मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



साल: 2021

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    5. “षड्यंत्र” बार-बार लेकिन “पलटवार” एक बार !

    मातृवंदना दिसंबर 2021

    सनातन धर्म की कालगणना के अंतर्गत सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग चार युग माने गए हैं l हर युग में धर्मी और अधर्मी लोग होते हैं l इतिहास साक्षी है कि सृष्टि में जब–जब अधर्म की वृद्धि और धर्म की हानि हुई है, तब-तब धर्म की रक्षा करने हेतु किसी न किसी महान आत्मा का धरती पर अवतरण भी हुआ है जिसने धर्म की पुनर्स्थापना और अधर्म का विनाश किया है l त्रेता युग में आर्यपुत्र श्रीराम जी ने विधर्मी रावण का और द्वापर युग में श्रीकृष्ण जी ने कंस का संहार किया था l अखंड भारत की भूमि “आर्य भूमि” है l

    मुगलों के आगमन से पूर्व आर्यवर्त में “सामाजिक वर्ण व्यवस्था” कर्म आधारित सर्वमान्य थी l मुगल शासकों ने उसे अपने स्वार्थ हेतु जन्म आधारित जाति सूचक बनाया l वह आगे चलकर “वर्ण व्यवस्था” के लिए बड़ा घातक सिद्ध हुआ l लोग भूल गए कि सनातन धर्म एक विशाल वट वृक्ष समान है और “सामाजिक वर्ण व्यवस्था” के चारों वर्ण उसकी ठोस टहनियां l जातियों में विभक्त भारतीय समाज सनातन धर्म की उपेक्षा करके शनै-शनै मात्र जातियों की रक्षा-सुरक्षा करने लग गया l लोग वैदिक पेड़ सनातन धर्म की “वर्ण व्यवस्था” के स्थान पर उसके पत्ते “जातियां” बचाने का प्रयास करने लगे l
    मुगल शासनकाल ने भारत में इतना अधिक आतंक, जिहाद फैलाया और जबरन धर्मांतरण किया कि बहुत से लोगों ने अपने राष्ट्र के कुशल नेतृत्व और रक्षा-सुरक्षा के आभाव में अत्याचारी मुगलों के भय से “इस्लामी मजहब” स्वीकार कर लिया l जो नहीं माने उन्हें बड़ी निर्दयता पूर्वक मार दिया गया l उनमें एक ऐसा भी वर्ग था जिसने कभी हार नहीं मानी l उसने मरे हुए पशु उठाये, उनका चमड़ा उतारने का भी कार्य किया l कुछ लोग महलों और हवेलियों से मैला उठाने का कार्य करने लगे, वे भंगी कहलाये l उन्हें समाज में अछूत भी कहा जाने लगा l
    अंग्रेजी शासनकाल में “गुरुकुल शिक्षा–प्रणाली” को बंद करके उसके स्थान पर अंग्रेजी शिक्षा–प्रणाली आरम्भ की l अंग्रेजी स्कूल, कान्वेंट स्कूल स्थापित किये ताकि देश, धर्म-संस्कृति का मानचित्र बदला जा सके l देशभर में “गुरु-शिष्य परम्परा” की जगह निरंतर अंग्रेजी स्कूल, कान्वेंट स्कूल खुलते रहे और बच्चे सेक्युलर बनते गए l
    सेक्युलर वादी सरकारों के द्वारा “परम्परागत भारतीय इतिहास” को मनमाने ढंग से छिपाया गया l उसके स्थान पर भारत विरोधी इतिहास पाठ्यक्रमों में जोड़कर पीढ़ी दर पीढ़ी पढ़ाया गया l
    धर्म के ठेकेदारों ने भी धर्म की मनमानी परिभाषा गढ़कर भारतीय समाज को भ्रमित और दिशाहीन किया है l
    रामायण के अनुसार आर्यपुत्र श्रीराम जी का चरित्र हमें सनातन धर्म का अर्थ, कर्तव्य-पालन करना
    सिखाता है न कि उससे विमुख होना l नवयुवाओं का आर्यपुत्र लक्ष्मण की तरह गर्म खून और श्रीराम जी की तरह शीतल मस्तिष्क सर्वहितकारी हो सकता है l महाभारत में कहा गया है कि “अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है किन्तु धर्म की रक्षा करने के लिए हिंसा करना उससे भी अधिक श्रेष्ठ है l
    किसी व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र पर आई विपदा, कठिनाई, संकट और बीमारी के समय पर समर्थवान नवयुवाओं द्वारा पीड़ितों की सेवा-सुश्रुषा करने हेतु तत्परता, सहायता, सेवा, रक्षा-सुरक्षा किया जाना ही परम धर्म, परम कर्तव्य है l जिन जिहादी दानवों को लवजिहाद, आतंक और धर्मांतरण फ़ैलाने से आनंद मिलता है, उन्हें आर्यपुत्र श्रीराम, भारत, संविधान, कानून, राष्ट्रीय ध्वज और उसकी सेना से कभी प्रेम नहीं हो सकता l देशभर में लवजिहाद, आतंक और धर्मांतरण करने वाले लोगों के विरुद्ध समस्त समाज को शास्त्र और शस्त्र का उचित प्रयोग किया जाना अनिवार्य होना चाहिए l संगीत, नृत्य, अभिनय, भाषण, संवाद, लेखन जैसी विभिन्न कलाओं के पैमानों से भारत, सनातन धर्म संस्कृति और सभ्यता का सम्मान हर समय छलकना चाहिए l जो फ़िल्मी स्टार संगीत, नृत्य, अभिनय, भाषण, संवाद, लेखन जैसी कलाओं से देश धर्म-संस्कृति का अपमान करते हैं, उनका सामाजिक बहिष्कार अवश्य होना चाहिए l
    सनातन धर्म के अंतर्गत सभी मंदिरों में संस्कृत भाषा का भयमुक्त पठन-पाठन करने वाले भगवाधारी पंडितों का समाज द्वारा हार्दिक सम्मान व अभिनन्दन किया जाना चाहिए l मंदिरों द्वारा संचालित गुरुकुलों में भी देश, धर्म-संस्कृति की सेवा-कार्य करने वाले सनातनी सन्यासियों का समाज द्वारा हार्दिक सम्मान व अभिनन्दन होना चाहिए l अपने देश, धर्म-संस्कृति के विरुद्ध हो रहे निरंतर षड्यंत्रों, आक्रमणों को हम सहजता से समझ पायें, उनके विरुद्ध कुछ ठोस कदम उठा सकें, तभी हमारा जीवन सार्थक हो सकता है l मानव जीवन का उद्देश्य तो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति करना था लेकिन वर्तमान में अखंड भारत भूमि “आर्य भूमि” के आर्यपुत्र युवाओं का मात्र पैसा कमाना, परिवार को खुश रखना, मौज मस्ती करना और मात्र अपने काम तक सीमित रहना, उद्देश्य बन गया है l वर्तमान में अंग्रेजी सियार-सेक्युलर बनकर देश, धर्म-संस्कृति का बात-बात पर अधिक से अधिक राजनीति और उसका अपमान करना एक आम बात हो गई है जो एक बड़ा चिंतनीय विषय है l

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    4. संतुलित विकास की आवश्यकता

     मातृवंदना अक्तूबर 2021 पर्यावरण चेतना - 10

    जैसे-जैसे पृथ्वी पर जनसंख्या बढ़ रही है – धरती पर प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों के अनवरत दोहन में भी वृद्धि हो रही है l इस प्रकार प्राकृतिक असंतुलन बढ़ने के कारण वो दिन दूर नहीं जब मनुष्य को पृथ्वी पर पीने हेतु जल और रहने का स्थान शेष नहीं रहेगा l इसलिए आवश्यक है सही समय पर सभी लोग जाग जाएँ, वे अपनी जिम्मेदारियां समझें और पृथ्वी के प्रति अपना कर्तव्य निभाएं l 

    युगों से पृथ्वी पर मात्र मनुष्य ही नहीं रहता आया है बल्कि अन्य जीव-जन्तु जलचर, थलचर और नभचर भी रह रहे हैं l इन सबका जीवन एक दूसरे पर निर्भर करता है l हर बड़ा जीव अपनी क्षुधा शांत करने हेतु दुसरे जीव को मारता और उसे खाता है l महत्वाकांक्षी मनुष्य तो इतना व्याकुल रहता है कि वह अपनी सुख-सुविधाएँ पाने के लिए प्रकृति ही को भूल गया है l वह भूल गया है कि जननी जन्म देती है मगर उसका पालन-पोषण तो प्रकृति ही करती है l

    समस्त सुख–सुविधा सम्पन्न स्वच्छ मकान, संतुलित पौष्टिक भोजन, सस्ती बिजली, त्वरित उपयुक्त चिकित्सा, श्मशान घाट, विद्यालय, खेल व योग-प्राणायाम करने का उचित स्थान, देवालय एवम् सत्संग भवन, पशु चिकित्सालय, प्रदूषण मुक्त आवागमन के संसाधन, बारातघर, समुदायक भवन, पुस्तकालय, ग्राम पंचायतघर, बाजार तथा अनाज व सब्जी मंडी, बैंक तथा एटीएम इतियादि किसी गाँव या शहर की अपनी मूल आवश्यकताएं होती हैं l समाज का विकास होना आवश्यक है l वह विकास पोषण पर आधारित हो, शोषण पर नहीं l प्रकृति शोषण पर आधारित किसी भी मूल्य पर होने वाले विकास को कभी सहन नहीं करती है l ऐसा विकास प्राकृतिक आपदा बनकर अपना रौद्र रूप अवश्य दिखाती है l

    फिर भी मनुष्य वन कटान, अवैध खनन और अवैध निर्माण कार्य करता हुआ कथित विकास की ओर अग्रसर है मगर विनाश भी उसके साथ गतिशील है l परिणाम स्वरूप जहाँ-तहां वर्षा कम या ज्यादा होने से बाढ़ आती है, अनावश्यक जलभराव होता है, भूस्खलन हो रहे हैं, प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं मनुष्य के लिए एक ओर विकास है तो दूसरी ओर विनाश l वह एक आपदा से जूझकर निवृत होता है तो दूसरी आपदा मुंह वाय उसके सम्मुख खड़ी मिलती है l

    इस समस्या से निपटने के लिए जरूरी है जब भी कोई सरकारी या गैर सरकारी विकास योजना बनाई जाए तो उसमें दूरदर्शिता का समावेस अवश्य होना चाहिए l उससे प्रकृति पर कम से कम दुष्प्रभाव पड़ना चाहिए l जल स्रोत, जंगल वृत्त और कृषि भूमि सुनिश्चित होनी चाहिए l हर आवश्यक वृत्त वन कटान, अवैध भू-खनन और अवैध निर्माण कार्य मुक्त होना चाहिए l

    स्थानीय लोगों को विकास के साथ जोड़ना चाहिए l संतुलित विकास करने के साथ-साथ उनके द्वारा लम्बे समय तक प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना अति आवश्यक है l उसके लिए अपेक्षित प्राकृतिक पोषण के आधार पर अंतराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, प्रांतीय और क्षेत्रीय स्तर की सरकारी व गैर सरकारी सामाजिक तथा धार्मिक संस्थाओं और उनकी सहयोगी स्थानीय शाखाओं के सहयोग, श्रद्धा और सेवा-भक्ति की भावना द्वारा स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है l

    प्रकाशित मातृवंदना अक्तूबर 2021


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    3. कल्याणकारी वैदिक चिंतन – धारा

    आलेख – शिक्षा दर्पण मातृवंदना सितंबर 2021 

    बहुत समय पूर्व भारत आर्यों का देश “आर्यवर्त” था l हमारे पूर्वज आर्य (श्रेष्ठ) थे l सन्यासी जन वेद सम्मत कार्य करते थे l वे गृहस्थियों के कल्याणार्थ वेद-वाणी सुनाते थे l हम सब भारतवासी आर्य वंशज, आर्य हैं l ब्रह्मज्ञान, पराक्रम, मानवता प्रेम और पुरुषार्थ भारत को पुनः सोने की चिड़िया बनाने का मूल मन्त्र है l ब्रह्मज्ञान से मनुष्य जागरूक होता है l उसका हृदय एवं मस्तिष्क ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित होता है l जब मनुष्य इस स्थिति पर पहुँच जाता है, तब वह स्वयं के शौर्य और पराक्रम को भी पहचान लेता है l वह समाज को संगठित करके उसमें नवजीवन का संचार करता है l जिससे समाज और उसकी धन-संपदा की रक्षा एवंम सुरक्षा सुनिश्चित होती है l

    भारत की आत्मा वेद हैं, वेद ज्ञान-विज्ञान के स्रोत हैं l वेदों से भारत की पहचान है l वेद जो देववाणी पर आधारित हैं, उन्हें ऋषि-मुनियों द्वारा श्रव्य एवंम लिपिबद्ध किया हुआ माना गया है l वेदों में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वेद प्रमुख हैं l वे सब सनातन हैं l वेद पुरातन होते हुए भी सदैव नवीन हैं l उनमें कभी परिवर्तन नहीं होता है l वे कभी पुराने नहीं होते हैं l भौतिक ज्ञान-विज्ञान अर्जित करने के लिए राजगुरु, शिक्षक एवंम अध्यापक अपने पुरुषार्थी शिष्य, शिक्षार्थियों के साथ मिल-बैठकर एच्छिक एवंम रुचिकर विषयक ज्ञान-विज्ञान के पठन-पाठन का कार्य करते हैं l वे उन्हें शिक्षित-प्रशिक्षित करते हैं l उस समय वे दोनों अपनी पवित्र भावना के अनुसार परमात्मा से प्रार्थना करते हैं – “हे ईश्वर ! हम दोनों, गुरु, शिष्य की रक्षा करे l हम दोनों का उपयोग करें l हम दोनों एक साथ पुरुषार्थ करें l हमारी विद्या तेजस्वी हो l हम एक दूसरे का द्वेष न करें l ॐ शांतिः शांतिः शांतिः l संस्कृत देवों की भाषा वेद भाषा है l ब्राह्मण वेद भाषा संस्कृत पढ़ते-पढ़ाते थे, देश में सभी जन विद्वान थे l इसलिए वेद पढ़ो, वेद पढ़ाओ l भारत को सर्वश्रेष्ठ बनाओ l


    अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारत में गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली का प्रचलन था l घर से बच्चों को अच्छे संस्कार मिलने के पश्चात विद्यालय में गुरुजनों की बड़ी भूमिका होती थी l विद्यालय में अच्छे संस्कारों का संरक्षण होता था l भारत के परंपरागत गुरुकुलों में गुरुजनों के द्वारा ऐसी होनहार प्रतिभाओं को भली प्रकार परखा और फिर तराशा जाता था जो युवा होकर अपने-अपने कार्य क्षेत्र में जी-जान लगाकर कार्य करते थे l परिणाम स्वरूप हमारा भारत विश्व मानचित्र पर अखंड भारत बनकर उभरा और वह सोने की चिड़िया के नाम से सर्वविख्यात हुआ l भारतीय शिक्षा गुरुकुल परंपरा पर आधारित थी जिसमें सहयोग, सहभोज, सत्संग, लोक अनुदान की पवित्र भावना, सद्विचार, सत्कर्मों से विश्व का कल्याण होता था l


    समस्त वादिक पाठशालाओं एवंम गुरुकुलों में विद्यार्थियों को आत्मज्ञान, पराक्रम, मानवता प्रेम और पुरुषार्थ से विभिन्न अनेकों जीवनोपयोगी विद्याओं का शिक्षण-प्रशिक्षण दिया जाता था l इससे उनके शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का संतुलित विकास होता था, बदले में विद्यार्थी गुरु को गुरु दक्षिणा देते थे l


    2 फरवरी 1835 को लार्ड मैकाले द्वारा दिए गए सुझाव के अनुसार अंग्रेजों ने सन 1840 ई0 में कानून बनाकर भारत की जीवनोपयोगी गुरुकुल प्रधान शिक्षा-प्रणाली को अवैध घोषित कर दिया, जो भारतीय छात्र-छात्राओं एवंम साधकों में वैदिक धर्म, ज्ञान, कर्मनिष्ठा, शौर्यता और वीरता जैसे संस्कारों का संचार करने के कारण राष्ट्रीय एकता एवंम अखंडता के रूप में उसकी रीढ़ थी l उसके स्थान पर उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य हित की पोषक अंग्रेजी भाषी शिक्षा-प्रणाली लागू की, जो भविष्य में ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार करने में अत्यंत कारगर सिद्ध हुई, दुर्भाग्यवश वह आज भी हम सबपर प्रभावी है l


    समर्थ विद्यार्थी एवंम नागरिकों के द्वारा पुरुषार्थ करके मात्र धन अर्जित करना, अपने परिवार का पालन-पोषण करना और उसके लिए सुख-सुविधाएँ जुटाना ही पर्याप्त नहीं होना चाहिए, व्याक्ति के द्वारा किसी समय की तनिक सी चूक से मानवता के शत्रु को मानवता पीड़ित करने, उसे कष्ट पहुँचाने का अवसर मिल जाता है l वह अधर्म, अन्याय, अत्याचार, शोषण और आक्रमण का सहारा लेता है l उसके द्वारा व्यक्तिगत, पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, और राष्ट्रीय हानि पहुंचाई जाती है l आर्यजन भली प्रकार जानते थे, समाज में बिना भेदभाव के, आपस में सुसंगठित, सुरक्षित, सतर्क रहना और निरंतर सतर्कता बनाये रखना नितांत आवश्यक है l ऐसा करना साहसी वीर, वीरांगनाओं का कर्तव्य है l वह हर चुनौती का सामना करने के लिए हर समय तैयार रहते हैं और उचित समय आने पर वे उसका मुंहतोड़ उत्तर भी देते हैं l अगर यह सब गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली की देन रही है तो आइये ! हम राष्ट्र में प्रायः लुप्त हो चुकी इस व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने का पुनः प्रयास करें ताकि आर्य समाज और राष्ट्र में तेजी से बढ़ रहे अधर्म, अन्याय, अत्याचार, शोषण, और भ्रष्टाचार का जड़ से सफाया हो सके l राष्ट्र में फिर से आदर्श समाज की संरचना की जा सके l
    गुरुकुल में अध्यात्मिक एवंम भौतिक ज्ञान प्राप्त कर लेने के पश्चात् मनोयोग से पुरुषार्थी नवयुवाओं के द्वारा किया जाने वाला कोई भी कार्य सफल, श्रेष्ठ और सर्वहितकारी होता था l इसी आधार पर साहसी पुरुषार्थी व्यक्ति, निर्माता, अन्वेषक, विशिष्ट व्यक्ति, कलाकार, वास्तुकार, शिल्पकार, साहित्यकार, रचनाकार, कवि, विशेषज्ञ, दार्शनिक, साधक, ब्रह्मचारी, गृहस्थी, वानप्रस्थी, योगी और सन्यासी अपने जीवन पर्यंत अभ्यास एवंम प्रयास करते थे l इससे उनके द्वारा मानवता की सेवा तो होती ही थी, सबका कल्याण भी होता था l आइये ! हम आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ परंपरागत वैदिक शिक्षा-प्रणाली भी अपनाएं, भारत को पुनः विश्वगुरु बनाएं l ब्रह्मज्ञान, पराक्रम, मानवता प्रेम और पुरुषार्थ से ही भारत को पुनः सोने की चिड़िया बनाया जा सकता है l गाँव-गाँव मैं वैदिक पाठशालायें स्थापित करें, प्रतिभाओं को आगे बढ़ने का सुअवसर प्रदान करें, उन्हें प्रोत्साहन दें, ताकि हमारे देश का चहुमुखी विकास हो सके l


    वेद स्वयं में भारत की सत्य सनातन संस्कृति के भंडार हैं l वैदिक सोच, संस्कृत भाषा, वैदिक विचार धारा और वैदिक जीवन शैली, ब्रह्मज्ञान, पराक्रम, मानवता प्रेम और पुरुषार्थ से भारत का चहुंमुखी विकास हुआ था, ऐसा आगे भी हो सकता है l भारत को सशक्त बनाने के लिए हमें बच्चो को आधुनिक शिक्षा देने के साथ-साथ परंपरागत वैदिक शिक्षा भी अवश्य देनी चाहिए l



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    2. मान्य हो अखंड भारत

    मातृवन्दना अगस्त 2021 

    क्या कभी एक देश के चार नाम आर्यावर्त, भारत वर्ष, हिंदुस्तान और इण्डिया हैं? नहीं ना, पर उन नामों पर राजनीति क्यों हो रही है, कभी सोचा अपने?
    हमारे राष्ट्र का पुरातन नाम आर्यावर्त था l सतयुग, त्रेता, द्वापर तक हम सब मात्र आर्य (श्रेष्ठ) कहलाए l आर्यों में हर समय एक जोश भरा रहता था & आर्य हूँ मैं, आर्यावर्त है देश मेरा, बुरी नजर वाले की ऑंखें फोडूं, खून खौलता है मेरा l मैं ही ब्राह्मण हूँ, मैं ही क्षत्रिय हूँ, मैं ही वैश्य हूँ, में ही शूद्र हूँ लेकिन इससे पहले मैं एक आर्यवीर हूँ l वेद कहते हैं - मनुष्य बनो l हम सब संस्कृत – भाषी वेद सम्मत कार्य करते थे l फिर भी उस समय आर्यों का बहुत विरोध होता था l आर्य ऋषि आश्रमों में हो रहे पवित्र हवन कुंडों में राक्षस विघ्न डालकर हवन को अपवित्र करते थे l राक्षस आर्य ऋषियों के शत्रु थे l वे उनके शुभ कार्यों में विघ्न विघ्न डालते थे l आर्य कालीन भारत में वीर शिरोमणी भरत का जन्म हुआ था जिनके नाम पर देश का नाम भारत वर्ष रखा गया l देश भर में गौ, गंगा, गीता, गुरु, ब्राह्मण, वृद्ध और नारी का सदैव सम्मान होता था l
    मुगलकाल से पूर्व देश में अनेकों सभ्यताओं का आगमन हुआ l उनमें यूनानियों ने आर्यावर्त देश को नया नाम दिया “हिंदुस्तान” l वह सप्त सिन्धु से हप्त हिन्दू, बाद में हिन्दू और फिर “हिन्दूस्तान” देश कहलाया l मुगलकाल में अरब फारसी भाषी मजहबी कुरान कहती है, सब मुस्लिम बनो l उससे जनित मुस्लिम समुदाय का इस्लामिक जिहाद व आतंकवाद का भारत में लगभग एक हजार वर्ष पूर्व आगमन हुआ था l उन्होंने मजहब के नाम पर आर्यावर्त ßअखंड भारतÞ में आर्यों के विरुद्ध असत्य, अधर्म के अधार पर कई अनाचार और अत्याचार करने आरंभ कर दिए l उनके जिहाद व के पीछे उनका एक ही उद्देश्य है – भारत का अस्तित्व मिटाना, सबको मुस्लिम बनाना और गजबा ए हिन्द की स्थापना करना l
    भारत में 1600 ई0 में अंग्रेजों की “ईस्ट इण्डिया कंपनी“ की स्थापना हुई और 1757 में रावर्ट के नेतृत्व में बंगाल के नबाब सिराजुद्दौला के साथ प्लासी में युद्ध हुआ जिसमें सिराजुद्दौला की पराजय हुई l इसके पश्चात् भारत में “ईस्ट इण्डिया कंपनी“ का शासन स्थापित हो गया l धीरे - धीरे देश के अनेकों राजाओं का छल से अंत कर दिया गया, बहुत से गद्दार व जयचंद उनके साथ मिलते गए, उनकी सैन्य शक्ति बढ़ती रही और वह दिन-प्रतिदिन शक्तिशाली होते गए l 1857 ई० का क्रन्तिकारी आन्दोलन विफल हो जाने के पश्चात् गोरे अंग्रेजों ने अंग्रेजी साम्राज्य हित में भारतियों पर तरह-तरह के मनचाहे कर लगा दिए l 1885 ई0 में एक ऐसा राजनीतिक संगठन बनाया गया जिसका उदेश्य समाज में फूट डालो - राज करो की नीति अपनाना था l धर्म-संस्कृति, कृषि, ज्ञान-विज्ञान, शोध-अनुसन्धान, शिक्षा, चिकित्सा, कला और न्याय व्यवस्था का जमकर अंग्रेजीकरण किया गया l इससे भारतीय व्यवस्था प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी l
    1947 ई0 में भारत से गोरे अंग्रेज चले गए फिर भी गोरे अंग्रेजों द्वारा स्थापित राजनीतिक संगठन के काले अंग्रेजों ने अंग्रेजी व्यवस्था के अनुसार भारत में अधूरे कार्यों को पूरा करना जारी रखा है l परिणाम स्वरूप हमारा देश मुस्लिम और इसाई समुदाय के षड्यंत्रों से अब भी मुक्त नहीं है l सेकुलरों ने भारत के इतिहास से छेड़छाड़ की और लुटेरे मुगलों का महिमामंडन किया गया l भारतीय संविधान पक्षपात पूर्ण इस्लामी परस्त बन गया है l मजहब के आधार पर भारत से अलग हुए दो मुस्लिम राष्ट्र मिलने पर भी मुस्लिम प्रायोजित विभिन्न जिहादी व आतंकवाद जो एक हजार वर्ष पूर्व आरंभ हुआ था, अब भी देश में जारी है l मुस्लिम समुदाय भारत के अभी और टुकड़े करना चाहता है l इसी तरह ईसाईयों की बाइबल सबको इसाई बनाना चाहती है l उनकी मिशनरियां हिन्दुओं का धर्मांतरण करके हिन्दू बहुल जन संख्या को निरंतर के किये जा रही है l देश में जिहादियों और धर्मांतरण करने वालों का भयानक षड्यंत्र जारी है ताकि वहां उनके नये इस्लामी और इसाई देश बन सकें l इस समय संसार भर में 85 इसाई देश और 58 मुस्लिम देश बन चुके हैं l
    2014 के पश्चात् बहुत कुछ बदला-बदला सा अनुभव हो रहा है l सेना पहले से मजबूत हुई है l ज्ञान-विज्ञान अनुसन्धान को नई संजीवनी मिली है l निर्धनों के हित में बहुत सी योजनाओं का शुभारम्भ ही नहीं हुआ है, उन्हें लाभ भी मिल रहा है l इस प्रकार अभी बहुत से कार्य जिन पर सरकार का गंभीरता पूर्वक मंथन चल रहा है, आशा है बहुत जल्दी परिणाम सबके सामने आ जाएंगे l सरकार को एक देश के चार नाम आर्यावर्त, भारत वर्ष, हिंदुस्तान और इण्डिया में मात्र “अखंड भारत” नाम का अनुमोदन करना चाहिए ताकि इस संवेदनशील मुद्दे पर स्थाई विराम लग सके l “अखंड भारत” का इतिहासिक महत्व है, सब प्रिय देशों को मान्य होगा l उसके अंचल में समाज और धर्म-संस्कृति सुरक्षित रह सकती है. गुरुकुलों की राष्ट्रीयस्तर पर पुनर्स्थापना एवम् उनकी वृद्धि हो सकती है और सत्य, न्याय, तथा त्याग भावना भी स्वेच्छा से फूल-फल सकती है l
    माना कि रोग बहुत पुराना है, मगर वर्तमान में चिकित्सा जारी है, आशा है यह चिकित्सा अवश्य कारगर सिद्ध होगी l

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    1. “प्रत्याशी” जीतने की चाह !

    फरवरी 2021 मातृवंदना सामाजिक जन चेतना – 10

    भारत लोकतान्त्रिक देश में 18 वर्ष से ऊपर के हर नागरिक के द्वारा किसी भी प्रत्याशी को अपना मतदान करने का अधिकार प्राप्त है l चुनाव काल में मतदाता देश में अपनी पसंद के प्रत्याशी को अपना अमूल्य मतदान करके उसे चुनाव में विजय दिलाने का भरसक प्रयास करते हैं और प्रत्याशी को विजयी भी बनाते हैं l 

    लोकतान्त्रिक देश में किसी नेता, दल या दल की विचारधारा को लेकर उस बारे में मतदाता के द्वारा अपनी राय रखना, मत कहलाता है l इस समय देशभर में राजनीति से संबंधित कई विचार धाराएँ विद्यमान हैं l देखा जाये तो सभी विचारधाराओं के अपने-अपने राजनैतिक दल हैं और उनके विभिन्न उद्देश्य भी हैं l पर उन दलों में बहुत से नेता परिवार हित या दलहित के ही कार्य करने तक सीमित हैं l फिर भी देश हित में राष्ट्रहित में राष्ट्रवादी सोच रखने वाला, देश का मात्र एक बड़ा स्वयं सेवी संगठन और एक राजनैतिक दल भी है जो दोनों अपनी-अपनी लोकप्रिय कार्यशैली के धनी होने के कारण विश्वभर में सबसे बड़े सामाजिक और राजनैतिक संगठन माने जाते हैं l 

    लम्बे समय से मतदाता के द्वारा मतदान करने का अपना एक बहुत बड़ा महत्व रहा है l मतदाता अपना मतदान करके अपने ही पसंद के प्रत्याशी को चुनते हैं l उनके द्वारा चुने हुए प्रत्याशी आगे चलकर स्थानीय निकाय ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, नगर पालिका, जिला परिषद् का ही नहीं विधान सभा और लोक सभा का भी गठन करते हैं l इस व्यवस्था से सरकार के द्वारा प्रारम्भ किये गये विकास कार्यों का लाभ व सुविधाएँ जन-जन तक पहुंचाई जाती हैं l

    मतदान दो प्रकार के होते हैं – पहला सबसे अच्छा चुनाव वह होता है जो निर्विरोध एवं सर्व सम्मति से सम्पन्न होता है l इसमें प्रतिस्पर्धा के लिए कोई स्थान नहीं होता है और दूसरा जो मतपेटी में प्रत्याशी के समर्थन में उसके चुनाव चिन्ह पर अपनी ओर से चिन्हित की गई पर्ची डालकर या ईवीएम में किसी प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव चिन्ह का बटन दबाकर अपना समर्थन प्रकट किया जाता है, मतदान कहलाता है l लेकिन प्रतिस्पर्धा मात्र दो ही प्रत्याशी प्रति द्वद्वियों में अच्छी होती है जिसमें अधिक अंक लेने वाले की जीत और कम अंक लेने वाले की हार निश्चित होती है l इसके आगे एक पद और उसके लिए कई प्रतिद्वद्वी प्रत्याशियों के होने को चुनाव-प्रणाली का मजाक उड़ाना ही कहें तो ज्यादा अच्छा होगा l

    जब भी देश में ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, नगर पालिका या जिला परिषद् के चुनाव होते हैं l उन चुनावों में देखने को मिलता है – “पद एक और प्रत्याशी अनेक” l प्रत्याशियों की भारी भीड़ देखकर लोग निर्णय नहीं कर पाते हैं कि वे अपना मत किसे दें ? एकल पद प्रधान, उप प्रधान तथा सात पद पंचों के, अनेकों प्रत्याशी जिनमें अपराध/भ्रष्ट प्रवृत्ति के लोग भी विद्यमान होते हैं, खड़े हो जाते हैं परन्तु वे समाज और राष्ट्रहित में क्या सोचते व करना चाहते हैं उनका घोषणा पत्र क्या है ? उसे लोग चुनाव हो जाने तक नहीं जान पाते हैं l किसी प्रत्याशी की मंशा जाने बिना, लोग उसे अपना मत कैसे दें ?

    ऐसे वातावरण में हर जागरूक मतदाता के मन में मतदान हेतु “मैं मत किसे दूँ?” से संबंधित अनेकों प्रश्न पैदा हो जाते हैं और वह निश्चय भी करता है कि मैं लहर नहीं, पहले व्यक्ति देखूंगा l मैं प्रचार नहीं, छवि देखूंगा l मैं धर्म नहीं, विजन देखूंगा l मैं दावे नहीं, समझ देखूगा l मैं नाम नहीं, नियत देखूंगा l मैं प्रत्याशी की प्रतिभा देखूंगा, मैं पार्टी को नहीं, प्रत्याशी को देखूंगा l मैं किसी प्रलोभन में नहीं आऊंगा l इस तरह मतदाता का जागरूक होना परम आवश्यक है और स्वभाविक भी l 

    चुनाव प्रचार के समय विभिन्न प्रत्याशियों के द्वारा गाँव की गलियों के मकानों व बाजार की दुकानों की दीवारों पर बड़े-बड़े पोस्टर लगवा दिए जाते हैं l जिन पर लिखा होता है – हमने काम किया है, काम करेंगे l आप अपना कीमती वोट विकास व समृद्धि के लिए कर्मठ, मेहनती, योग्य, जुझारू समाज सेवक को देकर कामयाब करें l आप अपना वोट शिक्षित, इमानदार, एवं सशक्त उम्मीदवार ही को दें l “एक कदम विकास की ओर” नेता नहीं, जन सेवक चुने l अगर यही प्रत्याशी चुनाव जीतकर अपने-अपने क्षेत्रों में इसी भावना, सोच एवं विचार से कार्य करें तो कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि भारत कुछ ही वर्षों में विश्व में पुनः सोने की चिड़िया बन सकता है, पर ऐसा होगा कब ?

    वर्तमान काल में बहुत से प्रत्याशियों के लिए राजनैतिक विषय समाज सेवा नहीं, मात्र एक व्यवसाय बनकर रह गया है l जितनी अधिक भीड़ किसी मेले में नहीं होती है, कहीं उससे अधिक चुनाव के समय प्रत्याशियों की देखी जा सकती है l ऐसे समय में वे मियां मिट्ठू अधिक दिखाई देते हैं, जबकि उनमें राष्ट्रीय भावना, धर्म-संस्कृति और देश से प्रेम का अभाव रहता है, उन्हें समाज सेवा कम और निजहित तथा परिवार हित अधिक दिखाई देता है l जिनसे आगे चलकर मानसिक कुवृत्तियों और अन्य अनेक प्रकार की सामाजिक विसंगतियों का जन्म होता है जो देश, धर्म और समाज किसी के लिए भी अहितकारी होती हैं l 

    स्थानीय चुनाव के इस सामाजिक पर्व में हर किसी मतदाता को अपना अमूल्य मतदान उसी प्रत्याशी को करना चाहिए जिस प्रत्याशी को देश, धर्म-संस्कृति का अच्छा ज्ञान हो l जिसमें देश, धर्म-संस्कृति की रक्षा और सेवा करने का दम हो l वही युवा प्रत्याशी राष्ट्र की रीढ़ है जो सुसंगठित, अनुशासित, चरित्रवान और कार्य कुशल हो l एक कदम “ग्राम स्वराज” की ओर, बढ़ने वाला नेता नहीं, जन सेवक होना चाहिये l चुनाव दलगत होकर भी निर्विरोध /सर्वसम्मति से संपन्न होने चाहियें l ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, नगर पालिका, जिला परिषद्, विधान सभा और लोक सभा के चुनावों में प्रत्याशियों की संख्या आम सहमति से कम से कम हो, उनमें से किसी एक प्रत्याशी की हार या एक की जीत रोमांचित तो अवश्य होनी ही चाहिए l

    प्रकाशित फरवरी 2021 मातृवंदना