समाज और धर्म-संस्कृति सुरक्षित रह सकती है. गुरुकुलों की राष्ट्रीयस्तर पर पुनर्स्थापना एवम् उनकी वृद्धि हो सकती है और सत्य, न्याय, तथा त्याग भावना भी स्वेच्छा से फूल-फल सकती है l
माना कि रोग बहुत पुराना है, मगर वर्तमान में चिकित्सा जारी है, आशा है यह चिकित्सा अवश्य कारगर सिद्ध होगी l